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Saturday, April 2, 2016

शब्द भेद तब जानिये, रहे शब्द के माहिँ|

शब्द भेद तब जानिये,
रहे शब्द के माहिँ|
शब्दे शब्द परगट भया,
दूजा दीखे नाहिँ||
लोहे चुम्बक प्रीति है,
लोहे लेत उठाय|
ऐसेहिँ शब्द कबीर का,
जम से लेत छुड़ाय||
शब्द द्वारा श्रष्टि रचना

" महाउदघोष " ही वास्तव में शब्द की ताकत है । और मालिक-ए-कुल की परिपूर्ण ताकत है । जो खण्डों ब्रहमण्डों को लिए खडी़ है । यह चैतन्य आत्मक धारा है , यह धुन सहित थरथराहट है । यह महाचैतन्य है । इसी धारा से मालिक कुल जहान को पैदा करता है । यह धारा मालिक से निकल कर सबके अन्दर पहुंच रही है । इस धारा से सबकी सम्हाल करता है । इस धारा में अनन्त ध्वनियां हैं । इससे अनन्त राग रागनियां निकल रही हैं ।

सतगुरु कबीर साहेबजी फरमाते हैं कि यही शब्द- गुरू है । वहां :-
अनन्त कोटि जहां बाजे बाजें।
शब्द विदेही जहां बिराजें ।।
सार शब्द से लोक बनाया ।
वही सार हंसन मुक्ताया ।।
शब्द अखण्ड होत दिन राती।
न कोई पूजा न कोई पाती ।।
बिन कर ताल पखावज बाजें।
बिना नींव के मंदिर साजें ।।
भूमि कहो तो भूमि नांही ।
मंदिर रचे तासु के मांहि ।।
बिना भूमि जहां बहती गंगा ।
बिना नीर जहां उठें तरंगा ।।
बिन बादल बिजली चमकारा।
बिना नीर जहां चलें फुवारा ।।
घरहर गरजें अति अधिकाई ।
लौर उठे बादल कोई नांहि ।।
मोर चकोर कोयल किलकारें।
बिना अंग के शब्द उचारें ।।
यह राग रागिनियां किसी वक्त गुरू की बताई युक्ति से सुनाई देती हैं । ज्यों-ज्यों हम सूक्ष्म होते जाते हैं , त्यों-त्यों धुनें साफ सुनाई देती हैं । इनके माध्यम से जीव अपने मालिक तक रसाई पाता है , पुनः जीवन मरण से आजाद हो जाता है ।

सार शब्द से लोक बनाया ।
वही सार हंसन मुक्ताया ।।

सारांश यह है कि कुल रचना शब्द से हुई गुरू वाणी में गुरू नानक जी फरमाते हैं :--
शब्दै धरती शब्दै आकाश ।
शब्दै शब्द भया प्रकाश ।।
सकल सृष्टि शब्द के पाछे ।
नानक शबद घटों घट आछे ।।
सतगुरु कबीर साहेबजी कहते हैं :-
सत्य के शब्द से धरन आकाश हैं ।
सत्य के शब्द से पवन पानी ।।
धरती आकाश पवन पानी सभी शब्द से पैदा हुए ।
गोस्वामी गरीबदास जी फरमाते हैं: -
शब्द स्थावर जंगम जोगी ।
दास , गरीब शब्द रस भोगी ।।
शब्द अति सूक्ष्म और सर्व व्यापक है । कुल रचना इसमें समाई हुई है ।
सतगुरु कबीर साहेबजी फरमाते हैं।: -
रैन समानी सूर्य में सूर्य समाना आकाश ।
आकाश समाना शब्द में खोजे कोई निज दास।।
सूर्य के उदय होते ही रैन का अंधेरा उसी में लोप हो जाता है । इसी प्रकार कुल ब्रहमाण्ड शब्द में समाये हुए हैं । अर्थात् शब्द सर्वत्र है । जहां पुरष प्रकृति का मेल है जहां कार्य और कारण उत्पन्न हुए तहां भी एक गति है , थरथराहट शब्द के कारण है । शब्द वहां भी व्याप्त है । शब्द एक थरथराहट और हरकत का नाम है । ध्वनि सहित है । यह सूक्ष्म में है स्थूल में भी है । यह नाद भी है और वाणी भी यही शब्द है कहीं अनहद है , कहीं ओंकार कहीं सोहं यह सब इसकी अवस्थाएं हैं । इस शब्द की ध्वनि सागर की लहरों में है । बादल की गर्जन में है । बिजली की कड़क मे है । तूफानों की रफ्तार में है । एटम बम्ब की आवाज में है । सृष्टि और प्रलय यही शब्द करता है । सतगुरु कबीर साहेबजी फरमाते हैं: -
जब नहीं चन्द्र सूर्य अवतारा ।
जब नहीं तीनों गुण विस्तारा ।।
नाही सुन्न पवन न पानी ।
समर्थ की गति काहू न चानी।।
आदि ब्रहम नही किया पसारा।
आप अकह तब हता न्यारा ।।
शब्द विदेह भयो उचारा ।
तेहि पीछे सब सृष्टि पसारा ।।
उत्पत्ति तथा प्रलय दोनों शब्द से होती हैं । वही सृष्टि के पूर्व था और प्रलय के बाद भी होगा ।
बीजक में भी कहे है कि,:-
साँचा शब्द कबीर का,ह्रदय देखु विचार ।
चित दै समुझे नही,मोहि कहत भैल युग चार ।।
(बीजक साखी--६४)
बाईबल में आया: -
Word of God is quick and powerful and sharpen than two edged sword.
शब्द शक्तिशाली है और समर्थ है । यह दो धारी तलवार से भी तेज है ।
By the word of lord were the heavens made परमात्मा के शब्द से स्वर्ग बने ।
यह शब्द अदृष्ट है । अगोचर है । सीमा रहित है । असीम है । यह पढ़ने लिखने बोलने में नहीं आता । वक्त गुरू द्वारा बताई युक्ति द्वारा लखा जा सकता है । शब्द गुरू प्रकट होने से राग रागनियां सुनाई देने लगती हैं । शब्द जहां है वहां गति है । थरथराहट है । अणुओं में आप देखते हैं गति है । गति का कारण शब्द है । गति का कारण शब्द है । जहां शब्द है , जहां शब्द है , वहां चैतन्यता है । इसीलिए शब्द महा चैतन्य है " शक्तिशाली " है । छोटे-छोटे अणुओं से बम्ब बनता है उसके विस्फोट से सर्वनाश होता है इससे शब्द की शक्तियों का अनुमान लगाया जा सकता है ।
दूसरा पक्ष भी शब्द का है । जहां मधुर-मधुर मन मोहक जीवन संचार करने वाली राग रागनियां होती हैं । यह जीव वृक्ष पौधे सब में जीवन संचार करती हैं । 

Thursday, December 31, 2015

you must read || अथ विचार का अंग || bichar ka anga thoughts

पढने के बाधा इस्से जरुर सेयर करे 
न जाने कितने आत्मा को इस्सका जरुरत हे 

|| अथ विचार का अंग ||

आचार्य श्री गरीबदास महाराज जी ने इस अंग के द्वारा अध्यात्मिक जगत में विचार के महत्व को दर्शाया है| विचार का अर्थ है किसी वस्तु या विषय के बारे में मन ही मन तर्क वितर्क करते हुए सोचना और समझना । कुछ लोगों का मानना है की परमेश्वर के बारे में सोचने या समझने की क्या जरूरत है ? बस विश्वास ही काफी है। यह
ठिक है की परमेश्वर प्राप्ति के लिए विश्वास बहूत जरूरी है़ लेकीन विश्वास भी परमेश्वर के ज्ञान और उस ज्ञान पर विचार करने से ही दृढ होता है। जब आप किसी वस्तु या विषय के बारे में सोचते हैं तो आप को उसकी समझ आने लगती है और उसके प्रती आप के मन  में विश्वास उत्पन्न हो जाता है। 

विचार केवल परमाथिर्क क्षेत्र में ही नहीं बल्की संसारिक क्षेत्र में भी बहुत जरूरी है। 

गरीब ज्ञान विचार न ऊपजै, क्या मुख बोलैं राम|
संख बजावैं बांबई, रते न निर्गुण नाम || १||

ज्ञान = वस्तुओं या विषयों आदि का मन को होनेवाला परिचय या जानकारी।
विचार = किसी चीज या बात के संबंध में मन ही मन तर्क-वितर्क करते हुए सोचना या समझने की क्रिया या भाव।

महाराज जी कहते हैं की जब तक परमेश्वर के बारे में तुम्हें सही बोध(जानकारी) नहीं, जब तक तुम्हारे अंदरपरमेश्वर के बारे में सोचने और उसे ठीक ठीक समझने का भावना नहीं उत्पन्न (उपजै) होती तब तक मुख से
राम राम कहने से क्या होगा ? अगर कोई सर्प की बांबई के आगे शंख बजता रहे तो क्या लाभ? (अर्थात
सांप तो बिन बजाने से हाथ आयेगा ना की शंख बजाने से|) इसी तरह जब तक निर्गुण परमेश्वर के नाम में लीन
नहीं होते तब तक कोई लाभ नहीं | 

(यहाँ ज्ञान का अर्थ है किसी वस्तु या विषय के बारेमें जानकारी और विचार उस वस्तु या विषय को समझनेकी प्रकिर्या है। महाराज जी ने आगे कहा भी है :-

"विचार नाम है समझ का "

आप सत्संग मे गए और आपने सुना की परमेश्वर निर्गुण, निराकार, निर्लेप, अविगत और अविनाशी है। यह तो आपको परमेश्वर के बारे में ज्ञान प्राप्त हुआ। लेकीन जब आप इन शब्दों के सही अर्थ ढुंढ लेंगें तो कहा जा सकता है की आप समझ गए कि इनशब्दों का सही अर्थ क्या है |

यह समझने की प्रकिर्या हि विचार है। 

जरा याद करो की आप चंद्रमा के बारे में क्या क्या जानते हैं। कुछ लोग कहेंगे की चंद्रमा रात को दिखाई देता है। चंद्रमा रोशनी करता है। चंद्रमा का आकार कम ज्यादा होता है। कुछ इससे ज्यादा जानते होंगे जैसे चंद्रमा पृथ्वी के इरद गिरद घुमता है। चंद्रमा पृथ्वी से परावर्तित रोशनी के कारण चमकता है। जिन्हों ने चंद्रमा को ज्यादा देखा होगा वह कह सकते हैं की कभी कभी चंद्रमा सुरज ढलने से पहले दिन में भी दिखाई देता है। चंद्रमा हर दिन एक हि स्थान से नहीं उगता। इत्यादि /यह सब तो हुआ चंद्रमा के बारे मे जानकारी। 

पर आपनेकभी सोचा है की चंद्रमा का आकार कम ज्यादा क्यों होता है? क्यों चंद्रमा उपर से निचे को हि कम होता है | निचे से उपर को नहीं? अगर चंद्रमा पृथ्वी से परावर्तित किरणों के कारण चमकता है तो रात को कैसे चमकता है? इत्यादि इत्यादि

शायद हम में से बहुत से इन सबका उत्तर ना दे सकें। (यह सब हमें भुगोल में सिखाया जाता है फिर भी हमें याद नहीं रहता ।) क्यों ? क्योंकी हमारे में जिज्ञासा नहीं। यह जिज्ञासा बहुत जरूरी है।

 अध्यात्मिक क्षेत्र में तो बहुत अवश्यक है इसके बिना तो कुछ भी संभव नहीं। महाराज जी ने भी बाणी में कहा है 

" गरीबदास समझावहीं जिज्ञासु तांई " 

कई लोगों के मन में प्रश्न तो उत्पन्न होता है लेकिन समाधान नहीं खोज पाते। अगर आप किसी बातको समझ नहीं पा रहे तो उस विषय के ज्ञाता संतों महांपुरषों से मागर्दशन लेकर अपनी विवेक बुद्धि से निणर्य करें।  

गरीब ज्ञान विचार विवेक बिन, क्यों दम तोरै श्वास|
कहा होत हरि नाम से, जे दिल ना विश्वास ||२||

विवेक = अन्तः करण की वह शक्ति जिसमें मनुष्य यह समझता हैं कि कौन-सा काम अच्छा है या बुरा, अथवा करने योग्य है या नहीं |

परमेश्वर के ज्ञान को बिना समझे, विवेक के द्वारा निर्णय किये बिना व्यर्थ ही (प्राणायाम इ. के द्वारा) अपने श्वासों को क्यों नष्ट कर रहे हो ? हरि का नाम लेने से तबतक कुछ नहीं होता जब तक तुम्हारे दिल में परमेश्वर के प्रति विश्वास ना हो | 

(विश्वास भी ज्ञान, विचार के द्वारा ही उत्पन्न होता है|)

गरीब ज्ञान विचार विवेक बिन, क्यों भौंकत हैं श्वान|
दश जोजन जल में रहै, भीजत ना पाषान ||३||



परमेश्वर के ज्ञान को बिना समझे, विवेक के द्वारा निर्णय किये बिना क्यों कुत्ते (श्वान) की तरह भोंक रहे हो ? पत्थर (पाषाण) को चाहे कितना ही समय पानी में रखो उसका अंदर पानी से नहीं भिजता | अर्थात जब तक मनुष्य विचार करके अपने अवगुणों को नहीं छोड़ता तब तक उसका अंदर परमेश्वर प्रेम से नहीं भिजता | गरीब 

ज्ञान विचार विवेक बिन, क्यों रींकत खर गीध|
कहा होत हरि नाम से, जो मन नाहीं सीध ||४||

परमेश्वर के ज्ञान को बिना समझे, विवेक के द्वारा निर्णय किये बिना तुम क्यों गधे(खर) और गीधों की तरह रिंक रहे हो ? हरि का नाम लेने से क्या होगा अगर तुम्हारे मन में उसका निर्णय ही नहीं हुआ ?

गरीब समझि विचारे बोलना, समझि विचारे चाल |
समझि विचारे जागना, समझि विचारे ख्याल ||५||

महाराज जी कहते है की परमेश्वर को समझ कर और विचार करके ही उसके बारे में बोलना चाहिए और उसीके बारे में सोचते और समझते हुए चलना चाहिए | उसीके बारे में सोचते और समझते हुए जागना चाहिए | अपने ख्यालों में भी उसी के बारे में सोचना और समझना चाहिए |

गरीब करै विचार समझि करि, खोज बुझ का खेल |
बिना मथे निकसै नहीं, है तिल अंदर तेल ||६||

परमेश्वर के ज्ञान को समझने के लिए उसके बारे में विचार करना चाहिए | परमेश्वर को खोजना यानि के उसे बुझने/समझने जैसा ही है | जैसे तिल के अंदर का तेल बिना तिल को मथे नहीं निकलता उसी तरह परमेश्वर के ज्ञान को मथे बिना समझे बिना परमेश्वर हाथ नहीं आता |

गरीब जैसे तिल में तेल है, यौ काया मध्य राम |
कोल्हू में डारे बिना, तत्त नहीं सहकाम ||७||

जिस तरह तिल में तेल है उसी तरह इस शरीर (काया) में  आदि राम भगवान  का वास है | जिस तरह तिल को कोल्हू में डाले बिना तेल प्राप्त नहीं होता | उसी तरह खुद को (ज्ञान, विचार और विवेक रुपी) कोल्हू में डाले बिना परम तत्त्व हाथ नहीं आता |

गरीब विचार नाम है समझ का, समझ नापरि परख |
अकलमंद एकै घना, बिना अकल क्या लख ||८||

यहाँ पर महाराज जी कहते हैं की विचार उसी को कहते हैं जिसमे आप को समझ आ जाए | अगर परमेश्वर की परख या पहचान की आप को समझ ही नहीं आई तो क्या लाभ ? अकलमंद तो एक ही बहुत होता है | बिना अकल के चाहे लाखों हो किस काम के |

गरीब पारख करै सो पीर हैं, बोलैं समझ विचार |
नर सरूप नरहरि धर्या, अर्श कला करतार ||९||

जो परमेश्वर को परख लेता है, जान लेता है वह पीर (गुरु) है | ऐसा व्यक्ति सोच समझ कर ही बोलता है | ऐसे व्यक्ति के रूप में मानो भगवान मनुष्य (नर) का रूप धारण करके आए हों | ऐसा व्यक्ति सर्व व्यापक परमेश्वर जैसा है |

गरीब बिना विचारे क्या लहै, कस्तूरी भटकंत |
बिन बुझे नहीं पाइये, गाम डगर मग पंथ ||१०||
बिना सोचे समझे क्या प्राप्त होता है? मृग की नाभि में कस्तूरी होती है लेकिन समझ ना होने के कारण वह उसे इधर उधर ढून्डता रहता है | इसी तरह बिना सोचे समझे परमेश्वर या उसका मार्ग प्राप्त नहीं होता |  

गरीब ज्ञान सफा के चौक में, जहां विचार विवेक |
कुटलाई जी बहुत है, निर्मल अंग एक ||११||

परमेश्वर के ज्ञान देने वालों के चौक में जहाँ पर परमेश्वर के ज्ञान का विचार किया जाता है | कुटिल (उलटी) बुद्धि वाले बहुत हैं | परमेश्वर का सही ज्ञान देने वाला साफ मन का कोई एक आधा ही है |

गरीब बिना विचारे भ्रम है, सुरपति सरीखा होय |
गौतम ऋषि गुरूवा बड़े, जाकी पत्नी जोय ||१२||
(जो लोग कोई भी काम करने से पहले सोच विचार नहीं करते वह भूल कर बैठते हैं |) देवताओं का राजा होने के वावजूद भी इन्द्र ने बिना सोचे समझे ही गुरु के समान गौतम ऋषि की पत्नी से सम्भोग किया |


गरीब बिना विचारे विचरता, बैरागी शुकदेव |
सप्तपुरी में गवन करि, ढूंढे जनक विदेह ||१३||

(गुरु के महत्त्व को )बिना समझे ही शुकदेव जी बैरागी बनकर सप्तपुरी तक घूमते रहे, और आखिर में जनक विदेह को गुरु किया |

गरीब गोरखनाथ सुनाथ है, यंत्र मंत्र जोग |
सतगुरु मिले कबीर से, काटे दीर्घ रोग ||१४||
गोरखनाथ जी एक अच्छे नाथ योगी थे जो सभी प्रकार के जंत्र, मन्त्र जानते थे | लेकिन जब उन्हें कबीर जी जैसे सतगुरु मिले तो उन्हें सभी जंत्र मन्त्र जैसे रोगों से छुटकारा मिल गया |

गरीब गंध्रप सैन गदहा भया, पुत्रहि पिता श्राप |
बिना विचारे बैठना, सुने उर्वशी लाप ||१५||

बिना सोच विचार किये गंध्रप सैन उर्वशी के पास बैठकर उससे बातें करने लगे जिससे उनके पिता ने उन्हें गधा बनजाने का श्राप दे दिया |

गरीब दुर्वासा कूं तप किया, चौरासी सहंस प्रवान |
इंद्रलोक बंधे गये. भंवर कुचौं कुं खान ||१६||

दुर्वासा ऋषि ने चौरासी हजार वर्ष तक तप किया | (लेकिन बिना विचार किये ही) भंवरा बनकर वह उर्वशी के स्तनों (कुच) को खाने लगे और इंद्र लोक में पकडे गए |

गरीब जादौ गये विचार बिन, भरमे छप्पन कोडी |
दुर्वासा से छल किया, लागी मोटी खोडी ||१७||

छपन करोड़ यादव बिना सोचे समझे ही गलती कर बैठे | दुर्वासा से छल (मजाक) करने के कारण उन्हें भारी श्राप लगा |

गरीब इजै बिजै थे पौलिया, विष्णु पौलि दरबान |
बिन विचार राक्षस भये, बड कलंक है मान ||१८||

भगवान विष्णु की चौखट पर पहरा देने वाले इजै बिजै नामक दो पहरेदार थे जिन्होंने बिना विचार किये मान में आकर सनकादिक ऋषि को अंदर जाने से रोक दिया था | फिर सनकादिक ऋषि के श्राप के कारन उन्हें राक्षस बनना पड़ा |

गरीब रावण शिव का तप किया, दीन्हें शीश चढ़ाय |
दश मस्तक बिसौं भुजा, जो दीन्हें सो पाय ||१९||

गरीब लंक राज रावण दिया, खोस्या बिना विचार |
पलक बीच परलो भये, लंका के सिकदर ||२०||

रावण ने भगवान शिवजी की तपस्या की और उन के आगे अपना शीश काटकर (दस बार) चढ़ाया | प्रसन्न होकर प्रभु ने उसे दस सिर और बीस भुजाएँ दी | उसने जो प्रभु को दिया उसे प्राप्त भी किया | शिवजी ने उस पर प्रसन्न होकर उसे लंका का राज दिया | उस राज को रावण ने बिना सोच विचार किये खो दिया| 

लंकाधिपति रावण का पल में नाश हो गया |
गरीब सीता सतवंती सही, रामचंद्र की नारि |
रावण दानें छलि लई, बिन हि ज्ञान विचार ||२१||
प्रभु रामचन्द्र की पत्नी सीता सतवंती नारी थी | जिनका रावण ने बिना सोच विचार के हरण कर लिया  |

गरीब तीन वचन समझी नहीं, मेटी राम की कार |
समंद सेट बंध बाँधि करि, हनुमंत लंक सिंघार ||२२||

सीता जी भगवान के द्वारा किये गए तिन आदेशों को समझ ना सकीं और प्रभु राम की आज्ञा को मिटा दिया | जिसके कारण प्रभु राम समुद्र पर सेतु बांध कर हनुमान (इत्यादी) के साथ लंका में गए और लंका का नाश किया |


गरीब पारासुर सेवन करै, कुटिल कला घट मांहि |
पुत्री स्यौं संगम किया, ज्ञान विचार्या नांहि || २३||

पराशर (पारासुर) ऋषि ने अपने अंदर की कुटिलता के कारण उनकी सेवा करने वाली पुत्री के समान खेवटनि से अपनी योग शक्ति के द्वारा संगम किया लेकिन उन्होंने उस समय इस कृत्य की बुराई के बारे में नहीं सोचा |(पाराशर ऋषि वेद व्यास जी के पिता थे)  एक बार इन्हें यमुना नदी पार करनी थी नाव खेने का काम एक  निषाद की पुत्री सत्यवती करती थी | सत्यवती के रूप सौन्दर्य को देख कर पाराशर ऋषि उस पर आसक्त हो गए और उस से सहवास की इच्छा प्रकट की | इसपर सत्यवती ने कहा की मैं एक निषाद की पुत्री हूँ और आप एक ऋषि, आप का वीर्य अमोघ है जिसके कारण मैं गर्भवती हो जाउंगी तो मेरा कौमार्य जाता रहेगा फिर मुझ से कौन शादी करेगा | फिर मैं आप की पुत्री के सामान हूँ, और अभी दिन का समय है, इसलिए मैं आप से सम्बन्ध नहीं कर सकती | इस तरह कहते हुए उसने ऋषि को टालने की कोशिश की लेकिन पराशर तो उस पर आसक्त हो चुके थे | 

उन्होंने कहा की देवी तुम महांज्ञानी तेजस्वी बालक को जन्म दोगी, और प्रसूति के बाद भी कुमारी ही रहोगी, तुम्हारा कौमार्य भंग ना होगा | तुम्हारा पति राजा होगा और तुम महारानी | तथा पराशर ऋषि ने अपनी योग शक्ति से चारों तरफ कोहरा सा बना दिया | यह देखकर की ऋषि मानने वाले तो हैं नहीं कहीं क्रोध में आकर श्राप ना दे दें सत्यवती ने उन्हें संयोग करने दिया | सत्यवती ने फिर व्यास जी को जन्म दिया | ) 

गरीब उद्दालक के नासकेत, गये फुल बन राय |
पिता वचन तब मेटिया, तो जम नगरी जाय ||२४||

उद्दालक ऋषि ने अपने पुत्र नचिकेता (नासकेत) को जंगल से फुल लाने को भेजा (जिन्हें उद्दालक नदी के किनारे
भूल आये थे | लेकिन जब नचिकेता वहां गए तो उन्हें वह फुल वहां पर नहीं मिले और नचिकेता खाली हाथ लौट
आये | जब उद्दालक ने नचिकेता को खाली हाथ आते देखा तो क्रोध में आकर यह सोचते हुए की) इसने मेरी आज्ञा की अवहेलना की है (उसे यह श्राप दे  दिया की तुझे तत्काल यम के दर्शन हों) जिससे  नचिकेता तुरंत प्राणहिन हो कर जमीन पर गिर पड़े और नचिकेता ने खुद को यम के सामने पाया | (उद्दालक  जी को अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह विलाप करने लगे | बाद में दुसरे दिन नचिकेता को होश आया और वह यमलोक के अपने अनुभवों का वर्णन अपने पिता से करने लगे |)

गरीब नारदमुनि निर्गुण कला, तत्तबेता तिहूँ लोक |
नर सेती नारी भई, यौह होना बडधोख ||२५||

गरीब पुत्र बहत्तर बाक छल, नर से नारी कीन |
मान डिम्भ छुट्या नहीं, तत्तबेता मति हीन ||२६||

नारद मुनि जी निर्गुण ब्रह्म के उपासक, तीनो लोकों में परम तत्व को जानने वाले मुनि हैं उन्हें भी पुरुष से स्त्री बनना पड़ा | किसी के साथ ऐसा होना बड़ा धोका होने जैसा है | नारद जी को भगवान ने पुरुष से स्त्री बना दिया और वाणी के द्वारा बहतर पुत्र नारद जी के उत्पन्न हो गए क्यों की नारद जी का अभिमान ख़तम नहीं हुआ था | 
(इस तरह कई बार) तत्व वेताओं की भी बुद्धि क्षीण हो जाती है|

गरीब भृगु भ्रम में बहि गये, किन्हां नहीं विचार |
त्रिभुवन नाथ विसंभरं, लात घात करतार ||२७||
भृगु ऋषि बिना विचार किये शंका में बह गए औरतीनो लोकों के स्वामी भगवान (विष्णु) की छाती पर लात दे मारी |

गरीब बिन विचार तन क्या धरै, कुटलाई पशु प्राण |
नाहीं सुरति शारीर की, ता घट कैसा ज्ञान ||२८||

जो लोग विचार नहीं करते उन्होंने शरीर धारण हि क्यों किया। वह तो पशुओं के समान कुटिल प्राणि हैं। जिन्हें अपने शरीर की हि सुध नहीं उन्हें ज्ञान कहां से होगा।

गरीब गोपी लुटि गई कृष्ण की, अर्जुन सरीखे संग |
लख संधानी बाणकरि, जीते बड़े बड़े जंग ||२९||
गरीब काब्यों गोपी लुटिया, अर्जुन चले न बाण |
होनी होय सो होत है, समझि बूझि योह ज्ञान ||३०||

भगवान कृष्ण की गोपीयों को काव्य (जाती के लोग) लुटकर ले गए। अर्जुन जैसे धनुर धारी जिन्होंने लाखों बाणों का संधान करके बडे बडे जंग जिते़, वह उनके साथ थे। लेकीन अर्जुन के बाण चल ही नहीं पाए। 

महाराज जी कहते हैं की जो होनी होती है वह होकर ही रहती है। तुम इस ग्यान को अच्छी तरह से समझ लो।

|| सत साहिब ||


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न जाने कितने आत्मा को इस्सका जरुरत हे