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Monday, December 28, 2015

जरा सोचिये समुंद्र ने राम की पूरी सेना मे केवल नल नील का ही नाम क्यो लिया.. नल नील मे ऐसा क्या था जो उनमे सामने हनुमान राम लक्ष्मण सभी फेल हो गये थे????

जरा सोचिये समुंद्र ने राम की पूरी सेना मे केवल नल नील का ही नाम क्यो लिया.. नल नील मे ऐसा क्या था जो उनमे सामने हनुमान राम लक्ष्मण सभी फेल हो गये थे????
आपने अधुरी कथा सुनी है कृप्या अब पूरी सुनिये
कृपया विस्तार से पढे..
<< त्रेता युग में कविर्देव (कबीर साहेब) का मुनिन्द्र नाम से प्राकाट्य >>
त्रेता युग में स्वयंभु (स्वयं प्रकट होने वाला) कविर्देव
(कबीर परमेश्वर) रूपान्तर करके मुनिन्द्र ऋषि के नाम से
आए हुए थे। अनल अर्थात् नल तथा अनील अर्थात् नील।
दोनों आपस में मौसी के पुत्र थे। माता-
पिता का देहान्त हो चुका था। नल तथा नील
दोनों शारीरिक व मानसिक रोग से अत्यधिक पीड़ीत
थे। सर्व ऋषियों व सन्तों से कष्ट निवारण
की प्रार्थना कर चुके थे। सर्व सन्तों ने
बताया था कि यह आप का प्रारब्ध का पाप कर्म
का दण्ड है, यह आपको भोगना ही पड़ेगा। इसका कोई
समाधान नहीं है। दोनों दोस्त जीवन से निराश होकर
मृत्यु का इंतजार कर रहे थे।
एक दिन दोनों को मुनिन्द्र नाम से प्रकट पूर्ण
परमात्मा का सतसंग सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। सत्संग
के उपरांत ज्यों ही दोनों ने परमेश्वर कविर्देव (कबीर
साहेब) उर्फ मुनिन्द्र ऋषि जी के चरण छुए तथा परमेश्वर
मुनिन्द्र जी ने सिर पर हाथ
रखा तो दोनों का असाध्य रोग छू मन्तर
हो गया अर्थात् दोनों नल तथा नील स्वस्थ हो गए।
इस अद्धभुत चमत्कार को देख कर प्रभु के चरणों में गिर
कर घण्टों रोते रहे तथा कहा आज हमें प्रभु मिल
गया जिसकी तलाश थी तथा उससे प्रभावित होकर
उनसे नाम (दीक्षा) ले लिया तथा मुनिन्द्र साहेब
जी के साथ ही सेवा में रहने लगे। पहले संतों का समागम
पानी की व्यवस्था देख कर नदी के किनारे पर
होता था। नल और नील दोनों बहुत प्रभु
प्रेमी तथा भोली आत्माएँ थी। परमात्मा में
श्रद्धा बहुत थी। सेवा बहुत किया करते थे। समागमों में
रोगी व वद्ध व विकलांग भक्तजन आते तो उनके कपड़े
धोते तथा बर्तन साफ करते। उनके लोटे और गिलास मांज
देते थे। परंतु थे भोले से दिमाग के। कपड़े धोने लग जाते
तो सत्संग में जो प्रभु
की कथा सुनी होती उसकी चर्चा करने लग जाते। वे
दोनों प्रभु चर्चा में बहुत मस्त हो जाते और वस्तुएँ
दरिया के जल में डूब जाती।
उनको पता भी नहीं चलता। किसी की चार वस्तु ले
कर जाते तो दो वस्तु वापिस ला कर देते थे। भक्तजन
कहते कि भाई आप सेवा तो बहुत करते हो, परंतु
हमारा तो बहुत काम बिगाड़ देते हो। ये खोई हुई वस्तुएँ
हम कहाँ स ले कर आयें? आप हमारी सेवा ही करनी छोड़
दो। हम अपनी सेवा आप ही कर लेंगे। फिर नल
तथा नील रोने लग जाते थे कि हमारी सेवा न छीनों।
अब की बार नहीं खोएँगे। परन्तु फिर वही काम करते।
फिर प्रभु की चर्चा में लग जाते और वस्तुएँ दरिया जल में
डूब जाती। भक्तजनों ने ऋषि मुनिन्द्र जी से
प्रार्थना की कि कृपया नल तथा नील को समझाओ।
ये न तो मानते है और मना करते हैं तो रोने लग जाते हैं।
हमारी तो आधी भी वस्तुएँ वापिस नहीं लाते। ये
नदी किनारे सत्संग में सुनी भगवान की चर्चा में मस्त
हो जाते हैं और वस्तुएँ डूब जाती हैं।
मुनिन्द्र साहेब ने एक दो बार तो उन्हें समझाया। वे
रोने लग जाते थे कि साहेब हमारी ये सेवा न छीनों।
सतगुरु मुनिन्द्र साहेब ने कहा बेटा नल तथा नील खूब
सेवा करो, आज के बाद आपके हाथ से कोई भी वस्तु
चाहे पत्थर या लोहा भी क्यों न हो जल में
नहीं डुबेगी। मुनिन्द्र साहेब ने उनको यह आशीर्वाद दे
दिया।
आपने रामायण सुनी है। एक समय की बात है
कि सीता जी को रावण उठा कर ले गया। भगवान
राम को पता भी नहीं कि सीता जी को कौन
उठा ले गया? श्री रामचन्द्र जी इधर उधर खोज करते हैं।
हनुमान जी ने खोज करके
बताया कि सीता माता लंकापति रावण (राक्षस)
की कैद में है। पता लगने के बाद भगवान राम ने रावण के
पास शान्ति दूत भेजे
तथा प्रार्थना की कि सीता लौटा दे। परन्तु रावण
नहीं माना। युद्ध की तैयारी हुई। तब समस्या यह आई
कि समुद्र से सेना कैसे पार करें?
भगवान श्री रामचन्द्र ने तीन दिन तक घुटनों पानी में
खड़ा होकर हाथ जोड़कर समुद्र से
प्रार्थना की कि रास्ता दे दे। परन्तु समुद्र टस से मस न
हुआ। जब समुद्र नहीं माना तब श्री राम ने उसे
अग्नि बाण से जलाना चाहा। भयभीत समुद्र एक
ब्राह्मण का रूप बनाकर सामने आया और
कहा कि भगवन सबकी अपनी-अपनी मर्यादाएँ हैं। मुझे
जलाओ मत। मेरे अंदर न जाने कितने जीव-जंतु बसे हैं। अगर
आप मुझे जला भी दोगे तो भी आप मुझे पार नहीं कर
सकते, क्योंकि यहाँ पर बहुत गहरा गड्डा बन जायेगा,
जिसको आप कभी भी पार नहीं कर सकते। समुद्र ने
कहा भगवन ऐसा काम करो कि सर्प भी मर जाए और
लाठी भी न टूटे। मेरी मर्यादा भी रह जाए और
आपका पुल भी बन जाए। तब भगवान श्री राम ने समुद्र
से पूछा कि वह क्या विधि है ? ब्राह्मण रूप में खडे
समुद्र ने कहा कि आपकी सेना में नल और नील नाम के
दो सैनिक हैं। उनके पास उनके गुरुदेव से प्राप्त एक
ऐसी शक्ति है कि उनके हाथ से पत्थर भी जल पर तैर
जाते हैं। हर वस्तु चाहे वह लोहे की हो, तैर जाती है।
श्री रामचन्द्र ने नल तथा नील को बुलाया और उनसे
पूछा कि क्या आपके पास कोई ऐसी शक्ति है? नल
तथा नील ने कहा कि हाँ जी, हमारे हाथ से पत्थर
भी जल नहीं डूबेंगे । श्रीराम ने कहा कि परीक्षण
करवाओ। उन नादानों (नल-नील) ने सोचा कि आज
सब के सामने तुम्हारी बहुत महिमा होगी। उस दिन
उन्होंने अपने गुरुदेव भगवान मुनिन्द्र(कबीर साहेब)
को यह सोचकर याद नहीं किया कि अगर हम
उनको याद करेंगे तो कहीं श्रीराम ये न सोच लें
कि इनके पास शक्ति नहीं है, यह तो कहीं और से मांगते
हैं। उन्होंने पत्थर उठाकर पानी में डाला तो वह पत्थर
पानी में डूब गया। नल तथा नील ने बहुत कोशिश की,
परन्तु उनसे पत्थर नहीं तैरे। तब भगवान राम ने समुद्र
की ओर देखा मानो कहना चाह रहे हों कि आप
तो झूठ बोल रहे हो। इनमें तो कोई शक्ति नहीं है। समुद्र
ने कहा कि नल-नील आज तुमने अपने गुरुदेव को याद
नहीं किया। नादानों अपने गुरुदेव को याद करो। वे
दोनों समझ गए कि आज तो हमने गलती कर दी। उन्होंने
सतगुरु मुनिन्द्र साहेब जी को याद किया। सतगुरु
मुनिन्द्र (कबीर साहेब) वहाँ पर पहुँच गए। भगवान
रामचन्द्र जी ने कहा कि हे ऋषिवर! मेरा दुर्भाग्य है
कि आपके सेवकों के हाथों से पत्थर नहीं तैर रहे हैं।
मुनिन्द्र साहेब ने कहा कि अब इनके हाथ से तैरेंगे
भी नहीं, क्योंकि इनको अभिमान हो गया है। सतगुरु
की वाणी प्रमाण करती है किः-
गरीब, जैसे माता गर्भ को, राखे जतन बनाय।
ठेस लगे तो क्षीण होवे, तेरी ऐसे भक्ति जाय।।
उस दिन के पश्चात् नल तथा नील की वह
शक्ति समाप्त हो गई। श्री रामचन्द्र जी ने परमेश्वर
मुनिन्द्र साहेब जी से कहा कि हे ऋषिवर! मुझ पर बहुत
आपत्ति आयी हुई है। दया करो किसी प्रकार
सेना परले पार हो जाए। जब आप अपने
सेवकों को शक्ति दे सकते हो तो प्रभु कुछ रजा करो।
मुनिन्द्र साहेब ने कहा कि यह जो सामने वाला पहाड़
है, मैंने उसके चारों तरफ एक रेखा खींच दी है। इसके
बीच-बीच के पत्थर उठा लाओ, वे नहीं डूबेंगे। श्री राम
ने परीक्षण के लिए पत्थर मंगवाया। उसको पानी पर
रखा तो वह तैरने लग गया। नल तथा नील कारीगर
(शिल्पकार) भी थे। हनुमान जी प्रतिदिन भगवान याद
किया करते थे। उसने अपनी दैनिक क्रिया भी साथ
रखी
राम राम भी लिखता रहा और पहाड़ के पहाड़ उठा कर
ले आता था। नल नील उनको जोड़-तोड़ कर पुल में
लगा लेते थे। इस प्रकार पुल बना था। धर्मदास जी कहते
हैं:-
रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने
वाले।
धन-धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।
कबीर साहेब जी ने इस प्रसंग के बारे में अपनी वाणी में
खुद प्रमाण देते हुए कहा है ::-
त्रेता में नल नील चेताया,लंका में चन्द्र विजय
समझाया।
सीख मन्दोदरी रानी मानी, समझा नहीं रावण
अभिमानी।।
विभिषण किन्ही सेव हमारी, तातें हुआ
लंका छत्तरधारी।
हार गए थे जब त्रिभुवन राया, समुद्र पर सेतु मैं
ही बनवाया।।
तीन दिवश राम अर्ज लगाई, समुद्र
प्रकट्या युक्ति बताई।
नल नील की शक्ति बताई, नल नील में मस्ती छाई।।
उन नहीं किन्हा याद गुरूदेव, तातें हम शक्ति छीन लेव।
नल नील को लगी अंघाई, तातें पत्थर तिरे नहीं भाई।।
मैं किन्हें हल्के वे पत्थर भारी, सेतु बांध रघुवर
सेना तारी।
लीन्हें चरण राम जब मोरे, लक्ष्मण ने दोहों कर जोरे।।
दोनों बोले एक बिचार, ऋषिवर तुम्हरी शक्ति अपार।
हनुमान नत मस्तक होया, अंगद सुग्रीव ने माना लोहा।।
सेतु बन्ध का भेद न जाने भाई, सुकी दीन्हीं राम बड़ाई।
रामचन्द्र कह कोई शक्ति न्यारी, जिन्ह यह
रचि सृष्टी सारी।।
अज्ञानी कहें रामचन्द्र रचनेहारा, जिने दशरथ घर
लीन्हा अवतारा।
ऐसी भूल पड़ी धर्मदासा, यथार्थ ज्ञान न किस
ही पासा।।
कोई कहता था कि हनुमान जी ने पत्थर पर राम
का नाम लिख दिया था इसलिए पत्थर तैर गये। कोई
कहता था कि नल-नील ने पुल बनाया था। कोई
कहता था कि श्रीराम ने पुल बनाया था। परन्तु यह सत
कथा ऐसे है, जैसे आपको ऊपर बताई गई है।
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(सत कबीर की साखी - पेज 179 से 182 तक)
-:पीव पिछान को अंग:-
कबीर- तीन देव को सब कोई ध्यावै, चैथे देव का मरम न
पावै।
चैथा छाड़ पंचम को ध्यावै, कहै कबीर सो हम पर आवै।।
3।।
कबीर- ओंकार निश्चय भया, यह कर्ता मत जान।
साचा शब्द कबीर का, परदे मांही पहचान।।5।।
कबीर- राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नांही संसार।
जिन साहेब संसार किया, सो किन्हूं न जन्म्या नार।।
17।।
कबीर - चार भुजा के भजन में, भूलि परे सब संत।
कबिरा सुमिरो तासु को, जाके भुजा अनंत।।23।।
कबीर - समुद्र पाट लंका गये, सीता को भरतार।
ताहि अगस्त मुनि पीय गयो, इनमें को करतार।।26।।
कबीर - गोवर्धनगिरि धारयो कृष्ण जी,
द्रोणागिरि हनुमंत।
शेष नाग सब सृष्टि सहारी, इनमें को भगवंत।।27।।

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