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Friday, February 19, 2016

।। शब्द ।। आज लग्या साहिँब को भोग sabda


आज लग्या साहिँब को भोग,
दीन के टुकड़े पानी का ।।
कोई जग्या पूर्बला भाग ,
सफल हुआ दिन
जिन्दगानी का ।।टेक।।
व्यंजन छतिसोँ यह नहीँ चावैँ,
जो मिल जावै रुचि-2 पावैँ,
प्रसाद अलूणा ये खा जावैँ,
भाव ले देँख प्राणी का ।1।
सम्मन जी ने भोग लगाया,
सिर लड़के का काटकै लाया,
बन्दीँ छोँड़ ने तुरुन्त जिवाया,
पाया फल संत यजमानि का ।2।
जिन भगतोँ के यह भोग लग जाए ,
उनके तीनोँ ताप नसाए ।
कोटि तीर्थ का फल वो पाए,
लाभ यह संतो की वाणी का ।3।
संतोँ की वाणी है अनमोल ,
इसे ना समझ सकैँ अनभोल।
साहिँब ने भेद दिया सब खोल ,
अपनी सतलोक राजधानी का ।4।
बली राजा ने धर्म किया था,
हरि ने आ के दान लिया था,
पाताल लोक का राज दिया था ,
उँचा है दर्जा दानी का ।5।
धर्म दास ने यज्ञ रचाई ,
बिन दर्शन नहीँ जीऊं गुसाई।
दर्शन दे कर प्यास बुझाई,
भाव लिया देँख कुर्बानी का ।6।
रह्या क्योँ मोह ममता मेँ सोय ,
जगत मेँ जीवन है दिन दोय।
पता ना आवन हो कै ना होय,
तेरे इस स्वांस सैलानि का ।7।
जीव जो ना सतसंग मेँ आया,
भेद ना उसे भजन का पाया।
गरीब दास को इस दुनिय स्यानि का ।8।
साध संगत से भेद जो पाया,
गुरु रामदेवानन्द जी ने सफल बनाया ।
संत रामपाल को राह दिखाया ,
श्री धाम छुड़ानी का ।।9।।

|| सत साहिँब  ||

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