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Tuesday, February 23, 2016

संगति से सुख उपजे,

संगति से सुख उपजे,
कुसंगती से दुख जोय।
कहे कबीर तंहा जाईये,
साधु संग जँहा होये।
कबीर संगत साध की,
हरै और की व्याधि।
संगत बुरी असाध की,
आठो पहर उपाधि।
कबीर संगत साध की,
जौ की भुसी खाय।
खीर खांड भोजन मिले,
साकट संग ना जाय।
कबीर संगत साध की,
निसफल कभी ना होय।
होसी चंदन बासना,
नाम न कहसी कोय।
जय बंदी छोड़ की, सतगुरू रामपाल जी महाराज की जय हो

चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥
अर्थात- जिसकी इच्छा खत्म हो गई हो और मन में किसी प्रकार की चिंता बाकी न रही हो. वह किसी राजा से कम नहीं है.
सारांश : बेकार की इच्छाओं का त्याग करके हीं आप निश्चिन्त रह सकते हैं.

Monday, December 28, 2015

संगत मे कुसंगत उपजै जैसे बन मे बांस ।



संगत मे कुसंगत उपजै जैसे बन मे बांस ।आपा घिस घिस आग लगा दे कर दे वन खंड का नास।।
मूर्ख को समझावते ज्ञान गांठ का जाय।कोयला होय न ऊजला चाहे सौ मन साबुन लाय।। आवत गाली एक है उल्टा होय अनेक ।कह कबीर नही उलटिए रहे एक की एक।। हरिजन तो हारा भला जीतन दे संसार।हारा तो हरि से मिले जीता यम की लार ।। गाली ही से ऊपजै कलह कष्ट और मीच । हार चलै सो साधू है लाग मरै सो नीच।। मूर्ख का मुख बिम्ब है निकसत बचन भुजंग।ताकी औषध मौन है विष नही व्याप्त अंग।। जेता घट तेता मता घट घट और स्वभाव। जा घट हार न जीत है ता घट ब्रह्म समाव।। कथा करौ करतार की सुनो कथा करतार ।आन कथा सुनिऐ नही कहैं कबीर विचार।। संत न छोड़े सन्तता चाहै कोटिक मिलौ असन्त।चंदन भुवंगा बैठिया तंऊ शीतलता न तजन्त।। जो तोकू कांटा बबै ताहि बोउ तू फूल। तेरे फूल के फूल है वाको है त्रिशूल।। निन्दक एको न मिले पापी मिले हजार ।एक निन्दक के शीश पर लाख पाप का भार।। मानव जन्म दुर्लभ है मिलै न बारम्बार।तरुवर से पत्ता टूट गिरै बहुरि न लगता डार।। मानुष जन्म पाय कर नाहि रटै हरि नाम ।जैसे कुआ जल विना खुदवाया किस काम।। जुल्म किये तीनो गये धन धर्म और वंस।ना मानो तो देख लो रावण कौरव कंस।। बन्दीछोड़ ने आगाह किया है और कहा भी है : -
मै ही हिरणाकशप मारिया मै ही मारा कंस ।जो मेरे साध को सतावे उसका खो दू वंस।।
सत साहेब जी

भगत आत्माऐँ ध्यान देँ सदगुरु देँव जी बतातेँ है



भगत आत्माऐँ ध्यान देँ

सदगुरु देँव जी बतातेँ है

कि जब हम से गलती के कारण नाम खँण्ड हो जाता है फिर और भी गलतीयाँ कर बैठते है कि नाम तो खँण्ड हो गया है ।
मालिक बताते है गलती पर गलती करना ऐसा है जैसे कनैकसन कट (नामखँड)होने के बाद जो गलती करते है वो फिँटिग को यानी वायरिँग को उखाड़ने के समान है ।
मालिक कहते है भगति बीज को सिर धड़ की बाजी लगाकर सफल बनाना है
भगति चाहे अब कर लो या फिर असंख युगोँ बाद जब कभी मानुष जन्म और सत भगति मिले तब करना बात बनेगी अडिग होकर भक्ति करनेँ से ।


मालिक कहते है
कबीर जैसे माता गर्ब को
रखाखै यत्न बनायेँ ।
ठैस लगे छिन्न हो ,
तेरी ऐसे भग्ति जाये ।

मालिक कहते है गुरु शिष्य का नाता ऐसे होता है

कबीर ,ये धागा प्रेम का मत तोड़े चटकाये ।
टुटै सै ना जुड़े ,
जुड़े तो गाँठ पड़ जाये ।
बार बार नाम खँड़ होने से परमात्मा से लाभ मिलना बन्द हो जाता है ।
कबीर,हरि जै रुठ जा तो गुरु की शारण मेँ जाए , जै गुरु रुठ जा तो हरि ना होत सहाय ।
कबीर , द्वार धन्नी के पड़ा रहे , धक्केँ धन्नी के खाय ।
लाख बार काल झकझोँर ही,द्वार छोड़ कर ना जाय ।