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Sunday, January 3, 2016

¤ कथा सदना कसाईँ ¤ sadna kasai

कथा सदना कसाईँ 
परमेँश्वर कबीर जी द्वारा हम तुच्छ बुध्दि जीवोँ को भगत सदना कसाईँ की कथा द्वारा कैसा अमृत ज्ञान दिया है ~>
एक सदना नाम का कसाईँ था जो अपनी आजीविका के लिऐँ एक कसाईँ की दुकान पर बकरेँ काटनेँ का काम किया करता था इक दिन सदना कसाईँ को कबीर साहिँब जी मिलेँ सदना कसाईँ ने कबीर साहिँब का सतसंग सुना सदना सतसंग सुनकर बहुत प्रभावित हुआ ।
सतसंग सुनकर सदना कसाईँ को अपने बुरेँ कर्म का ज्ञान हुआ।
सदना नेँ अपने कल्याण के लिऐँ कबीर जी सेँ नाम दिक्षा देने कि याचना कि कि गुरु देँव क्या मुझ पापी का भी उधार हो सकता है जी मैँ कसाईँ हुँ जी कसाईँ सदना नाम मेरा।तब कबीर जी ने कहा कि सदना नौँका मेँ चाहेँ घास रखो ,चाहे पत्थर वो पार कर दिया करती हैँ भाईँ कल्याण हो जाऐगा पर आगे ऐसे कर्म नहीँ करना ,सदना नेँ कहा गुरुदेँव कैसे छोँड़ू इस कसाईँ के काम को मेरे पास कोई और काम नही ।
नहीँ तो बालक भूखे मर जावेँगे।
गुरुदेँव नेँ कहा सदना यो दोनो बात कैसे हो ,मर्याँदा तो निभानी पड़ेगी यदि कल्याण चाहतेँ हो ।
तब सदना बहुत विनती करता है कि गुरुदेँव उधार करो ।
तब कबीर जी ने सदना की लगन देँख कर कहा की ठीक है वचन दो की कितने बकरेँ हर रोज काटोँगे । सदना ने सोचा कि 10 या बीस काटता हुँ और ज्यादा काटनेँ का बचन करता हुँ और बोला 100 बकरेँ काटने का वचन देता हुँ कि सौ से ज्यादा नही काटेँगे बकरेँ ।
तब कबीर जी ने कहा कि जितने काँटने है बकरे अब वचन दे कही बाद मेँ बचन तोड़े तब सदना बोला जी बचन का पक्का हुँ की सौ से ज्यादा नहीँ काँटूगा बकरेँ।
सदना भगति शुरु कर देता है और कुछ दिनो बाद उस नगरी के राजा की लड़की की शादीँ होती है मुस्लमान राजा था शादीँ मेँ माँस का भोजन चल रहा था और सदना के मालिक ने सदना को 20 बकरेँ काटने का आदेँश दिया ,सदना ने 20 बकरेँ काँट दिऐ ।
फिर 20 का आदेँश आया ऐसे करते करते शाम तक सौ बकरेँ कट गऐ ,सदना नेँ शुकर किया गुरुदेँव का,की आज बचन रह गया की सौ ही बकरेँ कट गऐ आज तो बहुत बुरा हुआ ।
सदना ने हथियार रख दियेँ धौकर।
तभी सदना के मालिक के पास कबीर साहिँब एक व्यापारी का रुप बनाकर आते है और कहते है कि मुझेँ तुम से हर रोज 30,40 बकरोँ का सौदा करना,और बात करेगेँ सुबह अब एक स्वस्थ बकरेँ का माँस बनवा दो भूख लगी हैँ ।
सदना के मालिक ने सदना को आदेँश दिया की जल्दी बकरा काँट ऐसे ऐसे कोई व्यपारी आया है उस से एग्रीमेँट होगा ,
अब सदना चिँन्तित हुआ कि बकरा काट दिया तो गुरु जी का बचन टुट जाऐगा,
यदि नही काँटा तो मालिक नौकरी सेँ निकाल देगा मेरी तो दोनो और से बात बिगड़गी ।
सदना ने सोचा की एक आदमी का भोजन बनना है क्यो ना बकरे के नले नले काँट दूँ।
ऐसा सोच कर सदना बकरेँ के नले काँटने लगा तभी परमात्मा ने बकरा बुला दिया बकरा बोला भाई सदना मर्याँदा ना तोड़े मेने तेरा गला काँटा तेरे को ऐसे नहीँ काँटा जो तूँ आज काँटने जा रहा देँख लेना फिर मैँ भी तेरे को ऐसे ही काँटुगा अब सदना किसके बकरे काँटे था काँपे खड़ा खड़ा और बकरा बोला उस दिन यकीन हुआ सदना को की संत सच्ची कहे थे ये बहुत बुरा चक्कर है अब ना करे ऐसेँ कर्मँ नेँ चाहे भूखे मरेँ।सदना के मालिक ने आवाज लगाईँ कि सदना काँटा नही बकरा ,
सदना बोला मै ना काँटू
मालिँक मेँ ना काँटू ।
तभी सदना के मालिक ने गुस्से सेँ सदना के दोनो हाथ काँट दियेँ कि ये कैसा नौकर है जो मेरे सौदे सै खुश नहीँ ओर सदना को घर से निकाल दिया ।
अब सदना ने जैसे तेसे अपना ईलाज करवाया और और कुछ महीनेँ रो पीटकर सोचा की अब कया करेँ फिर याद आया कि गुरुदेँव बोल रहे थे कि मै जगननाथ के मन्दिँर मेँ रहता हुँ वहाँ आ जाना जब भी मिलना हो सदना गुरु जी से मिलने जगननाथ की ओर चल देता शाम होने पर
एक गाँव मे गाँव के नम्बरदार के पास जाता और कहता है कि मेने जगननाथ जाना अपने गुरु जी के पास अब रात हो गई यहाँ रात को ठहरने का स्थान बताऐँ तब नम्बरदार सोचता है कि भगत आदमी है मुझे भी कुछ पुण्ट होगा ऐसा सोचकर सदना को अपने घर ले आता है और सदना के खाने व सो ने का प्रबन्ध करता है ।
नम्बरदार की पत्नी बुरे चरित्र की थी वो रात को सदना से बदव्यवहार करने की चेष्टा करती है तब सदना कहेता है कि माईँ मै महादुखी हुँ रात काटनी है काटनेँ दो तो रुक जाता हुँ नही तो मेँ अभी चला जाता हुँ।
ये सुनकर नम्बरदार की पत्नी नेँ अपनी बेईजती समझकर शोर मचा दिया कि ये मेरे साथ बदव्यवहार करने की कोशिश कर रहा था तब शोर सुनकर लोग इक्कठा हुऐ सदना को पकड़ लिया ।
सुबह नगरी के राजा के पास पेश किया गया वहाँ नम्बरदार की पत्नी ने झुठी गवाही दे दी कि ये मेरे साथ बदव्यवहार करने कि कोशिश कर रहा था।तब राजा ने सदना को सबके सामने मीनार मेँ चिन्ने की सजा सुना दी और कहा इसने नम्बरदार के साथ धोखा किया जो उसकी पत्नी के साथ बदव्यवहार की चेष्टा कि भुगतकर मरे मीनार मेँ चिन्न दो।
जब सदना के हाथ पैर बाँधकर कर मीनार मेँ चिन्न रहे थे तो वहाँ पर कुछ लोग बोल रहे थे कि देखो कैसा नीच था ये जगननाथ जाने कि बात कर रहा था और ये भगत कहावेँ कैसा नीच कर्मीँ है ऐसे ही इसके गुरु होगे।
ये सुनकर सदना की आँखो मे आँसू आ गऐ और बोला गुरुदेँव मै तो नीच था चाहे इस से भी बूरी मौत मरता पर ये इब मुझे भगत कहे थे कि मन्दिर मेँ जावेँ दुष्ट इसे इसके गुरु भी ऐसे होगेँ।मालिक ये तो आप के नाम पेँ बट्टा लग गया।
मालिक इस भगति की लाज राखियोँ मेरे मालिक,ये बोलकर फुट फुट कर रोने लगा।तभी बहुत जोर से धमाका हुआ और मीनार फट गया उसकी इट्टे अन्यायकारी राजा मँत्रियोँ के सिर मेँ लगी जिन्होने ये अन्याय का फैसला सुनाया व नम्बरदार की पत्नी के दोनो स्तन कट गऐ इट्टे लगने से ।
सदना के दोनो हाथ पुरे हो गऐ कटे हुऐ नही रहेँ ।
बोलो सतगुरुदेँव जी की जय हो
कबीर,जो जन मेरी शरण हे ,
ताका हूँ मैँ दास ।
गैल गेल लाग्या फिरू ,
जब लग धरती आकाश ।।
कृप्या शेयर करेँ जन जन तक पहुँचाऐँ परमेँश्वर का सन्देँश ।।

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