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Wednesday, September 14, 2016

आदरणीय नानक साहेब जी की वाणी में सृष्टि रचना का संकेत "

श्री नानक साहेब जी की अमृतवाणी ,महला 1 राग विलावलु, अंश 1 ( गुरु ग्रंथ ) पृष्ठ 839
आपे सचु कीआ कर जोड़ी । अंडज फोड़ि जोड़ी विछोड ।।
धरती आकाश कीए बैसण क उ थाउ । राति दिनंतु कीए भ उ भाउ ।।
जिन कीए करि वेखणहारा (3)
त्रितीया ब्रम्हा विष्णु महेसा । देवी देव उपाए वेसा ।।4
प्उण पाणी अगनी बिसराउ । ताहि निरंजन साचो नाउ ।।
तिसु महि मनुआ रहिआ लिव लाई । प्रणवति नानकु कालु न खाई ।।10 )

उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि सच्चे परमात्मा ( सतपुरुष ) ने स्वंय ही अपने हाथों से सर्व सृष्टि की रचना की है । उसी ने अंडा बनाया फिर फोड़ा तथा उसमे से ज्योतनिरंजन निकला । उसी पूर्ण परमात्मा ने सर्व प्राणीयों के रहने के लिए धरती आकाश पवन पानी आदि पांच तत्व रचे । अपने द्वारा रची सृष्टि का स्वंय ही साक्षी है । दूसरा कोई सही जानकारी नहीं दे सकता । फिर अंडे के फूटने से निकले निरंजन के बाद तीनों श्री ब्रम्हा जी श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी की उतपत्ति हुई तथा अन्य देवी देवता उतपन्न हुए तथा अनगिनत जीवों की उतपत्ति हुई। उसके बाद अन्य देवों के जीवन चरित्र तथा अन्य ऋषियों के अनुभव के छ: शास्त्र तथा अठारह पुराण बन गए पूर्ण परमात्मा के सचे नाम ( सत्यनाम ) कि साधना अनन्य मन से करने से तथा गुरू मर्यादा मे रहने वाले (प्रणवति) को श्री नानक जी कह रहे हैं कि काल नहीं खाता ।


राग मारू अंश अमृतवाणी महला 1 (गुरु ग्रंथ पृष्ठ 1037 )

सुनहु ब्रम्हा बिसनु महेसु उपाए । सुनें वरते जुग सबाए ।।
इसु पद बिचारे सो जनु पुरा । तिस मिलिए भरमु चुकाईदा ।।3।।
साम वेदु रुगु जुजरु अथरबणु । ब्रम्हे मुख माइया है त्रैगुण् ।।
ता की किमत कहि न सकै । को तिउ बोले जिउ बुलाईदा ।।9।।

उपरोक्त अमृतवाणी का सारांश है कि जो संत पूर्ण सृष्टि रचना सुना देगा तथा बताएगा की अण्डे के दो भाग होकर कौन नीकला जिसने फिर ब्रम्हालोक की सुन्न में अर्थात् गुप्त स्थान पर ब्रम्हा विष्णु शिव जी की उतपत्ति की तथा वह परमात्मा कौन है जिसने ब्रम्हा (काल ) के मुख से चारों वेदों ( पवित्र ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद अथर्ववेद ) को उच्चारण करवाया वह पूर्ण परमात्मा जैसा चाहे वैसे ही प्रत्येक प्राणी को बुलवाता है इस सर्व ज्ञान को पूर्ण बताने वाला सन्त मिल जाए तो उसके पास जाइये तथा जो सभी शंकाओं का निवारण करता है वही पूर्ण सन्त अर्थात् तत्वदर्शी है ।

श्री गुरु ग्रंथ साहेब पृष्ट 929 अमृत वाणी श्री नानक साहेब जी की राग रामकली महला 1 दखणी ओंअंकार

ओंअंकारि ब्रम्हा उतपत्ति । ओअंकारु कीआ जिनि चित ।
ओअंकारी सैल जुग भ्ए । ओंअंकारि बेद निरम्ए ।
ओअंकारि सबदि उभरे । ओअंकारि गुरुमुखि तरे ।
ओनम अखर सुणहु बिचारु । ओनम अखरु त्रिभवण सारु ।


उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि ओंकार अर्थात् ज्योति निरंजन ( काल ) से ब्रम्हा जी की उतपत्ति हुई । क्ई युगों मस्ती मार कर ओंकार ( ब्रम्हा ) ने वेदों की उतपत्ति की जो ब्रम्हा जी को प्राप्त हुए। तीन लोक की भक्ति का केवल एक ॐ मंत्र ही वास्तव में जाप करने का है । इस ॐ शब्द को पूरे सन्त से उपदेश लेकर अर्थात् गुरु धारण करके जाप करने से उद्घार होता है । 


विशेष :--- श्री नानक साहेब जी ने तीनों मंत्रों ( ॐ+ तत+सत) का स्थान स्थान पर विवरण दिया है । उसको केवल पूर्ण संत ही समझ सकता है तथा तीनों मंत्रों के जाप को उपदेशी को समझाया जाता है 

पृष्ठ ( 1038)


उतम सतिगुर पुरुष निराले सबदि रते हरि रस मतवाले ।
रिधि बुधि सिधि गिआन गुरु ते पाइये पूरे भाग मिलाइदा ।।5।।
सतिगुरू ते पाए बीचारा सुन समाधि सचे घरबारा ।
नानक निरमल नादु सबद धुनि सचु रामैं नामि समाईदा (17) ।।5।।17।।

उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि वास्तविक ज्ञान देने वाले सतगुरु तो निराले ही हैं वे केवल नाम जाप को जपते हैं अन्य हठयोग साधना नहीं बताते । यदि आप को धन दौलत पद बुध्दि या भक्ति शक्ति भी चाहिए तो वह भक्ति मार्ग का ज्ञान पूर्ण संत ही पूरा प्रदान करेगा ऐसा पूर्ण संत बड़े भाग्य से ही मिलता है । वही पूर्ण संत विवरण बताएगा की ऊपर सुन (आकाश) में अपना वास्तविक घर



(सत्यलोक) परमेश्वर ने रच रखा है उसमें एक वास्तविक सार नाम कि धुन ( आवाज) हो रही है उस आनंद में अविनाशी परमेश्वर के सार शब्द से समाया जाता है अर्थात् उस वास्तविक सुखदाई स्थान में वास हो सकता है अन्य नामों तथा अधुरे से नहीं हो सकता ।

आंशिक अमृतवाणी महला पहला (श्री गुरु ग्रंथ साहेब पृष्ठ 359 -360





सिव नगरी महि आसणि बैस्उ कलप त्यागी वादं (।)
सिंडी सबद सदा धुनि सोहै अहिनिसि पूरै नादं (2)
हरि कीरति रह रासि हमारी गुरु मुख पंथ अतीत (3)
सगली जोति हमारी समिआ नाना वरण अनेकं ।
कह नानक सुणि भरथरी जोगी पारब्रह्म लिव एकं । (4)

उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि हे भरथरी योगी जी आप की साधना भगवान शिव तक है ऊससे आपको शिव नगरी ( शिव लोक) में स्थान मिला है और शरीर में जो सिंगी शब्द आदि हो रहा है वह ईन्ही कमलों का है । हम तो एक परमात्मा पारब्रह्म अर्थात् सर्वसे पार जो पूर्ण परमात्मा है अन्य किसी और एक परमात्मा में लौ (अनन्य मन से लग्न ) लगाते हैं । हम उपरी दिखावा ( भस्म लगाना हाथ में डंडा रखना ) नहीं करते। मै तो सर्व प्राणीयों को एक पूर्ण परमात्मा ( सतपुरुष की ) संतान समझता हूँ सर्व उसी शक्ति से चलायमान है हमारी मुद्रा तो सचा नाम जाप गुरु से प्राप्त करके करना है तथा क्षमा करना हमारा बाणा ( वेशभूषा) है मैं तो पूर्ण परमात्मा का उपासक हूँ तथा पूर्ण सतगुरू का भक्ति मार्ग ईससे भिन्नहै ।

अमृत वाणी राग आसा महला 1 (श्री गुरु ग्रंथ पृष्ठ 420 ) आसा महला ।। 


जिनी नामु विसारिआ दूजै भरम भुलाई । मुलु छोडि डाली लगे किआ पावहि छाई ।।1।।
साहिबु मेरा एकु है अवरु नहीं भाई । किरपा ते सुख पाइआ साचे परथाई ।।3।।
गुर कि सेवा सो करे जिसु आपे कराए । नानक सिरु दे छुटिऐ दरगह पति पाए ।।8।।

उपरोक्त वाणी का भावार्थ है की श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं की जो पूर्ण परमात्मा का वास्तविक नाम भुल कर अन्य भगवानों के नामों के जाप में भ्रम रहे हैं वे तो ऐसा कर रहे हैं कि मुल ( पूर्ण परमात्मा) को छोड़कर डालीयों ( तीनों गुणों रुप रजगुण ब्रम्हा जी सतगुण विष्णु जी तमगुण शिव जी कि ) सिंचाई (पूजा ) कर रहे हैं । उस साधना से कोई सुख नहीं हो सकता अर्थात् पौधा सुख जाएगा तो छाया में नहीं बैठ पाओगे ।

भावार्थ है कि शास्त्र विधि रहित साधना करने से व्यर्थ प्रयत्न है कोई लाभ नहीं । इसी का प्रमाण पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23 24 में भी है । उस पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करने के लिए मनमुखि साधना त्याग कर पूर्ण गुरुदेव को समर्पण करने से तथा सच्चे नाम के जाप से ही मोक्ष संभव है नहीं तो मृत्यु के उपरांत नरक जाएगा ।

श्री गुरु ग्रंथ साहेब पृष्ठ नं 843 -844 ) 

।। बिलावलु महला ।।

मैं मन चाहु घणा साचि विगासी राम । मोही प्रेम पिरे प्रभु अविनाशी राम ।।
अविगतो हरि नाथु नाथह तिसै भावै सो थीऐ । किरपालु सदा द्इयालु दाता जीआ अंदरि तूं जीऐ ।
मैं आधारु तेरा तू खसमु मेरा मै ताणु तकीओ तेर्ओ साचि सूचा सदा नानक गुरसबदि झगरु निबेर्ओ ।।4 ।।2।।

उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि अविनाशी पूर्ण परमात्मा नाथों का भी नाथ है अर्थात् देवों का भी देव है ( सर्व प्रभुओं श्री ब्रम्हा जी श्री विष्णु जी श्री शिव जी तथा ब्रम्हा व परब्रह्म पर भी नाथ है अर्थात् स्वामी है ) मैं तो सचे नाम को ह्रदय में समा चुका हूँ । हे परमात्मा सर्व प्राणी का जीवन आधार भी आप ही हो मैं आपके आश्रित हूँ आप मेरे मालिक हो । आपने ही गुरु रुप में आकर सत्यभक्ति का निर्णायक ज्ञान देकर सर्व झगड़ा निपटा दिया अर्थात् सर्व शंका का समाधान कर दिया ।

(श्री गुरु ग्रंथ साहेब पृष्ठ नं 721 राग तिलंग महला 1 )

यक अर्ज गुफतम पेश तो दर कुन करतार ।
हक्का कबीर करीम तू बेअब परबदिगार ।
नानक बुगोयद जन तुरा तेरे चाकरां पाखाक । 

उपरोक्त अमृतवाणी में स्पष्ट कर दिया कि हे ( हक्का कबीर ) आप सत कबीर ( कुन करतार ) शब्द शक्ति से रचना करने वाले शब्द स्वरुपि प्रभु अर्थात् सर्व सृष्टि के रचनहार हो आप ही बेएब निर्विकार ( परवर्दिगार ) सर्व के पालन करता दयालु प्रभु हो मैं आपके दासों का भी दास हूँ ।


श्री गुरु ग्रंथ साहेब पृष्ठ नं 24 राग सीरी महला 1 )
तेरा एक नाम तारे संसार मैं एहा आस ऐहो आधार । 
नानक नीच कहै बिचार धाणक रुप रहा करतार ।।

उपरोक्त अमृतवाणी में प्रमाण किया है कि जो काशी में धाणक ( जुलाहा ) है यही करतार कुल का सृजनहार है । अति आधीन होकर श्री नानक देव जी कह रहे हैं कि मै सत कह रहा हूँ के यह धाणक अर्थात् कबीर जुलाहा ही पूर्ण ब्रम्हा ( सतपुरुष) है 

विशेष:----- उपरोक्त प्रमाणों के सांकेतिक ज्ञान से प्रमाणित हुआ कि सृष्टि रचना कैसे हुई ? अब पूर्ण परमात्मा की प्राप्ती करनी चाहिए। और यह पूर्ण संत से नाम लेकर ही संभव है 

बोलो सतगुरू देव की 
जय

सत साहेब जी

आज के समय में जिस तरह ज्ञान का बोलबाला है हर तरफ ज्ञान ही ज्ञान संत महंत गुरु और साधु हर कोई ज्ञानी है हजारों की नहीं बल्कि लाखों कि संख्या में लोगों ने नाम दान ले रखा है कोई गुरु का चेला है तो कोई कृष्ण का भक्त कोई साधू के पास जाता है तो कोई माता का भक्त हर कोई कहीं न कहीं किसी न किसी से जुड़ा हुआ है और हर कोई अपने गुरु अपने भगवान अपनी देवी या अपने साधु महाराज को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं कोई अगर इनके गुरु अथवा भगवान को कुछ बोल दे तो ये भक्त लोग मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं ।

इतना ज्ञान और ज्ञानी लोग इस दुनिया में मौजूद हैं फिर भी कहीं न कहीं अनर्थ हो जाता है कहीं बाढ़ आ जाती है कहीं सुखा पड़ जाता है कहीं भ्रष्टाचार होता है तो कहीं बलात्कार हो जाता हैं एक सोचने वाली बात है कि जब इतना ज्ञान और ज्ञानी ध्यानी लोग इस दुनिया में हैं तो ऐसा क्यों हो रहा है कोई भक्त माता के दर्शन के लिए घर से अछा भला गया और रास्ते में एकसीडेंट हुआ और भगवान को प्यारा हो गया ऐसा क्यों हुआ ऐसा नहीं होना चाहिए था कयोंकि वो तो माता जी के दर्शन करने जा रहा था ।

क्या आप जानते हैं की ऐसा क्यों होता है कयोंकि हमारी साधना गलत है और हम गलत गुरुओं और पंडो के चक्कर में पड़े हुए हैं दोस्तो आज कोई भी लुच्चा लफंगा चोर ऊचका या कोई अधुरा गुरु चार श्लोक याद करके नाम दान देना शुरू कर देता है । धिरे धिरे पब्लिक बढती जाती है और लोगों को लगने लगता है कि ये संत या साधु सच में ही महान है और हमारे हिंदू भाई भेड़ चाल चलने में माहिर हैं बस किसी ने चार बातें सुना दी तो हो लिए उसके पिछे बिना सोचे समझे बस लगे माथा और नाक रगड़ने पाखंडी संत और महंत देख लेते हैं की मुर्गा नया है फसा लो अब उसे नाम दान दिया जाता है और कसमे भी खिलाई जाती हैं ।

पहली कसम :- किसी धर्म अथवा किसी गुरु कि लिखी किताब नहीं पढनी है
दुसरी कसम :-- हमारे सिवा किसी का सतसंग नहीं सुनना है 


और भी बहुत सी कसमे खिलाते हैं पर ये दो कसमें अति महत्वपूर्ण है । और ये भी कहते हैं की अगर तुमने दुसरे गुरु की किताब पढ़ी या सतसंग सुना तो सिधे नरक में जाओगे 

आजकल ऐसे ऐसे गुरु पैदा हो गए हैं जिनका खुद का मोह लोभ और अंहकार खत्म नहीं हुआ और दुसरों को उपदेश कर रहे है चार चार नाम रखकर भीड़ इकट्ठी कर रखी है 


ताजा उदाहरण आपके सामने है पहले तो महाशय प्रवचन ही करते थे पर अब अपने भक्तों के लिए फिल्में भी बनाने लगे फुल टाइम पास । 


एक और गुरुजी की कहानी सुनीए कहते हैं कि हमसे नाम दान ले लो खाओ पिओ चाहे जो मर्जी पर हमारा नाम लेते रहो फुल ऐश मांस खाओ शराब पिओ परनारी भोगो जो जी मे आए करो पर हमारा नाम लेते रहो इससे तुम्हारे पाप कर्म कटते रहेंगे और मंत्र क्या दे रखा है दुनिया तो आज तक वाहेगुरू वाहेगुरू का जाप जपति थी लेकिन इस पाखंडी ने इस वाहेगुरू को उल्टा करके संगत को ( गुरुवाहे ) जपने का आदेश दे दिया बताओ अब कौन है पाखंडी ।

Wednesday, June 1, 2016

गुरु ग्रन्थ साहिब

गुरु ग्रन्थ साहिब के राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29शब्द - 

एक सुआन दुई सुआनी नाल, भलके भौंकही सदा बिआल
कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार।।1।।
मै पति की पंदि न करनी की कार। उह बिगड़ै रूप रहा बिकराल।।
तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहो आस एहो आधार।
मुख निंदा आखा दिन रात, पर घर जोही नीच मनाति।।
काम क्रोध तन वसह चंडाल, धाणक रूप रहा करतार।।2।।

फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।
खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।3।।
मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर।
नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।4।।

इसमें स्पष्ट लिखा है कि एक(मन रूपी) कुत्ता तथा इसके साथ दो (आशा-तृष्णा रूपी) कुतिया अनावश्यक भौंकती(उमंग उठती) रहती हैं तथा सदा नई-नई आशाएँ उत्पन्न(ब्याती हैं) होती हैं। इनको मारने का तरीका(जो सत्यनाम तथा तत्व ज्ञानबिना) झुठा(कुड़) साधन(मुठ मुरदार) था। मुझे धाणक के रूप में हक्का कबीर (सत कबीर) परमात्मा मिला। उन्होनें मुझे वास्तविक उपासना बताई।नानक जी ने कहा कि उस परमेश्वर(कबीर साहेब) की साधना बिना न तो पति(साख) रहनी थी और न ही कोई अच्छी करनी(भक्ति की कमाई) बन रही थी। जिससे काल का भयंकर रूप जो अब महसूस हुआ है उससे केवल कबीर साहेब तेरा एक(सत्यनाम) नाम पूर्ण संसार कोपार(काल लोक से निकाल सकता है) कर सकता है। मुझे(नानक जी कहते हैं) भी एही एक तेरे नाम की आश है व यही नाम मेरा आधार है। पहले अनजाने में बहुत निंदा भी की होगी क्योंकि काम क्रोध इस तन में चंडाल रहते हैं।मुझे धाणक(जुलाहे का कार्य करने वाले कबीर साहेब) रूपी भगवान ने आकर सतमार्ग बताया तथा काल से छुटवाया। जिसकी सुरति(स्वरूप) बहुत प्यारी है मन को फंसाने वाली अर्थात् मन मोहिनी है तथा सुन्दर वेश-भूषा में(जिन्दा रूप में) मुझे मिलेउसको कोई नहीं पहचान सकता। जिसने काल को भी ठग लिया अर्थात् दिखाई देता है धाणक(जुलाहा) फिर बन गया जिन्दा। काल भगवान भी भ्रम में पड़ गया भगवान(पूर्णब्रह्म) नहीं हो सकता। इसी प्रकार परमेश्वर कबीर साहेब अपना वास्तविक अस्तित्व छुपा कर एक सेवक बन कर आते हैं। काल या आम व्यक्ति पहचान नहीं सकता। इसलिए नानक जी ने उसे प्यार में ठगवाड़ा कहा है और साथ में कहा है किवह धाणक(जुलाहा कबीर) बहुत समझदार है। दिखाई देता है कुछ परन्तु है बहुत महिमा(बहुता भार) वाला जो धाणक जुलाहा रूप मंे स्वयं परमात्मा पूर्ण ब्रह्म(सतपुरुष) आया है। प्रत्येक जीव को आधीनी समझाने के लिए अपनी भूल को स्वीकार करते हुए कि मैंने(नानक जी ने) पूर्णब्रह्म के साथ बहस(वाद-विवाद) की तथा उन्होनें (कबीर साहेब ने) अपने आपको भी (एक लीला करके) सेवक रूप में दर्शनदे कर तथा(नानक जी को) मुझको स्वामी नाम से सम्बोधित किया। इसलिए उनकी महानता तथा अपनी नादानी का पश्चाताप करते हुए श्री नानक जी ने कहा कि मैं(नानक जी) कुछ करने कराने योग्य नहीं था। फिर भी अपनी साधना को उत्तम मान कर भगवान से सम्मुख हुआ(ज्ञान संवाद किया)। मेरे जैसा नीच दुष्ट, हरामखोर कौन हो सकता है जोअपने मालिक पूर्ण परमात्मा धाणक रूप(जुलाहा रूप में आए करतार कबीर साहेब) को नहीं पहचान पाया? श्री नानक जी कहते हैं कि यह सब मैं पूर्ण सोच समझ से कह रहाहूँ कि परमात्मा यही धाणक (जुलाहा कबीर) रूप में है।

भावार्थ:- श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि यह फासने वाली अर्थात् मनमोहिनी शक्ल सूरत में तथा जिस देश में जाता है वैसा ही वेश बना लेता है, जैसे जिंदा महात्मा रूप में बेई नदी पर मिले, सतलोक में पूर्ण परमात्मा वाले वेश में तथा यहाँ उतर प्रदेश में धाणक(जुलाहे) रूप में स्वयं करतार (पूर्ण प्रभु) विराजमानहै। आपसी वार्ता के दौरान हुई नोक-झोंक को याद करके क्षमा याचना करते हुए अधिक भाव से कह रहे हैं कि मैं अ byपने सत्भाव से कह रहा हूँ कि यही धाणक(जुलाहे) रूप में सत्पुरुष अर्थात् अकाल मूर्त ही है।