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Friday, January 1, 2016

तीन बार में नाम जाप का प्रमाण:--




अध्याय 17 का श्लोक 23 ॐ , तत्, सत्, इति, निर्देशः, ब्रह्मणः,
त्रिविधः, स्मृतः, ब्राह्मणाः, तेन, वेदाः, च, यज्ञाः,
च, विहिताः, पुरा।।23।। अनुवाद: (ॐ ) ब्रह्म का(तत्) यह
सांकेतिक मंत्रा परब्रह्म का (सत्) पूर्णब्रह्म का (इति) ऐसे यह
(त्रिविधः) तीन प्रकार के (ब्रह्मणः) पूर्ण परमात्मा के नाम
सुमरण का (निर्देशः) संकेत (स्मृतः)
कहा है (च) और (पुरा) सृष्टिके
आदिकालमें (ब्राह्मणाः) विद्वानों ने बताया कि (तेन) उसी
पूर्ण परमात्मा ने (वेदाः) वेद (च) तथा
(यज्ञाः) यज्ञादि (विहिताः) रचे।
संख्या न. 822 सामवेद उतार्चिक अध्याय 3 खण्ड न. 5 श्लोक न. 8(संत
रामपाल दास द्वारा भाषा-भाष्य)ः-
मनीषिभिः पवते पूव्र्यः कविर्नृभिर्यतः परि कोशां असिष्यदत्।
त्रितस्य नाम जनयन्मधु क्षरन्निन्द्रस्य वायुं सख्याय वर्धयन्।।8।।
मनीषिभिः पवते पूव्र्यः कविर्नृ भिः यतः परि कोशान् असिष्यदत्
त्रि तस्य नाम जनयन् मधु क्षरनः न इन्द्रस्य वायुम् सख्याय वर्धयन्।
शब्दार्थ (पूव्र्यः) सनातन अर्थात् अविनाशी (कविर नृभिः) कबीर
परमेश्वर मानव रूप धारण करके अर्थात्गु रु रूप में प्रकट होकर (मनीषिभिः)
हृदय से चाहने वाले श्रद्धा से भक्ति करने वाले भक्तात्मा को (त्रि) तीन
(नाम) मन्त्रा अर्थात् नाम उपदेश देकर (पवते) पवित्रा करके (जनयन्) जन्म व
(क्षरनः) मृत्यु से (न) रहित करता है तथा (तस्य) उसके (वायुम्) प्राण
अर्थात् जीवन-स्वांसों को जो संस्कारवश गिनती के डाले हुए होते हैं
को (कोशान्) अपने भण्डार से (सख्याय) मित्राता के आधार से
(परि) पूर्ण रूप से (वर्धयन्) बढ़ाता है। (यतः) जिस कारण से (इन्द्रस्य)
परमेश्वर के (मधु) वास्तविक आनन्द को (असिष्यदत्) अपने आशीर्वाद प्रसाद
से प्राप्त करवाता है। भावार्थ:- इस मन्त्रा में स्पष्ट
किया है कि पूर्ण परमात्मा कविर अर्थात् कबीर मानव
शरीर में गुरु रूप में प्रकट होकर प्रभु प्रेमीयों को तीन नाम
का जाप देकर सत्य भक्ति कराता है तथा उस मित्रा
भक्त को पवित्राकरके अपने आर्शिवाद से पूर्ण परमात्मा
प्राप्ति करके पूर्ण सुख प्राप्त कराता है। साधक की आयु
बढाता है। यही प्रमाण गीता अध्याय 17 श्लोक 23
में है कि ओम्-तत्-सत् इति निर्देशः ब्रह्मणः
त्रिविद्य स्मृतः भावार्थ है कि पूर्ण परमात्मा को
प्राप्त करने का ॐ (1) तत् (2) सत् (3) यह मन्त्रा जाप स्मरण
करने का निर्देश है। इस नामको तत्वदर्शी संत से प्राप्त
करो। तत्वदर्शी संत के विषय में गीता अध्याय 4 श्लोक नं.
34 में कहा है तथा गीता अध्याय नं. 15 श्लोक नं. 1 व 4
में तत्वदर्शी सन्त की पहचान
बताई तथा कहा है कि
तत्वदर्शी सन्त से तत्वज्ञान
जानकर उसके पश्चात् उस
परमपद परमेश्वर की खोज
करनी चाहिए। जहां जाने के
पश्चात् साधक लौट कर
संसार में नहीं आते अर्थात्
पूर्ण मुक्त हो जाते हैं। उसी
पूर्ण परमात्मा से संसार की
रचना हुई है।
विशेष:- उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हुआ
कि पवित्रा चारों वेद भी साक्षी
हैं कि पूर्ण परमात्मा ही पूजा के
योग्य है, उसका वास्तविक नाम
कविर्देव(कबीर परमेश्वर) है तथा तीन
मंत्रा के नाम का जाप करने से ही पूर्ण
मोक्ष होता है।
धर्मदास जी को तो परमश्ेवर कबीर
साहेब जी ने सार शब्द देने से मना कर
दिया था तथा कहा था कि यदि
सार शब्द किसी काल के दूत के हाथ
पड़ गया तो बिचली पीढ़ी वाले हंस
पार नहीं हो पाऐंगे। जैसे कलयुग के
प्रारम्भ में प्रथम पीढ़ी वाले भक्त
अशिक्षित थे तथा कलयुग के अंत में
अंतिम पीढ़ी वाले भक्त कृतघनी हो
जाऐंगे तथा अब वर्तमान में सन् 1947 से
भारत स्वतंत्रा होने के पश्चात्
बिचली पीढ़ी प्रारम्भ हुई है। सन्
1951 में सतगुरु रामपाल जी महाराज
को भेजा है। अब सर्व भक्तजन
शिक्षित हैं। शास्त्रा अपने पास
विद्यमान हैं। अब यह सत मार्ग सत
साधना पूरे संसार में फैलेगा तथा
नकली गुरु तथा संत, महंत छुपते फिरेंगे।
इसलिए कबीर सागर, जीव धर्म बोध,
बोध सागर, पृष्ठ 1937 पर:-
धर्मदास तोहि लाख दुहाई, सार शब्द
कहीं बाहर नहीं जाई।
सार शब्द बाहर जो परि है, बिचली
पीढ़ी हंस नहीं तरि है।
पुस्तक “धनी धर्मदास जीवन दर्शन एवं
वंश परिचय” के पृष्ठ 46 पर लिखा है
कि ग्यारहवीं पीढ़ी को गद्दी नहीं
मिली। जिस महंत जी का नाम
“धीरज नाम साहब” कवर्धा में रहता
था। उसके बाद बारहवां महंत उग्र नाम
साहेब ने दामाखेड़ा में गद्दी की
स्थापना की तथा स्वयं ही महंत बन
बैठा। इससे पहले दामाखेड़ा में गद्दी
नहीं थी। इससे स्पष्ट है कि पूरे विश्व
में सतगुरु रामपाल जी महाराज के
अतिरिक्त वास्तविक भक्ति मार्ग
नहीं है। सर्व प्रभु प्रेमी श्रद्धालुओं से
प्रार्थना है कि प्रभु का भेजा हुआ
दास जान कर अपना कल्याण करवाऐं।
यह संसार समझदा नाहीं, कहन्दा
श्याम दोपहरे नूं। गरीबदास यह वक्त
जात है, रोवोगे इस पहरे नूं।। बारहवें पंथ
(गरीबदास पंथ बारहवां पंथ लिखा है
कबीर सागर, कबीर चरित्रा बोध
पृष्ठ 1870 पर) के विषय में कबीर सागर
कबीर वाणी पृष्ठ नं. 136.137 पर
वाणी लिखी है कि:-
सम्वत् सत्रासै पचहत्तर होई, तादिन
प्रेम प्रकटें जग सोई।
साखी हमारी ले जीव समझावै,
असंख्य जन्म ठौर नहीं पावै।
बारवें पंथ प्रगट ह्नै बानी, शब्द हमारे
की निर्णय ठानी।
अस्थिर घर का मरम न पावैं, ये बारा
पंथ हमही को ध्यावैं।
बारवें पंथ हम ही चलि आवैं, सब पंथ
मेटि एक ही पंथ चलावें।
धर्मदास मोरी लाख दोहाई, सार
शब्द बाहर नहीं जाई।
सार शब्द बाहर जो परही, बिचली
पीढी हंस नहीं तरहीं।
तेतिस अर्ब ज्ञान हम भाखा, सार
शब्द गुप्त हम राखा।
मूल ज्ञान तब तक छुपाई, जब लग
द्वादश पंथ मिट जाई।
यहां पर साहेब कबीर जी अपने शिष्य
धर्मदास जी को समझाते हैं कि संवत्
1775 में मेरे ज्ञान का प्रचार होगा
जो बारहवां पंथ होगा। बारहवें पंथ में
हमारी वाणी प्रकट होगी लेकिन
सही भक्ति मार्ग नहीं होगा। फिर
बारहवें पंथ में हम ही चल कर आएगें और
सभी पंथ मिटा कर केवल एक पंथ
चलाएंगे। लेकिन धर्मदास तुझे लाख
सौगंध है कि यह सार शब्द किसी
कुपात्रा को मत दे देना नहीं तो
बिचली पीढ़ी के हंस पार नहीं हो
सकेंगे। इसलिए जब तक बारह पंथ मिटा
कर एक पंथ नहीं चलेगा तब तक मैं यह मूल
ज्ञान छिपा कर रखूंगा।
संत गरीबदास जी महाराज
की वाणी में नाम का
महत्व:--
नाम अभैपद ऊंचा संतों, नाम अभैपद
ऊंचा। राम दुहाई साच कहत हूं, सतगुरु से
पूछा।।
कहै कबीर पुरुष बरियामं, गरीबदास
एक नौका नामं।।
नाम निरंजन नीका संतों, नाम
निरंजन नीका।
तीर्थ व्रत थोथरे लागे, जप तप संजम
फीका।।
गज तुरक पालकी अर्था, नाम बिना
सब दानं व्यर्था।
कबीर, नाम गहे सो संत सुजाना, नाम
बिना जग उरझाना।
ताहि ना जाने ये संसारा, नाम
बिना सब जम के चारा।।
संत नानक साहेब जी की
वाणी में नाम का महत्व:--
नानक नाम चढ़दी कलां, तेरे भाणे
सबदा भला।
नानक दुःखिया सब संसार, सुखिया
सोय नाम आधार।।
जाप ताप ज्ञान सब ध्यान, षट
शास्त्रा सिमरत व्याखान।
जोग अभ्यास कर्म धर्म सब क्रिया,
सगल त्यागवण मध्य फिरिया।
अनेक प्रकार किए बहुत यत्ना, दान
पूण्य होमै बहु रत्ना।
शीश कटाये होमै कर राति, व्रत नेम
करे बहु भांति।।
नहीं तुल्य राम नाम विचार, नानक
गुरुमुख नाम जपिये एक बार।।
(परम पूज्य कबीर साहेब(कविर्
देव) की अमृतवाणी)
संतो शब्दई शब्द बखाना।।टेक।।
शब्द फांस फँसा सब कोई शब्द नहीं
पहचाना।।
प्रथमहिं ब्रह्म स्वं इच्छा ते पाँचै शब्द
उचारा। सोहं, निरंजन, रंरकार, शक्ति
और ओंकारा।।
पाँचै तत्व प्रकृति तीनों गुण
उपजाया। लोक द्वीप चारों खान
चैरासी लख बनाया।।
शब्दइ काल कलंदर कहिये शब्दइ भर्म
भुलाया।। पाँच शब्द की आशा में
सर्वस मूल गंवाया।।
शब्दइ ब्रह्म प्रकाश मेंट के बैठे मूंदे
द्वारा। शब्दइ निरगुण शब्दइ सरगुण
शब्दइ वेद पुकारा।।
शुद्ध ब्रह्म काया के भीतर बैठ करे
स्थाना। ज्ञानी योगी पंडित औ
सिद्ध शब्द में उरझाना।।
पाँचइ शब्द पाँच हैं मुद्रा काया बीच
ठिकाना। जो जिहसंक आराधन
करता सो तिहि करत बखाना।।
शब्द निरंजन चांचरी मुद्रा है नैनन के
माँही। ताको जाने गोरख योगी
महा तेज तप माँही।।
शब्द ओंकार भूचरी मुद्रा त्रिकुटी है
स्थाना। व्यास देव ताहि
पहिचाना चांद सूर्य तिहि
जाना।।
सोहं शब्द अगोचरी मुद्रा भंवर गुफा
स्थाना। शुकदेव मुनी ताहि
पहिचाना सुन अनहद को काना।।
शब्द रंरकार खेचरी मुद्रा दसवें द्वार
ठिकाना। ब्रह्मा विष्णु महेश आदि
लो रंरकार पहिचाना।।
शक्ति शब्द ध्यान उनमुनी मुद्रा बसे
आकाश सनेही। झिलमिल झिलमिल
जोत दिखावे जाने जनक विदेही।।
पाँच शब्द पाँच हैं मुद्रा सो निश्चय
कर जाना। आगे पुरुष पुरान निःअक्षर
तिनकी खबर न जाना।।
नौ नाथ चैरासी सिद्धि लो पाँच
शब्द में अटके। मुद्रा साध रहे घट भीतर
फिर ओंधे मख्ुा लटके।।
पाँच शब्द पाँच है मुद्रा लोक द्वीप
यमजाला। कहैं कबीर अक्षर के आगे
निःअक्षर का उजियाला।।
जैसा कि इस शब्द ‘‘संतो शब्दई शब्द
बखाना‘‘ में लिखा है कि सभी संत
जन शब्द (नाम) की महिमा सुनाते हैं।
पूर्णब्रह्म कबीर साहिब जी ने
बताया है कि शब्द सतपुरुष का भी है
जो कि सतपुरुष का प्रतीक है व
ज्योति निरंजन(काल) का प्रतीक
भी शब्द ही है। जैसे शब्द ज्योति
निरंजन यह चांचरी मुद्रा को प्राप्त
करवाता है इसको गोरख योगी ने
बहुत अधिक तप करके प्राप्त किया
जो कि आम(साधारण) व्यक्ति के बस
की बात नहीं है और फिर गोरख नाथ
काल तक ही साधना करके सिद्ध बन
गए। मुक्त नहीं हो पाए। जब कबीर
साहिब ने सत्यनाम तथा सार नाम
दिया तब काल से छुटकारा गोरख
नाथ जी का हुआ। इसीलिए ज्योति
निरंजन नाम का जाप करने वाले काल
जाल से नहीं बच सकते अर्थात्
सत्यलोक नहीं जा सकते। शब्द ओंकार
(ओ3म) का जाप करने से भूंचरी मुद्रा
की स्थिति में साधक आ जाता हे।
जो कि वेद व्यास ने साधना की और
काल जाल में ही रहा। सोहं नाम के
जाप से अगोचरी मुद्रा की स्थिति
हो जाती है और काल के लोक में बनी
भंवर गुफा में पहुँच जाते हैं। जिसकी
साधना सुखदेव ऋषि ने की और केवल
श्री विष्णु जी के लोक में बने स्वर्ग
तक पहुँचा। शब्द रंरकार खैचरी मुद्रा
दसमें द्वार(सुष्मणा) तक पहुँच जाते हंै।
ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों ने ररंकार
को ही सत्य मान कर काल के जाल में
उलझे रहे। शक्ति(श्रीयम्) शब्द ये
उनमनी मुद्रा को प्राप्त करवा देता
है जिसको राजा जनक ने प्राप्त
किया परन्तु मुक्ति नहीं हुई। कई संतों
ने पाँच नामों में शक्ति की जगह
सत्यनाम जोड़ दिया है जो कि
सत्यनाम कोई जाप नहीं है। ये तो
सच्चे नाम की तरफ ईशारा है जैसे
सत्यलोक को सच्च खण्ड भी कहते हैं एैसे
ही सत्यनाम व सच्चा नाम है। केवल
सत्यनाम-सत्यनाम जाप करने का नहीं
है। इन पाँच शब्दों की साधना करने
वाले नौ नाथ तथा चैरासी सिद्ध
भी इन्हीं तक सीमित रहे तथा शरीर
में (घट में) ही धुनि सुनकर आनन्द लेते रहे।
वास्तविक सत्यलोक स्थान तो शरीर
(पिण्ड) से (अण्ड) ब्रह्मण्ड से पार है,
इसलिए फिर माता के गर्भ में आए (उलटे
लटके) अर्थात् जन्म-मृत्यु का कष्ट
समाप्त नहीं हुआ। जो भी उपलब्धि
(घट) शरीर में होगी वह तो काल
(ब्रह्म) तक की ही है, क्योंकि पूर्ण
परमात्मा का निज स्थान
(सत्यलोक) तथा उसी के शरीर का
प्रकाश तो परब्रह्म आदि से भी
अधिक तथा बहुत आगे(दूर) है। उसके लिए
तो पूर्ण संत ही पूरी साधना
बताएगा जो पाँच नामों (शब्दों) से
भिन्न है।
संतों सतगुरु मोहे भावै, जो नैनन अलख
लखावै।। ढोलत ढिगै ना बोलत
बिसरै, सत उपदेश दृढ़ावै।।
आंख ना मूंदै कान ना रूदैं ना अनहद
उरझावै। प्राण पूंज क्रियाओं से
न्यारा, सहज समाधी बतावै।।
घट रामायण के रचयिता आदरणीय
तुलसीदास साहेब जी हाथ रस वाले
स्वयं कहते हैं कि:- (घट रामायण प्रथम
भाग पृष्ठ नं. 27)।
पाँचों नाम काल के जानौ तब दानी
मन संका आनौ।
सुरति निरत लै लोक सिधाऊँ,
आदिनाम ले काल गिराऊँ।
सतनाम ले जीव उबारी, अस चल जाऊँ
पुरुष दरबारी।।
कबीर, कोटि नाम संसार में , इनसे
मुक्ति न हो।
सार नाम मुक्ति का दाता, वाको
जाने न कोए।।
गुरु नानक जी की वाणी में
तीन नाम का प्रमाण:--
पूरा सतगुरु सोए कहावै, दोय अखर का
भेद बतावै।
एक छुड़ावै एक लखावै, तो प्राणी
निज घर जावै।।
जै पंडित तु पढ़िया, बिना दउ अखर दउ
नामा।
परणवत नानक एक लंघाए, जे कर सच
समावा।
वेद कतेब सिमरित सब सांसत, इन पढ़ि
मुक्ति न होई।।
एक अक्षर जो गुरुमुख जापै, तिस की
निरमल होई।।
भावार्थ: गुरु नानक जी
महाराज अपनी वाणी
द्वारा समाझाना चाहते हैं
कि पूरा सतगुरु वही है जो
दो अक्षर के जाप के बारे में
जानता है। जिनमें एक काल व
माया के बंधन से छुड़वाता है
और दूसरा परमात्मा को
दिखाता है और तीसरा जो
एक अक्षर है वो परमात्मा से
मिलाता है।
संत गरीबदास जी महाराज की अमृत
वाणी में स्वांस के नाम का प्रमाण:--
गरीब, स्वांसा पारस भेद हमारा, जो
खोजे सो उतरे पारा।
स्वांसा पारा आदि निशानी, जो
खोजे सो होए दरबानी।
स्वांसा ही में सार पद, पद में स्वांसा
सार। दम देही का खोज करो,
आवागमन निवार।।
गरीब, स्वांस सुरति के मध्य है, न्यारा
कदे नहीं होय।
सतगुरु साक्षी भूत कूं, राखो सुरति
समोय।।
गरीब, चार पदार्थ उर में जोवै, सुरति
निरति मन पवन समोवै।
सुरति निरति मन पवन पदार्थ(नाम),
करो इक्तर यार।
द्वादस अन्दर समोय ले, दिल अंदर
दीदार।
कबीर, कहता हूं कहि जात हूं, कहूं बजा
कर ढोल। स्वांस जो खाली जात है,
तीन लोक का मोल।।
कबीर, माला स्वांस उस्वांस की,
फेरेंगे निज दास। चैरासी भ्रमे नहीं, कटैं
कर्म की फांस।।
गुरु नानक देव जी की वाणी
में प्रमाण:--
चहऊं का संग, चहऊं का मीत, जामै
चारि हटावै नित।
मन पवन को राखै बंद, लहे त्रिकुटी
त्रिवैणी संध।।
अखण्ड मण्डल में सुन्न समाना, मन पवन
सच्च खण्ड टिकाना।।
पूर्ण सतगुरु वही है जो तीन बार में
नाम दे और स्वांस की क्रिया के
साथ सुमिरण का तरीका बताए।
तभी जीव का मोक्ष संभव है। जैसे
परमात्मा सत्य है। ठीक उसी प्रकार
परमात्मा का साक्षात्कार व मोक्ष
प्राप्त करने का तरीका भी आदि
अनादि व सत्य है जो कभी नहीं
बदलता है। गरीबदास जी महाराज
अपनी वाणी में कहते हैं:
भक्ति बीज पलटै नहीं, युग जांही
असंख। सांई सिर पर राखियो,
चैरासी नहीं शंक।।
घीसा आए एको देश से, उतरे एको घाट।
समझों का मार्ग एक है, मूर्ख बारह
बाट।।
कबीर भक्ति बीज पलटै नहीं, आन पड़ै
बहु झोल। जै कंचन बिष्टा परै, घटै न
ताका मोल।।
बहुत से महापुरुष सच्चे नामों के बारे में
नहीं जानते। वे मनमुखी नाम देते हैं
जिससे न सुख होता है और न ही
मुक्ति होती है। कोई कहता है तप,
हवन, यज्ञ आदि करो व कुछ महापुरुष
आंख, कान और मुंह बंद करके अन्दर ध्यान
लगाने की बात कहते हैं जो कि यह
उनकी मनमुखी साधना का प्रतीक है।
जबकि कबीर साहेब, संत गरीबदास
जी महाराज, गुरु नानक देव जी आदि
परम संतों ने सारी क्रियाओं को
मना करके केवल एक नाम जाप करने को
ही कहा है।
एक नैसत्रो दमस नामक भविष्य वक्ता
था। जिसकी सर्व भविष्य वाणियां
सत्य हो रही हैं जो लगभग चार सौ
वर्ष पूर्व लिखी व बोली गई थी।
उसने कहा है कि सन् 2006 में एक हिन्दू
संत प्रकट होगा अर्थात् संसार में
उसकी चर्चा होगी। वह संत न तो
मुसलमान होगा, न वह इसाई होगा
वह केवल हिन्दू ही होगा। उस द्वारा
बताया गया भक्ति मार्ग सर्व से
भिन्न तथा तथ्यों पर आधारित
होगा। उसको ज्ञान में कोई
पराजित नहीं कर सकेगा। सन् 2006 में
उस संत की आयु 50 व 60 वर्ष के बीच
होगी। (संत रामपाल जी महाराज
का जन्म 8 सितम्बर सन् 1951 को हुआ।
जुलाई सन् 2006 में संत जी की आयु
ठीक 55 वर्ष बनती है जो
भविष्यवाणी अनुसार सही है।) उस
हिन्दू संत द्वारा बताए गए ज्ञान
को पूरा संसार स्वीकार करेगा। उस
हिन्दू संत की अध्यक्षता में सर्व
संसार में भारत वर्ष का शासन होगा
तथा उस संत की आज्ञा से सर्व कार्य
होंगे। उसकी महिमा आसमानों से
ऊपर होंगी। नैसत्रो दमस द्वारा
बताया सांकेतिक संत रामपाल जी
महाराज हैं जो सन् 2006 में विख्यात
हुए हैं। भले ही अनजानों ने बुराई करके
प्रसिद्ध किया है परंतु संत में कोई
दोष नहीं है।
उपरोक्त लक्षण जो बताए हैं ये सभी
तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज
में विद्यमान हैं।



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