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Saturday, April 2, 2016

मन(काल) के ऊपर परमात्मा की वाणी...

सत् साहिब जी "सन्त रामपाल जी महाराज के तत्वज्ञान सत्संगों से...
मन(काल) के ऊपर परमात्मा की वाणी...
रोहो रोहर मन मारूंगा, ज्ञान खड़ग संघारुंगा,
डामाडोल ना हूजे रे, तुझको निजधाम ना सूझे रे,
सतगुरु हैला देवे रे, तुझे भवसागर से खेवे रे,
चौरासी तुरन्त मिटावै रे, तुझे जम से आन झुड़ावै रे,
कहा हमारा कीजै रे, सतगुरु को सिर दीजै रे,
अब लेखे लेखा होई रे, बहुर ना मैला कोई रे,
शब्द हमारा मानो रे, अब नीर खीर को छानो रे,
तू बहज मुखी क्यों फिरता रे, अब माल बिराणा हरता रे,
तू गोला जात गुलामा रे, तू बिसरया पूरण रामा रे,
अब दण्ड़ पड़े सिर दोहि रे, ते अगली पिछली खोई रे,
मन कृतध्नी तू भड़वा रे, तुझे लागै साहिब कड़वा रे,
मन मारूंगा मैदाना रे, सतगुरु समशेर समाना रे,
अरे मन तुझे काट जलाऊँ रे, दिखे तो आग लगाऊँ रे,
अरे मन अजब अलामा रे, तूने बहुत बिगाड़े कामा रे,
हैरान हवानी जाता रे, सिर पीटै ज्ञानी ज्ञाता रे,
हैरान हवानी खेले रे, सब अपने ही रंग मेले रे,
ते नौका नाम डबोई रे, मन खाखी बढ़वा धोई रे,
मन मार बिहंडम करसूं रे, सतगुरु साक्षी नहीं दरशूं रे,
अरे खेत लड़ो मैदाना रे, तुझे मारुंगा शैताना रे,
डिड की ढ़ाल बनाऊं रे, तन् तत् की तेग चलाऊं रे,
काम कटारी ऐचूं रे, दर बान बिहंगम खेचूं रे,
बुद्धि की बन्दूक चलाऊँ रे, मैं चित की चकमक ल्याऊँ रे,
मैं दम की दारु भरता रे, ले प्रेम पियाला जरता रे,
मैं गोला ज्ञान चलाऊँ रे, मैं चोट निशाने ल्याऊँ रे,
तू चाल कहाँ तक चालै रे, तू निसदिन हृदय साले रे,
मन मारूंगा नहीं छाडू रे, खाखी मन घर ते काडू रे,
आठ पटन सब लूट्या रे तू आठो गाठ्यो झूठा रे,
तब बस्ती नगर उजाड़ा रे, खाखी मन झूठा दारा रे,
यह तीन लोक में फिरता रे, इसे घेर रहे नहीं घिरता रे।
परमात्मा ने इस मन को पापी बताया है, यह मन ही है जो हमसे सारी गलतियाँ व पाप करवाता है और यह पाप आत्मा के ऊपर रख दिया जाता है।
काल(ब्रह्म) एक से अनेक होने की सिद्धि के जरिये मन रूप में सभी जीवों में रहता है। इसने मन को अपने अंश रूप में आत्मा के साथ इस शरीर में छोड़ रखा है। यह काल ही मन रूप में आत्मा के साथ रहता है।
यह काल(मन) नहीं चाहता कि कोई आत्मा पूर्ण परमात्मा की पहचान कर भक्ति कर अपने निज घर सतलोक चली जाए इसलिए यह मन रूप में रहकर आत्मा को भ्रमित करता रहता है और दुष्प्रेरणा देकर पाप इक्ट्ठे करवाता रहता हैं।
परमात्मा कहते है...
गरीब, जुगन-जुगन के दाग है, ये मन के मैल मसण्ड,
भई न्हाये से उतरे नहीं, अढ़सठ तीरथ दण्ड़।
गरीब, जुगन-जुगन के दाग है, ये मन के मैल विकार,
धोये से नहीं जात है, ये गंगा न्हाये कैदार।
परमात्मा ने बताया है कि युगों युगों से मन में दाग और विकार भरे पड़े है। मन इन विकारों से मैला हो चुका है। अब तीरथ न्हाने से या गंगा तथा कैदार न्हाने से मन के विकार मिट नहीं सकते।
मन के विकार, गंदापन, मैल खत्म नहीं हो सकते...."ये तो परमात्मा के ज्ञान से और भक्ति के प्रभाव से निष्क्रिय हो सकते है"।
मन के विकार मरते नहीं है, यह परमात्मा के सच्चे ज्ञान और भक्ति के प्रभाव से दब जाते हैं फिर यह अपना प्रभाव नहीं डालते।
परमात्मा कहते है कि...
"मन कामी ही मैल है, निज मन कोटूक बूझ,
निज मन से निज मन मिलै, खाखी मन मन से लूझ"
आत्मा को जब परमात्मा का सच्चा ज्ञान व भक्ति प्राप्त हो जाती है तब वह इस खाखी शैतान मन से दूर हो जाती है फिर इसके चक्कर में नहीं आती।
सदगुरु दया से भक्ति करके पूर्ण मोक्ष(सतलोक) प्राप्त करती है।
21 ब्रह्माण्ड़ के सभी जीव, देवतागण एवं ब्रह्मा विष्णु महेश भी मन के विकारों से ग्रसित है। केवल सदगुरु की दया, ज्ञान और भक्ति से ही मन(काल) से बचा जा सकता है।
परमात्मा ने काल रुपी मन से सचेत रहने के लिए भी कहा है...
"मन के मते ना चालिये, मन है पक्का दूत,
ले छोड़े दरिया में फिर गये हाथ से छूट"
"मन के मते ना चालिये, मन का कै विश्वास,
साधु तब लग डरकर रहियो, जब लग पिंजड़ श्वास"
"मन के मते ना चालिये, मन का मता अनेक,
जो मन पर असवार है, वो साधु कोई एक"
सत् साहिब जी!
बन्दी छोड़ सदगुरु रामपाल जी महाराज की सदैव जय हो!

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