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Wednesday, April 27, 2016

कथा ---

पेंसिल बनाने वाले ने पेंसिल उठाई और उसे डब्बे में रखने से पहले उससे कहा: “इससे पहले कि मैं तुम्हें लोगों के हाथ में सौंप दूँ, मैं तुम्हें 5 बातें बताने जा रहा हूँ जिन्हें तुम हमेशा याद रखना, तभी तुम दुनिया की सबसे अच्छी पेंसिल बन सकोगी. 

पहली – तुम महान विचारों और कलाकृतियों को रेखांकित करोगी, लेकिन इसके लिए तुम्हें स्वयं को सदैव दूसरों के हाथों में सौंपना पड़ेगा.

दूसरी – तुम्हें समय-समय पर बेरहमी से चाकू से छीला जाएगा लेकिन अच्छी पेंसिल बनने के लिए तुम्हें यह सहना पड़ेगा.

तीसरी – तुम अपनी गलतियों को जब चाहे तब सुधर सकोगी.

चौथी – तुम्हारा सबसे महत्वपूर्ण भाग तुम्हारे भीतर रहेगा.

और पांचवीं – तुम हर सतह पर अपना निशान छोड़ जाओगी. कहीं भी – कैसा भी समय हो, तुम लिखना जारी रखोगी.”

पेंसिल ने इन बातों को समझ लिया और कभी न भूलने का वादा किया. फ़िर वह डब्बे के भीतर चली गयी.
अब उस पेंसिल के स्थान पर आप स्वयं को रखकर देखें. उसे बताई गयी पाँचों बातों को याद करें, समझें, और आप दुनिया के सबसे अच्छे व्यक्ति बन पाएंगे.

पहली – आप दुनिया में सभी अच्छे और महान कार्य कर सकेंगे यदि आप स्वयं को ईश्वर के हाथ में सौंप दें. ईश्वर ने आपको जो अमूल्य उपहार दिए हैं उन्हें आप औरों के साथ बाँटें.

दूसरी – आपके साथ भी समय-समय पर कटुतापूर्ण व्यवहार किया जाएगा और आप जीवन के उतार-चढ़ाव से जूझेंगे लेकिन जीवन में बड़ा बनने के लिए आपको वह सब झेलना ज़रूरी होगा.

तीसरी – आपको भी ईश्वर ने इतनी शक्ति और बुद्धि दी है कि आप अपनी गलतियों को कभी भी सुधार सकें और उनका पश्चाताप कर सकें.

चौथी – जो कुछ आपके भीतर है वही सबसे महत्वपूर्ण और वास्तविक है.

और पांचवी – जिस राह से आप गुज़रें वहां अपने चिन्ह छोड़ जायें. चाहे कुछ भी हो जाए, अपने कर्तव्यों से विचलित न हों.

पेंसिल की कहानी का मर्म समझकर स्वयं को यह बताएं कि आप साधारण व्यक्ति नहीं हैं और केवल आप ही वह सब कुछ पा सकते हैं जिसे पाने के लिए आपका जन्म हुआ है. कभी भी अपने मन में यह ख्याल न आने दें कि आपका जीवन बेकार है और आप कुछ नहीं कर सकते!

सत साहिब जी

भक्ति करे तो बावला होकर करे | जैसे की मीरा बहन ने की थी | ये दुनिया वाले तो भगवान पता नही किस पैमाने पर पहचानते है | कोई भी पीर पैगम्बर आते है, उनकी एक नही सुनते है| उनके यहा से जाने के बाद पुजते है | फिर क्या वह मिल जायेगे | इतिहास गवाह है कि जितने भी संत और महापुरूष हुये है उनको जीते जी कभी भी उनकी बताये राह पर नही चले| 

कबीर, दुनिया सेती दोस्ती, होवे भजन मे भंग|
एका एकी राम से, कै साधु संग ||
बिरह-भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ ।
राम-बियोग ना जिबै जिवै तो बौरा होइ ॥
भावार्थ - बिरह का यह भुजंग अंतर में बस रहा है, डसता ही रहता है सदा, कोई भी मंत्र काम नहीं देता । राम का वियोगी जीवित नहीं रहता , और जीवित रह भी जाय तो वह बावला हो जाता है ।

सब रग तंत रबाब तन, बिरह बजावै नित्त ।
और न कोई सुणि सकै, कै साईं के चित्त ॥
भावार्थ - शरीर यह रबाब सरोद बन गया है -एक-एक नस तांत हो गयी है । और बजानेवाला कौन है इसका ? वही विरह, इसे या तो वह साईं सुनता है, या फिर बिरह में डूबा हुआ; यह चित्त ।

कथा ---
एक बार कही खुशी का प्रोग्राम था, तो वहा मिठाई बनाने के लिए अच्छे हलवाई को बुलाया | पहले के समय मे कच्ची बठ्ठी होती थी| उसमे लकडी जलाकर कोई भी पकवान बनायै जाते थे| उन बठ्ठियो पर हलवाई ने हर मिठाई और पकवान स्वादिष्ट बनाये| वहा आये लोगो ने खुब सहराया| हलवाई जी चले गये | जिन लोगो ने मिठाई खाई उन्होने उस हलवाई की महिमा दुसरे लोगो को बताई | पर दुर्भाग्य हुआ की वो हलवाई नही रहा | अब वो लोग जिन्होने हलवाई के बारे मे सुना, वे उन बठ्ठियो पर जाते है और उन से बोलते है कि हमे मिठाई दो, हमे भी खानी है | क्या उनको मिठाई मिलेगी | सपने मे भी नही मिलेगी | वो तो उस हलवाई जैसे किसी अन्य हलवाई के पास जाना होगा| उसी प्रकार संत आते है राम नाम की मिठाई खिलाने, पर ये दुनिया मंदिर और मस्जिद जैसी बठ्ठियो पर राम नाम की मिठाई ढुढते है|
तभी तो सतगुरू जी कहते है कि-- भोली सी दुनिया सतगुरू बिन कैसे सरिया..... सतगुरू देव की जय हो..  

`कबीर' भाठी कलाल की, बहुतक बैठे आइ ।
सिर सौंपे सोई पिवै, नहीं तौ पिया न जाई ॥
भावार्थ - कबीर कहते हैं - कलाल की भट्ठी पर बहुत सारे आकर बैठ गये हैं, पर इस मदिरा को एक वही पी सकेगा, जो अपना सिर कलाल को खुशी-खुशी सौंप देगा, नहीं तो पीना हो नहीं सकेगा । [कलाल है सद्गुरु, मदिरा है प्रभु का प्रेम-रस और सिर है अहंकार ।]

मान बडाई(अहंकारी) जमपुर जाई  होई रहो दासन दासा
साधु(भगत) बनना सहज है, दुर्लभ बनना दास|
दास तब जानिये, जब हाडा पर रहै ना मॉस||
अभिमान तज गुरु वचन पे हो अटल विरला सुर है|
हँस बने सतलोक जावे मुक्ति ना फ़िर दूर है||

मन मगन बऐ का सुन रासा...२
ऐ इन्दरी पृकति पर रे डाल चलो त्रिगुण पासा,
सपम सपा हो मिल नुर मे काम कृोध का कर नासा,
यो तन काख मिलेगा भाई कै पेर मल-मल खासा,
पिण्ड बृह्मड कुछ थिर नही रे गगन मण्डल मे कर बासा,
चिन्ता चेरी दुर पर रे री काट चलो जम का फॉसा,
मान बडाई जम पुर जाई होय रहो दासन दासा,
गरीबदास पद अरस अनाहद सतनाम जप स्वासा,.....
मन मगन बऐ सुन रासा....२

लागी का मार्ग ओर है, लाग चोट कलेजा करके....
जय बंदीछोड की


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             सत साहेब
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न जाने कौन  इंतज़ार  कर रहा  है!!!!!!....

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