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Thursday, December 29, 2016

संन्त दादु जी द्वारा पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी कि महीमा

दादू बैठे जहाज पर,  गए समुन्द्रके तीर।
जल मे मछली जो रहे,  कहै कबीर कबीर॥

बहुत जीव अटके रहे,  बिन सतगुरू भाव माही।
दादू नाम कबीर बिन,  छुटे एक नही॥

मेरो कन्त कबीर है,  वर और नहि वरिहौ।
दादू तिन तिलक है,  चित्त और ना धारिहौ॥

पाच तत्व तिन के नाही,  नही इन्द्री गन्देह।
सूक्ष्म रूप कबीर का,  दादु देख बिदेह॥

अधर चाल कबीरकी,  मोसे कही न जाय।
दादू कूदै मिरग ज्यौ,  पर धरनि पर आय॥

हिन्दूको सतगुरु सही, मुसलमानको पीर।
दादू दोनो दिनमे,  अदली नाम कबीर॥

हिन्दू अपनी हद चले, मुसलमान हद माह।
दादू चाल कबीर की,  दोउ दिनमे नाह॥

सत्त लोक जहँ पुरु बिदेही , वह पुरणब्रह्म कबीर करतारा।
आदि जोत और काल निरंजन, इनका कहाँ न पसारा॥

जिन मोकुं निज नाम दिया, सोइ सतगुरु हमार।
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजनहार।।

दादू नाम कबीर की,  जै कोई लेवे ओट।
उनको कबहू लागे नहीं, काल बज्र की चोट।।

दादू नाम कबीर का,  सुनकर कांपे काल।
नाम भरोसे जो नर चले, होवे न बंका बाल।।

जो जो शरण कबीर के,  तरगए अनन्त अपार।
दादू गुण कीता कहे,  कहत न आवै पार।।

कबीर कर्ता आप है,  दूजा नाहिं कोय।
दादू पूरन जगत को, भक्ति दृढ़ावत सोय।।

ठेका पूरन होय जब, सब कोई तजै शरीर।
दादू काल गँजे नहीं,  जपै जो नाम कबीर।।

आदमी की आयु घटै,  तब यम घेरे आय।
सुमिरन किया कबीर का,  दादू लिया बचाय।।

मेटि दिया अपराध सब,  आय मिले छनमाँह।
दादू संग ले चले,  कबीर चरण की छांह।।

सेवक देव निज चरण का, दादू अपना जान।
भृंगी सत्य कबीर ने, कीन्हा आप समान।।

दादू अन्तरगत सदा, छिन-छिन सुमिरन ध्यान।
वारु नाम कबीर पर,  पल-पल मेरा प्रान।।

सुन-2 साखी कबीर की,  काल नवावै भाथ।
धन्य-धन्य हो तिन लोक में,  दादू जोड़े हाथ।।

केहरि नाम कबीर का,  विषम काल गज राज।
दादू भजन प्रतापते,  भागे सुनत आवाज।।

पल एक नाम कबीर का,  दादू मनचित लाय।
हस्ती के अश्वार को,  श्वान काल नहीं खाय।।

सुमरत नाम कबीर का, कटे काल की पीर।
दादू दिन दिन ऊँचे,  परमानन्द सुख सीर।।

दादू नाम कबीर की, जो कोई लेवे ओट।
तिनको कबहुं ना लगई, काल बज्र की चोट।।

और संत सब कूप हैं, केते झरिता नीर।
दादू अगम अपार है, दरिया सत्य कबीर।।

अबही तेरी सब मिटै, जन्म मरन की पीर।
स्वांस उस्वांस सुमिरले, दादू नाम कबीर।।

कोई सर्गुन में रीझ रहा, कोई निर्गुण ठहराय।
दादू गति कबीर की, मोते कही न जाय
सत् साहेब जी

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