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Saturday, April 2, 2016

सेऊ, समन ,नेकी की कथा ।।

एक बार जब मालिक 600 साल पहले आए हुए थे । तब उनके तीन शिष्य हुए थे समन उसकी पतनी नेकी और एक छोटा सी उम्र का पुत्र सेऊ था वेसे वासतिवक नाम उसका शिव था । यह लोग मनियारी ( चुडियाँ पहनाने  ) का काम करते थे । और साथ मे जहाँ भी जाते परमात्मा की महिमा गाते थे । तो अन्य कुछ लोग उनसे ईर्ष्या  करते थे । एक दिन सेउ ने अपने मित्र के सामने महिमा बताई  कि हमारे गुरू जी ने दिल्ली  के सम्राट सिकंदर लोदी का जलन का रोग हाथ रखकर ठीक कर दिया था ।
मित्र कहते थे कि तुम्हारे गुरू बस राजा के ही जाते है तुम्हारे घर आए कभी !! सेऊ कहने लगा हमारे गुरू जी ऐसे नही है , देखना एक दिन वो हमारे घर भी आएंगे ।
यही रट सी लग गई सेऊ को कि गुरू हमारे घर आ जायैं तो कितना अच्छा   होगा ।
वो सेऊ बालक अपनी माँ नेकी से कहता है कि हमारे गुरू जी हमारे घर भी आ जाएं तो कितना अच्छा हो हरदम यही रट रहे ।
तो माँ बोली गुरू जी के पास वक्त नही होती बेटा उनके बहुत शिष्य हो गए हैं ।
इसी के चलते इधर काशी मे कमाल को अहंकार हो गया था कि जो सेवा मे गुरू कि करता हुँ और कोई नही कर सकता ।
तो अंतरयामी परमेश्वर कबीर साहेब ने सोचा कि इस कमाल की फडक भी निकाल दुं ओर उधर दिल्ली के भगत काफी दुखी है । तो कमाल और फरीद जी को लेकर कबीर जी समन की झोंपडी के सामने खडे थे ।
सेऊ अब भी यही रट मे था कि अगर एक बार गुरू जी आ जाएं तो मेरे मुँह उठ जाएगा मित्र के सामने कि हमारे गुरू जी हमारे घर भी आते है ।
इतनी बात हो ही रही थी कि बाहर से आवाज आई कबीर साहेब की उन्हौने सोचा वैसे ही हमारे कान बोल रहे है धोखा है !!!
फिर आवाज आती है वो लोग बाहर गए और देखते ही रह गए मतलब सुन्न से हो गए । इतने मे कमाल बोला भाई अदंर भी ले जाओगे । !!
फिर उनका सपना सा खत्म हुआ, कबीर  जी को अदंर  फटे पुराने आसन पर बिठा दिया । समन बोला नेकी गुरू जी के लिए भोजन बनाओ । कबीर जी को जल पान के लिए पानी दिया । नेकी बोली जी भोजन के लिए सामग्री शेष नही है । समन बोला अपनी चुंनरी ( कपडा)
दे दे इसे गिरबी रख कर ले आता हुँ ।
नेकी ने कहा मे इसे लेकर गई थी पर आज कोई भी नगर मे नही ले रहा । वो लोग व्यंग कस रहे है कि तुमहारे गुरू तो भगवान है ना !""
समन ने सोचा मे कैसा नीच प्राणी आज ही मेरे मालिक आए और मे कैसा दुरभागी प्राणी ।
नेकी कहने लगी तुम दोनो सेऊ और समन रात को चोरी करके 3 सेर ( तीन हाथ ) आटा ले आओ । सेऊ कहता है चोरी तो पाप होता है । माँ ने उसे कहा चोरी को दान कर देगें बेटा फिर कोई पाप नही लगता ।
फिर बहुत समझाने पर समझ में आ गया । दोनो बाप-बेटा रात को बनिये ( सेठ) की दुकान मे चोरी करने के लिए पहुचें , कच्ची दीवार मे छेद कर लिया अदंर घुसने के लिए ।
समन बोला मैं जाता हुँ बेटा । बेटा कहता है पिता जी बनिये की राजा तक पहुँच है ,आपको मौत की बजह भी दे सकता है और बालक की तो माफी हो जाती है । इतना कहकर सेऊ गुस्सा गया और चोरी करके बाहर आ रहा था कि जोर से तराजु के ताखडे की आवाज हुई सेऊ ने पोटली फेंक दी बाहर समन भाग लिया ।
सेऊ को बनिये ने पकड लिया और थम से बाध दिया ओर कहा तुम ! भगत बनते हो आज खुल गयी तुम्हारी पोल ।
सेऊ ने कहा सेठ जी हमने चोरी अपने लिये नही कि बल्कि हमारे गुरू जी आए है उनको भोजन खिलाना है ।
सेठ ने कहा हाँ  तुम्हारे  गुरू जी आये  चोरी कराने। बताता हुँ राजा को सारे तीर निकलेंगें तुम्हारे गुरू पर ।
सेऊ ने सोचा यह क्या बनी हमारा तो चलो ठीक पर यह तो गुरू को भी तंग करेगें । सेऊ ने सोचा अगर मेरा बाप मेरा सिर काट ले तो यह सेठ डर के मारे कुछ नही करेगा । यही बात नेकी ने पुछी कि लडका कहाँ है समन ने कहा वो तो बीनिये ने पकड लिया । नेकी ने कहा तु उसका सिर काट कर ले आ कहीँ उसे पहचान ना ले कोई ।
समन कर्द लेकर पहूंचा  ,कहा बेटा सेऊ दो बात करनी है बेटा एक बार बाहर आजा । सेऊ ने कहा सेठ जी पिता जी आए हैं दो बात करने की कह रहे है । सेठ ने बोला भाग जाओगे । सेऊ ने कहा खोलना मत बस ढीला कर दो । तो सेठ ने सोचा कपदे ढीली कंहा जाएगा । सेऊ गया पिता के पास । पिता अखिर पिता ही होता है कर्द नही चली । सेऊ ने कहा अगर तु मेरा बाप है तो मेरा सिर काट दे इतने सुनते ही कर्द से सिर काट कर घर आ गया । सेऊ, समन ,नेकी  की पाख कथा ।।
एक बार जब मालिक 600 साल पहले आए हुए थे । तब उनके तीन शिष्य हुए थे समन उसकी पतनी नेकी और एक छोटा सी उम्र का पुत्र सेऊ था वेसे वासतिवक नाम उसका शिव था । यह लोग मनियारी ( चुडीयाँ पहनाने  ) का काम करते थे । और साथ मे जहाँ भी जाते परमात्मा की महिमा गाते थे । तो अन्य कुछ लोग उनसे इर्शा करते थे । एक दिन सेउ ने अपने मित्र के सामने महिमा बताइ कि हमारे गुरू जी ने शिंकंदर लोदी का जलन का रोग हाथ रखकर ठीक कर दिया था । मित्र कहते थे कि तुमाहारे गुरू बस राजा के ही जाते है तुमाहारे द्यर आए कभी !! सेऊ कहने लगा हमारे गुरू जी एसे नही है देखना एक दिन वो हमारे द्यर भी आएंगे । यही रट सी लग गई सेऊ को कि गुरू हमारे द्यर आजाएं तो कितना होगा । वो सेऊ बालक अपनी माँ नेकी से कहता है कि हमारे गुरू जी हमारे द्यर भी आजाएं तो कितना अच्छा हो हरदम यही रट रहे । तो माँ बोली गुरू जी के पास वकत नही होती बेटा उनके द्यने शिस हो गए हां ।
इसी के चलते इधर काशी मे कमाल को अहंकार हो गया था कि जो सेवा मे गुरू कि करता हुँ और कोई नही कर सकता । तो अंतरयामी परमेशवर कबीर साहेब ने सोचा कि इस कमाल की फडक भी निकाल दुं ओर उधर दिल्ली के भगत काफी दुखी है । तो कमाल और फरीद जी को लेकर कबीर जी समन की झोंपडी के सामने खडे थे ।
सेऊ अब भी यही रट मे था कि अगर एक बार गुरू जी आजाएं तो मेरे मुह उठ जाएगा मित्र के सामने कि हमारे गुरू जी हमारे घर भी आते है । इतनी बात हो ही रही थी कि बाहर से आवाज आई कबीर साहेब की उनहोने सोचा वैसे ही हमारे कान बोल रहे है दोखा है !!! फिर आवाज आती है वो लोग बाहार गए और देखते ही रह गए मतलब सुन से हो गए । इतने मे कमाल बोला भाई अदंर भी ले जाओगे । !!
फिर उनका सपना सा खतम हुआ कबीर  जी को अदंर  फटे पुराने आसन पर बिठा दिया । समन बोला नेकी गुरू जी के लिए भोजन बनाओ । कबीर जी को जल पान के लिए पानी दिया । नेकी बोली जी भोजन के लिए सामग्री सेक्ष नही है । समन बोला अपनी चुंदडी ( कपडा)
दे दे इसे गिरबी रख कर ले आता हुँ । नेकी ने कहा मे इसे लेकर गई थी पर आज कोई भी नगर मे नही ले रहा । वो लोग वयंग कस रहे है कि तुमहारे गुरू तो भगवान है ना !""
समन ने सोचा मैं केसा नीच प्राणी आज ही मेरे मालिक आए और मे कैसा दुरभागी प्राणी ।
नेकी कहने लगी तुम दोनो सेऊ और समन रात को चोरी करके 3 शेर ( तीन हाथ ) आटा ले आओ । सेऊ कहता है चोरी तो पाप होता है । माँ ने उसे कहा चोरी को दान करदेगें बेटा फिर कोई पाप नही लगता । फिर बहुत समजाने पर समज मे आगया । दोनो बाप बेटा रात को बानिये ( सेठ) की दुकान मे चोरी करने के लिए पहुचें  कच्ची दीवार मे छेद कर लिया अदंर गुसने के लिए ।
समन बोला मे जाता हुँ बेटा । बेटा कहता है पिता जी बानिये की राजा तक पहुँच है आपको मोत की सजह भी दे सकता है और बालक की तो माफी हो जाती है । इतना कहकर सेऊ गुस गया और चोरी करके बाहर आ रहा था कि जोर से तराजु के ताखडे की आवाज हुई सेऊ ने पोटली फेंक दी बाहर समन भाग लिया ।
सेऊ को बानिये ने पकड लिया और थाबँ से बाध दिया ओर कहा तुम !"" भगत बनते हो आज पाटी थारी पोल । सेऊ ने कहा सेठ जी हमने चोरी अपने लिये नही कि बलकि हमारे गुरू जी आए है उनको भोजन खिलाना है । सेठ ने कहा हाँ थारे गुरू जी आंवे चोरी करान । बताता हुँ राजा को सारे तीर काडेगें थारे गुरू पर । सेऊ ने सोचा यह क्या बनी हमारा तो चलो ठीक पर यह तो गुरू को भी तंग करेगें । सेऊ ने सोचा अगर मेरा बाप मेरा सिर काट ले तो यह सेठ डर के मारे कुछ नही करेगा ।
यही बात नेकी ने पुछी कि लडका कँहा है समन ने कहा वो तो बीनिये ने पकड लिया । नेकी ने कहा तु उसका सिर काट कर ले आ कहीँ उसे पहचान ना ले कोई ।
समन कर्द लेकर पहुचां कहा बेटा सेऊ दो बात करनी है बेटा एक बार बाहर आजा । सेऊ ने कहा सेठ जी पिता जी आए हैं दो बात करन की कह रहे है । सेठ ने बोला भाग जाओगे । सेऊ ने कहा खोलना मत बस डीला कर दो । तो सेठ ने सोचा कपदे ढीली कंहा जाएगा । सेऊ गया पिता के पास । पिता अखिर पिता ही होता है कर्द नही चली । सेऊ ने कहा अगर तु मेरा बाप है तो मेरा सिर काट दे इतने सुनते ही कर्द से सिर काट कर घर आ गया ।
पत्नी नेकी ने कहा फिर से जा शव भी ले आ वो सेठ फेकेंगा उसे । समन गया शव भी छाती से लगाकर घर ले आया । बोरी मे बाधंकर कोने मे रख कर गुरू जी का भोजन तैयार किया ।
समन कहता है नेकी रोना मत गुरू जी को पता चलेगा तो रोटी नही खाएंगे ।
रोटी कबीर साहेब के सामने तीन थाली एक कबीर जी , एक कमाल , एक फरीद के लिए लाई गई।
परमात्मा  बोले भगतों इसे छह बर्तन मे करो । नेकी ने पाँच मे कर दिया। मालिक बोले छह मे करो । सभी बैठे थे खाना खाया नही जा रहा था । इतने मे कबीर साहेब बोले :-
"आओ सेऊ जी मिलो यह प्रसाद   प्रेम ।
सिर कटया करें चोरा कें साधो के निक्षेम" ।।
सेऊ धड  पर शीश चढा बेठैं पगत मा ।
गरीब दास नही निशान है यह उस सेऊ के ना ।।
बोलो सतगुरू देव रामपाल जी महाराज की जय ।।।।।।
सत साहिब
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