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Saturday, April 30, 2016

ज्ञानगंगा .....

पाण्डव पाँच भाई थे जिनके नाम हैं

1. युधिष्ठिर 2. भीम 3. अर्जुन
4. नकुल। 5. सहदेव
( इन पांचों के अलावा , महाबली कर्ण भी कुंती के ही पुत्र थे , परन्तु उनकी गिनती पांडवों में नहीं की जाती है )
यहाँ ध्यान रखें कि… पाण्डु के उपरोक्त पाँचों पुत्रों में से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन की माता कुन्ती थीं ……तथा , नकुल और सहदेव की माता माद्री थी ।
वहीँ …. धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र….. कौरव कहलाए जिनके नाम हैं

1. दुर्योधन 2. दुःशासन 3. दुःसह
4. दुःशल 5. जलसंघ 6. सम
7. सह 8. विंद 9. अनुविंद
10. दुर्धर्ष 11. सुबाहु। 12. दुषप्रधर्षण
13. दुर्मर्षण। 14. दुर्मुख 15. दुष्कर्ण
16. विकर्ण 17. शल 18. सत्वान
19. सुलोचन 20. चित्र 21. उपचित्र
22. चित्राक्ष 23. चारुचित्र 24. शरासन
25. दुर्मद। 26. दुर्विगाह 27. विवित्सु
28. विकटानन्द 29. ऊर्णनाभ 30. सुनाभ
31. नन्द। 32. उपनन्द 33. चित्रबाण
34. चित्रवर्मा 35. सुवर्मा 36. दुर्विमोचन
37. अयोबाहु 38. महाबाहु 39. चित्रांग 40. चित्रकुण्डल41. भीमवेग 42. भीमबल
43. बालाकि 44. बलवर्धन 45. उग्रायुध
46. सुषेण 47. कुण्डधर 48. महोदर
49. चित्रायुध 50. निषंगी 51. पाशी
52. वृन्दारक 53. दृढ़वर्मा 54. दृढ़क्षत्र
55. सोमकीर्ति 56. अनूदर 57. दढ़संघ 58. जरासंघ 59. सत्यसंघ 60. सद्सुवाक
61. उग्रश्रवा 62. उग्रसेन 63. सेनानी
64. दुष्पराजय 65. अपराजित
66. कुण्डशायी 67. विशालाक्ष
68. दुराधर 69. दृढ़हस्त 70. सुहस्त
71. वातवेग 72. सुवर्च 73. आदित्यकेतु
74. बह्वाशी 75. नागदत्त 76. उग्रशायी
77. कवचि 78. क्रथन। 79. कुण्डी
80. भीमविक्र 81. धनुर्धर 82. वीरबाहु
83. अलोलुप 84. अभय 85. दृढ़कर्मा
86. दृढ़रथाश्रय 87. अनाधृष्य
88. कुण्डभेदी। 89. विरवि
90. चित्रकुण्डल 91. प्रधम
92. अमाप्रमाथि 93. दीर्घरोमा
94. सुवीर्यवान 95. दीर्घबाहु
96. सुजात। 97. कनकध्वज
98. कुण्डाशी 99. विरज
100. युयुत्सु
( इन 100 भाइयों के अलावा कौरवों की एक बहनभी थी… जिसका नाम""दुशाला""था, जिसका विवाह"जयद्रथ"सेहुआ था )

"श्री मद्-भगवत गीता"के बारे में

प्र ०. किसको किसने सुनाई?
उ०. श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई????
प्र० . कब सुनाई?
उ०.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।
प्र०. भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?
उ०.- रविवार के दिन।
प्र०. कोनसी तिथि को?
उ०.- एकादशी
प्र०. कहा सुनाई?
उ०.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।
प्र०. कितनी देर में सुनाई?
उ०.- लगभग 45 मिनट में
प्र०. क्यू सुनाई?
उ०.- महाभारत का युद्ध कराने के लिये...
प्र०. कितने अध्याय है?
उ०.- कुल 18 अध्याय
प्र०. कितने श्लोक है?
उ०.- 700 श्लोक
प्र०. गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ०.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।
प्र०. गीता को अर्जुन के अलावा
और किन किन लोगो ने सुना?
उ०.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने
प्र०. गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उ०.- उपनिषदों में
प्र०. गीता किस महाग्रंथ का भाग है....?
उ०.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक हिस्सा है।
प्र०. गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ०.- गीतोपनिषद
प्र०. गीता का सार क्या है?
उ०.- शास्त्रों के अनुसार भक्ति करना..
प्र०. गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ०.- श्रीकृष्ण जी ने- 574
अर्जुन ने- 85
धृतराष्ट्र ने- 1
संजय ने- 40.
अपनी युवा-पीढ़ी को गीता जी के बारे में जानकारी पहुचाने हेतु इसे ज्यादा से ज्यादा शेअर करे। धन्यवाद अधूरा ज्ञान खतरना होता है। विस्तार से पढे...


___/\_.. ( प्रमाणो सहित)
गीता तेरा ज्ञान अमृत 
How, plz read below.. 
अजीब है ना हमारे देश का कानून गीता पर हाथ रखकर कसम तो खिलाई जाती है सच को बोलने के लिये पर गीता नही पढाई जाती सच को जानने के लिये.....?

अवश्य पढे और पढाये श्रीमद्भगवद्गीता जी का अनमोल यथार्थ पुर्ण ब्रम्ह ज्ञान (गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित)

1. मैं सबको जानता हूँ, मुझे कोई नहीं जानता
( गीता अध्याय 7 मंत्र 26)
2 . मै निराकार रहता हूँ
(गीता अध्याय 9 मंत्र 4 )
3. मैं अदृश्य/निराकार रहता हूँ (गीता अध्याय 6 मंत्र 30) निराकार क्यो रहता है इसकी वजह नहीं बताया सिर्फ अनुत्तम/घटिया भाव काहा है,
4. मैं कभी मनुष्य की तरह आकार में नहीं आता यह मेरा घटिया नियम है (गीता अध्याय 7 मंत्र 24-25)
5.पहले मैं भी था और तू भी सब आगे भी होंगे (अध्याय 2 मंत्र 12) इसमें जन्म मृत्यु माना है
6. अर्जुन तेरे और मेरे जन्म होते रहते हैं (अध्याय 4 मंत्र 5)
7. मैं तो लोकवेद में ही श्रेष्ठ हूँ (अध्याय 15 मंत्र 18)
लोकवेद =सुनी सुनाई बात/झूठा ज्ञान
8. उत्तम परमात्मा तो कोई और है जो सबका भरण-पोषण करता है (अध्याय 15 मंत्र 17)
9.उस परमात्मा को प्राप्त हो जाने के बाद कभी नष्ट/मृत्यु नहीं होती है (अध्याय 8 मंत्र 8,9,10)
10. मैं भी उस परमात्मा की शरण में हूँ जो अविनाशी है (अध्याय 15 मंत्र 5)
11. वह परमात्मा मेरा भी ईष्ट देव है (अध्याय 18 मंत्र 64)
12. जहां वह परमात्मा रहता है वह मेरा परम धाम है वह जगह जन्म - मृत्यु रहित है (अध्याय 8 मंत्र 21,22) उस जगह को वेदों में रितधाम, संतो की वाणी में सतलोक/सचखंड कहते हैं
गीताजी में शाश्वत स्थान कहा है
13. मैं एक अक्षर ॐ हूं (अध्याय 10 मंत्र 25 अध्याय 9 मंत्र 17 अध्याय 7 के मंत्र 8 और अध्याय 8 के मंत्र 12,13 में )
14. "ॐ" नाम ब्रम्ह का है
(अध्याय 8 मंत्र 13)
15. मैं काल हूं (अध्याय 10 मंत्र 23)
16.वह परमात्मा ज्योति का भी ज्योति है (अध्याय 13 मंत्र 16)
17. अर्जुन तू भी उस परमात्मा की शरण में जा, जिसकी कृपा से तु परम शांति, सुख और परम गति/मोक्ष को प्राप्त होगा (अध्याय 18 मंत्र 62)
18. ब्रम्ह का जन्म भी पूर्ण ब्रम्ह से हुआ है (अध्याय 3 मंत्र 14,15)
19. तत्वदर्शी संत मुझे पुरा जान लेता है (अध्याय 18 मंत्र 55)
20. मुझे तत्व से जानो (अध्याय 4 मंत्र 14)
21. तत्वज्ञान से तु पहले अपने पुराने /84 लाख में जन्म पाने का कारण जानेगा, बाद में मुझे देखेगा /की मैं ही इन गंदी योनियों में पटकता हू, (अध्याय 4 मंत्र 35)
22. मनुष्यों का ज्ञान ढका हुआ है (अध्याय 5 मंत्र 16)
:- मतलब किसी को भी परमात्मा का ज्ञान नहीं है
23. ब्रम्ह लोक से लेकर नीचे के ब्रम्हा/विष्णु/शिव लोक, पृथ्वी ये सब पुर्नावृर्ति(नाशवान) है (अध्याय - - मंत्र - - )
24. तत्वदर्शी संत को दण्डवत प्रणाम करना चाहिए (तन, मन, धन, वचन से और अहं त्याग कर आसक्त हो जाना) (अध्याय 4 मंत्र 34)
25. हजारों में कोई एक संत ही मुझे तत्व से जानता है (अध्याय 7 मंत्र 3)
26. मैं काल हु और अभी आया हूं (अध्याय 10 मंत्र 33)
तात्पर्य :-श्रीकृष्ण जी तो पहले से ही वहां थे,
27. शास्त्र विधि से साधना करो, शास्त्र विरुद्ध साधना करना खतरनाक है (अध्याय 16 मंत्र 23,24)
28. ज्ञान से और श्वासों से पाप भस्म हो जाते हैं (अध्याय 4 मंत्र 29,30, 38,49)
29. तत्वदर्शी संत कौन है पहचान कैसे करें :- जो उल्टा वृक्ष के बारे में समझा दे वह तत्वदर्शी संत होता है (अध्याय 15 मंत्र 1-4)
30. और जो ब्रम्हा के दिन रात/उम्र बता दें वह तत्वदर्शी संत होता है (अध्याय 8 मंत्र 17)
31. ***3 भगवान बताये गये हैं गीताजी में कैसे करें :-
31. ***3 भगवान बताये गये हैं गीताजी में
1.क्षर , अक्षर, निअक्षर
2. ब्रम्ह, परब्रह्म, पूर्ण/पार ब्रम्ह
3. ॐ, तत्, सत्
4. ईश, ईश्वर, परमेश्वर
32. गीता जी में तत्वदर्शी संत का इशारा > 18.तत्वदर्शी संत वह है जो उल्टा वृक्ष को समझा देगा. (अध्याय 15 मंत्र 1-4)
"कबीर अक्षर पुरुष एक पेड़ है, निरंजन वाकी डार।
तीनों देव शाखा भये, पात रुप संसार।। "
19. जो ब्रम्ह के दिन रात /उम्र बता देगा वह तत्वदर्शी संत होगा, (अध्याय 8 के मंत्र 17)
उम्र :-
1. इन्द्र की उम्र 72*4 युग
2. ब्रम्हा जी की उम्र - -
1 दिन =14 इन्द्र मर जाते हैं" तो उम्र 100 साल=720,00000 चतुर्युग
3.विष्णु जी की उम्र =7 ब्रम्हा मरते हैं तब 1 विष्णु जी की मृत्यु होती है तो कुल उम्र 504000000 चतुर्युग
4.शिव जी की =7 विष्णु जी मरते हैं तब 1शिव जी की मृत्यु होती है =3528000000 चतुर्युग(ये तीनों देव ब्रम्हा विष्णुजी महेश देवी भागवत महापुराण में अपने को भाई-भाई मानते हैं और शेरोवाली/अष्टांगी/प्रकृति को अपनी मां और अपनी जन्म-मृत्यु होना स्वीकारते हैं
5. महाशिव की उम्र =70000शिव मरते हैं
6 ब्रम्ह की आयु =1000 महाशिव मरते हैं,

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
१ हिन्दु हाेने के नाते जानना ज़रूरी है
अब आपकी बारी है कि इस जानकारी को आगे बढ़ाएँ ......
अपनी भारत की संस्कृति को पहचाने. ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुचाये. खासकर अपने बच्चो को बताए क्योकि ये बात उन्हें कोई नहीं बताएगा...

 दो पक्ष-
कृष्ण पक्ष ,
शुक्ल पक्ष !
तीन ऋण
देव ऋण ,
पितृ ऋण ,
ऋषि ऋण !
चार युग -
सतयुग ,
त्रेतायुग ,
द्वापरयुग ,
कलियुग !
पाँच वेद
ऋग्वेद ,
अथर्वेद ,
यजुर्वेद ,
सामवेद !
स्वसम वेद
चार आश्रम
ब्रह्मचर्य ,
गृहस्थ ,
वानप्रस्थ ,
संन्यास !
चार अंतःकरण -
मन ,
बुद्धि ,


अहंकार !
चित्त ,

पञ्च गव्य -
गाय का घी ,
दूध ,
दही ,
गोमूत्र ,
गोबर !
पञ्च देव -
गणेश ,
विष्णु ,
शिव ,
देवी (दुर्गा) ,
ब्रह्मा !

पंच तत्त्व -
पृथ्वी ,
जल ,
अग्नि ,
वायु ,
आकाश !

छह दर्शन -
वैशेषिक ,
न्याय ,
सांख्य ,
योग ,
पूर्व मिसांसा ,
दक्षिण मिसांसा !

सप्त ऋषि -
विश्वामित्र ,
जमदाग्नि ,
भरद्वाज , 
गौतम , 
अत्री , 
वशिष्ठ और कश्यप!

सप्त पुरी -
अयोध्या पुरी ,
मथुरा पुरी , 
माया पुरी ( हरिद्वार ) , 
काशी ,कांची 
(शिन कांची - विष्णु कांची ) , 
अवंतिका और 
द्वारिका पुरी !

आठ योग -
यम , 
नियम , 
आसन ,
प्राणायाम , 
प्रत्याहार , 
धारणा , 
ध्यान एवं 
समािध !

आठ लक्ष्मी -
आग्घ , 
विद्या , 
सौभाग्य ,
अमृत , 
काम , 
सत्य , 
भोग ,एवं 
योग लक्ष्मी !

नव दुर्गा -
शैल पुत्री , 
ब्रह्मचारिणी ,
चंद्रघंटा , 
कुष्मांडा , 
स्कंदमाता , 
कात्यायिनी ,
कालरात्रि , 
महागौरी एवं 
सिद्धिदात्री !

दस दिशाएं -
पूर्व , 
पश्चिम , 
उत्तर , 
दक्षिण ,
ईशान , 
नैऋत्य , 
वायव्य , 
अग्नि 
आकाश एवं 
पाताल !

मुख्य ११ अवतार -
मत्स्य , 
कच्छप , 
वराह ,
नरसिंह , 
वामन , 
परशुराम ,
श्री राम , 
कृष्ण , 
बलराम , 
बुद्ध , 
एवं कल्कि !

बारह मास -
चैत्र , 
वैशाख , 
ज्येष्ठ ,
अषाढ , 
श्रावण , 
भाद्रपद , 
अश्विन , 
कार्तिक ,
मार्गशीर्ष , 
पौष , 
माघ , 
फागुन !

बारह राशी -
मेष , 
वृषभ , 
मिथुन ,
कर्क , 
सिंह , 
कन्या , 
तुला , 
वृश्चिक , 
धनु , 
मकर , 
कुंभ , 
कन्या !

बारह ज्योतिर्लिंग -
सोमनाथ ,
मल्लिकार्जुन ,
महाकाल , 
ओमकारेश्वर , 
बैजनाथ , 
रामेश्वरम ,
विश्वनाथ , 
त्र्यंबकेश्वर , 
केदारनाथ , 
घुष्नेश्वर ,
भीमाशंकर ,
नागेश्वर !

पंद्रह तिथियाँ -
प्रतिपदा ,
द्वितीय ,
तृतीय ,
चतुर्थी , 
पंचमी , 
षष्ठी , 
सप्तमी , 
अष्टमी , 
नवमी ,
दशमी , 
एकादशी , 
द्वादशी , 
त्रयोदशी , 
चतुर्दशी , 
पूर्णिमा , 
अमावास्या !

स्मृतियां -
मनु , 
विष्णु , 
अत्री , 
हारीत ,
याज्ञवल्क्य ,
उशना , 
अंगीरा , 
यम , 
आपस्तम्ब , 
सर्वत ,
कात्यायन , 
ब्रहस्पति , 
पराशर , 
व्यास , 
शांख्य ,
लिखित , 
दक्ष , 
शातातप , 
वशिष्ठ !


Wednesday, April 27, 2016

|| मृत्यु से भय कैसा ||

राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण सुनातें हुए जब शुकदेव जी महाराज को छह दिन बीत गए और तक्षक ( सर्प ) के काटने से मृत्यु होने का एक दिन शेष रह गया, तब भी राजा परीक्षित का शोक और मृत्युका भय दूर नहीं हुआ।
.
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अपने मरने की घड़ी निकट आती देखकर राजा का मन क्षुब्ध हो रहा था।
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तब शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित को एक कथा सुनानी आरंभ की।
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राजन ! बहुत समय पहले की बात है, एक राजा किसी जंगल में शिकार खेलने गया।
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संयोगवश वह रास्ता भूलकर बड़े घने जंगल में जा पहुँचा। उसे रास्ता ढूंढते-ढूंढते रात्रि पड़ गई और भारी वर्षा पड़ने लगी।
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जंगल में सिंह व्याघ्र आदि बोलने लगे। वह राजा बहुत डर गया और किसी प्रकार उस भयानक जंगल में रात्रि बिताने के लिए विश्राम का स्थान ढूंढने लगा।
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रात के समय में अंधेरा होने की वजह से उसे एक दीपक दिखाई दिया।
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वहाँ पहुँचकर उसने एक गंदे बहेलिये की झोंपड़ी देखी । वह बहेलिया ज्यादा चल-फिर नहीं सकता था, इसलिए झोंपड़ी में ही एक ओर उसने मल-मूत्र त्यागनेका स्थान बना रखा था। अपने खाने के लिए जानवरों का मांस उसने झोंपड़ी की छत पर लटका रखा था। बड़ी गंदी, छोटी, अंधेरी और दुर्गंधयुक्त वह झोंपड़ी थी।
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उस झोंपड़ी को देखकर पहले तो राजा ठिठका, लेकिन पीछे उसने सिर छिपाने का कोई और आश्रय नदेखकर उस बहेलिये से अपनी झोंपड़ी में रात भर ठहर जाने देने के लिए प्रार्थना की।
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बहेलिये ने कहा कि आश्रय के लोभी राहगीर कभी- कभी यहाँ आ भटकते हैं। मैं उन्हें ठहरा तो लेता हूँ, लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे बहुत झंझट करते हैं।
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इस झोंपड़ी की गंध उन्हें ऐसी भा जाती है कि फिर वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहते और इसी में ही रहने की कोशिश करते हैं एवं अपना कब्जा जमाते हैं। ऐसे झंझट में मैं कई बार पड़ चुका हूँ।।
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इसलिए मैं अब किसी को भी यहां नहीं ठहरने देता। मैं आपको भी इसमें नहीं ठहरने दूंगा।
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राजा ने प्रतिज्ञा की कि वह सुबह होते ही इस झोंपड़ी को अवश्य खाली कर देगा। उसका काम तो बहुत बड़ा है, यहाँ तो वह संयोगवश भटकते हुए आया है, सिर्फ एक रात्रि ही काटनी है।
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.
बहेलिये ने राजा को ठहरने की अनुमति दे दी, पर सुबह होते ही बिना कोई झंझट किए झोंपड़ी खाली कर
देने की शर्त को फिर दोहरा दिया।
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राजा रात भर एक कोने में पड़ा सोता रहा। सोने में झोंपड़ी की दुर्गंध उसके मस्तिष्क में ऐसी बस गई कि सुबह उठा तो वही सब परमप्रिय लगने लगा। अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूलकर वहीं निवास करने की बात सोचने लगा।
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वह बहेलिये से और ठहरने की प्रार्थना करने लगा। इस पर बहेलिया भड़क गया और राजा को भला-बुरा कहने लगा।
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राजा को अब वह जगह छोड़ना झंझट लगने लगा और दोनों के बीच उस स्थान को लेकर बड़ा विवाद खड़ा
हो गया।
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कथा सुनाकर शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित से पूछा," परीक्षित ! बताओ, उस राजा का उस स्थान पर सदा के लिए रहने के लिए झंझट करना उचित था ?
".
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परीक्षित ने उत्तर दिया," भगवन् ! वह कौन राजा था, उसका नाम तो बताइये ? वह तो बड़ा भारी मूर्ख जान पड़ता है, जो ऐसी गंदी झोंपड़ी में, अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर एवं अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर, नियत अवधि से भी अधिक रहना चाहता है। उसकी मूर्खता पर तो मुझे आश्चर्य होता है। "
श्री शुकदेव जी महाराज ने कहा," हे राजा परीक्षित ! वह बड़े भारी मूर्ख तो स्वयं आप ही हैं। इस मल-मूल की गठरी देह ( शरीर ) में जितने समय आपकी आत्मा को रहना आवश्यक था, वह अवधि तो कल समाप्त हो रही है। अब आपको उस लोक जाना है, जहाँ से आप आएं हैं। फिर भी आप झंझट फैला रहे हैं और मरना नहीं चाहते। क्या यह आपकी मूर्खता नहीं है ?"
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राजा परीक्षित का ज्ञान जाग पड़ा और वे बंधन मुक्ति के लिए सहर्ष तैयार हो गए।
.
.
मेरे भाई - बहनों, वास्तव में यही सत्य है।


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जब एक जीव अपनी माँ की कोख से जन्म लेता है तो अपनी माँ की कोख के अन्दर भगवान से प्रार्थना करता है कि हे भगवन् ! मुझे यहाँ ( इस कोख ) से मुक्त कीजिए, मैं आपका भजन-सुमिरन करूँगा।
.
.और जब वह जन्म लेकर इस संसार में आता है तो ( उस राजा की तरह हैरान होकर ) सोचने लगता है कि मैं ये कहाँ आ गया ( और पैदा होते ही रोने लगता है ) फिर उस गंध से भरी झोंपड़ी की तरह उसे यहाँ की खुशबू ऐसी भा जाती है कि वह अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर यहाँ से जाना ही नहीं चाहता है।
.
.
यही मेरी भी कथा है और आपकी भी।
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(Shrimad Bhagavad Gita)
पूर्ण परमात्मा(पूर्ण ब्रह्म) अर्थात् सतपुरुष का ज्ञान न होने के कारण सर्व विद्वानों को ब्रह्म (निरंजन- काल भगवान जिसे महाविष्णु कहते हैं) तक का ज्ञान है। पवित्र आत्माऐं चाहे वे ईसाई हैं, मुसलमान, हिन्दू या सिख हैं इनको केवल अव्यक्त अर्थात् एक ओंकार परमात्मा की पूजा का ही ज्ञान पवित्र शास्त्रों (जैसे पुराणों, उपनिष्दांे, कतेबों, वेदों, गीता आदि नामों से जाना जाता है) से हो पाया। क्योंकि इन सर्व शास्त्रों में ज्योति स्वरूपी(प्रकाशमय) परमात्मा ब्रह्म की ही पूजा विधि का वर्णन है तथा जानकारी पूर्ण ब्रह्म(सतपुरुष) की भी है। पूर्ण संत (तत्वदर्शी संत) न मिलने से पूर्ण ब्रह्म की पूजा का ज्ञान नहीं हुआ।

  जिस कारण से पवित्र आत्माऐं ईसाई फोर्मलैस गौड (निराकार प्रभु) कहते हैं। जबकि पवित्र बाईबल में उत्पत्ति विषयके सृष्टि की उत्पत्ति नामक अध्याय में लिखा है कि प्रभु ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसारउत्पन्न किया तथा छः दिन में सृष्टि रचना करके सातवें दिन विश्राम किया। इससे स्वसिद्ध है कि प्रभु भी मनुष्य जैसे आकार में है। इसी का प्रमाण पवित्र र्कुआन शरीफ में भी है। इसी प्रकार पवित्र आत्माऐं मुस्लमान प्रभु को बेचून (निराकार) अल्लाह (प्रभु) कहते हैं, जबकि पवित्र र्कुआन शरीफ के सुरत फूर्कानि संख्या 25, आयत संख्या 52 से 59 में लिखा है कि जिस प्रभु ने छः दिन में सृष्टि रची तथा सातवें दिन तख्त पर जा विराजा, उसका नाम कबीर है। पवित्र र्कुआन को बोलने वाला प्रभु किसी और कबीर नामक प्रभु की तरफ संकेत कर रहा है तथा कह रहा
है कि वही कबीर प्रभु ही पूजा के योग्य है, पाप क्षमा करने वाला है, परन्तु उसकी भक्ति के विषय में मुझे ज्ञान नहीं, किसी तत्वदर्शी संत से पूछो। उपरोक्त दोनों पवित्र शास्त्रों (पवित्र बाईबल व पवित्र र्कुआन शरीफ) ने मिल-जुल कर सिद्ध कर दिया है कि परमेश्वर मनुष्य सदृश शरीर युक्त है। उसका नाम कबीर है। पवित्रआत्माऐं हिन्दू व सिख उसे निरंकार(निर्गुण ब्रह्म) के नाम से जानते हैं। 

जबकि आदरणीय नानक साहेब जी ने सतपुरुष के आकार रूप में दर्शन करने के बाद अपनी अमृतवाणी महला पहला ‘श्रीगुरु ग्रन्थ साहेब‘ में पूर्ण ब्रह्म का आकार होने का प्रमाण दिया है, लिखा है ‘‘धाणक रूप रहा करतार (पृष्ठ 24), हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदिगार(पृष्ठ 721)‘‘ 

तथा प्रभु के मिलने से पहले पवित्र हिन्दू धर्म में जन्म होने के कारण श्री ब्रजलाल पाण्डे से
पवित्र गीता जी को पढ़कर श्री नानक साहेब जी ब्रह्म को निराकार कहा करते थे। उनकी दोनों प्रकार की अमृतवाणी गुरु ग्रन्थ साहेब मे लिखी हैं। 

हिन्दुओं के शास्त्रों में पवित्र वेद व गीता विशेष हैं, उनके साथ-2 अठारह पुराणों को भी समान दृष्टी से देखा जाता है। श्रीमद् भागवत सुधासागर, रामायण, महाभारत भी विशेष प्रमाणित शास्त्रों में से हैं। विशेष विचारणीय विषय यह है कि जिन पवित्र शास्त्रों को हिन्दुओं के शास्त्र कहा जाता है, जैसे पवित्र चारों वेद व पवित्र श्रीमद् भगवत गीता जी आदि, वास्तव में ये सद् शास्त्र केवल पवित्र हिन्दु धर्म के ही नहीं हैं। 

ये सर्व शास्त्र महर्षि व्यास जी द्वारा उस समय लिखे गए थे जब कोई अन्य धर्म नहीं था। इसलिए पवित्र वेद व पवित्र श्रीमद्भगवत गीता जी तथा पवित्रपुराणादि सर्व मानव मात्र के कल्याण के लिए हैं। पवित्र यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15-16 तथा अध्याय 5 मंत्र 1 व 32 में स्पष्ट किया है कि

‘‘{अग्नेः तनूर् असि, विष्णवे त्वा सोमस्य तनुर्
असि, कविरंघारिः असि, स्वज्र्योति ऋतधामा असि} 

परमेश्वर का शरीर है, पाप के शत्रु परमेश्वर का नाम कविर्देव है, उस सर्व पालन कत्र्ता अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष का शरीर है। वह स्वप्रकाशित शरीर वाला प्रभु सत धाम अर्थात् सतलोक में रहता है। 

पवित्र वेदों को बोलने वाला ब्रह्म यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8 में कह रहा है कि पूर्ण परमात्मा 
कविर्मनीषी अर्थात्क विर्देव ही वह तत्वदर्शी है 
जिसकी चाह सर्व प्राणियों को है, वह कविर्देव परिभूः अर्थात्स र्व प्रथम प्रकट हुआ, जो सर्व प्राणियों की
सर्व मनोकामना पूर्ण करता है। वह कविर्देव स्वयंभूः अर्थात् स्वयं प्रकट होता है, उसका शरीर किसी माता-पिता के संयोग से (शुक्रम् अकायम्) वीर्य से बनी काया नहीं है, उसका शरीर (अस्नाविरम्) नाड़ी रहित है अर्थात्
पांच तत्व का नहीं है, केवल तेजपुंज से एक तत्व का है, जैसे एक तो मिट्टी की मूर्ति बनी है, उसमें भी नाक, कान आदि अंग हैं तथा दूसरी सोने की मूर्ति बनी है, उसमें भी सर्व अंग हैं। ठीक इसी प्रकार पूज्य कविर्देव का शरीर तेज तत्व का बना है, इसलिए उस परमेश्वर के शरीर की उपमा में अग्नेः तनूर् असि वेद में कहा है। सर्व प्रथम 

पवित्र शास्त्र श्रीमद्भगवत गीता जी पर विचार करते हैं।

”पवित्र श्रीमद्भगवत गीता जी का ज्ञान किसने कहा?“

पवित्र गीता जी के ज्ञान को उस समय बोला गया था जब महाभारत का युद्ध होने जा रहा था। अर्जुन ने युद्ध करने से इन्कार कर दिया था। युद्ध क्यों हो रहा था? इस युद्ध को धर्मयुद्ध की संज्ञा भी नहीं दी जा सकती क्योंकि दो परिवारों का सम्पत्ति वितरण का विषय था। कौरवों तथा पाण्डवों का सम्पत्ति बंटवारा नहीं हो रहा था। कौरवों ने पाण्डवों को आधा राज्य भी देने से मना कर दिया था। दोनों पक्षों का बीच-बचाव करने के लिए प्रभु
श्री कृष्ण जी तीन बार शान्ति दूत बन कर गए। परन्तु दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी जिद्द पर अटल थे। श्री कृष्ण जी ने युद्ध से होने वाली हानि से भी परिचित कराते हुए कहा कि न जाने कितनी बहन विधवा होंगी ? न जाने कितने बच्चे अनाथ होंगे ? महापाप के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलेगा। युद्ध में न जाने कौन मरे, कौन बचे ? तीसरी बार जब श्री कृष्ण जी समझौता करवाने गए तो दोनों पक्षों ने अपने-अपने पक्ष वाले राजाओं की सेना सहित सूची पत्र दिखाया तथा कहा कि इतने राजा हमारे पक्ष में हैं तथा इतने हमारे पक्ष में। जब श्री कृष्ण जी ने
देखा कि दोनों ही पक्ष टस से मस नहीं हो रहे हैं, युद्ध के लिए तैयार हो चुके हैं। तब श्री कृष्ण जी ने सोचा कि एक दाव और है वह भी आज लगा देता हूँ। 

श्री कृष्ण जी ने सोचा कि कहीं पाण्डव मेरे सम्बन्धी होने के कारण अपनी जिद्द इसलिए न छोड़ रहे हों कि श्री कृष्ण हमारे साथ हैं, विजय हमारी ही होगी(क्योंकि श्री कृष्ण जी की बहन सुभद्रा जी का विवाह श्री अर्जुन
जी से हुआ था)। श्री कृष्ण जी ने कहा कि एक तरफ मेरी सर्व सेना होगी और दूसरी तरफ मैंहोऊँगा और इसके साथ-साथ मैं वचन बद्ध भी होता हूँ कि मैं हथियार भी नहीं उठाऊँगा। इस घोषणा से पाण्डवों के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई। उनको लगा कि अब हमारी पराजय निश्चित है। यह विचार कर पाँचों पाण्डव यह कह कर सभा से बाहर गए कि हम कुछविचार कर लें। कुछ समय उपरान्त श्री कृष्ण जी को सभा से बाहर आने की प्रार्थना की। श्री कृष्ण जी के बाहर आने पर पाण्डवों ने कहा कि हे भगवन् ! हमें पाँच गाँव दिलवा दो। हम युद्ध नहीं चाहते हैं। हमारी इज्जत भी रह जाएगी और आप चाहते हैं कि युद्ध न हो, यह भी टल जाएगा। पाण्डवों के इस फैसले से श्री कृष्ण जी बहुत प्रसन्न हुए तथा सोचा कि बुरा समय टल गया। श्री कृष्ण जी वापिस आए, सभा में केवल कौरव तथा उनके समर्थक शेष थे। श्री कृष्ण जी ने कहा दुर्योधन युद्ध टल गया है। मेरी भी यह हार्दिक इच्छा थी। आप पाण्डवों को पाँच गाँव दे दो, वे कह रहे हैं कि हम युद्ध नहीं चाहते। दुर्योधन ने कहा कि पाण्डवों के लिए सुई की नोक तुल्य भी जमीन नहीं है। यदि उन्हंे राज्य चाहिए तो युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र के मैदान में आ जाऐं। इस बात से श्री कृष्ण जी ने नाराज होकर कहा कि दुर्योधन तू इंसान नहीं शैतान है। कहाँ आधा राज्य और कहाँ पाँच गाँव? मेरी बात मान ले, पाँच गाँव दे दे। श्री कृष्ण से नाराज होकर दुर्योधन ने सभा में उपस्थित योद्धाओं को आज्ञा दी कि श्री कृष्ण को पकड़ो तथा कारागार में डाल दो। आज्ञा मिलते ही योद्धाओं ने श्री कृष्ण जी को चारों तरफ से घेर लिया। 

श्री कृष्ण जी ने अपना विराट रूप दिखाया। जिस कारण सर्व योद्धा और कौरव डर कर कुर्सियों के नीचे घुस गए तथा शरीर के तेज प्रकाश से आँखें बंद हो गई। श्री कृष्ण जी वहाँ से निकल गए। 

आओ विचार करें:- उपरोक्त विराट रूप दिखाने का प्रमाण संक्षिप्त महाभारत गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित में प्रत्यक्ष है। जब कुरुक्षेत्र के मैदान में पवित्र गीता जी का ज्ञान सुनाते समय अध्याय 11 श्लोक 32 में पवित्र गीता बोलने वाला प्रभु कह रहा है कि ‘अर्जुन मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब सर्व लोकों को खाने के लिए प्रकट हुआ हूँ।‘ जरा सोचें कि श्री कृष्ण जी तो पहले से ही श्री अर्जुन जी के साथ थे। यदि पवित्र गीता जी के ज्ञान को श्री कृष्ण जी बोल रहे होते तो यह नहीं कहते कि अब प्रवत्र्त हुआ हूँ। 

फिर अध्याय 11 श्लोक 21 व 46 में अर्जुनकह रहा है कि भगवन् ! आप तो ऋषियों, देवताओं तथा सिद्धों को भी खा रहे हो, जो आप का ही गुणगान पवित्र वेदों के मंत्रों द्वारा उच्चारण कर रहे हैं तथा अपने जीवन की रक्षा के लिए मंगल कामना कर रहे हैं। कुछ आपके दाढ़ों में लटक रहे हैं, कुछ आप के मुख में समा रहे हैं। हे सहò बाहु अर्थात् हजार भुजा वाले भगवान ! आप अपने उसी चतुर्भुज रूप में आईये। मैं आपके विकराल रूप को देखकर धीरज नहीं कर पा रहा हूँ। अध्याय 11 श्लोक 47 में पवित्र गीता जी को बोलने वाला प्रभु काल कह रहा है कि ‘हे अर्जुन यह मेरा वास्तविक काल रूप है, जिसे तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा था।‘ उपरोक्त विवरण से एक तथ्य तो यह सिद्ध हुआ कि कौरवों की सभा में विराट रूप श्री कृष्ण जी ने दिखाया था तथा यहाँ युद्ध के मैदान में विराट रूप काल (श्री कृष्ण जी के शरीर मंे प्रेतवत्प्र वेश करके अपना विराट रूप काल) ने दिखाया था। नहीं तो यह नहीं कहता कि यह विराट रूप तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा है क्योंकि श्री कृष्ण जी अपना विराट रूप कौरवों की सभा में पहले ही दिखा चुके थे। दूसरी यह बात सिद्ध हुई कि पवित्र गीता जी को बोलने वाला काल(ब्रह्म-ज्योति निरंजन) है, न कि श्री कृष्ण जी। क्योंकि श्री कृष्ण जी
ने पहले कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ तथा बाद में कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ। श्री कृष्ण जी
काल नहीं हो सकते। उनके दर्शन मात्र को तो दूर- दूर क्षेत्र के स्त्री तथा पुरुष तड़फा करते थे।
यही प्रमाण गीता अध्याय 7 श्लोक 24. 25 में है जिसमें गीता ज्ञान दाता प्रभु ने कहा है कि
बुद्धिहीन जन समुदाय मेरे उस घटिया (अनुत्तम) विद्यान को नहीं जानते कि मैं कभी भी मनुष्य
की तरह किसी के सामने प्रकट नहीं होता। मैं अपनी योगमाया से छिपा रहता हूँ। उपरोक्त विवरण से सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञान दाता श्री कृष्ण जी नहीं है। क्योंकि श्री कृष्ण जी तो सर्व समक्ष साक्षात् थे। श्री कृष्ण नहीं कहते कि मैं अपनी योग माया से छिपा रहता हूँ। इसलिए गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी के अन्दर प्रेतवत् प्रवेश करके काल ने बोला था। 

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             सत साहेब
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कथा ---

पेंसिल बनाने वाले ने पेंसिल उठाई और उसे डब्बे में रखने से पहले उससे कहा: “इससे पहले कि मैं तुम्हें लोगों के हाथ में सौंप दूँ, मैं तुम्हें 5 बातें बताने जा रहा हूँ जिन्हें तुम हमेशा याद रखना, तभी तुम दुनिया की सबसे अच्छी पेंसिल बन सकोगी. 

पहली – तुम महान विचारों और कलाकृतियों को रेखांकित करोगी, लेकिन इसके लिए तुम्हें स्वयं को सदैव दूसरों के हाथों में सौंपना पड़ेगा.

दूसरी – तुम्हें समय-समय पर बेरहमी से चाकू से छीला जाएगा लेकिन अच्छी पेंसिल बनने के लिए तुम्हें यह सहना पड़ेगा.

तीसरी – तुम अपनी गलतियों को जब चाहे तब सुधर सकोगी.

चौथी – तुम्हारा सबसे महत्वपूर्ण भाग तुम्हारे भीतर रहेगा.

और पांचवीं – तुम हर सतह पर अपना निशान छोड़ जाओगी. कहीं भी – कैसा भी समय हो, तुम लिखना जारी रखोगी.”

पेंसिल ने इन बातों को समझ लिया और कभी न भूलने का वादा किया. फ़िर वह डब्बे के भीतर चली गयी.
अब उस पेंसिल के स्थान पर आप स्वयं को रखकर देखें. उसे बताई गयी पाँचों बातों को याद करें, समझें, और आप दुनिया के सबसे अच्छे व्यक्ति बन पाएंगे.

पहली – आप दुनिया में सभी अच्छे और महान कार्य कर सकेंगे यदि आप स्वयं को ईश्वर के हाथ में सौंप दें. ईश्वर ने आपको जो अमूल्य उपहार दिए हैं उन्हें आप औरों के साथ बाँटें.

दूसरी – आपके साथ भी समय-समय पर कटुतापूर्ण व्यवहार किया जाएगा और आप जीवन के उतार-चढ़ाव से जूझेंगे लेकिन जीवन में बड़ा बनने के लिए आपको वह सब झेलना ज़रूरी होगा.

तीसरी – आपको भी ईश्वर ने इतनी शक्ति और बुद्धि दी है कि आप अपनी गलतियों को कभी भी सुधार सकें और उनका पश्चाताप कर सकें.

चौथी – जो कुछ आपके भीतर है वही सबसे महत्वपूर्ण और वास्तविक है.

और पांचवी – जिस राह से आप गुज़रें वहां अपने चिन्ह छोड़ जायें. चाहे कुछ भी हो जाए, अपने कर्तव्यों से विचलित न हों.

पेंसिल की कहानी का मर्म समझकर स्वयं को यह बताएं कि आप साधारण व्यक्ति नहीं हैं और केवल आप ही वह सब कुछ पा सकते हैं जिसे पाने के लिए आपका जन्म हुआ है. कभी भी अपने मन में यह ख्याल न आने दें कि आपका जीवन बेकार है और आप कुछ नहीं कर सकते!

सत साहिब जी

भक्ति करे तो बावला होकर करे | जैसे की मीरा बहन ने की थी | ये दुनिया वाले तो भगवान पता नही किस पैमाने पर पहचानते है | कोई भी पीर पैगम्बर आते है, उनकी एक नही सुनते है| उनके यहा से जाने के बाद पुजते है | फिर क्या वह मिल जायेगे | इतिहास गवाह है कि जितने भी संत और महापुरूष हुये है उनको जीते जी कभी भी उनकी बताये राह पर नही चले| 

कबीर, दुनिया सेती दोस्ती, होवे भजन मे भंग|
एका एकी राम से, कै साधु संग ||
बिरह-भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ ।
राम-बियोग ना जिबै जिवै तो बौरा होइ ॥
भावार्थ - बिरह का यह भुजंग अंतर में बस रहा है, डसता ही रहता है सदा, कोई भी मंत्र काम नहीं देता । राम का वियोगी जीवित नहीं रहता , और जीवित रह भी जाय तो वह बावला हो जाता है ।

सब रग तंत रबाब तन, बिरह बजावै नित्त ।
और न कोई सुणि सकै, कै साईं के चित्त ॥
भावार्थ - शरीर यह रबाब सरोद बन गया है -एक-एक नस तांत हो गयी है । और बजानेवाला कौन है इसका ? वही विरह, इसे या तो वह साईं सुनता है, या फिर बिरह में डूबा हुआ; यह चित्त ।

कथा ---
एक बार कही खुशी का प्रोग्राम था, तो वहा मिठाई बनाने के लिए अच्छे हलवाई को बुलाया | पहले के समय मे कच्ची बठ्ठी होती थी| उसमे लकडी जलाकर कोई भी पकवान बनायै जाते थे| उन बठ्ठियो पर हलवाई ने हर मिठाई और पकवान स्वादिष्ट बनाये| वहा आये लोगो ने खुब सहराया| हलवाई जी चले गये | जिन लोगो ने मिठाई खाई उन्होने उस हलवाई की महिमा दुसरे लोगो को बताई | पर दुर्भाग्य हुआ की वो हलवाई नही रहा | अब वो लोग जिन्होने हलवाई के बारे मे सुना, वे उन बठ्ठियो पर जाते है और उन से बोलते है कि हमे मिठाई दो, हमे भी खानी है | क्या उनको मिठाई मिलेगी | सपने मे भी नही मिलेगी | वो तो उस हलवाई जैसे किसी अन्य हलवाई के पास जाना होगा| उसी प्रकार संत आते है राम नाम की मिठाई खिलाने, पर ये दुनिया मंदिर और मस्जिद जैसी बठ्ठियो पर राम नाम की मिठाई ढुढते है|
तभी तो सतगुरू जी कहते है कि-- भोली सी दुनिया सतगुरू बिन कैसे सरिया..... सतगुरू देव की जय हो..  

`कबीर' भाठी कलाल की, बहुतक बैठे आइ ।
सिर सौंपे सोई पिवै, नहीं तौ पिया न जाई ॥
भावार्थ - कबीर कहते हैं - कलाल की भट्ठी पर बहुत सारे आकर बैठ गये हैं, पर इस मदिरा को एक वही पी सकेगा, जो अपना सिर कलाल को खुशी-खुशी सौंप देगा, नहीं तो पीना हो नहीं सकेगा । [कलाल है सद्गुरु, मदिरा है प्रभु का प्रेम-रस और सिर है अहंकार ।]

मान बडाई(अहंकारी) जमपुर जाई  होई रहो दासन दासा
साधु(भगत) बनना सहज है, दुर्लभ बनना दास|
दास तब जानिये, जब हाडा पर रहै ना मॉस||
अभिमान तज गुरु वचन पे हो अटल विरला सुर है|
हँस बने सतलोक जावे मुक्ति ना फ़िर दूर है||

मन मगन बऐ का सुन रासा...२
ऐ इन्दरी पृकति पर रे डाल चलो त्रिगुण पासा,
सपम सपा हो मिल नुर मे काम कृोध का कर नासा,
यो तन काख मिलेगा भाई कै पेर मल-मल खासा,
पिण्ड बृह्मड कुछ थिर नही रे गगन मण्डल मे कर बासा,
चिन्ता चेरी दुर पर रे री काट चलो जम का फॉसा,
मान बडाई जम पुर जाई होय रहो दासन दासा,
गरीबदास पद अरस अनाहद सतनाम जप स्वासा,.....
मन मगन बऐ सुन रासा....२

लागी का मार्ग ओर है, लाग चोट कलेजा करके....
जय बंदीछोड की


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कबीर परमेश्वर द्वारा बादशाह सिकंदर की शंकाओं का समाधान

कबीर परमेश्वर द्वारा बादशाह सिकंदर की शंकाओं का समाधान
सत साहेब जी सभी को
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कबीर परमेश्वर द्वारा बादशाह सिकंदर की शंकाओं का समाधान
प्रश्न - बादशाह सिकंदर लोधी ने पूछा, हे परवरदिगार (क). यह ब्रह्म(काल) कौन शक्ति
है ? (ख). यह सभी के सामने क्यों नहीं आता ?
उत्तर - परमेश्वर कबीर साहेब जी ने सिकंदर लोधी बादशाह के प्रश्न ‘क-ख‘ के उत्तर में सृष्टी रचना सुनाई।
(सृष्टी रचना भाग १ --> https://www.facebook.com/photo.php?fbid=229186393872936&set=a.195066310618278.20780.171494336308809&type=1
सृष्टी रचना भाग २ --> https://www.facebook.com/photo.php?fbid=229187727206136&set=a.195066310618278.20780.171494336308809&type=1
सृष्टी रचना भाग ३ --> https://www.facebook.com/photo.php?fbid=229188800539362&set=a.195066310618278.20780.171494336308809&type=1 )

प्रश्न - (ग). क्या बाबा आदम जैसे महापुरुष भी इसी के जाल में फंसे थे ?
उत्तर - पवित्र बाईबल में उत्पत्ति विषय में लिखा है कि पूर्ण परमात्मा मनुष्यों तथा अन्य प्राणियों की रचना छः दिन में करके तख्त अर्थात् सिंहासन पर चला गया। उसके बाद इस लोक की बाग डोर ब्रह्म ने संभाल ली। इसने कसम खाई है कि मैं सब के सामने कभी नहीं आऊँगा। इसलिए सभी कार्य अपने तीनों पुत्रों (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) के द्वारा करवाता रहता है या स्वयं किसी के शरीर में प्रवेश करके प्रेत की तरह बोलता है या आकाशवाणी करके आदेश देता है। प्रेत, पित्तर तथा अन्य देवों (फरिश्तों) की आत्माऐं भी किसी के शरीर में प्रवेश करके अपना आदेश करती हैं। परन्तु श्रद्धालुओं को पता नहीं चलता कि यह कौन शक्ति बोल रही है। पूर्ण परमात्मा ने माँस खाने का आदेश नहीं दिया। पवित्रा बाईबल उत्पत्ति विषय में सर्व प्राणियों के खाने के विषय में पूर्ण परमात्मा का प्रथम तथा अन्तिम आदेश है कि मनुष्यों के लिए फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे दिए हैं जो तुम्हारे खाने के लिए हैं तथा अन्य प्राणियों को जिनमें जीवन के प्राण हैं उनके लिए छोटे-छोटे पेड़ अर्थात् घास, झाडि़याँ तथा बिना फल वाले पेड़ आदि खाने को दिए हैं। इसके बाद पूर्ण प्रभु का आदेश न पवित्र बाईबल में है तथा न किसी कतेब (तौरत, इंजिल, जुबुर तथा र्कुआन शरीफ) में है। इन कतेबों में ब्रह्म तथा उसके फरिश्तों तथा
पित्तरों व प्रेतों का मिला-जुला आदेश रूप ज्ञान है।

प्रश्न -(घ)-. क्या बाबा आदम से पहले भी सृष्टी थी ?
उत्तर - सूर्यवंश में राजा नाभिराज हुआ। उसका पुत्र राजा ऋषभदेव हुआ जो जैन धर्म का प्रवर्तक तथा प्रथम तीर्थकर माना जाता है। वही ऋषभदेव ही बाबा आदम हुआ, यह विवरण जैन धर्म की पुस्तक ‘‘आओ जैन धर्म को जाने‘‘ के पृष्ठ 154 पर लिखा है। इससे स्पष्ट है कि बाबा आदम से भी पूर्व सृष्टी थी। पृथ्वी का अधिक क्षेत्र निर्जन था। एक दूसरे क्षेत्र के व्यक्ति भी आपस में नहीं जानते थे कि कौन कहाँ रहता है। ऐसे स्थान पर ब्रह्म ने फिर से मनुष्य आदि की सृष्टी की। हजरत आदम तथा हव्वा की उत्पत्ति ऐसे स्थान पर की जो अन्य व्यक्तियों से कटा हुआ था। काल के पुत्र ब्रह्मा के लोक से यह पुण्यात्मा (बाबा आदम) अपना कर्म संस्कार भोगने आया था। फिर शास्त्र अनुकूल साधना न मिलने के कारण पित्तर योनी को प्राप्त होकर पित्तर लोक में चला गया। बाबा आदम से पूर्व फरिश्ते थे। पवित्र बाईबल ग्रन्थ में लिखा है।

प्रश्न -(ड़).- यदि अल्लाह का आदेश मनुष्यों को माँस न खाने का है तो बाईबल तथा र्कुआन शरीफ में कैसे लिखा गया ?
उत्तर - पवित्र बाईबल में उत्पत्ति विषय में लिखा है कि पूर्ण परमात्मा ने छः दिन में सृष्टी रचकर सातवें दिन विश्राम किया। उसके बाद बाबा आदम तथा अन्य नबियों को अव्यक्त अल्लाह (काल) के फरिश्ते तथा पित्तर आदि ने अपने आदेश दिए हैं। जो बाद में र्कुआन शरीफ तथा बाईबल में लिखे गए हैं।

प्रश्न -(च)- अव्यक्त(गायव) प्रभु काल ने यह सर्व वास्तविक ज्ञान छुपाया है तो पूर्ण परमात्मा का संकेत किसलिए किया ?
उत्तर - ज्योति निरंजन(अव्यक्त माना जाने वाला प्रभु) पूर्ण परमात्मा के डर से यह नहीं छुपा सकता कि पूर्ण परमात्मा कोई अन्य है। यह पूर्ण प्रभु की वास्तविक पूजा की विधि से अपरिचित है। इसलिए यह केवल अपनी साधना का ज्ञान ही प्रदान करता है तथा महिमा गाता है पूर्ण प्रभु की भी।
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सिकंदर ने सोचा कि ऐसे भगवान को दिल्ली में ले चलता हूँ और हो सकता है वहाँ के व्यक्ति भी इस परमात्मा के चरणों में आकर एक हो जाऐं। यह हिन्दू और मुसलमान का झगड़ा समाप्त हो जाऐं। कबीर साहेब के विचार कोई सुनेगा तो उसका भी उद्धार होगा। दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी ने प्रार्थना की कि हे ‘‘सतगुरुदेव एक बार हमारे साथ दिल्ली चलने की कृपा करो।’’ कबीर साहेब ने सिकंदर लौधी से कहा कि पहले आप मेरे से उपदेश लो फिर आपके साथ चल सकता हूँ।

Saturday, April 2, 2016

शब्द भेद तब जानिये, रहे शब्द के माहिँ|

शब्द भेद तब जानिये,
रहे शब्द के माहिँ|
शब्दे शब्द परगट भया,
दूजा दीखे नाहिँ||
लोहे चुम्बक प्रीति है,
लोहे लेत उठाय|
ऐसेहिँ शब्द कबीर का,
जम से लेत छुड़ाय||
शब्द द्वारा श्रष्टि रचना

" महाउदघोष " ही वास्तव में शब्द की ताकत है । और मालिक-ए-कुल की परिपूर्ण ताकत है । जो खण्डों ब्रहमण्डों को लिए खडी़ है । यह चैतन्य आत्मक धारा है , यह धुन सहित थरथराहट है । यह महाचैतन्य है । इसी धारा से मालिक कुल जहान को पैदा करता है । यह धारा मालिक से निकल कर सबके अन्दर पहुंच रही है । इस धारा से सबकी सम्हाल करता है । इस धारा में अनन्त ध्वनियां हैं । इससे अनन्त राग रागनियां निकल रही हैं ।

सतगुरु कबीर साहेबजी फरमाते हैं कि यही शब्द- गुरू है । वहां :-
अनन्त कोटि जहां बाजे बाजें।
शब्द विदेही जहां बिराजें ।।
सार शब्द से लोक बनाया ।
वही सार हंसन मुक्ताया ।।
शब्द अखण्ड होत दिन राती।
न कोई पूजा न कोई पाती ।।
बिन कर ताल पखावज बाजें।
बिना नींव के मंदिर साजें ।।
भूमि कहो तो भूमि नांही ।
मंदिर रचे तासु के मांहि ।।
बिना भूमि जहां बहती गंगा ।
बिना नीर जहां उठें तरंगा ।।
बिन बादल बिजली चमकारा।
बिना नीर जहां चलें फुवारा ।।
घरहर गरजें अति अधिकाई ।
लौर उठे बादल कोई नांहि ।।
मोर चकोर कोयल किलकारें।
बिना अंग के शब्द उचारें ।।
यह राग रागिनियां किसी वक्त गुरू की बताई युक्ति से सुनाई देती हैं । ज्यों-ज्यों हम सूक्ष्म होते जाते हैं , त्यों-त्यों धुनें साफ सुनाई देती हैं । इनके माध्यम से जीव अपने मालिक तक रसाई पाता है , पुनः जीवन मरण से आजाद हो जाता है ।

सार शब्द से लोक बनाया ।
वही सार हंसन मुक्ताया ।।

सारांश यह है कि कुल रचना शब्द से हुई गुरू वाणी में गुरू नानक जी फरमाते हैं :--
शब्दै धरती शब्दै आकाश ।
शब्दै शब्द भया प्रकाश ।।
सकल सृष्टि शब्द के पाछे ।
नानक शबद घटों घट आछे ।।
सतगुरु कबीर साहेबजी कहते हैं :-
सत्य के शब्द से धरन आकाश हैं ।
सत्य के शब्द से पवन पानी ।।
धरती आकाश पवन पानी सभी शब्द से पैदा हुए ।
गोस्वामी गरीबदास जी फरमाते हैं: -
शब्द स्थावर जंगम जोगी ।
दास , गरीब शब्द रस भोगी ।।
शब्द अति सूक्ष्म और सर्व व्यापक है । कुल रचना इसमें समाई हुई है ।
सतगुरु कबीर साहेबजी फरमाते हैं।: -
रैन समानी सूर्य में सूर्य समाना आकाश ।
आकाश समाना शब्द में खोजे कोई निज दास।।
सूर्य के उदय होते ही रैन का अंधेरा उसी में लोप हो जाता है । इसी प्रकार कुल ब्रहमाण्ड शब्द में समाये हुए हैं । अर्थात् शब्द सर्वत्र है । जहां पुरष प्रकृति का मेल है जहां कार्य और कारण उत्पन्न हुए तहां भी एक गति है , थरथराहट शब्द के कारण है । शब्द वहां भी व्याप्त है । शब्द एक थरथराहट और हरकत का नाम है । ध्वनि सहित है । यह सूक्ष्म में है स्थूल में भी है । यह नाद भी है और वाणी भी यही शब्द है कहीं अनहद है , कहीं ओंकार कहीं सोहं यह सब इसकी अवस्थाएं हैं । इस शब्द की ध्वनि सागर की लहरों में है । बादल की गर्जन में है । बिजली की कड़क मे है । तूफानों की रफ्तार में है । एटम बम्ब की आवाज में है । सृष्टि और प्रलय यही शब्द करता है । सतगुरु कबीर साहेबजी फरमाते हैं: -
जब नहीं चन्द्र सूर्य अवतारा ।
जब नहीं तीनों गुण विस्तारा ।।
नाही सुन्न पवन न पानी ।
समर्थ की गति काहू न चानी।।
आदि ब्रहम नही किया पसारा।
आप अकह तब हता न्यारा ।।
शब्द विदेह भयो उचारा ।
तेहि पीछे सब सृष्टि पसारा ।।
उत्पत्ति तथा प्रलय दोनों शब्द से होती हैं । वही सृष्टि के पूर्व था और प्रलय के बाद भी होगा ।
बीजक में भी कहे है कि,:-
साँचा शब्द कबीर का,ह्रदय देखु विचार ।
चित दै समुझे नही,मोहि कहत भैल युग चार ।।
(बीजक साखी--६४)
बाईबल में आया: -
Word of God is quick and powerful and sharpen than two edged sword.
शब्द शक्तिशाली है और समर्थ है । यह दो धारी तलवार से भी तेज है ।
By the word of lord were the heavens made परमात्मा के शब्द से स्वर्ग बने ।
यह शब्द अदृष्ट है । अगोचर है । सीमा रहित है । असीम है । यह पढ़ने लिखने बोलने में नहीं आता । वक्त गुरू द्वारा बताई युक्ति द्वारा लखा जा सकता है । शब्द गुरू प्रकट होने से राग रागनियां सुनाई देने लगती हैं । शब्द जहां है वहां गति है । थरथराहट है । अणुओं में आप देखते हैं गति है । गति का कारण शब्द है । गति का कारण शब्द है । जहां शब्द है , जहां शब्द है , वहां चैतन्यता है । इसीलिए शब्द महा चैतन्य है " शक्तिशाली " है । छोटे-छोटे अणुओं से बम्ब बनता है उसके विस्फोट से सर्वनाश होता है इससे शब्द की शक्तियों का अनुमान लगाया जा सकता है ।
दूसरा पक्ष भी शब्द का है । जहां मधुर-मधुर मन मोहक जीवन संचार करने वाली राग रागनियां होती हैं । यह जीव वृक्ष पौधे सब में जीवन संचार करती हैं । 

सुलतान अधम को पार करना ।।

बल्ख बुखारे का बादशाह था यह सुलतान अधम और यह वोही आत्मा थी जो सेऊ रूप मे कबीर जी की शरण मे आई थी । लेकिन पार नही हो पाई थी । अगला जन्म मे फिर वो नोलखा का नोशेरवां नाम का राजा बना फिर भी पार नही हुआ तो बन्दीछोड ने अगला जन्म सुलतान अधम का दिया क्योकि पिछली भगती थी । जो किसी भी जन्म मे भगती करते है उनके भगती की बहुत कसक होती है जिस कारण से उसके महल के पास मे सतसंग हो रहा था । उसने सुना उसे बढा पसंद आया और अल्लाह पाने की उम्मीद जाग गई । अगले दिन सिपाहीयों को कहा जो संत कल सतसगं कर रहे थे उनको महल बुला कर ले आओ । 
महल मे आए साधु संतो को कहा पीरजी आपने अल्लाह पा रखा है अगर पा रखा है तो मुझे मिलाओ ।
संत बोले - बादशाह । अल्लाह के पाने की विधि है वो एसे नही दिखता । एक समजदार संत था
वो बोला - राजन् एक गिलास दुध देना जी ।
दुध आगया । दुध मे वो संत उंगली डाल कर बार बार देख रहा है ।
बादशाह ने कहा क्या देख रहे हो जी वो बोला की सुना है दुध मे घी होता है पर इसमे नही है ।
बादशाह बोला - तुझे इतना तो पता नही दुध केसे घी बनता है अल्लाह क्या खाख पाया होगा तुने । इसके घी बनाने की विधि है एसे नही मिलता घी ।।
संत बोला - राजन् इसी प्रकार परमातमा भी युं कोनी मिलदा ।
राजा बोला - अच्छा !ओह !! मेरी बात का जवाब देता है । सबको जेल मे चकी पीसने लगा दो ।
उसने सबको जेल मे डाल दिया ।
एक दिन अल्लाह कबीर एक ऊंट चराने वाले का रूप बनाकर जंहा राजा का निवास स्थान था उसकी छत पर गड गड सोटी से मारी ।।
राजा की नींद बंग हुई बोला कौन है कमबखतं पकड तर लाओ । सेनिक ले पकड कर पुछा कोन है तु यहाँ क्या करन आया ।
मालिक बोले - राजन् मे रबहारी हुँ मेरा एक ऊंट गुम हो गया मे छत पर ऊट डुंढ रहा था ।
राजा बोला - छत पर और ऊटं कभी हो सकता है क्या !!!
मालिक बोले - जिस प्रकार छत पर ऊटं नही मिल सकता । उसी प्रकार राज मे अल्लाह नही पाया जा सकता । अल्लाह तो सतों मे मिलता है ।
परमात्मा - सामने से ही गायब हो गए ।राजा बेहोश हो गया । मालिक जेल मे पुहंचे  और कहा तुहारे राजा ने मुझे भी जेल कर दी  । सिपाही बोले - तो चल पीस चक्की । मालिक बोले- या तो हम चक्की पीसें गें या दाने डालेंगे कोई एक काम बोलो । तो उनहोने बोला तुम पीसो हम दाने डालें गें । परमातमा ने अपनी सोटी एक चक्की पे लगा दी । तो सभी चलने लगी ।  वो दाने डाल रहे थे कि परमातमा ने सबी संतो जो जेल मे थे उनहे कहा आखे बंद करो । अौर खोली तो दुर खडे थे ।
इतने राजा को होश आया सिपाही बोले राजा एक संत आया था सबको शुटवा गया । राजा गया देखने वो चक्की गुम ही रही थी राजा फिर बेहोश हो गया ।
10-15 दिन बीत गए । मालिक फिर एक यात्री का रूप बनाकर आए । बोले ए धर्मशाला वाले एक कमरा दे भाई रात काट नी है ।
राजा बोला - यह मेरा राज महल है ।मे राजा हुं ।
यात्री बोला - तुझ से पहले कौन था ??
राजा बोला -  मेरे पिता थे ।
यात्री बोला - उससे पहले कौन था ??
राजा बोला - दादा परदादा थे !!
यात्री बोला - वो लोग कहां गए ??
राजा बोला - वो अल्लाह खुदा को प्यारे हुए ।
यात्री बोली - तो तु कितने दिन रहे गा ?
राजा बोला - मे भी मरुंगा !
यात्री बोला - तो यह धर्मशाला नही तो क्या है ?
मालिक यह कहकर फिर गायब और राजा फिर बेहोश ।
3 घंटे मे होश आया तो बहुत दुखी हुआ राज से मन हटने लगा ।
5-6 दिन बाद एक बाग जहां राजा हर रोज दोपहर को आरम करता था ।वहां अल्लाह एक नोकरानी के रूप मे उस बिस्तर पर सो रहे थे ।
राजा बोला - तेरी इतनी हिमत तु मेरे बिसतर पर सोइ । कोरडे से तीन बार पीठ पर मारा । जो कपडा था मालिक वो भी फट गया । पहले तो परमातमा ने थोडा रोने का नाटक किया फिर हसतें हसतें लोट पोट हो गए
राजा बोला - 1  कोरडे की खाके आदमी तो मर जाता है । औरत का तो मतलब क्या कि हसें । हाथ पकड कर पुछा तु हसीं क्यो ।
बादीं रूप मे बोले अल्लाह - कि मे युं हसुं हुँ कि मे इस बिस्तर पर 3 घडी सोइ तो मेरा यह हाल हुआ और तेरा क्या होगा मे यह सोच कर हसीं । बन्दीछोड फिर गायब ।
राजा फिर बेहोश ।
राज काज मे मन लगना बंद हो गया । रानी ने सोचा कि कही ये राज ना त्याग दे । इसका मन बहलाने के लिए इसको शिकार पर ले जाओ ।
शिकार पर गए तो वहां शाम तक कोइ शिकार नही मिला । फिर एक हिरन दिखा राजा ने बोला कि यह छुटना नही चाहिए । जिसने छोडा सुली तोड दुगां उसको । राजा के घोडे के नीचे से वो हिरन निकाल गया । राजा शरम के मार पीछे पड गया ।10 कीलोमीटर के बाद वो हिरन कहीँ गायब हो गया । पर राजा मरने की हालत मे हो गया प्यास लग गई अगर 2 मिनट पानी ना मिले तो दोनो मरें राजा और घोडा दोनोमर जाए ।
सामने राजा ने देखा एक भाग है सुंदर पेड है काजु बादाम के फलो से लदे हुए । पास ही एक तालाब है बहुत शीतल जल है और एक झोंपडी  है । एक महातमा बाबा जी बेठा है । वो जिंदा महातमा थे उन्होने तीन कुते जो बहुत सुंदर है बाधं रखे है एक कुता बाधने की डोर खाली पडी है ।
राजा ने प्यास बुजाइ । घोडे को भी पिलाया पानी फिर बाबा जी को बोला - पीर जी को सलाम ।
जिंदा बोले - सलाम कुबुल
राजा बोला - यह तून कुतो मे से दो मुझे दे दे तु क्या करे गा
जिंदा बोले - भाई यह आम कुते नही है !!
राजा बोला - एसा क्या इनमे ??
जिंदा बोले - भाइ यह एक तो बलखबुखारे का जो राजा है ना उसका बाप है ।
दुसरा दादा है ।
तीसरा परदादा है ।
जब मे इनको बोलता था कि दो घडी अल्लाह को याद करलो तो यह बोलते थे समय नही है !! आज इन हरामजादों के पास समय भी है और यह हलवा खाने की कोशीश करते है तो इनको अब मे खाने नही देता इनको मारता हुँ अब । और अभी जो राजा है ना वो कुता बने गा वहां खाली डोर पडी थी यँहा बांदुगा अब अफलातुन बना हुआ है । राजा ने सोचा यह तो वोही लगता है । पैर पकडने के लिए झुकता है तो परमात्मा गायब। राजा बेहोश । जब उठा तो देखा ना कोइ कुता है ना कोई बाबा ना कोई तालाब पर घोडे के पैर गीले राजा बिल कुल दुखी हो गया ।
राजभवन मे बैठा था सेनापति बोले महाराज ये भुत तो छोरीयों को दिखते है आप क्यों दुखी होते है ।
इतने मे एक कुता जो बुरी तरह से जखमी और उसको सिर मे कीडे पडे थे दोडकर आया बोला अबराहिम मे भाई उस देश का राजा था । आज मेरे पाप का नितजा सामने आ रहा है और बीरा तेरे पास मोका है सँबहाल ले !! कुता भाग गया !!
अबराहिम बोला अब यह क्या चीज थी भाई तुम तो मरद थे ।
राजा अपने महल के छत पर बैठ जाता है वँहा उसका सिपाही कुछ चकोरोँ को छोड देता है । एक बाज आता है चकोर को लेकर उड जाता है । आकाशवाणी हुई देखले काल तुझे इसी तरह लेके उड जाएगा । अभी मोका है ।
पुरी तरह से सुलतान वेराग होकर राज्य तयाग कर जंगल मे रहने लगता है । वहाँ उसे बन्दीछोड मिलते है और उसे नाम देकर पार करते है ।
जय बन्दीछोड की ।।।
सतसाहेब ।।।

सेऊ, समन ,नेकी की कथा ।।

एक बार जब मालिक 600 साल पहले आए हुए थे । तब उनके तीन शिष्य हुए थे समन उसकी पतनी नेकी और एक छोटा सी उम्र का पुत्र सेऊ था वेसे वासतिवक नाम उसका शिव था । यह लोग मनियारी ( चुडियाँ पहनाने  ) का काम करते थे । और साथ मे जहाँ भी जाते परमात्मा की महिमा गाते थे । तो अन्य कुछ लोग उनसे ईर्ष्या  करते थे । एक दिन सेउ ने अपने मित्र के सामने महिमा बताई  कि हमारे गुरू जी ने दिल्ली  के सम्राट सिकंदर लोदी का जलन का रोग हाथ रखकर ठीक कर दिया था ।
मित्र कहते थे कि तुम्हारे गुरू बस राजा के ही जाते है तुम्हारे घर आए कभी !! सेऊ कहने लगा हमारे गुरू जी ऐसे नही है , देखना एक दिन वो हमारे घर भी आएंगे ।
यही रट सी लग गई सेऊ को कि गुरू हमारे घर आ जायैं तो कितना अच्छा   होगा ।
वो सेऊ बालक अपनी माँ नेकी से कहता है कि हमारे गुरू जी हमारे घर भी आ जाएं तो कितना अच्छा हो हरदम यही रट रहे ।
तो माँ बोली गुरू जी के पास वक्त नही होती बेटा उनके बहुत शिष्य हो गए हैं ।
इसी के चलते इधर काशी मे कमाल को अहंकार हो गया था कि जो सेवा मे गुरू कि करता हुँ और कोई नही कर सकता ।
तो अंतरयामी परमेश्वर कबीर साहेब ने सोचा कि इस कमाल की फडक भी निकाल दुं ओर उधर दिल्ली के भगत काफी दुखी है । तो कमाल और फरीद जी को लेकर कबीर जी समन की झोंपडी के सामने खडे थे ।
सेऊ अब भी यही रट मे था कि अगर एक बार गुरू जी आ जाएं तो मेरे मुँह उठ जाएगा मित्र के सामने कि हमारे गुरू जी हमारे घर भी आते है ।
इतनी बात हो ही रही थी कि बाहर से आवाज आई कबीर साहेब की उन्हौने सोचा वैसे ही हमारे कान बोल रहे है धोखा है !!!
फिर आवाज आती है वो लोग बाहर गए और देखते ही रह गए मतलब सुन्न से हो गए । इतने मे कमाल बोला भाई अदंर भी ले जाओगे । !!
फिर उनका सपना सा खत्म हुआ, कबीर  जी को अदंर  फटे पुराने आसन पर बिठा दिया । समन बोला नेकी गुरू जी के लिए भोजन बनाओ । कबीर जी को जल पान के लिए पानी दिया । नेकी बोली जी भोजन के लिए सामग्री शेष नही है । समन बोला अपनी चुंनरी ( कपडा)
दे दे इसे गिरबी रख कर ले आता हुँ ।
नेकी ने कहा मे इसे लेकर गई थी पर आज कोई भी नगर मे नही ले रहा । वो लोग व्यंग कस रहे है कि तुमहारे गुरू तो भगवान है ना !""
समन ने सोचा मे कैसा नीच प्राणी आज ही मेरे मालिक आए और मे कैसा दुरभागी प्राणी ।
नेकी कहने लगी तुम दोनो सेऊ और समन रात को चोरी करके 3 सेर ( तीन हाथ ) आटा ले आओ । सेऊ कहता है चोरी तो पाप होता है । माँ ने उसे कहा चोरी को दान कर देगें बेटा फिर कोई पाप नही लगता ।
फिर बहुत समझाने पर समझ में आ गया । दोनो बाप-बेटा रात को बनिये ( सेठ) की दुकान मे चोरी करने के लिए पहुचें , कच्ची दीवार मे छेद कर लिया अदंर घुसने के लिए ।
समन बोला मैं जाता हुँ बेटा । बेटा कहता है पिता जी बनिये की राजा तक पहुँच है ,आपको मौत की बजह भी दे सकता है और बालक की तो माफी हो जाती है । इतना कहकर सेऊ गुस्सा गया और चोरी करके बाहर आ रहा था कि जोर से तराजु के ताखडे की आवाज हुई सेऊ ने पोटली फेंक दी बाहर समन भाग लिया ।
सेऊ को बनिये ने पकड लिया और थम से बाध दिया ओर कहा तुम ! भगत बनते हो आज खुल गयी तुम्हारी पोल ।
सेऊ ने कहा सेठ जी हमने चोरी अपने लिये नही कि बल्कि हमारे गुरू जी आए है उनको भोजन खिलाना है ।
सेठ ने कहा हाँ  तुम्हारे  गुरू जी आये  चोरी कराने। बताता हुँ राजा को सारे तीर निकलेंगें तुम्हारे गुरू पर ।
सेऊ ने सोचा यह क्या बनी हमारा तो चलो ठीक पर यह तो गुरू को भी तंग करेगें । सेऊ ने सोचा अगर मेरा बाप मेरा सिर काट ले तो यह सेठ डर के मारे कुछ नही करेगा । यही बात नेकी ने पुछी कि लडका कहाँ है समन ने कहा वो तो बीनिये ने पकड लिया । नेकी ने कहा तु उसका सिर काट कर ले आ कहीँ उसे पहचान ना ले कोई ।
समन कर्द लेकर पहूंचा  ,कहा बेटा सेऊ दो बात करनी है बेटा एक बार बाहर आजा । सेऊ ने कहा सेठ जी पिता जी आए हैं दो बात करने की कह रहे है । सेठ ने बोला भाग जाओगे । सेऊ ने कहा खोलना मत बस ढीला कर दो । तो सेठ ने सोचा कपदे ढीली कंहा जाएगा । सेऊ गया पिता के पास । पिता अखिर पिता ही होता है कर्द नही चली । सेऊ ने कहा अगर तु मेरा बाप है तो मेरा सिर काट दे इतने सुनते ही कर्द से सिर काट कर घर आ गया । सेऊ, समन ,नेकी  की पाख कथा ।।
एक बार जब मालिक 600 साल पहले आए हुए थे । तब उनके तीन शिष्य हुए थे समन उसकी पतनी नेकी और एक छोटा सी उम्र का पुत्र सेऊ था वेसे वासतिवक नाम उसका शिव था । यह लोग मनियारी ( चुडीयाँ पहनाने  ) का काम करते थे । और साथ मे जहाँ भी जाते परमात्मा की महिमा गाते थे । तो अन्य कुछ लोग उनसे इर्शा करते थे । एक दिन सेउ ने अपने मित्र के सामने महिमा बताइ कि हमारे गुरू जी ने शिंकंदर लोदी का जलन का रोग हाथ रखकर ठीक कर दिया था । मित्र कहते थे कि तुमाहारे गुरू बस राजा के ही जाते है तुमाहारे द्यर आए कभी !! सेऊ कहने लगा हमारे गुरू जी एसे नही है देखना एक दिन वो हमारे द्यर भी आएंगे । यही रट सी लग गई सेऊ को कि गुरू हमारे द्यर आजाएं तो कितना होगा । वो सेऊ बालक अपनी माँ नेकी से कहता है कि हमारे गुरू जी हमारे द्यर भी आजाएं तो कितना अच्छा हो हरदम यही रट रहे । तो माँ बोली गुरू जी के पास वकत नही होती बेटा उनके द्यने शिस हो गए हां ।
इसी के चलते इधर काशी मे कमाल को अहंकार हो गया था कि जो सेवा मे गुरू कि करता हुँ और कोई नही कर सकता । तो अंतरयामी परमेशवर कबीर साहेब ने सोचा कि इस कमाल की फडक भी निकाल दुं ओर उधर दिल्ली के भगत काफी दुखी है । तो कमाल और फरीद जी को लेकर कबीर जी समन की झोंपडी के सामने खडे थे ।
सेऊ अब भी यही रट मे था कि अगर एक बार गुरू जी आजाएं तो मेरे मुह उठ जाएगा मित्र के सामने कि हमारे गुरू जी हमारे घर भी आते है । इतनी बात हो ही रही थी कि बाहर से आवाज आई कबीर साहेब की उनहोने सोचा वैसे ही हमारे कान बोल रहे है दोखा है !!! फिर आवाज आती है वो लोग बाहार गए और देखते ही रह गए मतलब सुन से हो गए । इतने मे कमाल बोला भाई अदंर भी ले जाओगे । !!
फिर उनका सपना सा खतम हुआ कबीर  जी को अदंर  फटे पुराने आसन पर बिठा दिया । समन बोला नेकी गुरू जी के लिए भोजन बनाओ । कबीर जी को जल पान के लिए पानी दिया । नेकी बोली जी भोजन के लिए सामग्री सेक्ष नही है । समन बोला अपनी चुंदडी ( कपडा)
दे दे इसे गिरबी रख कर ले आता हुँ । नेकी ने कहा मे इसे लेकर गई थी पर आज कोई भी नगर मे नही ले रहा । वो लोग वयंग कस रहे है कि तुमहारे गुरू तो भगवान है ना !""
समन ने सोचा मैं केसा नीच प्राणी आज ही मेरे मालिक आए और मे कैसा दुरभागी प्राणी ।
नेकी कहने लगी तुम दोनो सेऊ और समन रात को चोरी करके 3 शेर ( तीन हाथ ) आटा ले आओ । सेऊ कहता है चोरी तो पाप होता है । माँ ने उसे कहा चोरी को दान करदेगें बेटा फिर कोई पाप नही लगता । फिर बहुत समजाने पर समज मे आगया । दोनो बाप बेटा रात को बानिये ( सेठ) की दुकान मे चोरी करने के लिए पहुचें  कच्ची दीवार मे छेद कर लिया अदंर गुसने के लिए ।
समन बोला मे जाता हुँ बेटा । बेटा कहता है पिता जी बानिये की राजा तक पहुँच है आपको मोत की सजह भी दे सकता है और बालक की तो माफी हो जाती है । इतना कहकर सेऊ गुस गया और चोरी करके बाहर आ रहा था कि जोर से तराजु के ताखडे की आवाज हुई सेऊ ने पोटली फेंक दी बाहर समन भाग लिया ।
सेऊ को बानिये ने पकड लिया और थाबँ से बाध दिया ओर कहा तुम !"" भगत बनते हो आज पाटी थारी पोल । सेऊ ने कहा सेठ जी हमने चोरी अपने लिये नही कि बलकि हमारे गुरू जी आए है उनको भोजन खिलाना है । सेठ ने कहा हाँ थारे गुरू जी आंवे चोरी करान । बताता हुँ राजा को सारे तीर काडेगें थारे गुरू पर । सेऊ ने सोचा यह क्या बनी हमारा तो चलो ठीक पर यह तो गुरू को भी तंग करेगें । सेऊ ने सोचा अगर मेरा बाप मेरा सिर काट ले तो यह सेठ डर के मारे कुछ नही करेगा ।
यही बात नेकी ने पुछी कि लडका कँहा है समन ने कहा वो तो बीनिये ने पकड लिया । नेकी ने कहा तु उसका सिर काट कर ले आ कहीँ उसे पहचान ना ले कोई ।
समन कर्द लेकर पहुचां कहा बेटा सेऊ दो बात करनी है बेटा एक बार बाहर आजा । सेऊ ने कहा सेठ जी पिता जी आए हैं दो बात करन की कह रहे है । सेठ ने बोला भाग जाओगे । सेऊ ने कहा खोलना मत बस डीला कर दो । तो सेठ ने सोचा कपदे ढीली कंहा जाएगा । सेऊ गया पिता के पास । पिता अखिर पिता ही होता है कर्द नही चली । सेऊ ने कहा अगर तु मेरा बाप है तो मेरा सिर काट दे इतने सुनते ही कर्द से सिर काट कर घर आ गया ।
पत्नी नेकी ने कहा फिर से जा शव भी ले आ वो सेठ फेकेंगा उसे । समन गया शव भी छाती से लगाकर घर ले आया । बोरी मे बाधंकर कोने मे रख कर गुरू जी का भोजन तैयार किया ।
समन कहता है नेकी रोना मत गुरू जी को पता चलेगा तो रोटी नही खाएंगे ।
रोटी कबीर साहेब के सामने तीन थाली एक कबीर जी , एक कमाल , एक फरीद के लिए लाई गई।
परमात्मा  बोले भगतों इसे छह बर्तन मे करो । नेकी ने पाँच मे कर दिया। मालिक बोले छह मे करो । सभी बैठे थे खाना खाया नही जा रहा था । इतने मे कबीर साहेब बोले :-
"आओ सेऊ जी मिलो यह प्रसाद   प्रेम ।
सिर कटया करें चोरा कें साधो के निक्षेम" ।।
सेऊ धड  पर शीश चढा बेठैं पगत मा ।
गरीब दास नही निशान है यह उस सेऊ के ना ।।
बोलो सतगुरू देव रामपाल जी महाराज की जय ।।।।।।
सत साहिब
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धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।।

धर्मदास यह जग बौराना।
कोइ न जाने पद निरवाना।।
अब मैं तुमसे कहों चिताई। त्रियदेवन की उत्पति भाई।।
ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई।
मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।
माँ अष्टंगी पिता निरंजन।
वे जम दारुण वंशन अंजन।।
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछेसे माया उपजाई।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये।
ब्रम्हा विष्णु शिव नाम धराये।।
तीन देव विस्त्तार चलाये।
इनमें यह जग धोखा खाये।।
तीन लोक अपने सुत दीन्हा।
सु निरंजन बासा लीन्हा।।
अलख निरंजन सु ठिकाना।
ब्रम्हा विष्णु शिव भेद न जाना।।
अलख निरंजन बड़ा बटपारा। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।
ब्रम्हा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।।
तिनके सुत हैं तीनों देवा।
आंधर जीव करत हैं सेवा।।
तीनों देव और औतारा।
ताको भजे सकल संसारा।।
तीनों गुणका यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।
गुण तीनों की भक्ति में,
भूल परो संसार।
कहै कबीर निज नाम बिन,
कैसे उतरें पार।।।
।। सत साहेँब ।।

मन(काल) के ऊपर परमात्मा की वाणी...

सत् साहिब जी "सन्त रामपाल जी महाराज के तत्वज्ञान सत्संगों से...
मन(काल) के ऊपर परमात्मा की वाणी...
रोहो रोहर मन मारूंगा, ज्ञान खड़ग संघारुंगा,
डामाडोल ना हूजे रे, तुझको निजधाम ना सूझे रे,
सतगुरु हैला देवे रे, तुझे भवसागर से खेवे रे,
चौरासी तुरन्त मिटावै रे, तुझे जम से आन झुड़ावै रे,
कहा हमारा कीजै रे, सतगुरु को सिर दीजै रे,
अब लेखे लेखा होई रे, बहुर ना मैला कोई रे,
शब्द हमारा मानो रे, अब नीर खीर को छानो रे,
तू बहज मुखी क्यों फिरता रे, अब माल बिराणा हरता रे,
तू गोला जात गुलामा रे, तू बिसरया पूरण रामा रे,
अब दण्ड़ पड़े सिर दोहि रे, ते अगली पिछली खोई रे,
मन कृतध्नी तू भड़वा रे, तुझे लागै साहिब कड़वा रे,
मन मारूंगा मैदाना रे, सतगुरु समशेर समाना रे,
अरे मन तुझे काट जलाऊँ रे, दिखे तो आग लगाऊँ रे,
अरे मन अजब अलामा रे, तूने बहुत बिगाड़े कामा रे,
हैरान हवानी जाता रे, सिर पीटै ज्ञानी ज्ञाता रे,
हैरान हवानी खेले रे, सब अपने ही रंग मेले रे,
ते नौका नाम डबोई रे, मन खाखी बढ़वा धोई रे,
मन मार बिहंडम करसूं रे, सतगुरु साक्षी नहीं दरशूं रे,
अरे खेत लड़ो मैदाना रे, तुझे मारुंगा शैताना रे,
डिड की ढ़ाल बनाऊं रे, तन् तत् की तेग चलाऊं रे,
काम कटारी ऐचूं रे, दर बान बिहंगम खेचूं रे,
बुद्धि की बन्दूक चलाऊँ रे, मैं चित की चकमक ल्याऊँ रे,
मैं दम की दारु भरता रे, ले प्रेम पियाला जरता रे,
मैं गोला ज्ञान चलाऊँ रे, मैं चोट निशाने ल्याऊँ रे,
तू चाल कहाँ तक चालै रे, तू निसदिन हृदय साले रे,
मन मारूंगा नहीं छाडू रे, खाखी मन घर ते काडू रे,
आठ पटन सब लूट्या रे तू आठो गाठ्यो झूठा रे,
तब बस्ती नगर उजाड़ा रे, खाखी मन झूठा दारा रे,
यह तीन लोक में फिरता रे, इसे घेर रहे नहीं घिरता रे।
परमात्मा ने इस मन को पापी बताया है, यह मन ही है जो हमसे सारी गलतियाँ व पाप करवाता है और यह पाप आत्मा के ऊपर रख दिया जाता है।
काल(ब्रह्म) एक से अनेक होने की सिद्धि के जरिये मन रूप में सभी जीवों में रहता है। इसने मन को अपने अंश रूप में आत्मा के साथ इस शरीर में छोड़ रखा है। यह काल ही मन रूप में आत्मा के साथ रहता है।
यह काल(मन) नहीं चाहता कि कोई आत्मा पूर्ण परमात्मा की पहचान कर भक्ति कर अपने निज घर सतलोक चली जाए इसलिए यह मन रूप में रहकर आत्मा को भ्रमित करता रहता है और दुष्प्रेरणा देकर पाप इक्ट्ठे करवाता रहता हैं।
परमात्मा कहते है...
गरीब, जुगन-जुगन के दाग है, ये मन के मैल मसण्ड,
भई न्हाये से उतरे नहीं, अढ़सठ तीरथ दण्ड़।
गरीब, जुगन-जुगन के दाग है, ये मन के मैल विकार,
धोये से नहीं जात है, ये गंगा न्हाये कैदार।
परमात्मा ने बताया है कि युगों युगों से मन में दाग और विकार भरे पड़े है। मन इन विकारों से मैला हो चुका है। अब तीरथ न्हाने से या गंगा तथा कैदार न्हाने से मन के विकार मिट नहीं सकते।
मन के विकार, गंदापन, मैल खत्म नहीं हो सकते...."ये तो परमात्मा के ज्ञान से और भक्ति के प्रभाव से निष्क्रिय हो सकते है"।
मन के विकार मरते नहीं है, यह परमात्मा के सच्चे ज्ञान और भक्ति के प्रभाव से दब जाते हैं फिर यह अपना प्रभाव नहीं डालते।
परमात्मा कहते है कि...
"मन कामी ही मैल है, निज मन कोटूक बूझ,
निज मन से निज मन मिलै, खाखी मन मन से लूझ"
आत्मा को जब परमात्मा का सच्चा ज्ञान व भक्ति प्राप्त हो जाती है तब वह इस खाखी शैतान मन से दूर हो जाती है फिर इसके चक्कर में नहीं आती।
सदगुरु दया से भक्ति करके पूर्ण मोक्ष(सतलोक) प्राप्त करती है।
21 ब्रह्माण्ड़ के सभी जीव, देवतागण एवं ब्रह्मा विष्णु महेश भी मन के विकारों से ग्रसित है। केवल सदगुरु की दया, ज्ञान और भक्ति से ही मन(काल) से बचा जा सकता है।
परमात्मा ने काल रुपी मन से सचेत रहने के लिए भी कहा है...
"मन के मते ना चालिये, मन है पक्का दूत,
ले छोड़े दरिया में फिर गये हाथ से छूट"
"मन के मते ना चालिये, मन का कै विश्वास,
साधु तब लग डरकर रहियो, जब लग पिंजड़ श्वास"
"मन के मते ना चालिये, मन का मता अनेक,
जो मन पर असवार है, वो साधु कोई एक"
सत् साहिब जी!
बन्दी छोड़ सदगुरु रामपाल जी महाराज की सदैव जय हो!

Wednesday, March 30, 2016

स्वर्ग की परिभाषा

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      स्वर्ग को एक होटल जानों। जैसे कोई धनी व्यक्ति गर्मियों के मौसम में शिमला या कुल्लु मनाली जैसे शहरो में ठंडे स्थान पर जाता है। वहां किसी होटल में ठहरता है। जिसमें कमरे का किराया व खाने का खर्चा अदा करना होता है। महीने में 30-40 हजार रूपए खर्च करके वापिस अपने कर्म क्षेत्र में आना होता है। फिर 11 महीने मजदूरी करो। फिर एक महीना घूम आओ। यदि किसी वर्ष कमाई अच्छी नहीं हुई तो उस एक महीने के सुख को भी तरसो।

ठीक इसी प्रकार स्वर्ग जाने--
             मनुष्य इस पृथ्वी लोक पर साधना करके कुछ समय स्वर्ग रूपी होटल में चला जाता है। अपनी पुण्य कमाई खर्च करके कुछ समय वहां रहकर वापिस नरक तथा चौरासी लाख प्राणियों के शरीर में कष्ट पाप कर्मों के आधार पर भोगना पडता है।

               जब तक तत्वदर्शी संत नहीं मिलेगा तब तक जन्म-मृत्यु, स्वर्ग-नरक व 84 लाख योनियों का कष्ट बना ही रहेगा।क्योंकि केवल पूर्ण परमात्मा का सतनाम व सारनाम ही पापों का नाश करता है। अन्य प्रभुओं की पूजा से पाप नष्ट नहीं होते। सर्व कर्मों का ज्यों का त्यों फल ही मिलता है।

साधना चैनल पर प्रतिदिन शाम 07:40-08:40 तक सतगुरू रामपाल जी महाराज के अमृत वचनों का आनन्द लें।