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Tuesday, July 5, 2016

कबीर भक्ति भक्ति सब कोई कहै , भक्ति न जाने भेद ।

कबीर भक्ति भक्ति सब कोई कहै , भक्ति न जाने भेद ।
पूरण भक्ति जब मिलै , कृपा करै गुरुदेव ।।
भक्ति भक्ति तो हर कोई प्राणी कहता है किन्तु भक्ति का ज्ञान उसे नहीं होता, भक्ति का भेद नहीं जानता । पूर्ण भक्ति तभी प्राप्त हो सकती है जब गुरु देव की कृपा प्राप्त हो अतः भक्ति मार्ग पर चलने से पहले गुरु की शरण में जाना अति आवश्यक है । गुरु के आशिर्वाद और ज्ञान से मन का अन्धकार नष्ट हो जायेगा ।


कबीर, मारग चलते जो गिरै , ताको नाहीं दोष ।
कहैं कबीर बैठा रहै , ता सिर करड़ै कोस ।।
कबीर साहिब जी कहते है कि सत मार्ग पर चलने वाला मनुष्य यदि गिर जाये तो उसका दोष नहीं है । महादोषी तो वह है जो खाली बैठा रहता है अर्थात सतमार्ग पर चलने का नाम ही नहीं लेता । ऐसे प्राणी के सामने सारा कठिन मार्ग ही पड़ा है ।

कबीर, लौ लागी विष भागिया , कालख डारी धोय ।
कहैं कबीर गुरु साबुन सों , कोई इक ऊजल होय ।।
गुरु से प्रीति होने के पश्चात वासना रूपी विष दूर भाग जाता है और मन में बुराइयों की जितनी भी कालिख होती है गुरु के ज्ञान रूपी साबुन से धुल जाती है । कबीर जी कहते है कि गुरुज्ञान के साबुन से कोई भक्त ही निर्मल होता है ।

 

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