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Saturday, January 2, 2016

भक्ति bhakti

परमेश्वर कबीर जी :-
1>भक्ति बीज पलटै नहीं, जो जुग जाय अनन्त ।
ऊँच नीच घर अवतरै, होय सन्त का सन्त ॥
अर्थ --
की हुई भक्ति के बीज निष्फल नहीं होते चाहे अनंतो युग बीत जाये । भक्तिमान जीव सन्त का सन्त ही रहता है चाहे वह ऊँच - नीच माने गये किसी भी वर्ण - जाती में जन्म ले ।
2>भक्ति पदार्थ तब मिलै, तब गुरु होय सहाय ।
प्रेम प्रीति की भक्ति जो, पूरण भाग मिलाय ।।
अर्थ --
भक्तिरूपी अमोलक वस्तु तब मिलती है जब यथार्थ सतगुरु मिलें और उनका उपदेश प्राप्त हो । जो प्रेम - प्रीति से पूर्ण भक्ति है, वह पुरुषार्थरुपी पूर्ण भाग्योदय से मिलती है ।
3>भक्ति जो सीढ़ी मुक्ति की, चढ़ै भक्त हरषाय ।
और न कोई चढ़ि सकै, निज मन समझो आय ।।
अर्थ --
भक्ति मुक्ति की सीढ़ी है, इसलिए भक्तजन खुशी - खुशी उस पर चढते हैं । आकर अपने मन में समझो, दूसरा कोई इस भक्ति सीढी पर नहीं चढ़ सकता ।
(सत्य की खोज ही भक्ति है)
4>भक्ति बिन नहिं निस्तरे, लाख करे जो कोय ।
शब्द सनेही होय रहे, घर को पहुँचे सोय ।।
अर्थ --
कोई भक्ति के बिना मुक्ति नहीं पा सकता चाहे लाखो लाख यत्न कर ले । जो गुरु के निर्णय वचनों का प्रेमी होता है, वही सत्संग द्वरा अपनी स्थिति
को प्राप्त करता है ।
5>भक्ति गेंद चौगान की, भावै कोइ लै लाय ।
कहैं कबीर कुछ भेद नहिं, कहाँ रंक कहँ राय ।।
अर्थ --
भक्ति तो मैदान में गेंद के समान सार्वजनिक है, जिसे अच्छी लगे, ले जाये । कबीर जी कहते हैं कि, इसमें धनी -गरीब, ऊँच - नीच का भेदभाव नहीं है ।
6>कबीर गुरु की भक्ति बिन, धिग जीवन संसार ।
धुँवा का सा धौलहरा, जात लगै न बार ।।
अर्थ --
कबीर जी कहते हैं कि बिना गुरु भक्ति संसार में जीना धिक्कार है । यह माया तो धुएं के महल के समान है, इसके खत्म होने में समय नहीं लगता ।
7>जब लग नाता जाति का, तब लग भक्ति न होय ।
नाता तोड़े गुरु बजै, भक्त कहावै सोय ।।
अर्थ --
जब तक जाति - भांति का अभिमान है तब तक कोई भक्ति नहीं कर सकता । सब अहंकार को त्याग कर गुरु
की सेवा करने से गुरु - भक्त कहला सकता है ।
8>भाव बिना नहिं भक्ति जग, भक्ति बिना नहीं भाव ।
भक्ति भाव एक रूप हैं, दोऊ एक सुभाव ।।
अर्थ --
भाव (प्रेम) बिना भक्ति नहीं होती, भक्ति बिना भाव (प्रेम) नहीं होते । भाव और भक्ति एक ही रूप के दो नाम हैं, क्योंकि दोनों का स्वभाव एक
ही है ।
9>जाति बरन कुल खोय के, भक्ति करै चितलाय ।
कहैं कबीर सतगुरु मिलै, आवागमन नशाय ।।
अर्थ --
जाति, कुल और वर्ण का अभिमान मिटाकर एवं मन लगाकर भक्ति करे । यथार्थ सतगुरु के मिलने पर आवागमन का दुःख अवश्य मिटेगा ।
10>कामी क्रोधी लालची, इतने भक्ति न होय ।
भक्ति करे कोई सुरमा, जाति बरन कुल खोय ।।
अर्थ --
कामी, क्रोधी और लालची लोगो से भक्ति नहीं हो सकती । जाति, वर्ण और कुल का मद मिटाकर, भक्ति तो कोई शूरवीर करता है ।
जय कबीर परमेश्वर जी की जय

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