प्रश्न:– मैंने पारखी संत श्री अभिलाष दास के विचार सुने थे। वे कह रहे थे कि संसार का कोई रचने वाला भगवान वगैरह नहीं है। यह नर-मादा के संयोग से बनता है। फिर समाप्त हो जाता है। कोई भगवान नहीं है। जीव ही ब्रह्म है, जीव ही कर्ता है, अभिलाष दास के ये विचार उचित हैं या अनुचित?
उत्तर:– इसका उत्तर श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 6 से 10 में विस्तार से दिया गया है। कहा है कि जो आसुरी प्रकृति के लोग होते हैं, वे कहा करते हैं कि संसार बिना ईश्वर के है, स्त्राी-पुरुष से उत्पन्न है। इसका कोई कर्ता नहीं है। ऐसे व्यक्ति संसार का नाश अर्थात् बुरा करने के लिए ही जन्म लेते हैं।
सच्चाई यह है कि परमात्मा सर्व संसार का सृजनहार है। जीव ब्रह्म नहीं है। ब्रह्म का अर्थ प्रभु (स्वामी) होता है। जैसे (1) ब्रह्म (जिसको क्षर पुरुष भी कहा गया है) 21 ब्रह्माण्डों का स्वामी है। (2) अक्षर ब्रह्म (जिसको अक्षर पुरुष भी कहा गया है, गीता अध्याय 15 श्लोक 16) यह 7 शंख ब्रह्माण्डों का स्वामी है। (3) पूर्ण ब्रह्म (जिसको गीता अध्याय 8 श्लोक 3 में परम अक्षर ब्रह्म कहा है) असँख्य ब्रह्माण्डों का स्वामी है। यह कुल का मालिक है। यह कहना कि कोई भगवान नहीं है, संसार केवल स्त्राी-पुरुष या नर-मादा से उत्पन्न होता है, समाप्त हो जाता है। जीव ही कर्ता है अर्थात् जीव ही ब्रह्म है, यह पूर्णतया अनुचित है।
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