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Saturday, September 10, 2016

।। अध काफर बोध ।।

।। अध काफर बोध ।।

काफर बोध सुनो रे भाई , दोहूँ दीन बिच राम खुदाई ।

काफर सो माता दे गारी , वै काफर जो खेलै सारी ।।1।।
काफर कूड़ी साखि भरांही , काफर चोरी खट्या खांही ।

काफर दान यज्ञ नहीँ करहीँ , काफर साधु संत से अरहिँ ।।2।।
काफर तीरथ व्रत उठावैँ , सत्यवादी जन निश्चय लावैँ ।

काफर पिता बचन उलटाहीँ , इतने काफर दोजिख जाहीँ ।।3।।
सत्यकर मानोँ बचन हमारा , काफर जगत करुं निरबारा ।

वै काफर जो बड़-बड़ बोलै , काफर कहो घाटि जो तोलै ।।4।।
वै काफर ऋण हत्या राखै , वै काफर पर दारा ताकै ।

काफर स्वाल सुखन कूँ मोड़ै , काफर प्रीति नीच सूं जोड़ै ।।5।।
काफर काफर छाडि हूँ , सत्यवादी से नेह ।

गरीबदास जुग जुग पड़ै , काफर के मुख खेहं ।।6।।

वै काफर जो कन्या मारैँ , वै काफर जो बन खंड जारैँ ।
वै काफर जो नारि हितांही , वै काफर जो तोरैँ बांही ।।7।।
वै काफर जो अंतर काती , वै काफर देवल जाती ।

वै काफर जो डाक बजावैँ , वै काफर जो शीश हलावैँ ।।8।।
वै काफर जो करैँ कंदूरी ,वै काफर जिन नहीँ सबूरी ।

वै काफर जो बकरे खांही , वै काफर नहीँ साधु जिमाहीँ।।9।।
वै काफर जो मांस मसाली , वै काफर जो मारै हाली ।

वै काफर जो खेती चोरं , वै काफर जो मारैँ मोरं ।।10