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Tuesday, July 26, 2016

सतगुरु कबीर साहिब जी के ६४ लाख शिष्य थे जिनमे से अर्जुन- सुर्जन

कबीर साहिब जी ने काशी में आपने शिष्यों की परीक्षा के लिए एक स्वांग रचा
सतगुरु कबीर साहिब जी के ६४ लाख शिष्य थे जिनमे से अर्जुन- सुर्जन यह एक ऐसे नाम है । जिन का बाबा गरीबदास जी के पूर्व जन्म(कबीर साहिब )में बहुत महत्वता है । यह बड़ी ही विलक्षण बात है की वह दो व्यक्ति जो सतगुरु कबीर साहिब जी के जीवन से लेकर बाबा गरीबदास के जीवन तक उपस्थित थे जबकि इन दोनों के जीवन काल में २६० वर्ष का अंतर है।
सतगुरु कबीर साहिब जी ने अपने शिष्यों को एकत्रित करके कहा कि हम काशी के बाजारों में एक जलूस निकाल रहे है । उसी समय महाराज कबीर साहिब जी ने काशी में आपने शिष्यों की परीक्षा के लिए एक स्वांग रचा तथा शीशी में गंगाजल भरकर और वेश्या को साथ लेकर बाजार में निकल पड़े (यह प्रकरण आदि ग्रन्थ में विस्तार से लिखा है) बाकि सभी लेखकों ने इसे साहिब कबीर जी तक ही सीमित रखा है । केवल आचार्य गरीबदासी साम्प्रदा में सतगुरु के दोबारा जन्म लेने के बारे में पता चलता है। गरीबदासी साम्प्रदा के अनुसार जब सतगुरु कबीर साहिब ने यह सवांग रचा तो उनके साथ रविदास जी को भी ले गए । उस बक्त कबीर साहिब के ६४ लाख शिष्य थे जिन में अर्जुन- सुर्जन भी शामिल थे ।
जब हाथी पर बैठे कबीर जी ,भक्त रविदास जी और बीच में वेश्या को बैठा लिया । कबीर जी ने अपने हाथ में गंगा जल से भरी बोतल पकड़ राखी थी तथा उस में लाल रंग डाल रखा था ताकि शराब जैसी लगे शराबियो कि तरह बोलने लग पड़े जिस समय यह दृश्य उनके शिष्यों ने देखा तो सरे हैरान हो गए तथा मन में गलत ख्याल तथा नफरत आ गई । इस दृष्टान्त को जगत गुरु बाबा गरीबदास जी ने अपनी अमर्त वाणी में इस तरह कहा है
तारी बाजी पूरी में ,भरष्ट जुल्ह्दी नीच
गरीबदास गणिका सजी ,दहूं संत के बीच
गावत बैन विलास-पद ,गंगा जल पीवतं
गरीबदास विहल भये मतवाले घुमंत
भड़ुवा भड़ुवा सब कहें,कोई न जानें खोज
गरीबदास कबीर कर्म ,बाटंत सिर का बोझ
लोग तरह तरह से पागल ,मुर्ख तथा अपशब्द कहने लगे । कोई खोज न कर सका बल्कि लोग मुर्ख बन गए । सारी काशी नगरी निंदा करने लग गई । सतगुरु कबीर साहिब तथा भक्त रविदास जी दोनों की लोग तरह-तरह से निदा करने लगे । इसी तरह कबीर साहिब जी के शिष्य भी कबीर जी से नफ़रत करने लगे तथा दूर चले गए ।
केवल दो ही शिष्य सफल हुए तथा सतगुरु जी के पीछे-पीछे पहुंचे । सतगुरु कबीर साहिब जी घूमते-घूमते चांडाली चौक में पहुँच कर वहा बैठ गए । इस पर अर्जुन- सुर्जन को अच्छा नहीं लगा तथा सतगुरु जी से कहने लगे “महाराज इस जगह पर मत बैठो क्योकि यह चंडाल की जगह है” तथा यहाँ पर आप बैठे शोभामान नहीं होते । इस सचित्रण को बाबा गरीबदास जी ने यु कहा है
गरीब चंडाली के चौक में ,सतगुरु बैठे जाय
चौसठ लाख गारत गये,दो रहे सतगुरु पाय
गरीब सुरजन अर्जुन ठाहरे, सतगुरु की प्रतीत
सतगुरु ईहा न बैठिये यौह द्वारा है नीच
उस सतगुरु की लीला के आगे शिष्य की क्या हिम्मत की वह उसे समझ सके सभी की तो क्या वह दोनों भी अपनी जगह कायम न रह सके वह भी सतगुरु कबीर साहिब जी को शिक्षा देने लग गए । वह यह नहीं जानते थे की सतगुरु कबीर साहिब जी परमात्मस्वरूप है बल्कि शरीर नहीं उन्हें उँच-नीच से क्या आत्मा तो इस उँच-नीच से ऊपर है तथा उसके लिए कुछ भी बुरा नहीं है । जगत गुरु आचार्य गरीबदास जी ने अपनी वाणी में इस तरह कहा है
गरीब ऊँच नीच में हम रहें , हाड चाम की देह
सुरजन अर्जुन समझियों ,रखियों शब्द सनेह
सतगुरु कबीर साहिब जी ने फ़रमाया की यह तो हाड चाम की देह है पर हम तो परमात्मास्वरूप है । उसके लिए ऊँच नीच नहीं होती उसका तो भगवान से मिलाप होता है । यदि आपने भी भगवान से मिलाप करना है तो शब्द से प्रेम करो इससे तुम सब कुछ प्राप्त कर सकते हो ।
तब अर्जुन- सुर्जन ने सत्गुरु देव से बेनती की कि महाराज जी जो आत्माए आपसे बिछुड गई है । उन्हें मिलाप करने का कौन सा समय तथा जगह होगी । तब सतगुरु जी ने कहा हम बांगर देश में जाकर अपने सेवको का कल्याण करेंगे । जगत गुरु गरीबदास जी महाराज जी अपनी बाणी में वर्णन करते है
बांगर देश क्लेश निरंतर
हंस गये बहां निश्चे ही जानी
दिल्ली को मंडल मंगल दायक
रूपा धरै श्री धाम छुडानी
मुक्ति का द्वार खुलै बहां जाकर
हँस हमारे जहां लाड लड़ानी
दास गरीब तबीब अनुपम
भक्त और मुक्त की देन निशानी
दास गरीब जो रूप धरै हम
संतन काज ना लाज करैं है
हँस उधारन कारण के हित
देश विलायत आप फिरै है||

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