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Saturday, March 19, 2016

क्या गावेँ दिवाने , घर दुर क्या गावेँ ।

क्या गावेँ दिवाने ,
घर दुर क्या गावेँ ।
अनलहक सिरेँ को पोहँची ,
सुली चढ़े मनसूर ।।
क्या गावेँ दिवाने ,
घर दुर क्या गावेँ ।
शेखफरीद कुऐँ मेँ लटकेँ ,
हो गए चुरा-चुर ।
दिवाने क्या गावेँ ,
सुलतानी तज गए बलख कुँ,
छोड़ी 16 संहससर हूर ।
दिवाने क्या गावेँ ,
गोपिचन्द भरतरी योगी ,
सिर डाली धुर ।
दिवानेँ क्या गावेँ ,
दादुदास सदा मतवालेँ ,
झिलमिल-2 नूर ।
दिवानेँ क्या गावेँ ,
जन रे दास कबीर कमाला,
सम्मुख मिले हजुर ।
दिवाने क्या गावेँ ,
दोनो दीन मुक्ति को चावेँ ,
खावेँ सुर और गऊ ।
दिवानेँ क्या गावेँ ,
दास गरीब उदार नही है ,
वहाँ सौदा पुरा-पुरम ।
क्या गावे दिवानेँ ,
घर दुर क्या गावेँ ।।

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