भक्ति की भिक्षा दे दीजो,
उम्मीद कटोरा ल्याया है ।। टेक
तजे नरसी वाले ठाठ नहीं,
मैं धन्ना जैसा जाट नहीं ।
मेरी मोरध्वज सी सांठ नहीं,
जिसने लड़का चीर चढाया है ।।
शेख फरीद जैसा तप नहीं,
मेरा बालमीक जैसा जप नहीं ।
मंसूर सी अनलहक नहीं,
जिसने टुकड़े शरीर करवाया है ।।
ध्रुव जैसे आस नहीं,
प्रहलाद जैसा विश्वास नहीं ।
मीरा जैसा रास नहीं,
जिसने रूह अरु नाच रिझाया है ।।
रंका बंका जैसा त्याग नहीं,
मेरा बजीद जैसा बैराग नहीं ।
करमा जैसा भाग नहीं,
जिसका आन खीचड़ा खाया है ।।
विदुर विदुरानी जैसा सम्मान नहीं,
मैं सम्मन जैसा यजमान नहीं ।
सेऊ ज्यो कुर्बान नहीं,
जिसने शीश तो लेखे लाया है ।।
मार्कंडेय जैसा ऋषि नहीं,
मैं सुखदेव जो इन्द्री कसी नहीं ।
ये माया भी मन में बसी नहीं,
जबसे ज्ञान तेरा समाया है ।।
धर्मदास जैसा भक्ति सेठ नहीं,
मेरा जीवा-दत्ता जैसे उलसेठ नहीं ।
पीपा जैसा ढीठ नहीं,
जिसने दरिया बीच बुलाया है ।।
दिया द्रौपदी जैसा लीर नहीं,
कोई बनया भजन में शीर नहीं ।
मेरी भीलनी जैसी धीर नहीं,
जिसने बन के बीच घुमाया है ।।
साम्भर में दादूदास मिले,
फिर नानक को कर ख्यास मिले ।
सुल्तानी को हो खवास मिले,
जिसका बिस्तर झाड़ बिछाया है ।।
अर्जुन सर्जुन ने पहचान लिए,
छुडानी में दर्शन आन किये ।
ये रानि-नंदन उन जान लिए,
बलराम पिता जनाया है ।।
संतोष दास को पार किया,
बनखंडी का उद्धार किया ।
इक भूमड भक्त से प्यार किया,
जो शरना तेरी आया है ।।
छुडानी में निर्वान होया,
फिर सहारनपुर परमान होया ।
घीसा संत खेखड़े आन होया,
जहां जीता दास चेताया है ।।
गणिका जैसे पाप किये,
और अजामेल से आघात किये ।
साथ किस विधि ये नाथ लिए,
समदर्शी फ़र्ज़ निभाया है ।।
मात पिता और बंधू आए,
माया जोडन खूब सिखाये ।
भक्ति के ना लारा लाये,
उल्टा ही पाठ पढाया है ।।
जवानी के होती जात नहीं,
कोई मिल्या भजन में साथ नहीं ।
मेरी सुनीति सी मात नहीं,
जिसने बेटा भक्त बनाया है ।।
पांचो विकार सताते हैं,
मन चाहा नाच नचाते हैं ।
हे साहिब हम ना बच पाते हैं,
माया ने जाल पसारा है ।।
स्वामी रामदेवानंद जैसा संत नहीं,
मैं भक्तों जैसा भक्त नहीं ।
रामपाल को चाहिए जगत नहीं,
इक तेरा ही शरना चाहा है ।।
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