Showing posts with label guru darsan. Show all posts
Showing posts with label guru darsan. Show all posts
Tuesday, April 26, 2016
sat sanga me kon aate he
Labels:
Guru,
guru darsan,
jhoothe guru,
sat guru,
sat sang,
sat sanga
Labels:
Guru,
guru darsan,
guru Kripa,
rampaljee maharaj,
sat guru,
sat sang,
sat sanga
pramatma pap nas karsakte he
Labels:
Guru,
guru darsan,
jhoothe guru,
pap,
sat sang,
sat sanga,
ved
Sunday, April 24, 2016
चरणामृत
पानी आकाश से गिरे तो........बारिश,
आकाश की ओर उठे तो........भाप,
अगर जम कर गिरे तो...........ओले,
अगर गिर कर जमे तो...........बर्फ,
फूल पर हो तो....................ओस,
फूल से निकले तो................इत्र,
जमा हो जाए तो..................झील,
बहने लगे तो......................नदी,
सीमाओं में रहे तो................जीवन,
सीमाएं तोड़ दे तो................प्रलय,
आँख से निकले तो..............आँसू,
शरीर से निकले तो..............पसीना, और
बंदी छोड़ के चरणों को छू कर निकले तो.........................चरणामृत
सत् साहेब जी
जय हो बंदी छोड़ की
आकाश की ओर उठे तो........भाप,
अगर जम कर गिरे तो...........ओले,
अगर गिर कर जमे तो...........बर्फ,
फूल पर हो तो....................ओस,
फूल से निकले तो................इत्र,
जमा हो जाए तो..................झील,
बहने लगे तो......................नदी,
सीमाओं में रहे तो................जीवन,
सीमाएं तोड़ दे तो................प्रलय,
आँख से निकले तो..............आँसू,
शरीर से निकले तो..............पसीना, और
बंदी छोड़ के चरणों को छू कर निकले तो.........................चरणामृत
सत् साहेब जी
जय हो बंदी छोड़ की
Monday, December 28, 2015
भगत आत्माऐँ ध्यान देँ सदगुरु देँव जी बतातेँ है
भगत आत्माऐँ ध्यान देँ
सदगुरु देँव जी बतातेँ है
कि जब हम से गलती के कारण नाम खँण्ड हो जाता है फिर और भी गलतीयाँ कर बैठते है कि नाम तो खँण्ड हो गया है ।
मालिक बताते है गलती पर गलती करना ऐसा है जैसे कनैकसन कट (नामखँड)होने के बाद जो गलती करते है वो फिँटिग को यानी वायरिँग को उखाड़ने के समान है ।
मालिक कहते है भगति बीज को सिर धड़ की बाजी लगाकर सफल बनाना है
भगति चाहे अब कर लो या फिर असंख युगोँ बाद जब कभी मानुष जन्म और सत भगति मिले तब करना बात बनेगी अडिग होकर भक्ति करनेँ से ।
मालिक कहते है
कबीर जैसे माता गर्ब को
रखाखै यत्न बनायेँ ।
ठैस लगे छिन्न हो ,
तेरी ऐसे भग्ति जाये ।
मालिक कहते है गुरु शिष्य का नाता ऐसे होता है
कबीर ,ये धागा प्रेम का मत तोड़े चटकाये ।
टुटै सै ना जुड़े ,
जुड़े तो गाँठ पड़ जाये ।
बार बार नाम खँड़ होने से परमात्मा से लाभ मिलना बन्द हो जाता है ।
टुटै सै ना जुड़े ,
जुड़े तो गाँठ पड़ जाये ।
बार बार नाम खँड़ होने से परमात्मा से लाभ मिलना बन्द हो जाता है ।
कबीर,हरि जै रुठ जा तो गुरु की शारण मेँ जाए , जै गुरु रुठ जा तो हरि ना होत सहाय ।
कबीर , द्वार धन्नी के पड़ा रहे , धक्केँ धन्नी के खाय ।
लाख बार काल झकझोँर ही,द्वार छोड़ कर ना जाय ।
कबीर , द्वार धन्नी के पड़ा रहे , धक्केँ धन्नी के खाय ।
लाख बार काल झकझोँर ही,द्वार छोड़ कर ना जाय ।
Labels:
bhakti,
detail of doha,
guru darsan,
man,
mukti,
nam,
sangat,
sat sanga,
you should know
कबीर, गुरु-गुरु में भेद है, गुरु-गुरु में भाव । सोइ गुरु नित बन्दिये, शब्द बतावे दाव ॥
कबीर, गुरु-गुरु में भेद है, गुरु-गुरु में भाव ।
सोइ गुरु नित बन्दिये, शब्द बतावे दाव ॥
(१) प्रथम गुरू है पिता और माता।
जो है रक्त बीज के दाता॥
(२) दुजा गुरू है भाई व दाई।
जो गर्भवास की मैल छुड़ाई॥
(३) तिजा गुरू नाम जो धारा।
सोई नाम से जगत पुकारा॥
(४) चौथा गुरु जो शिक्षा दिन्हा।
तब संसार मार्ग चिन्हा॥
(५) पांचवा गुरू जो दीक्षा दिन्हा।
राम कृष्ण का सुमिरन दिन्हा।।
(६) छठवां गुरू भरम सब तोड़ा।
ॐकार से नाता जोड़ा॥
(७) सातवां गुरू सतगुरु कहाया।
जांहा का जीव ताहां पठाया
बंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज की जय
स्वांस सफल सो जानिये हरि सुमिरन मैं जाय , और स्वांस यूंही गये करि करि बहूत उपाय , जाकी पुँजी स्वांस है छिन आवे छिन जाय , ताकूं ऐसा चाहिये रहै राम ल्यौ लाय ।सतगुरू देव जी की जय हो , परमेश्वर जी की सभी हंस आत्माओ को दास का सत् साहेब जी
स्वांस सफल सो जानिये हरि सुमिरन मैं जाय , और स्वांस यूंही गये करि करि बहूत उपाय , जाकी पुँजी स्वांस है छिन आवे छिन जाय , ताकूं ऐसा चाहिये रहै राम ल्यौ लाय ।सतगुरू देव जी की जय हो , परमेश्वर जी की सभी हंस आत्माओ को दास का सत् साहेब जी
असँख्य जन्म तोहे मरते होगे जीवित क्योँ ना मरे रे, द्वादश दर मद महल मठ बोरे फिर बहुर ना देह धरे रे !!
असँख्य जन्म तोहे मरते होगे जीवित क्योँ ना मरे रे, द्वादश दर मद महल मठ बोरे फिर बहुर ना देह धरे रे !!
कबीर गुरु की भक्ति बिन, राजा ससभ होय ।
माटी लदै कुम्हार की, घास न डारै कोय ॥५१६॥
माटी लदै कुम्हार की, घास न डारै कोय ॥५१६॥
कबीर गुरु की भक्ति बिन, नारी कूकरी होय ।
गली-गली भूँकत फिरै, टूक न डारै कोय ॥५१७॥
गली-गली भूँकत फिरै, टूक न डारै कोय ॥५१७॥
जो कामिनि परदै रहे, सुनै न गुरुगुण बात ।
सो तो होगी कूकरी, फिरै उघारे गात ॥५१८॥
सो तो होगी कूकरी, फिरै उघारे गात ॥५१८॥
चौंसठ दीवा जोय के, चौदह चन्दा माहिं ।
तेहि घर किसका चाँदना, जिहि घर सतगुरु नाहिं ॥५१९॥
तेहि घर किसका चाँदना, जिहि घर सतगुरु नाहिं ॥५१९॥
हरिया जाने रूखाड़ा, उस पानी का नेह ।
सूखा काठ न जानिहै, कितहूँ बूड़ा गेह ॥५२०॥
सूखा काठ न जानिहै, कितहूँ बूड़ा गेह ॥५२०॥
झिरमिर झिरमिर बरसिया, पाहन ऊपर मेह ।
माटी गलि पानी भई, पाहन वाही नेह ॥५२१॥
माटी गलि पानी भई, पाहन वाही नेह ॥५२१॥
कबीर ह्रदय कठोर के, शब्द न लागे सार ।
सुधि-सुधि के हिरदे विधे, उपजै ज्ञान विचार ॥५२२॥
सुधि-सुधि के हिरदे विधे, उपजै ज्ञान विचार ॥५२२॥
कबीर चन्दर के भिरै, नीम भी चन्दन होय ।
बूड़यो बाँस बड़ाइया, यों जनि बूड़ो कोय ॥५२३॥
बूड़यो बाँस बड़ाइया, यों जनि बूड़ो कोय ॥५२३॥
पशुआ सों पालो परो, रहू-रहू हिया न खीज ।
ऊसर बीज न उगसी, बोवै दूना बीज ॥५२४॥
ऊसर बीज न उगसी, बोवै दूना बीज ॥५२४॥
कंचन मेरू अरपही, अरपैं कनक भण्डार ।
कहैं कबीर गुरु बेमुखी, कबहूँ न पावै पार ॥५२५॥
कहैं कबीर गुरु बेमुखी, कबहूँ न पावै पार ॥५२५॥
साकट का मुख बिम्ब है निकसत बचन भुवंग ।
ताकि औषण मौन है, विष नहिं व्यापै अंग ॥५२६॥
ताकि औषण मौन है, विष नहिं व्यापै अंग ॥५२६॥
शुकदेव सरीखा फेरिया, तो को पावे पार ।
बिनु गुरु निगुरा जो रहे, पड़े चौरासी धार ॥५२७॥
बिनु गुरु निगुरा जो रहे, पड़े चौरासी धार ॥५२७॥
कबीर लहरि समुन्द्र की, मोती बिखरे आय ।
बगुला परख न जानई, हंस चुनि-चुनि खाय ॥५२८॥
बगुला परख न जानई, हंस चुनि-चुनि खाय ॥५२८॥
साकट कहा न कहि चलै, सुनहा कहा न खाय ।
जो कौवा मठ हगि भरै, तो मठ को कहा नशाय ॥५२९॥
जो कौवा मठ हगि भरै, तो मठ को कहा नशाय ॥५२९॥
साकट मन का जेवरा, भजै सो करराय ।
दो अच्छर गुरु बहिरा, बाधा जमपुर जाय ॥५३०॥
दो अच्छर गुरु बहिरा, बाधा जमपुर जाय ॥५३०॥
कबीर साकट की सभा, तू मति बैठे जाय ।
एक गुवाड़े कदि बड़ै, रोज गदहरा गाय ॥५३१॥
एक गुवाड़े कदि बड़ै, रोज गदहरा गाय ॥५३१॥
संगत सोई बिगुर्चई, जो है साकट साथ ।
कंचन कटोरा छाड़ि के, सनहक लीन्ही हाथ ॥५३२॥
कंचन कटोरा छाड़ि के, सनहक लीन्ही हाथ ॥५३२॥
साकट संग न बैठिये करन कुबेर समान ।
ताके संग न चलिये, पड़ि हैं नरक निदान ॥५३३॥
ताके संग न चलिये, पड़ि हैं नरक निदान ॥५३३॥
टेक न कीजै बावरे, टेक माहि है हानि ।
टेक छाड़ि मानिक मिलै, सत गुरु वचन प्रमानि ॥५३४॥
टेक छाड़ि मानिक मिलै, सत गुरु वचन प्रमानि ॥५३४॥
साकट सूकर कीकरा, तीनों की गति एक है ।
कोटि जतन परमोघिये, तऊ न छाड़े टेक ॥५३५॥
कोटि जतन परमोघिये, तऊ न छाड़े टेक ॥५३५॥
निगुरा ब्राह्म्ण नहिं भला, गुरुमुख भला चमार ।
देवतन से कुत्ता भला, नित उठि भूँके द्वार ॥५३६॥
देवतन से कुत्ता भला, नित उठि भूँके द्वार ॥५३६॥
हरिजन आवत देखिके, मोहड़ो सूखि गयो ।
भाव भक्ति समझयो नहीं, मूरख चूकि गयो ॥५३७॥
भाव भक्ति समझयो नहीं, मूरख चूकि गयो ॥५३७॥
खसम कहावै बैरनव, घर में साकट जोय ।
एक धरा में दो मता, भक्ति कहाँ ते होय ॥५३८॥
एक धरा में दो मता, भक्ति कहाँ ते होय ॥५३८॥
घर में साकट स्त्री, आप कहावे दास ।
वो तो होगी शूकरी, वो रखवाला पास ॥५३९॥
वो तो होगी शूकरी, वो रखवाला पास ॥५३९॥
आँखों देखा घी भला, न मुख मेला तेल ।
साघु सो झगड़ा भला, ना साकट सों मेल ॥५४०॥
साघु सो झगड़ा भला, ना साकट सों मेल ॥५४०॥
कबीर दर्शन साधु का, बड़े भाग दरशाय ।
जो होवै सूली सजा, काँटे ई टरि जाय ॥५४१॥
जो होवै सूली सजा, काँटे ई टरि जाय ॥५४१॥
कबीर सोई दिन भला, जा दिन साधु मिलाय ।
अंक भरे भारि भेटिये, पाप शरीर जाय ॥५४२॥
अंक भरे भारि भेटिये, पाप शरीर जाय ॥५४२॥
कबीर दर्शन साधु के, करत न कीजै कानि ।
ज्यों उद्य्म से लक्ष्मी, आलस मन से हानि ॥५४३॥
ज्यों उद्य्म से लक्ष्मी, आलस मन से हानि ॥५४३॥
कई बार नाहिं कर सके, दोय बखत करिलेय ।
कबीर साधु दरश ते, काल दगा नहिं देय ॥५४४॥
कबीर साधु दरश ते, काल दगा नहिं देय ॥५४४॥
दूजे दिन नहिं करि सके, तीजे दिन करू जाय ।
कबीर साधु दरश ते मोक्ष मुक्ति फन पाय ॥५४५॥
कबीर साधु दरश ते मोक्ष मुक्ति फन पाय ॥५४५॥
तीजे चौथे नहिं करे, बार-बार करू जाय ।
यामें विलंब न कीजिये, कहैं कबीर समुझाय ॥५४६॥
यामें विलंब न कीजिये, कहैं कबीर समुझाय ॥५४६॥
दोय बखत नहिं करि सके, दिन में करूँ इक बार ।
कबीर साधु दरश ते, उतरैं भव जल पार ॥५४७॥
कबीर साधु दरश ते, उतरैं भव जल पार ॥५४७॥
बार-बार नहिं करि सके, पाख-पाख करिलेय ।
कहैं कबीरन सो भक्त जन, जन्म सुफल करि लेय ॥५४८॥
कहैं कबीरन सो भक्त जन, जन्म सुफल करि लेय ॥५४८॥
पाख-पाख नहिं करि सकै, मास मास करू जाय ।
यामें देर न लाइये, कहैं कबीर समुदाय ॥५४९॥
यामें देर न लाइये, कहैं कबीर समुदाय ॥५४९॥
बरस-बरस नाहिं करि सकै ताको लागे दोष ।
कहै कबीर वा जीव सो, कबहु न पावै योष ॥५५०
गरीब, पूर्ण ब्रह्म कृपा निधान,सुन केशव करतार ।
गरीबदास मुझ दीन की ,
रखियो बहुत संभार ।।
कहै कबीर वा जीव सो, कबहु न पावै योष ॥५५०
गरीब, पूर्ण ब्रह्म कृपा निधान,सुन केशव करतार ।
गरीबदास मुझ दीन की ,
रखियो बहुत संभार ।।
Subscribe to:
Posts (Atom)