कबीर साहेब ने कहा कि हे नीरंजन
यदि मै चाहूं तो तेरे सारे खेल को क्षण भर मै समाप्त कर सकता हूँ परंतु ऐसा करने से मेरा वचन भंग होता है यह सोच कर मैअपने पयारे हंसो को यथार्थ ज्ञानदेकर शब्द का बल प्रदान करके सतलोक ले जाऊंगा और कहा कि:-
सुनो धर्मराया हम संखो हंसा पद परसाया ।
जिन लीनहा हमरा प्रवाना सो हंसा हम किए अमाना।।
निरंजन बचन
द्वादस पंथ करुँ मै साजा नाम तुम्हारा ले करुँ अवाजा।
द्वादस यम संसार पठहो नाम तुम्हारे पंथ चलैहो ।।
प्रथम दूत मम प्रगटे जाई पिछे अंश तुम्हारा आई ।
यही विधि जीवनको भरममांउ पुरुष नाम जीवन समझांऊ ।।
द्वादस पंथ नाम जो लैहे सो हमरे मुख आन समै है।।
कहा तुम्हारा जीव न माने हमारी ओर होय बाद बखाने ।।
मै दृढ़ फंदा रची बनाई जामे जीव रहे उरझाई ।।
देवल देव पाषाण (पथर) पूजाई तीर्थ वरत जप तप मन लाई ।।
यज्ञ होम अरु नेम अचारा और अनेक फंद मै डारा।।
जो ज्ञानी जाओ संसारा जीव न माने कहा तुम्हारा।।
सतगुरु वचन
ज्ञानी कहे सुनो अन्याई काटो फंद जीव ले जाई ।।
जेतीक फंद रचे तुम विचारी सत्य शब्द तै सबै बिंडारी ।
जौन जीव हम शब्द दृढावे फंद तुम्हारा सकल मुकावे ।।
चौका कर प्रवाना पाई पुरुष नाम तिहि देउं चिनहाई।।
ताके निकट काल नहीं आवे संधी देखी ताकहं सिर नावै ।।
उपरोक्त विवरण से सिद्ध होता है कि जो अनेक पंथ चले हुए हैं जिनके पास कबीर साहेब द्वारा बताया हुआ सतभकती मार्ग नहीं है ये सब काल से प्रेरित हैं।
अत: बुध्दिमान को चाहिए कि सोच वीचार कर सत भक्ति मार्ग अपनाएं कयोंकि मनुष्य जन्म अनमोल है यह बार बार नहीं मिलता कबीर साहेब कहते है कि
कबीर मानुष जन्म दुरलभ है मिले न बारमबार।
तरुवर से पता टूट गीरे बहुर न लगता डार ।।
सत साहेब
यदि मै चाहूं तो तेरे सारे खेल को क्षण भर मै समाप्त कर सकता हूँ परंतु ऐसा करने से मेरा वचन भंग होता है यह सोच कर मैअपने पयारे हंसो को यथार्थ ज्ञानदेकर शब्द का बल प्रदान करके सतलोक ले जाऊंगा और कहा कि:-
सुनो धर्मराया हम संखो हंसा पद परसाया ।
जिन लीनहा हमरा प्रवाना सो हंसा हम किए अमाना।।
निरंजन बचन
द्वादस पंथ करुँ मै साजा नाम तुम्हारा ले करुँ अवाजा।
द्वादस यम संसार पठहो नाम तुम्हारे पंथ चलैहो ।।
प्रथम दूत मम प्रगटे जाई पिछे अंश तुम्हारा आई ।
यही विधि जीवनको भरममांउ पुरुष नाम जीवन समझांऊ ।।
द्वादस पंथ नाम जो लैहे सो हमरे मुख आन समै है।।
कहा तुम्हारा जीव न माने हमारी ओर होय बाद बखाने ।।
मै दृढ़ फंदा रची बनाई जामे जीव रहे उरझाई ।।
देवल देव पाषाण (पथर) पूजाई तीर्थ वरत जप तप मन लाई ।।
यज्ञ होम अरु नेम अचारा और अनेक फंद मै डारा।।
जो ज्ञानी जाओ संसारा जीव न माने कहा तुम्हारा।।
सतगुरु वचन
ज्ञानी कहे सुनो अन्याई काटो फंद जीव ले जाई ।।
जेतीक फंद रचे तुम विचारी सत्य शब्द तै सबै बिंडारी ।
जौन जीव हम शब्द दृढावे फंद तुम्हारा सकल मुकावे ।।
चौका कर प्रवाना पाई पुरुष नाम तिहि देउं चिनहाई।।
ताके निकट काल नहीं आवे संधी देखी ताकहं सिर नावै ।।
उपरोक्त विवरण से सिद्ध होता है कि जो अनेक पंथ चले हुए हैं जिनके पास कबीर साहेब द्वारा बताया हुआ सतभकती मार्ग नहीं है ये सब काल से प्रेरित हैं।
अत: बुध्दिमान को चाहिए कि सोच वीचार कर सत भक्ति मार्ग अपनाएं कयोंकि मनुष्य जन्म अनमोल है यह बार बार नहीं मिलता कबीर साहेब कहते है कि
कबीर मानुष जन्म दुरलभ है मिले न बारमबार।
तरुवर से पता टूट गीरे बहुर न लगता डार ।।
सत साहेब
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