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Monday, April 25, 2016

काल भगवान

काल भगवान
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जो इक्कीस ब्रह्मण्ड का प्रभु है, उसने प्रतिज्ञा की है कि मैं अपने शरीर में व्यक्त (मानव सदृष्य अपने वास्तविक) रूप में सबके सामने नहीं आऊँगा। उसी ने सूक्ष्म शरीर बना कर प्रेत की तरह श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके पवित्र गीता जी का ज्ञान कहा। विष्णु पुराण में प्रकरण है की काल भगवान महविष्णु रूप में कहता है कि मैं किसी और के शरीर में प्रवेश कर के कार्य करूंगा।

1. श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) चतुर्थ अंश अध्याय दूसरा श्लोक 26 में पृष्ठ 233 पर विष्णु जी (महाविष्णु अर्थात् काल रूपी ब्रह्म) ने देव तथा राक्षसों के युद्ध के समय देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करके कहा है कि मैं राजऋषि शशाद के पुत्र पुरन्ज्य के शरीर में अंश मात्र अर्थात् कुछ समय के लिए प्रवेश करके राक्षसों का नाश कर दूंगा।

2. श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) चतुर्थ अंश अध्याय तीसरा श्लोक 6 में पृष्ठ 242 पर श्री विष्ण जी ने गंधर्वाे व नागों के युद्ध में नागों का पक्ष लेते हुए कहा है कि “मैं (महाविष्णु अर्थात् काल रूपी ब्रह्म) मानधाता के पुत्र पुरूकुत्स में प्रविष्ट होकर उन सम्पूर्ण दुष्ट गंधर्वो का नाश कर दूंगा”।

Thursday, March 24, 2016

योगि गोरखनाथलाई पूर्ण ब्रह्म कविर्देवले आफ्नो उमेर वताउंदै nepali


जो बूझे सोई बावरा, क्या है उम्र हमाही ।
असंख युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी।।
कोटि निरंजन हो गए, परलोक सिधारी।
हम तो सदा महबूब हैं, स्वयं ब्रह्मचारी।।
अरबों तो ब्रह्मा गए, उनन्चास कोटि कन्हैया।
सात कोटि शम्भू गए, मोर एक नहीं पलैया।।
कोटिन नारद हो गए, मुहम्मद से चारी।
देवतन की गिनती नहीं है, क्या सृष्टि विचारी।।
नहीं बुढ़ा नहीं बालक, नाहीं कोई भाट भिखारी।
कहैं कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी।।

अविनाशि परमात्मा केवल पुर्ण ब्रह्म कविर्देव भएको प्रमाणः-

अवधु अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक हनै दिखलाया ।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया ।
माता–पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी ।
जलहा को सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी ।।
पांच तत्व का धड नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा ।
सत्य स्वरुपी नाम साबिह का, सो है नाम हमारा ।।
अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा।
ज्योति स्वरुपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी,
धरता ध्यान हमारा ।।
हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी ।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कविर अविनासी ।।

५. यदि कसैलाई संका भएमा आफ्ना सद ग्रन्थहरु पढेर हेर्नुहोस् ।
संदर्भ सामाग्रिः- "ध्यात्मिक ज्ञान गंगा"

त्रिगुणमयी जालमा उल्झेको संसार nepali


कबीर, अक्षर पुरुष एक पेड है, निरंजन वाकी डार ।
त्रिदेवा (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) शाखा भये, पात भया संसार ।।
कबीर, तीन देवको सब कोई ध्यावै, चौथा देवका मरम न पावै
चौथा छाडि पँचम ध्यावै ,कहै कबीर सो हमरे आवै ।।
कबीर, तीन गुणन की भक्ति में, भूलि पर्यो संसार ।
कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरे पार ।।
कबीर, ओंकार नाम ब्रह्म (काल) का, यह कर्ता मति जानि ।
सांचा शब्द कबीर का, परदा माहिं पहिचानि ।।
कबीर, तीन लोक सब राम जपत हैं, जान मुक्तिको धाम ।
रामचन्द्र वसिष्ठ गुरु किया, तिन कहि सुनायो नाम ।।
कबीर, राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नाही संसार ।
जिन साहब संसार किया, सो किनहू न जनम्यां नारि ।।
कबीर, चार भुजाके भजनमे, भूलि परे सब संत ।
कविरा सुमिरै तासु को,  जाके भुजा अनंत ।।
कबीर, वाशिष्ट मुनि से तत्वेता, ज्ञानी, शोध कर लग्न धरै ।
सीता हरण मरण दशरथ को, बन बन राम फिरै ।।
कबीर, समुद्र पाटि लंका गये, सीता को भरतार।
ताहि अगस्त मुनि पीय गयो, इनमें को करतार ।।
कबीर, गोवर्धन कृष्ण जी उठाया, द्रोणगिरि हनुमंत ।
शेष नाग सब सृष्टी उठाई, इनमें को भगवंत ।।
कबीर, दुर्वासा कोपे तहां, समझ न आई नीच ।
छप्पन कोटी यादव कटे, मची रुधिर की कीच ।।
कबीर, काटे बंधन विपति में, कठिन किया संग्राम ।
चीन्हों रे नर प्राणिया, गरुड बडो की राम ।।
कबीर, कह कबीर चित चेतहू, शब्द करौ निरुवार ।
श्री रामचन्द्र को कर्ता कहत हैं, भूलि पर्यो संसार ।।
कबीर, जिन राम कृष्ण निरंजन किया, सो तो करता न्यार ।

भगवान, अल्लाह, गड, राम नै पुर्ण बह्म कविर्देव भएको प्रमाणः-


कहै कविर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय…
अलख इलाही एक है, नाम धराया दोय ।
राम रहीमा एक है, नाम धराया दोय ।
कृष्ण करीमा एक है, नाम धराय दोय ।
काशी काबा एक है, एकै राम रहीम ।
मैदा एक पकवान बहु, बैठि कविरा जीम ।।
एक वस्तु के नाम बहु, लीजै वस्तु पहिचान ।
नाम पक्ष नहीं कीजिये, सांचा शब्द निहार ।
पक्षपान ना किजिये, कहै कविर विचार ।।
राम कविरा एक है, दूजा कबहू ना होय ।
अंतर टाटी कपट की, तातै दीखे दोय ।
राम कविर एक है, कहन सुजन को दोय ।
दो करि सोई जानई, सतगुरु मिला न होय ।।
भरम गये जग वेद पुराना । आदि राम का भेद न जाना ।
राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोइ बिरला जाने।।

Wednesday, March 23, 2016

एक ही मामले में दो कानून अपना रही है भाजपा सरकार

एक ही मामले में दो कानून अपना रही है भाजपा सरकार
-देशद्रोह के समान मामले में अन्य आरोपियों को मिली जमानत, लेकिन बहन राजकला व संत रामपाल को नहीं दी जा रही जमानत
हिसार, 23 मार्च।
सत साहेब इन इंडिया के संयोजन डॉ. रामकुमार सौलंकी ने देशद्रोह के एक जैसे मामलों मेें अलग अलग कानून व पुलिस कार्रवाई पर सवालिया निशान खड़े किए हैं। सौलंकी ने कहा कि जेएनयू के छात्र कैन्हया कुमार, उमर खालिद और अनिर्वान भट्टाचार्य पर धारा 124ए के तहत मामला दर्ज होने के बावजूद उन्हें छह महीने के लिए अंतरिम जमानत दे दी जाती है। इसके अलावा देशद्रोह के आरोप में ही जेल में बंद दिल्ली विवि के पूर्व प्रो. एसएआर गिलानी को जमानत मिल सकती है तो ऐसे ही सतलोक आश्रम प्रकरण में बहन राजकला सहित अन्य बहनों व सैंकड़ों की संख्या में संत रामपाल के अनुयायियों को जमानत क्यों नहीं दी जा रही। उन्होंने कहा कि इन भक्तों ने न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व देश के खिलाफ नारे लगाए और न ही देशद्रोह से संबंधित किसी अन्य गतिविधि में भाग लिया। ये भक्त तो मात्र संत रामपाल के अनुयायी हैं और बरवाला में मात्र उनके सत्संग में ही गए थे, लेकिन सरकार ने इनपर देशद्रोही की धारा 124ए लगाकर जेल में डाल दिया और उन्हें अभी तक जमानत नहीं दी गई। एक ही देश में एक ही कानून को दो तरीके से क्यों लागू किया जा रहा है। डॉ. सौलंकी ने कहा कि जो सिर्फ सच बोलते हैं, उनके प्रताप से सिंहासन डोल जाते हैं। एक बार सच सुकरात ने बोला था, लेकिन उन्हें जालिमों ने जहर पिला कर मार दिया, वहीं एक सच ईसा मसीह ने बोला था, लेकिन उनके हाथों में भी कीलें ठोककर उन्हें मार दिया। अब ऐसा ही मामला संत रामपाल के साथ हो रहा है और उन्हें सच बोलने की सजा मिल रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि सतलोक आश्रम प्रकरण में सभी राजनीतिक पार्टियों के इशारों पर संत रामपाल पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया और अब भी संत रामपाल के मामले में राजनीतिक हस्तक्षेप किया जा रहा है। यही कारण है कि उनपर देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया और उन्हें जमानत भी नहीं दी जा रही। संत रामपाल के भक्त इसे अब ज्यादा देर तक सहन नहीं करेंगे।

डा. रामकुमार सौलंकी
मो. 9255312817

Tuesday, March 22, 2016

Karautha kanda ka sach (baldev ke kahnese)

CBI check karwawo modi sarkar





death of arya-samaj-leader-acharya-baldev

pawaiga aapna kiya re
bhogaiga aapna kiya re 

http://www.yespunjab.com/punjab/haryana-news/item/84647--passes-away-khattar-condoles-death

http://www.rsss.co.in/books/Bhogega_Apna_Kiya_Re.pdf


Monday, March 21, 2016

अन्य देवताओं (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी) की पूजा बुद्धिहीन ही करते हैं

अध्याय 7 के श्लोक 20 में कहा है कि जिसका सम्बन्ध अध्याय 7 के श्लोक 15 से लगातार है - श्लोक 15 में कहा है कि त्रिगुण माया (जो रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी की पूजा तक सीमित हैं तथा इन्हीं से प्राप्त क्षणिक सुख) के द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है एैसे असुर स्वभाव को धारण किए हुए नीच व्यक्ति दुष्कर्म करने वाले मूर्ख मुझे नहीं भजते। अध्याय 7 के श्लोक 20 में उन-उन भोगों की कामना के कारण जिनका ज्ञान हरा जा चुका है वे अपने स्वभाव वश प्रेरित हो कर अज्ञान अंधकार वाले नियम के आश्रित अन्य देवताओं को पूजते हैं। अध्याय 7 के श्लोक 21 में कहा है कि जो-जो भक्त जिस-जिस देवता के स्वरूप को श्रद्धा से पूजना चाहता है उस-उस भक्त की श्रद्धा को मैं उसी देवता के प्रति स्थिर करता हूँ।

अध्याय 7 के श्लोक 22 में कहा है कि वह जिस श्रद्धा से युक्त हो कर जिस देवता का पूजन करता है क्यांेकि उस देवता से मेरे द्वारा ही विधान किए हुए कुछ इच्छित भोगों को प्राप्त करते हैं। जैसे मुख्य मन्त्री कहे कि नीचे के अधिकारी मेरे ही नौकर हैं। मैंनें उनको कुछ अधिकार दे रखे हैं जो उनके(अधिकारियों के) ही आश्रित हैं वह लाभ भी मेरे द्वारा ही दिया जाता है, परंतु पूर्ण लाभ नहीं है। अध्याय 7 के श्लोक 23 में वर्णन है कि परंतु उन मंद बुद्धि वालों का वह फल नाशवान होता है। देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं। (मदभक्त) मतावलम्बी जो वेदों में वर्णित भक्ति विधि अनुसार भक्ति करने वाले भक्त भी मुझको प्राप्त होते हैं अर्थात् काल के जाल से कोई बाहर नहीं है। विशेष: अध्याय 7 के श्लोक 20 से 23 में कहा है कि वे जो भी साधना किसी भी पित्र, भूत, देवी-देवता आदि की पूजा स्वभाव वश करते हैं। मैं(ब्रह्म-काल) ही उन मन्द बुद्धि लोगों(भक्तों) को उसी देवता के प्रति आसक्त करता हूँ। वे नादान साधक देवताओं से जो लाभ पाते हैं मैंने(काल ने) ही देवताओं को कुछ शक्ति दे रखी है। उसी के आधार पर उनके(देवताओं के) पूजारी देवताओं को प्राप्त हो जाएंगे। परंतु उन बुद्धिहीन साधकों की वह पूजा चैरासी लाख योनियों में शीघ्र ले जाने वाली है तथा जो मुझे (काल को) भजते हैं वे तप्त शिला पर फिर मेरे महास्वर्ग(ब्रह्म लोक) में चले जाते हैं और उसके बाद जन्म-मरण में ही रहेंगे, मोक्ष प्राप्त नहीं होगा। भावार्थ है कि देवी-देवताओं व ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा माता से भगवान ब्रह्म की साधना अधिक लाभदायक है। भले ही महास्वर्ग मंे गए साधक का स्वर्ग समय एक महाकल्प तक भी हो सकता है, परन्तु महास्वर्ग में शुभ कर्मों का सुख भोगकर फिर नरक तथा अन्य प्राणियों के शरीर में भी कष्ट बना रहेगा, पूर्ण मोक्ष नहीं अर्थात् काल जाल से मुक्ति नहीं।

Saturday, March 19, 2016

कोटी जन्म तू राजा किन्हा , मिटी ना मन की आशा ।।

कूक्कर शुक्कर खर बना बोरे ,
कौंआ हँस बुगा रे ।
कोटी जन्म तू राजा किन्हा ,
मिटी ना मन की आशा ।।
भिक्षु कर होकर दर दर घूमया ,
मिला ना निर्गुण रासा ।
इन्द्र कुबेर ईश की पदवी ,
ब्रह्मा वरुण धर्मराया ।
विष्णु नाथ के पुर को जाकर ,
फ़िर भी वापिस आया ।।
असंख़ जन्म तोहे मरते होगे , जीवित क्यो ना मरै रे ।
द्वादश कोट महल मठ बोरे , बहुर ना देह धरै रे ।।
दोझिख भिस्त सभी तु देखे , राज़ पाठ के रसिया ।
तीन लोक से तीरपत नाही ,
ये मन भोगी खसिया ।।
सतगुरु मिलै तो ईच्छा मैटै ,
पद मिल पदै समाना ।
चल हंसा उस लोक पठाऊ ,
जो आदि अमर अस्थाना ।।
चार मुक्ति जहाँ चंपि करती ,
माया हो रही दासी ।
दास ग़रीब अभय पद परसै ,
वो मिले राम अविनाशी ।।

Saturday, March 5, 2016

कड़वा सत्य

।। कड़वा सत्य ।।
महाभारत में एक प्रकरण आता है:-
जिस समय द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था।
उस समय भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य
तथा करण इन सबकी दुर्याेधन
राजा द्वारा विशेष आवाभगत की जाती थी,
इसी कारण से राजनीति दोष से ग्रस्त होकर
अपने कर्तव्य को भूल गए थे। पाण्डव
अपनी बेवकूफी के कारण राजनीति के षड़यंत्र के
शिकार होकर विवश हो गए थे।
उस सभा (पंचायत) में एक धर्मनीतिज्ञ
पंचायती विदुर जी थे। उसने स्पष्ट कहा।
आदरणीय गरीबदास जी की वाणी में:-
विदुर कह यह बन्धु थारा, एकै कुल एकै परिवारा।
दुर्याेधन न जुल्म कमावै, क्षत्रीय
अबला का रक्षक कहावै।
अपनी इज्जत आप उतारै, तेरी निन्द हो जग में
सारै।
विदुर के मुख पर लगा थपेड़ा, तू तो है
पाण्डवों का चेरा (चमचा)।
तू तो है बान्दी का जाया, भीष्म, द्रोण करण
मुसकाया।
भावार्थः- उस पंचायत में केवल धर्मनीतिज्ञ
पंचायती भक्त विदुर जी थे। निष्पक्ष वचन कहे
कि हे दुर्योधन! कुछ विचार कर आपके कुल की बहू
(द्रोपदी) को नंगा करके आप
अपनी बेइज्जती आप ही कर रहे हो। क्षत्रीय धर्म
को भी भूल गए हो, क्षत्रीय
तो स्त्री का रक्षक होता है।
बुद्धि भ्रष्ट अभिमानी दुर्योधन ने
पंचायती की धर्मनीति को न मानकर
उल्टा अपने भाई दुशासन से कहा कि इस विदुर
को थप्पड़ मार। दुशासन ने
ऐसा ही किया तथा कहा कि तू
तो सदा पाण्डवों के पक्ष में
ही बोलता रहता है, तू तो इनका चमचा है।
अहंकारी दुर्योधन ने राजनीतिवश होकर अपने
चाचा विदुर को भी थप्पड़ मारने की राय दे
दी। विदुर धर्मनीतिज्ञ पंचायती सभा छोड़कर
चला गया। पंचायती का यह कर्तव्य
होना चाहिए। सत्य कह, नहीं माने
तो सभा छोड़कर चला जाना चाहिए।
परंतु उस सभा में
द्रोपदी को नंगा किया जा रहा था। भीष्म
पितामह, द्रोणाचार्य, करण फिर
भी विद्यमान रहे। उनका उद्देश्य क्या था?
स्पष्ट है उनमें महादोष था, वे
भी स्त्री का गुप्तांग देखने के इच्छुक थे।
सज्जनों! यदि इन तीनों (भीष्म पितामह,
द्रोणाचार्य तथा करण) में से एक
भी खड़ा होकर कह देता कि खबरदार अगर
किसी ने ‘‘स्त्री‘‘ के चीर को हाथ लगाया। ये
तीनों इतने योद्धा थे कि उनमें से एक से
भी टकराने की हिम्मत किसी में नहीं थी।
भीष्म दादाजी थे, प्रथम तो उसका कर्तव्य
था, कहता कि दुर्योधन! द्रोपदी का चीर हरण
मत कर, तुम भाई-भाई जो करना है करो। दूसरे
कहना था कि हे अपराधी दुशासन! अपने
चाचा पर हाथ उठा दिया तो समझो अपने
पिता पर हाथ उठा दिया,
उसको धमकाना चाहिए था। लेकिन
राजनीति के कायल किसी ने
भी पंचायती फर्ज अदा नहीं किया।
उसी कारण से महाभारत के युद्ध में सर्व
दुर्गति को प्राप्त हुए। केवल विदुर
ही धर्मात्मा था जो अच्छा पंचायती था।