कबीर, गुरु-गुरु में भेद है, गुरु-गुरु में भाव ।
सोइ गुरु नित बन्दिये, शब्द बतावे दाव ॥
(१) प्रथम गुरू है पिता और माता।
जो है रक्त बीज के दाता॥
(२) दुजा गुरू है भाई व दाई।
जो गर्भवास की मैल छुड़ाई॥
(३) तिजा गुरू नाम जो धारा।
सोई नाम से जगत पुकारा॥
(४) चौथा गुरु जो शिक्षा दिन्हा।
तब संसार मार्ग चिन्हा॥
(५) पांचवा गुरू जो दीक्षा दिन्हा।
राम कृष्ण का सुमिरन दिन्हा।।
(६) छठवां गुरू भरम सब तोड़ा।
ॐकार से नाता जोड़ा॥
(७) सातवां गुरू सतगुरु कहाया।
जांहा का जीव ताहां पठाया
बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज की जय
स्वांस सफल सो जानिये हरि सुमिरन मैं जाय , और स्वांस यूंही गये करि करि बहूत उपाय , जाकी पुँजी स्वांस है छिन आवे छिन जाय , ताकूं ऐसा चाहिये रहै राम ल्यौ लाय ।सतगुरू देव जी की जय हो , परमेश्वर जी की सभी हंस आत्माओ को दास का सत् साहेब जी
स्वांस सफल सो जानिये हरि सुमिरन मैं जाय , और स्वांस यूंही गये करि करि बहूत उपाय , जाकी पुँजी स्वांस है छिन आवे छिन जाय , ताकूं ऐसा चाहिये रहै राम ल्यौ लाय ।सतगुरू देव जी की जय हो , परमेश्वर जी की सभी हंस आत्माओ को दास का सत् साहेब जी
Jai gurudev
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