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Sunday, January 3, 2016

गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं । sat Guru Kaise hote he

गुरु किया है देह का,
सतगुरु चीन्हा नाहिं ।
भवसागर के जाल में, 
फिर फिर गोता खाहि ॥
पूरा सतगुरु न मिला,
सुनी अधूरी सीख ।
स्वाँग यती का पहिनि के,
घर घर माँगी भीख ॥
कबीर गुरु है घाट का,
हाँटू बैठा चेल ।
मूड़ मुड़ाया साँझ कूँ ,
गुरु सबेरे ठेल ॥
गुरु-गुरु में भेद है,
गुरु-गुरु में भाव ।
सोइ गुरु नित बन्दिये,
शब्द बतावे दाव ॥
जो गुरु ते भ्रम न मिटे,
भ्रान्ति न जिसका जाय ।
सो गुरु झूठा जानिये,
त्यागत देर न लाय ॥
झूठे गुरु के पक्ष की,
तजत न कीजै वार ।
द्वार न पावै शब्द का,
भटके बारम्बार ॥
सद्गुरु ऐसा कीजिये,
लोभ मोह भ्रम नाहिं ।
दरिया सो न्यारा रहे,
दीसे दरिया माहि ॥
कबीर बेड़ा सार का,
ऊपर लादा सार ।
पापी का पापी गुरु,
यो बूढ़ा संसार ।।
जो गुरु को तो गम नहीं,
पाहन दिया बताय ।
शिष शोधे बिन सेइया,
पार न पहुँचा जाए ॥
साच्चे गुरु के पक्ष में,
मन को दे ठहराय ।
चंचल से निश्चल भया,
नहिं आवै नहीं जाय ॥
गु अँधियारी जानिये,
रु कहिये परकाश ।
मिटि अज्ञाने ज्ञान दे,
गुरु नाम है तास ।।
गुरु नाम है गम्य का,
शीष सीख ले सोय ।
बिनु पद बिनु मरजाद नर,
गुरु शीष नहिं कोय ॥
गुरुवा तो घर फिरे,
दीक्षा हमारी लेह ।
कै बूड़ौ कै ऊबरो,
टका परदानी देह ॥
गुरुवा तो सस्ता भया,
कौड़ी अर्थ पचास ।
अपने तन की सुधि नहीं,
शिष्य करन की आस ॥
जानीता बूझा नहीं ,
बूझि किया नहीं गौन ।
अन्धे को अन्धा मिला,
राह बतावे कौन ॥
जाका गुरु है आँधरा,
चेला खरा निरन्ध ।
अन्धे को अन्धा मिला,
पड़ा काल के फन्द ॥
। । । ।सत साहेब। । । ।

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