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Monday, December 28, 2015

जब लग नाता जगत का, तब लग भक्ति न होय । नाता तोड़े हरि भजे, भगत कहावें सोय ॥७



जब लग नाता जगत का, तब लग भक्ति न होय ।
नाता तोड़े हरि भजे, भगत कहावें सोय ॥७

दिव्य दृष्टि खुली हमारी, सार शब्द से टोया वो |
गरीबदास गायत्री लापी, शीश पीट जम रोया वो ||
खान पान कुछ करदा नाही, है महबूब अचारी वो |
कौम छत्तीस रीत सब दुनिया, सब से रहै विचारी वो |
... बेपरवाह शाहनपति शाहं, जिन ये धारना धारी वो |
अन्तोल्या अन्मोल्या देवै, करोड़ी लाख हजारी वो |
अरब ख़रब और नील पदम् लग, संखो संख भंडारी वो |
जो सेवै ताहि को खेवै, भवजल पार उतारी वो |
सुरति निरति गल बंधन डोरी, पावै बिरह अजारी वो |
ब्रह्मा विष्णु महेश सरीखे, उसकी उठावैं झारी वो |
शेष सहंस्र मुख करे विनती, हरदम बारम्बारी वो |
शब्द अतीत अनाहद पद है, ना वो पुरुष ना नारी वो |
सूक्ष्म रूप स्वरुप समाना, खेलैं अधर अधारी वो |
जाकूं कहै कबीर जुलाहा, रची सकल संसारी वो |
गरीबदास शरणागति आये, साहिब लटक बिहारी वो ||
मंद-मंद मुस्कात मुसाफिर, है महबूब परेवा वो |
ब्रह्मा विष्णु महेश शेष से, सब देवनपति देवा वो |
अमृतकंद इन्द्री नहीं मोसर, अमी महारस मेवा वो |
कोटि सिद्ध परसिद्ध चरण में, जाकी कर ले सेवा वो |
तीरथ कोटि नदी सब चरणों, गंगा जमुना रेवा वो |
सबके घर दर आगे ठाढा, कोई ना जाने भेवा वो |
रिंचक सा प्रपंच भरया है, अवगत अलख अभेवा वो |
समर्थ दाता कबीर धनि है, और सकल है लेवा वो |
गरीबदास कूं सतगुरु मिलिया, भवसागर का खेवा वो


कबीरा।हरि।की।भगति करो।
तज विषयोँ रस चोज
बार।बार।न पाओगे
मानुष।जन्म।की।मौज
सत् साहेब

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