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Saturday, May 28, 2016

बैष्णव संत रामानन्द जी

जब १०४ बर्षीय बैष्णव संत रामानन्द जी ले ५ बर्षीय कबीर साहेबलाई सत्यधाम अर्थत धूलोकको तेस्रो स्थानमा क्षर र अक्षर भन्दा पर राजाको जस्तो विराजमान भएको र पुर्थ्वीमा सामान्य रुपमा लीला गरेको देखेर कबीर साहेबको शरणमा आउनुहुन्छ र 

कृष्णको भक्ती त्यागेर कबीर साहेबको स्तुतीमा भन्नुहुन्छ की:-

तहा वहा चित चक्रित भया, देखि फजल दरवार।
कहै रामानन्द सिजदा किया, हम पाये दिदार॥
तुम स्वामी मै बाल बुद्धि, भर्म कर्म किये नाश।
कहै रामानन्द निज ब्रह्म तुम, हमरै दुढ विश्वाश॥
सुन्न-बेसुन्न सै तुम परै, उरै से हमरै तीर।
कहै रामानन्द सरबंगमे, अविगत पुरूष कबीर॥
कोटि कोटि सिजदे करै, कोटि कोटि प्रणाम।
कहै रामानन्द अनहद अधर, हम परसै तुम धाम॥
बोलत रामानन्द, सुन कबीर करतार।
कहै रामानन्द सब रूप मे, तुमही बोलन हार॥
तुम साहिब तुम सन्त हौ। तुम सतगुरू तुम परमहसं।
कह रामानन्द तुम रूप बिन और न दुजा अंस॥
मै भगता मुक्ता भया, किया कर्म कुन्द नाश।
कहै रामानन्द अविगत मिले, मेटी मन की बास॥
दोहू ठौर है एक तू, भया एक से दोय।
कहै रामानन्द हम कारणै, उतरे है मघ जोय॥
बोलत रामानन्द जी, सुन कबीर करतार।
कहै रामानन्द सब रूप मे, तू ही बोलनहार॥
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योहो सच्चा संत भनेको जो सत्य जान्ने वितिक्कै कृष्ण को भक्ती त्यागेर पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेबको शरणमा आए।