"युग सत्तर हम ज्ञान दिया, जीव न समझया एक !
गरीबदास घर-घर फिरे, वो धरे कबीरा भेख !!
सत्तर युग सेवन किया, किन्हें ना बूझी बात !
गरीबदास मैं समझावत हूँ, ये मोहें लगावें लात !!
कल्प कोटि युग बितिया, हम आये तिस बेर !
गरीबदास केशव सुनो, देन भक्ति की टेर !!
स्वर्ग मृत्यु पाताल में, हम पैठे कई बार !
गरीबदास घर-घर सजया, मार-मार कहै मार !!
हमरी जात अपूर्वी, पूर्व रेहन हमार !
गरीबदास कैसे जुड़े, इस पश्चिम के तार !!
हम हैं पूर्व ठेठ के, हम उतरे औघट घाट !
गरीबदास जीव दक्षिण के, यूँ न मिलती सांठ !!
जिन हमारी सीख लेई, काटूं जम जंजीर !
गरीबदास केशव सुने, ऐसे कहत कबीर !!
फिर बाज़ी विधना रचे, वे नहीं जीव आवंत !
गरीबदास सतलोक में, अमर पटा पावंत" !!
सत् साहिब जी!
बन्दीछोड़ सदगुरु रामपाल जी महाराज की जय हो!!
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