Supreme God Kabir Sahib in Guru Granth Sahib - Guru Nanak Dev Ji
Guru Nanak Dev Ji has mentioned about Supreme God Kabir Sahib in Shri Guru Granth Sahib and also written His name as "Hakka Kabir".
Rag Tilang, Mehla 1, Page 721, Shri Guru Granth Sahib
यक अर्ज गुफतम पेश तो दर गोश कुन करतार।
हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदगार।।
दूनियाँ मुकामे फानी तहकीक दिलदानी।
मम सर मुई अजराईल गिरफ्त दिल हेच न दानी।।
जन पिसर पदर बिरादराँ कस नेस्त दस्तं गीर।
आखिर बयफ्तम कस नदारद चूँ शब्द तकबीर।।
शबरोज गशतम दरहवा करदेम बदी ख्याल।
गाहे न नेकी कार करदम मम ई चिनी अहवाल।।
बदबख्त हम चु बखील गाफिल बेनजर बेबाक।
नानक बुगोयद जनु तुरा तेरे चाकरा पाखाक।।
सरलार्थ:-- (कुन करतार) हे शब्द स्वरूपी कर्ता अर्थात् शब्द से सर्व सष्टी के रचनहार (गोश) निर्गुणी संत रूप में आए (करीम) दयालु (हक्का कबीर) सत कबीर (तू) आप (बेएब परवरदिगार) निर्विकार परमेश्वर हंै। (पेश तोदर) आपके समक्ष अर्थात् आप के द्वार पर (तहकीक) पूरी तरह जान कर (यक अर्ज गुफतम) एक हृदय से विशेष प्रार्थना है कि (दिलदानी) हे महबूब (दुनियां मुकामे) यह संसार रूपी ठिकाना (फानी) नाशवान है (मम सर मूई) जीव के शरीर त्यागने के पश्चात् (अजराईल) अजराईल नामक फरिश्ता यमदूत (गिरफ्त दिल हेच न दानी) बेरहमी के साथ पकड़ कर ले जाता है। उस समय (कस) कोई (दस्तं गीर) साथी (जन) व्यक्ति जैसे (पिसर) बेटा (पदर) पिता (बिरादरां) भाई चारा (नेस्तं) साथ नहीं देता। (आखिर बेफ्तम) अन्त में सर्व उपाय (तकबीर) फर्ज अर्थात् (कस) कोई क्रिया काम नहीं आती (नदारद चूं शब्द) तथा आवाज भी बंद हो जाती है (शबरोज) प्रतिदिन (गशतम) गसत की तरह न रूकने वाली (दर हवा) चलती हुई वायु की तरह (बदी ख्याल) बुरे विचार (करदेम) करते रहते हैं (नेकी कार करदम) शुभ कर्म करने का (मम ई चिनी) मुझे कोई (अहवाल) जरीया अर्थात् साधन (गाहे न) नहीं मिला (बदबख्त) ऐसे बुरे समय में (हम चु) हमारे जैसे (बखील) नादान (गाफील) ला परवाह (बेनजर बेबाक) भक्ति और भगवान का वास्तविक ज्ञान न होने के कारण ज्ञान नेत्रा हीन था तथा ऊवा-बाई का ज्ञान कहता था। (नानक बुगोयद) नानक जी कह रहे हैं कि हे कबीर परमेश्वर आप की कपा से (तेरे चाकरां पाखाक) आपके सेवकों के चरणों की धूर डूबता हुआ (जनु तूरा) बंदा पार हो गया।
English - Oh Shabd Swaroopi Ram i.e. the Creator of the entire nature by word, kind “Sat Kabir” (Hakka Kabir), who has come in the form of Nirguni Sant, You are flawless God. There is a special request from the heart before you that I have completely realized that oh Beloved, this world-like residence is destructible. Oh Benefactor, on the death of this living being, a messenger of Yam named Ajrail, capturing mercilessly takes one away. At that time, no companion or person like son, father, or relative gives company. In the end, all the schemes, obligations, and actions are of no use, and even one loses one’s voice. Everyday, evil thoughts like non-stop blowing wind keep patrolling. I did not get any means of doing meritorious acts. In such a bad time Kalyug, the ignorant and careless like us, because of not having the knowledge of the true path I was devoid of the vision of knowledge and used to give baseless knowledge based on folklore. Nanak ji is saying that I, the dust of the feet of your servants, the drowning man got across.
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