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Friday, April 21, 2017

सृष्टी की रचना

सृष्टी की रचना
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प्रभु प्रेमी आत्माएँ प्रथम बार निम्न सृष्टी की रचना को पढेगे तो ऐसे लगेगा जैसे दन्त कथा हो, पbरन्तु सर्व पवित्र सद्ग्रन्थों के प्रमाणों को पढ़कर दाँतों तले ऊँगली दबाएँगे कि यह वास्तविक अमृत ज्ञान कहाँ छुपा था? कृप्या धैर्य के साथ पढ़ते रहिए तथा इस अमृत ज्ञान को सुरक्षित रखिए। आप की एक सौ एक पीढ़ी तक काम आएगा। 

पवित्रात्माएँ कृप्या सत्यनारायण(अविनाशी प्रभु/सतपुरुष) द्वारा रची सृष्टी रचना का वास्तविक ज्ञान पढ़े।

1. पूर्ण ब्रह्म :- इस सृष्टी रचना में सतपुरुष-सतलोक का स्वामी (प्रभु), अलख पुरुष अलख लोक का स्वामी (प्रभु), अगम पुरुष-अगम लोक का स्वामी (प्रभु) तथा अनामी पुरुष- अनामी अकह लोक का स्वामी (प्रभु) तो एक ही पूर्ण ब्रह्म है, जो वास्तव में अविनाशी प्रभु है जो भिन्न-२ रूप धारणकरके अपने चारों लोकों में रहता
है। जिसके अन्तर्गत असंख्य ब्रह्माण्ड आते हैं।


2. परब्रह्म :- यह केवल सात संख ब्रह्माण्ड का स्वामी (प्रभु) है। यह अक्षर पुरुष भी कहलाता है। परन्तु यह तथा इसके ब्रह्माण्ड भी वास्तव में अविनाशी नहीं है।

3. ब्रह्म :- यह केवल इक्कीस ब्रह्माण्ड का स्वामी (प्रभु) है। इसे क्षर पुरुष,ज्योति निरंजन, काल आदि उपमा से जाना जाता है। यह तथा इसके सर्व ब्रह्माण्ड नाशवान हैं।

(उपरोक्त तीनों पुरूषों (प्रभुओं) का प्रमाण पवित्र श्री मद्भगवत गीता अध्याय
15 श्लोक 16-17 में भी है।)

4. ब्रह्मा:- ब्रह्म का ज्येष्ठ पुत्र है, विष्णु मध्य वाला पुत्र है तथा शिव ब्रह्म का अंतिम तीसरा पुत्र है। ये तीनों ब्रह्म के पुत्र केवल एक ब्रह्माण्ड में एक विभाग (गुण) के स्वामी (प्रभु) हैं तथा नाशवान हैं। विस्तृत विवरण के लिए कृप्या पढ़े निम्न लिखित सृष्टी रचना-


{कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने सुक्ष्म वेद अर्थात कबीर वाणी में अपने द्वारा रची सृष्टी का ज्ञान स्वयं ही बताया है जो निम्नलिखित है}

सर्व प्रथम केवल एक स्थान अनामी (अनामय) लोक' था। जिसे अकह लोक भी कहा जाता है, पूर्ण परमात्मा उस अनामी लोक में अकेला रहता था। उस परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है। सभी आत्माएँ उस पूर्ण धनी के शरीर में समाई हुई थी। इसी कविर्देव का उपमात्मक (पदवी का) नाम अनामी पुरुष है (पुरुष का अर्थ प्रभु होता है। प्रभु ने मनुष्य को अपने ही स्वरूप में बनाया है, इसलिए मानव का नाम भी पुरुष ही पड़ा है।) अनामी पुरूष के एक रोम कूप का प्रकाश संख सूर्यों की रोशनी से भी अधिक है।

विशेष :- जैसे किसी देश के आदरणीय प्रधान मंत्री जी का शरीर का नाम तोअन्य होता है तथा पद का उपमात्मक (पदवी का) नाम प्रधानमंत्री होता है। कई बार प्रधानमंत्री जी अपने पास कई विभाग भी रख लेते हैं। तब जिस भी विभाग के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करते हैं तो उस समय उसी पद को लिखते हैं। जैसे गृह मंत्रालय के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करेगेंतो अपने को गृह मंत्री लिखेगें। वहाँ उसी व्यक्ति के हस्ताक्षर की शक्ति कम होती है। इसी प्रकार कबीर परमेश्वर (कविर्देव) की रोशनी में अंतर भिन्न-२ लोकों में होता जाता है।

ठीक इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने नीचे के तीन और लोकों (अगमलोक, अलख लोक, सतलोक) की रचना शब्द(वचन) से की।

यही पूर्णब्रह्म परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ही अगम लोक में प्रकट हुआ तथा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) अगम लोक का भी स्वामी है तथा वहाँ इनका उपमात्मक (पदवी का) नाम अगम पुरुष अर्थात् अगम प्रभु है। इसी अगम प्रभु का मानव सदृश शरीर बहुत तेजोमय है जिसके एक रोम कूप की रोशनी खरब सूर्य की रोशनी से
भी अधिक है।

यह पूर्ण कविर्देव (कबिर देव=कबीर परमेश्वर) अलख लोक में प्रकट परमात्मा हुआ तथा स्वयं ही अलख लोक का भी स्वामी है तथा उपमात्मक (पदवी का) नाम अलख पुरुष भी इसी परमेश्वर का है तथा इस पूर्ण प्रभु का मानव सदृश शरीर तेजोमय (स्वज्योंति) स्वयं प्रकाशित है। एक रोम कूप की रोशनी अरब सूर्यों के प्रकाश से भी ज्यादा है। यही पूर्ण प्रभु सतलोक में प्रकट हुआ तथा सतलोक का भी अधिपति यही है। इसलिए इसी का उपमात्मक (पदवी का) नाम सतपुरुष (अविनाशी प्रभु)है। इसी परमेश्वरका नाम अकालमूर्ति - शब्द स्वरूपी राम - पूर्ण ब्रहम - परम अक्षर ब्रहम आदि हैं।  इसी सतपुरुष कविर्देव (कबीर प्रभु) का मानव सदृश शरीर तेजोमय है। जिसके एक रोमकूप का प्रकाश करोड़ सूयों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के प्रकाश से भी अधिक है।

इस कविर्देव (कबीर प्रभु) ने सतपुरुष रूप में प्रकट होकर सतलोक में विराजमान होकर प्रथम सतलोक में अन्य रचना की। एक शब्द (वचन) से सोलह द्वीपों की रचना की। फिर सोलह शब्दों से सोलह पुत्रों की उत्पत्ति की। एक मानसरोवर की रचना की जिसमें अमृत भरा। 

सोलह पुत्रों के नाम हैं :-
(1) “कूर्म',
(2)'ज्ञानी', 
(3) 'विवेक', 
(4) 'तेज', 
(5) “सहज
(6) “सन्तोष', 
(7)'सुरति”, 
(8) “आनन्द', 
(9) 'क्षमा', 
(10) “निष्काम
(11) ‘जलरंगी' 
(12)“अचिन्त', 
(13) 'प्रेम', 
(14) “दयाल', 
(15) 'धैर्य' 
(16) योग संतायन' अथति ''योगजीत

सतपुरुष कविर्देव ने अपने पुत्र अचिन्त को सतलोक की अन्य रचना का भार सौंपा तथा शक्ति प्रदान की। अचिन्त ने अक्षर पुरुष (परब्रह्म) की शब्द से उत्पत्ति की तथा कहा कि मेरी मदद करना। अक्षर पुरुष स्नान करने मानसरोवर पर गया वहाँ आनन्द आया तथा सो गया।  लम्बे समय तक बाहर नहीं आया। तब अचिन्त की प्रार्थना पर अक्षर पुरुष को नींद से जगाने के लिए कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने उसी मानसरोवर से कुछ अमृत जल लेकर एक अण्डा बनाया तथा उस अण्डे में एक आत्मा प्रवेश की तथा अण्डे को मानसरोवर के अमृत जल में छोड़ा। अण्डे की गड़गड़ाहट से अक्षर पुरुष की निंद्रा भंग हुई। उसने अण्डे को क्रोध से देखा जिस कारण से अण्डे के दो भाग हो गए। उसमें से ज्योति निंरजन (क्षर पुरुष) निकला जो आगे चलकर ‘काल’ कहलाया। इसका वास्तविक नाम 'कैल' है।

तब सतपुरुष (कविर्देव) ने आकाशवाणी की कि आप दोनों बाहर आओ तथा अचिंत के द्वीप में रहो। आज्ञा पाकर अक्षर पुरुष तथा क्षर पुरुष (कैल) दोनों अचिंत के द्वीप में रहने लगे (बच्चों की नालायकी उन्हीं को दिखाई कि कहीं फिर प्रभुता की तड़प न बन जाए, क्योंकि समर्थ बिन कार्य सफल नहीं होता) फिर पूर्ण धनी कविर्देव नेसर्व रचना स्वयं की। अपनी शब्द शक्ति से एक राजेश्वरी (राष्ट्री) शक्ति उत्पन्न की, जिससे सर्व ब्रह्माण्डों को स्थापित किया। इसी को पराशक्ति परानन्दनी भी कहते हैं। पूर्ण ब्रह्म ने सर्व आत्माओं को अपने ही अन्दर से अपनी वचन शक्ति से अपने मानव शरीर सदृश उत्पन्न किया। प्रत्येक हंस आत्मा का परमात्मा जैसा ही शरीर रचा जिसका तेज 16 (सोलह) सूर्या जैसा मानव सदृश ही है। परन्तु परमेश्वर के शरीर के एक रोम कूप का प्रकाश करोड़ों सूयों से भी ज्यादा है। बहुत समयउपरान्त क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) ने सोचा कि हम तीनों (अचिन्त - अक्षर पुरुष और क्षर पुरुष) एक द्वीप में रह रहे हैं तथा अन्य एक-एक द्वीप में रह रहे हैं। मैं भी साधना करके अलग द्वीप प्राप्त करूंगा। उसने ऐसा विचार करके एक पैर पर खड़ाहोकर सत्तर (70) युग तक तप किया।

आत्माएँ काल के जाल में कैसे फंसी 
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विशेष :- जब ब्रह्म (ज्योति निरंजन) तप कर रहा था हम सभी आत्माएँ, जो आज ज्योति निरंजन के इक्कीस ब्रह्माण्डों में रहते हैं इसकी साधना पर आसक्त होगए तथा अन्तरात्मा से इसे चाहने लगे। अपने सुखदाई प्रभु सत्य पुरूष से विमुख हो गए। जिस कारण से पतिव्रता पद से गिर गए।

पूर्ण प्रभु के बार-बार सावधान करने पर भी हमारी आसक्ति क्षर पुरुष से नहीं हटी।{यही प्रभाव आज भी इस काल की स्रष्टी में विद्यमान है। जैसे नौजवान बच्चे फिल्म स्टारों(अभिनेताओं तथा अभिनेत्रियों) की बनावटी अदाओं तथा अपने रोजगार उद्देश्य से कर रहे भूमिका पर अति आसक्त हो जाते हैं, रोकने से नहीं रूकते। यदि कोई अभिनेता या अभिनेत्री निकटवर्ती शहर में आ जाए तो देखें उन नादान बच्चों की भीड़ केवल दर्शन करने के लिए बहुत संख्या में एकत्रित हो जाती हैं। 'लेना एक न देने दो' रोजी रोटी अभिनेता कमा रहे हैं, नौजवान बच्चे लुट रहे हैं। माता-पिता कितना ही समझाएँ किन्तु बच्चे नहीं मानते। कहीं न कहीं कभी न कभी, लुक-छिप कर जाते ही रहते हैं।}



एक पैर पर खड़ाहोकर सत्तर (70) युग तक तप किया। पूर्ण ब्रह्मा कविर्देव (कबीर प्रभु) ने क्षर पुरुष से पूछा कि बोलो क्या चाहते हो? उसने कहा कि पिता जी यह स्थान मेरे लिए कम है, मुझे अलग से द्वीप प्रदानकरने की कृपा करें। हक्का कबीर (सत्तू कबीर) ने उसे 21 (इक्कीस) ब्रह्मण्ड प्रदानकर दिए। 

कुछ समय उपरान्त ज्योति निरंजन ने सोचा इस में कुछ रचना करनी चाहिए। खाली ब्रह्मण्ड(प्लाट) किस काम के। यह विचार कर 70 युग तप करके पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर प्रभु) से रचना सामग्री की याचना की। सतपुरुष ने उसे तीन गुण तथा पाँच तत्व प्रदान कर दिए, जिससे ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने अपने ब्रह्माण्डों में कुछ रचना की। फिर सोचा कि इसमें जीव भी होने चाहिए, अकेले का दिल नहीं लगता। यह विचार करके 64 (चौसठ) युग तक फिर तप किया। पूर्ण परमात्मा कविरदेव के पूछने पर बताया कि मुझे कुछ आत्मा दे दो, मेरा अकेले का दिल नहीं लग रहा। तब सतपुरुष कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) ने कहा कि ब्रहम तेरे तप के प्रतिफल में मैं तुझे और ब्रह्मण्ड दे सकता हूँ, परन्तु मेरी आत्माओं को किसी भी जप-तप साधना के फल रूप में नहीं दे सकता। हाँ, यदि कोई स्वेच्छा से तेरे साथ जाना चाहे तो वह जा सकता है। 

युवा कवि (समर्थ कबीर) के वचनसुन कर ज्योति निरंजन हमारे पास आया। हम सभी हंस आत्मा पहले से ही उसपर आसक्त थे। हम उसे चारों तरफ से घेर कर खड़े हो गए। ज्योति निंरजन ने कहा कि मैंने पिता जी से अलग 21 ब्रह्मण्ड प्राप्त किए हैं। वहाँ नाना प्रकार के रमणीय स्थल बनाए हैं। क्या आप मेरे साथ चलोगे? हम सभी हंसों ने जो आज21 ब्रह्यण्डों में परेशान हैं, कहा कि हम तैयार हैं। यदि पिता जी आज्ञा दें तब क्षरपुरुष पूर्ण ब्रह्म महान् कविर (समर्थ कबीर प्रभु) के पास गया तथा सर्व वात कही।

तब कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) ने कहा कि मेरे सामने स्वीकृति देने वाले को आज्ञा दूंगा। क्षर पुरुष तथा परम अक्षर पुरुष (कविरमितौजा) दोनों हम सभी हंसात्माओं के पास आए। सत् कविर्देव ने कहा कि जो हंस आत्मा ब्रह्म के साथ जाना चाहता है हाथ ऊपर करके स्वीकृति दे। अपने पिता के सामने किसी की हिम्मत नहीं हुई।किसी ने स्वीकृति नहीं दि  बहुत समय तक सन्नाटा छाया रहा। तत्पश्चात् एक हंस आत्मा ने साहस किया तथा कहा कि पिता जी मैं जाना चाहता हूँ। फिर तो उसकी देखा-देखी (जो आज काल (ब्रह्म) के इक्कीस ब्रह्मण्डों में फंसी हैं) हम सभी आत्माओं ने स्वीकति दे दी।

परमेश्वर कबीर जी ने ज्योति निरंजन से कहा कि आप अपने स्थान पर जाओ। जिन्होंने तेरे साथ जाने की स्वीकृति दी है। मैं उन सर्वहंस आत्माओं को आपके पास भेज दूंगा। ज्योति निरंजन अपने 21 ब्रह्मण्डों में चला गया। उस समय तक यह इक्कीस ब्रह्माण्ड सतलोक में ही थे। पूर्ण ब्रह्म ने सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को लड़की का रूपदिया परन्तु स्त्री इन्द्री नहीं रची तथा सर्व आत्माओं को (जिन्होंने ज्योति निरंजन (ब्रह्म) के साथ जाने की सहमति दी थी) उस लड़की के शरीर में प्रवेश कर दिया तथा उसका नाम आष्ट्रा (आदि माया/ प्रकृति देवी/ दुर्गा) पड़ा तथा सत्य पुरूष ने कहा कि पुत्री मैंने तेरे को शब्द शक्ति प्रदान कर दी है जितने जीव ब्रह्म कहे आप उत्पन्न कर देना। पूर्ण ब्रह्म कविर्देव (कबीर साहेब) अपने पुत्र सहज दास के द्वारा प्रकृति को क्षर पुरुष के पास भिजवा दिया। सहज दास जी ने ज्योति निरंजन को बताया कि पिता जी ने इस बहन के शरीर में उन सर्व आत्माओं को प्रवेश कर दिया है जिन्होंने आपके साथ जाने की सहमति व्यक्त की थी तथा इसको पिता जी ने वचन शक्ति प्रदान की है, आप जितने जीव चाहोगे प्रकति अपने शब्द से उत्पन्न कर देगी। यह कह कर सहजदास वापिस अपने द्वीप में आ गया।

युवा होने के कारण लड़की का रंग-रूप निखरा हुआ था। ब्रह्म के अन्दर विषय-वासना उत्पन्न हो गई तथा प्रक्रति (कालान्तर में दुर्गा देवी इसी का नाम पडा) देवी के साथ अभद्र गति विधि प्रारम्भ की। तब दुर्गा ने कहा कि ज्योति निरंजन मेरे पास पिता जी की प्रदान की हुई शब्द शक्ति है। आप जितने प्राणी कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूंगी। आप मैथुन परम्परा शुरु मत करो। आप भी उसी पिता के शब्द से अण्डे से उत्पन्न हुए हो तथा मैं भी उसी परमपिता के वचन से ही बाद में उत्पन्न हुई हूँ। आप मेरे बड़े भाई हो, बहन-भाई का यह योग महापाप का कारण बनेगा। परन्तु ज्योति निरंजन ने प्रकृति देवी की एक भी प्रार्थना नहीं सुनी तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्री इन्द्री (भग) प्रकृति को लगा दी तथा बलात्कार करने की ठानी। उसी समय दुर्गा ने अपनी इज्जत रक्षा के लिए कोई और चारा न देख सुक्ष्म रूप बनाया तथा ज्योति निरंजन के खुले मुख के द्वारा पेट में प्रवेश करके पूर्णब्रह्म कविरदेव से अपनी रक्षा के लिए याचना की। उसी समय कविर्देव (कवि देव) अपने पुत्र योग संतायन अर्थात् जोगजीत का रूप बनाकर वहाँ प्रकट हुए तथा कन्या को ब्रह्म के उदर से बाहर निकाला तथा कहा कि ज्योति निरंजन आज से तेरा नाम कैल 'काल' होगा। तेरे जन्म-मृत्यु होते रहेंगे। इसीलिए तेरा नाम क्षर पुरुष होगा तथा एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों को प्रतिदिन खाया करेगा व सवा लाख उत्पन्न किया करेगा। आप दोनों को इक्कीस ब्रह्माण्ड सहित निष्कासित किया जाता है। इतना कहते ही इक्कीस ब्रह्माण्ड विमान की तरह चल पड़े। सहज दास के द्वीप के पास से होते हुए सतलोक से सोलह संख कोस (एक कोस लगभग 3 कि. मी. का होता है) की दूरी पर आकर रूक गए।

विशेष विवरण - अब तक तीन शक्तियों का विवरण आया है।

1. पूर्णब्रह्म - जिससे अन्य उपमात्मक नामों से भी जाना जाता है, जैसे सतपुरुष अकालपुरुष, शब्द स्वरूपी राम, परम अक्षर ब्रह्म/पुरुष आदि। यह पूर्णब्रह्म असंख्यब्रह्मण्डों का स्वामी है तथा वास्तव में अविनाशी है।

2. परब्रह्म - जिसे अक्षर पुरुष भी कहा जाता है। यह वास्तव में अविनाशी नहीं है। यह सात शंख ब्रह्माण्डों का स्वामी है।

3. ब्रह्म - जिसे ज्योति निरंजन, काल, कैल, क्षर पुरुष तथा धर्मराय आदि नामों से जाना जाता है, जो केवल इक्कीस ब्रह्माण्ड का स्वामी है।

अब
आगे इसी ब्रह्मा (काल) की सृष्टी के एक ब्रह्माण्ड का परिचय दिया जाएगा, जिसमें तीन और नाम आपके पढ़ने में आयेंगे - ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव।

ब्रह्म तथा ब्रह्मा में भेद - एक ब्रह्माण्ड में बने सर्वोपरि स्थान पर ब्रहम (क्षर पुरुष) स्वयं तीन गुप्त स्थानों की रचना करके ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव रूप में रहता है तथा अपनी पत्नी प्रकृति (दुर्गा) के सहयोग से तीन पुत्रों की उत्पत्ति करता है। उनके नाम भी ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव ही रखता है। 

जो ब्रह्म का पुत्र ब्रह्मा है वह एक ब्रह्माण्ड में केवल तीन लोकों (पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक तथा पाताल लोक) में एक रजोगुण विभाग का मंत्री (स्वामी) है। इसे त्रिलोकीय ब्रह्मा कहा है तथा ब्रह्म जो ब्रह्मलोक में ब्रह्म रूप में रहता है उसे महाब्रह्मा व ब्रह्मलोकीय ब्रह्मा कहा है।  इसी ब्रह्म (काल) को सदाशिव, महाशिव, महाविष्णु भी कहा है.

श्री विष्णु पुराण में प्रमाण :-
                                 चतुर्थ अंश अध्याय 1 पृष्ठ 230-231 पर श्री ब्रह्माजी ने कहा :- जिस अजन्मा, सर्वमय विधाता परमेश्वर का आदि, मध्य, अन्त,स्वरूप, स्वभाव और सार हम नहीं जान पाते (श्लोक 83) जो मेरा रूप धारण कर संसार की रचना करता है, स्थिति के समय जो पुरूष रूप है तथा जो रूद्र रूप से विश्व का ग्रास कर जाता है, अनन्त रूप से सम्पूर्ण जगत् को धारण करता है। (श्लोक 86 )

"श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी व श्री शिव जी की उत्पत्ति ”
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काल (ब्रह्म) ने प्रकृति (दुर्गा) से कहा कि अब मेरा कौन क्या बिगाडेगा? मनमानी करूंगा प्रक्रति ने फिर प्रार्थना की कि आप कुछ तो शर्म करो । प्रथम तो आप मेरे बड़े भाई हो, क्योंकि उसी पूर्ण परमात्मा (कविर्देव) की वचन शक्ति से आप की (ब्रह्मकी) अण्डे से उत्पत्ति हुई तथा बाद में मेरी उत्पत्ति उसी परमेश्वर के वचन से हुई है। दूसरे मैं आपके पेट से बाहर निकली हूँ, मैं आपकी बेटी हुई तथा आप मेरे पिता हुए। इन पवित्र नातों में बिगाड़ करना महापाप होगा। मेरे पास पिता की प्रदान की हुई शब्द शक्ति है, जितने प्राणी आप कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूंगी। 

ज्योति निरंजन ने दुर्गा की एक भी विनय नहीं सुनी तथा कहा कि मुझे जो सजा मिलनी थी मिल गई, मुझे सतलोक से निष्कासित कर दिया। अब मनमानी करूंगा। यह कह कर काल पुरूष (क्षर पुरूष) ने प्रकृति के साथ जबरदस्ती शादी की तथा तीन पुत्रों (रजगुण युक्त - ब्रह्मा जी, सतगुण युक्त - विष्णु जी तथा तमगुण युक्त - शिव शंकर जी) की उत्पत्ति की . जवान होने तक तीनों पुत्रों को दुर्गा के द्वारा अचेत करवा देता है, फिर युवा होने पर श्री ब्रह्मा जी को कमल के फूल पर, श्री विष्णु जी को शेष नाग की शैय्या पर तथा श्री शिव जी को कैलाश पर्वत पर सचेत करके इक्ट्ठे कर देता है। तत्पश्चात् प्रकृति (दुर्गा) द्वारा इन तीनों का विवाह कर दिया जाता है तथा एक ब्रह्माण्ड में तीन लोकों (स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक तथा पाताल लोक) में एक-एक विभाग के मंत्री (प्रभु) नियुक्त कर देता है।

जैसे श्री ब्रह्मा जी को रजोगुण विभाग का तथा विष्णु जी को सत्तोगुण विभागका तथा श्री शिव शंकर जी को तमोगुण विभाग का तथा स्वयं गुप्त (महाब्रह्मा - महाविष्णु - महाशिव) रूप से मुख्य मंत्री पद को संभालता है। 

एक ब्रह्माण्ड में एक ब्रह्मलोक की रचना की है। उसी में तीन गुप्त स्थान बनाए हैं। एक रजोगुण प्रधान स्थान है जहाँ पर यह ब्रह्म (काल) स्वयं महाब्रह्मा (मुख्यमंत्री) रूप में रहता है तथा अपनी पत्नी दुर्गा को महासावित्री रूप में रखता है। इन दोनों के संयोग से जो पुत्र इस स्थान पर उत्पन्न होता है वह स्वत: ही रजोगुणी बन जाता है। दूसरा स्थान सतोगुण प्रधान स्थान बनाया है। वहाँ पर यह क्षर पुरुष स्वयं महाविष्णु रूप बना कर रहता है तथा अपनी पत्नी दुर्गा को महालक्ष्मी रूप में रख कर जो पुत्र उत्पन्न करता है उसका नाम विष्णु रखता है, वह बालक सतोगुण युक्त होता है तथा तीसरा इसी काल ने वहीं पर एक तमोगुण प्रधान क्षेत्र बनाया है। उसमें यह स्वयं सदाशिव रूप बनाकर रहता है तथा अपनी पत्नी दुर्गा को महापार्वती रूप में रखता है। इन दोनों के पति-पत्नी व्यवहार से जो पुत्र उत्पन्न होता है उसका नाम शिव रख देते हैं तथा तमोगुण युक्त कर देते हैं।

(प्रमाण के लिए देखें पवित्र श्री शिव महापुराण, विद्यवेश्वर संहिता पृष्ठ 24-26 जिस में ब्रहमा, विष्णु, रूद्र तथा महेश्वरसे अन्य सदाशिव है तथा रूद्र संहिता अध्याय 6 तथा 7, 9 पृष्ठ नं. 100 से, 105 तथा 110 पर अनुवाद कर्ता श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार, गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित तथा पवित्र श्रीमद्देवीमहापुराण तीसरा स्कद पृष्ठ नं. 14 से 123 तक,गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित, जिसके अनुवाद कर्ता हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार चिमन लाल गोस्वामी)

फिर इन्हीं को धोखे में रख कर अपने खाने के लिए जीवों की उत्पत्ति श्री ब्रहमा जी द्वारा तथा स्थिति (एक-दूसरे को मोह-ममता में रख कर काल जाल में रखना) श्री विष्णु जी से तथा संहार (क्योंकि काल पुरुष को शापवश एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सूक्ष्म शरीर से मैल निकाल कर खानाहोता है उसके लिए इक्कीसवें ब्रह्माण्ड में एक तप्तशिला है जो स्वत: गर्मी रहती है, उस पर गर्म करके मैल पिंघला कर खाता है, जीव मरते नहीं परन्तु कष्ट असहनीय होता है, फिर प्राणियों को कर्म आधार पर अन्य शरीर प्रदान करता है) श्री शिवजी द्वारा करवाता है।

जैसे किसी मकान में तीन कमरे बने हों। एक कमरे में अश्लील चित्र लगे हों। उस कमरे में जाते ही मन में वैसे ही मलिन विचार उत्पन्न हो जाते हैं। दूसरे कमरे में साधु-सन्तों, भक्तों के चित्र लगे हों तो मन में अच्छे विचार, प्रभु का चिन्तन ही बना रहता है। तीसरे कमरे में देश भक्तों व शहीदों के चित्र लगे हों तो मन में वैरसे ही जोशीले विचार उत्पन्न हो जाते हैं। ठीक इसी प्रकार ब्रह्म (काल) ने अपनी सूझ-बूझ से उपरोक्त तीनों गुण प्रधान स्थानों की रचना की हुई है।

*ब्रह्म (काल) की अव्यक्त रहने की प्रतिज्ञा*
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*सुक्ष्म वेद से शेष सृष्टि रचना* -------

तीनों पुत्रों की उत्पत्ति के पश्चात् ब्रह्म ने अपनी पत्नी दुर्गा (प्रकृति) से कहा मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि भविष्य में मैं किसी को अपने वास्तविक रूप में दर्शन नहीं दूंगा। जिस कारण से मैं अव्यक्त माना जाऊँगा। दुर्गा से कहा कि आप मेरा भेद किसी को मत देना। मैं गुप्त रहूँगा। दुर्गा ने पूछा कि क्या आप अपने पुत्रों को भी दर्शन नहीं दोगे ? 
ब्रह्म ने कहा मैं अपने पुत्रों को तथा अन्य को किसी भी साधना से दर्शन नहीं दूंगा, यह मेरा अटल नियम रहेगा। दुर्गा ने कहा यह तो आपका उत्तम नियम नहीं है जो आप अपनी संतान से भी छुपे रहोगे। तब काल ने कहा दुर्गा मेरी विवशता है। मुझे एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों का आहार करने का शाप लगा है। यदि मेरे पुत्रों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) को पता लग गया तो ये उत्पत्ति, स्थिति तथा संहार का कार्य नहीं करेंगे। इसलिए यह मेरा अनुत्तम नियम सदा रहेगा। जब ये तीनों कुछ बड़े हो जाएँ तो इन्हें अचेत कर देना। मेरे विषय में नहीं बताना, नहीं तो मैं तुझे भी दण्ड दूंगा, दुर्गा इस डर के मारे वास्तविकता नहीं बताती। इसीलिए गीता अध्याय 7 श्लोक 24 में कहा है कि यह बुद्धिहीन जन समुदाय मेरे अनुत्तम नियम से अपिरिचत हैं कि मैं कभी भी किसी के सामने प्रकट नहीं होता अपनी योग माया से छुपा रहता हूँ। इसलिए मुझ अव्यक्त को मनुष्य रूप में आया हुआ अथर्थात् कृष्ण मानते हैं। (अबुद्धय:) बुद्धि हीन (मम्) मेरे (अनुत्तमम्) अनुत्तम अर्थात् घटिया (अव्ययम्) अविनाशी (परम् भावम्) विशेष भाव को (अजानन्तः) न जानते हुए (माम् अव्यक्तम्) मुझ अव्यक्त को (व्यक्तिम्) मनुष्य रूप में (आपन्नम) आया (मन्यन्ते) मानते हैं अर्थात् मैं कृष्ण नहीं हूँ। (गीता अध्याय 7 श्लोक 24) गीता अध्याय 11 श्लोक 47 तथा 48 में कहा है कि यह मेरा वास्तविक काल रूप है। इसके दर्शन अर्थात् ब्रह्म प्राप्ति न वेदों में वर्णित विधि से, न जप से, न तप से तथा न किसी क्रिया से हो सकती है। जब तीनों बच्चे युवा हो गए तब माता भवानी (प्रकृति, अष्टगी) ने कहा कि तुम सागर मन्थन करो।

प्रथम बार सागर मन्थन किया तो (ज्योति निरंजन ने अपने श्वांसों द्वारा चार वेद उत्पन्न किए। उनको गुप्त वाणी द्वारा आज्ञा दी कि सागर में निवास करो) चारों वेद निकले वह ब्रह्मा ने लिए। वस्तु लेकर तीनों बच्चे माता के पास आए तब माता ने कहा कि चारों वेदों को ब्रह्मा रखे व पढ़े।

नोट :- वास्तव में पूर्णब्रह्मा ने, ब्रहम अर्थात काल को पाँच वेद प्रदान किए थे। लेकिन ब्रह्म ने केवल चार वेदों को प्रकट किया। पाँचवां वेद छुपा दिया। जो पूर्ण परमात्मा ने प्रकट होकर कविगिंभीं:रवय अर्थात् कविर्वाणी (कबीर वाणी) द्वारा लोकोक्तियों व दोहों के माध्यम से प्रकट किया है।

दूसरी बार सागर मन्थन किया तो तीन कन्याएँ मिली। माता ने तीनों को बांट दिया। प्रकृति (दुर्गा) ने अपने ही अन्य तीन रूप (सावित्री, लक्ष्मी तथा पार्वती) धारण किए तथा समुन्द्र में छुपा दी। सागर मन्थन के समय बाहर आ गई। वही प्रकृति तीन रूप हुई तथा भगवान ब्रह्ममा को सावित्री, भगवान विष्णु को लक्ष्मी, भगवान शंकरको पार्वती पत्नी रूप में दी।  तीनों ने भोग विलास किया, सुर तथा असुर दोनों पैदा हुए।{

जब तीसरी बार सागर मन्थन किया तो चौदह रत्न ब्रहमा को तथा अमृत विष्णुको व देवताओं को, मद्य(शराब) असुरों को तथा विष परमार्थ शिव ने अपने कटमें ठहराया। यह तो बहुत बाद की बात है।}

जब ब्रह्मा वेद पढ़ने लगा तो पता चला कि कोई सर्व ब्रह्माण्डों की रचना करने वाला कुल का मालिक पुरूष (प्रभु) और है। ब्रह्मा जी ने विष्णु जी व शंकर जी को बताया कि वेदों में वर्णन है कि सृजनहार कोई और प्रभु है परन्तु वेद कहते हैं कि भेद हम भी नहीं जानते, उसके लिए संकेत है कि किसी तत्वदर्शी संत से पूछो। तब ब्रह्मा माता के पास आया और सब वृतांत कह सुनाया। माता कहा करती थी कि मेरे अतिरिक्त और कोई नहीं है। मैं ही कर्ता हूँ। मैं ही सर्वशक्तिमान हूँ परन्तु ब्रह्मा ने कहा कि वेद ईश्वर कृत हैं यह झूठ नहीं हो सकते। दुर्गा ने कहा कि तेरा पिता तुझे दर्शन नहीं देगा, उसने प्रतिज्ञा की हुई है। तब ब्रह्मा ने कहा माता जी अब आप की बात पर अविश्वास हो गया है। मैं उस पुरूष (प्रभु) का पता लगाकर ही रहूँगा। दुर्गा ने कहा कि यदि वह तुझे दर्शन नहीं देगा तो तुम क्या
करोगे? ब्रह्मा ने कहा कि मैं आपको शक्ल नहीं दिखाऊँगा। दूसरी तरफ ज्योति निरंजन ने कसम खाई है कि मैं अव्यक्त रहूँगा किसी को दर्शन नहीं दूंगा अथर्थात् 21 ब्रह्माण्ड में कभी भी अपने वास्तविक काल रूप में आकार में नहीं आऊँगा।

गीता अध्याय नं. 7 का श्लोक नं. 24
अव्यक्तम्, व्यक्तितम्, आपन्नम्, मन्यन्ते, माम्, अबुद्धय: ।
परम्, भावम्, अजानन्त:, मम, अव्ययम्, अनुत्तमम् | 124 ||
अनुवाद : (अबुद्धय) बुद्धिहीन लोग (मम्) मेरे (अनुतमम्) अश्रेष्ठ (अव्य म्) अटल (परम्) परम (भावम्) भावको (अजानन्तः) न जानते हुए (अव्यक्तम्) अदृश्यमान (माम्) मुझ कालको (व्यक्तितम) आकार में कृष्ण अवतार (आपन्नम्) प्राप्त हुआ (मन्यन्ते) मानते हैं।

गीता अध्याय नं. 7 का शलाक नं. 25
न, अहम्, प्रकाश:, सर्वस्य, यागमायारसमावत: ।
मूढ: अयम्, न, अभिजानाति, लोक:, माम्, अजम्, अव्य म् ||25 ||
अनुवाद : (अहम्) मैं (योगमाया समावृत) योगमायासे छिपा हुआ (सर्वस्य) सबके (प्रकाश) प्रत्यक्ष (न) नहीं होता अर्थात् अदृश्य अर्थात् अव्यक्त रहता हूँ इसलिये (अजम्) जन्म न लेने वाले (अव्य म्) अविनाशी अटल भावको (अयम्) यह (मूढ:) अज्ञानी (लोक) जनसमुदाय संसार (माम्) मुझे (न) नहीं (अभिजानाति) जानता अर्थात् मुझको अवतार रूप में आया समझता है |

क्योंकि ब्रह्म अपनी शब्द शक्ति से अपने नाना रूप बना लेता है, यह दुर्गा का पति है इसलिए इस मंत्र में कह रहा है कि कृष्ण आदि की तरह दुर्गा से जन्म नहीं लेता। *ब्रह्मा का अपने पिता (काल/ब्रह्म) की प्राप्ति के लिए प्रयत्न* तब दुर्गा ने ब्रह्मा जी से कहा कि अलख निंरजन तुम्हारा पिता है परन्तु वह तुम्हें दर्शन नहीं देगा। ब्रह्मा ने कहा कि मैं दर्शन करके ही लौटूगा। माता ने पूछा कि यदि तुझे दर्शन नहीं हुए तो क्या करेगा ? ब्रह्मा ने कहा मैं प्रतिज्ञा करता हूँ। यदि पिता के दर्शन नहीं हुए तो मैं आपके समक्ष नहीं आऊंगा। यह कह कर ब्रह्मा जी व्याकुल होकर उत्तर दिशा की तरफ चल दिया जहाँ अन्धेरा ही अन्धेरा है। वहाँ ब्रह्मा ने चार युग तक ध्यान लगाया परन्तु कुछ भी प्राप्ति नहीं हुई। काल ने आकाशवाणी की कि दुर्गा सृष्टी रचना क्यों नहीं की ? भवानी ने कहा कि आप का ज्येष्ठ पुत्र ब्रह्मा जिद्द करके आप की तलाश में गया है। ब्रह्म (काल) ने कहा उसे वापिस बुला लो। मैं उसे दर्शन नहीं दूंगा। ब्रह्मा के बिना जीव उत्पति का सब कार्य असम्भव है।

तब दुर्गा (प्रकृति) ने अपनी शब्द शक्ति से गायत्री नाम की लड़की उत्पन्न की तथा उसे ब्रह्मा को लौटा लाने को
कहा। गायत्री ब्रह्मा जी के पास गई परंतु ब्रह्मा जी समाधि लगाए हुए थे उन्हें कोई आभास ही नहीं था कि कोई आया है। तब आदि कुमारी (प्रकृति) ने गायत्री को ध्यान द्वारा बताया कि इस के चरण स्पर्श कर। तब गायत्री ने ऐसा ही किया। ब्रह्मा जी का ध्यान भंग हुआ तो क्रोध वश बोले कि कौन पापिन है जिसने मेरा ध्यान भंग किया है।
मैं तुझे शाप दूंगा। गायत्री कहने लगी कि मेरा दोष नहीं है। पहले मेरी बात सुनो तब शाप देना। मेरे को माता ने तुम्हें लौटा लाने को कहा है क्योंकि आपके बिना जीव उत्पत्ति नहीं हो सकती। ब्रह्मा ने कहा कि मैं कैसे जाऊँ? पिता जी के दर्शन हुए नहीं ऐसे जाऊँ तो मेरा उपहास होगा।

यदि आप माता जी के समक्ष यह कह दें कि ब्रह्मा ने पिता (ज्योति निरंजन) के दर्शन हुए हैं, मैंने अपनी आँखो से देखा है तो मैं आपके साथ चलू। तब गायत्री ने कहा कि आप मेरे साथ संभोग (सैक्स) करोगे तो मैं आपकी झूठी साक्षी (गवाही) भरूंगी। तब ब्रह्मा ने सोचा कि पिता के दर्शन हुए नहीं, वैसे जाऊँ तो माता के सामने शर्म लगेगी और चारा नहीं दिखाई दिया, फिर गायत्री से रति क्रिया (संभोग) की। तब गायत्री ने कहा कि क्यों न एक गवाह और तैयार किया जाए। ब्रह्मा ने कहा बहुत ही अच्छा है। तब गायत्री ने शब्द शक्ति से एक लड़की (पुहपवति नाम की) पैदा की तथा उससे दोनों ने कहा कि आप गवाही देना कि ब्रह्मा ने पिता के दर्शन किए हैं। तब पुहपवति ने कहा कि मैं क्यों झूठी गवाही दूं ? हाँ, यदि ब्रह्मा मेरे से रति क्रिया (संभोग) करे तो गवाही दे सकती हूँ। गायत्री ने ब्रह्मा को समझाया (उकसाया) कि और कोई चारा नहीं है तब ब्रह्मा ने पुहपवति से संभोग किया तो तीनों मिलकर आदि माया (प्रकृति) के पास आए। दोनों देवियों ने उपरोक्त शत इसलिए रखी थी कि यदि ब्रह्मा माता के सामने हमारी झूठी गवाही को बता देगा तो माता हमें शाप दे देगी। इसलिए उसे भी दोषी बना लिया।
(यहाँ महाराज गरीबदास जी कहते हैं कि –“दास गरीब यह चूक धुरों धुर')

*"माता (दुर्गा) द्वारा ब्रह्मा को शाप देना*
तब माता ने ब्रह्मा से पूछा क्या तुझे तेरे पिता के दर्शन हुए? ब्रह्मा ने कहा हाँ मुझेपिता के दर्शन हुए हैं। दुर्गा ने कहा साक्षी बता। तब ब्रह्मा ने कहा इन दोनों के समक्ष  साक्षात्कार हुआ है। देवी ने उन दोनों लड़कियों से पूछा क्या तुम्हारे सामने ब्रह्म का साक्षात्कार हुआ है तब दानों ने कहा कि हाँ, हमने अपनी आँखों से देखा है। फिर भवानी (प्रकृति) को संशय हुआ कि मुझे तो ब्रह्म ने कहा था कि मैं किसी को दर्शन नहीं दूंगा, परन्तु ये कहते हैं कि दर्शन हुए हैं। तब अष्टगी ने ध्यान लगाया और काल/ज्योति निरंजन से पूछा कि यह क्या कहानी है? ज्योति निंरजन जी ने कहा कि ये तीनों झूठ बोल रहे हैं। तब माता ने कहा तुम झूठ बोल रहे हो। आकाशवाणी हुई है कि इन्हें कोई दर्शन नहीं हुए। यह बात सुनकर ब्रहमा ने कहा कि माता जी मैं सौगंध खाकर पिता की तलाश करने गया था। परन्तु पिता (ब्रह्म) के दर्शन हुए नहीं। आप के पास आने में शर्म लग रही थी। इसलिए हमने झूठ बोल दिया। तब माता (दुर्गा) ने कि अब मैं तुम्हें शाप देती हूँ।

ब्रह्मा को शाप : - तेरी पूजा जग में नहीं होगी। आगे तेरे वंशज होंगे वे बहुत पाखण्ड करेंगे। झूठी बात बना कर जग को दजगांग । ऊपर से तो कर्म काण्ड करते दिखाई देंगे अन्दर से विकार करेंगे। कथा पुराणों को पढ़कर सुनाया करेंगे, स्वयं को ज्ञान नहीं होगा कि सद्ग्रन्थों में वास्तविकता क्या है, फिर भी मान वश तथा धन प्राप्ति के लिए गुरु बन कर अनुयाइयों को लोकवेद (शास्त्र विरुद्ध दंत कथा) सुनाया करेंगे। देवी-देवों की पूजा करके तथा करवाके, दूसरों की निन्दा करके कष्ट पर कष्ट उठायेंगे। जो उनके अनुयाई होंगे उनको परमार्थ नहीं बताएंगे। दक्षिणा के लिए जगत को गुमराह करते रहेंगे। अपने आपको सबसे अच्छा मानेंगे, दूसरों को नीचा समझेगे। जब माता के मुख से यह सुना तो ब्रह्मा मुछित होकर जमीन पर गिर गया। बहुत समय उपरान्त होश में आया।

इस  प्रकार तीनों को शाप देकर माता भवानी बहुत पछताई। {इस प्रकार पहले तो जीव बिना सोचे मन (काल निरंजन) के प्रभाव से गलत कार्य कर देता है परन्तु जब आत्मा (सतपुरूष अंश) के प्रभाव से उसे ज्ञान होता है तो पीछे पछताना पड़ता है। जिस प्रकार माता-पिता अपने बच्चों को छोटी सी गलती के कारण ताड़ते हैं (क्रोधवश होकर) परन्तु बाद में बहुत पछताते हैं। यही प्रक्रिया मन (काल-निंरजन) के प्रभाव से सर्व जीवों में क्रियावान हो रही है।)}

हाँ, यहाँ एक बात विशेष है कि निरंजन (काल-ब्रह्म) ने भी अपना कानून बना रखा है कि यदि कोई जीव किसी दुर्बल जीव को सताएगा तो उसे उसका बदला देना पड़ेगा। जब आदि भवानी (प्रकृति, अष्टगी) ने ब्रहमा, गायत्री व पुहपवति को शाप दिया तो अलख निंरजन (ब्रह्म-काल) ने कहा कि हे भवानी (प्रकृति/अष्टगी) यह आपने अच्छा नहीं किया। अब मैं (निरंजन) आपको शाप देता हूँ कि द्वापर युग में तेरे भी पाँच पति होंगे। (द्रोपदी ही आदिमाया का अवतार हुई है।) जब यह आकाश वाणी सुनी तो आदि माया ने कहा कि हे ज्योति निंरजन (काल) मैं तेरे वश पड़ी हूँ जो चाहे सो कर ले।

गायत्री को शाप : - तेरे कई सांड पति होंगे। तू मृतलोक में गाय बनेगी। पुहपवति को शाप : - तेरी जगह गंदगी में होगी। तेरे फूलों को कोई पूजा में नहीं लाएगा। इस झूठी गवाही के कारण तुझे यह नरक भोगना होगा। तेरा नाम केवड़ा केतकी होगा। (हरियाणा में कुसोंधी कहते हैं। यह गंदगी (कुरड़ियों) वाली जगह पर होती है।)

*विष्णु का अपने पिता (काल/ब्रहम ) की प्राप्ति के लिए प्रस्थान*

व माता का आशीर्वाद पाना इसके बाद विष्णु से प्रकृति ने कहा कि पुत्र तू भी अपने पिता का पता लगा ले। तब विष्णु अपने पिता जी काल (ब्रह्म) का पता करते-करते पाताल लोक में चले गए, जहाँ शेषनाग था। उसने विष्णु को अपनी सीमा में प्रविष्ट होते देख कर क्रोधित हो कर जहर भरा फटकारा मारा। उसके विष के प्रभाव से विष्ण जी का रंग सांवला हो गया, जैसे स्प्रे पेंट हो जाता है।  तब विष्णु ने चाहा कि इस नाग को मजा चखाना चाहिए। तब ज्योति निरंजन (काल) ने देखा कि अब विष्णु को शांत करना चाहिए। तब आकाशवाणी हुई कि विष्णु अब तू अपनी माता जी के पास जा और सत्य-सत्य सारा विवरण बता देना तथा जो कष्ट आपको शेषनाग से हुआ है, इसका प्रतिशोध द्वापर युग में लेना। द्वापर युग में आप (विष्णु) तो कृष्ण अवतार धारण करोगे और
कालीदह में कालिन्दी नामक नाग, शेष नाग का अवतार होगा।

ऊँच होई के नीच सतावै, ताकर ओएल (बदला) मोही सों पावै।
जो जीव देई पीर पुनी कॉहु, हम पुनि ओएल दिवावें ताहूँ।

तब विष्णु जी माता जी के पास आए तथा सत्य-सत्य कह दिया कि मुझे पिता के दर्शन नहीं हुए। इस बात से माता (प्रकृति) बहुत प्रसन्न हुई और कहा कि पुत्र तू सत्यवादी है। अब मैं अपनी शक्ति से आपको तेरे पिता से मिलाती हूँ तथा तेरे मन का संशय खत्म करती हूँ।

कबीर देख पुत्र तोहि पिता भीटाऊँ, तौरे मन का धोखा मिटाऊँ।
मन स्वरूप कर्ता कह जानों, मन ते दूजा और न मानो।

स्वर्ग पाताल दौर मन केरा, मन अस्थीर मन अहै । अनेरा।
निंरकार मन ही को कहिए, मन की आस निश दिन रहिए।
देख हूँ पलटि सुन्य मह ज्योति, जहाँ पर झिलमिल झालर होती।

इस प्रकार माता (अष्टगी, प्रकृति) ने विष्णु से कहा कि मन ही जग का कर्ता है,यही ज्योति निरंजन है। ध्यान में जो एक हजार ज्योतियाँ नजर आती हैं वहीं उसका रूप है। जो शंख, घण्टा आदि का बाजा सुना, यह महास्वर्ग में निरंजन का ही बज रहा है। तब माता (अष्टगी, प्रकृति) ने कहा कि हे पुत्र तुम सब देवों के सरताज हो और तेरी हर कामना व कार्य मैं पूर्ण करूंगी। तेरी पूजा सर्व जग में होगी। आपने मुझे सच-सच बताया है। काल के इक्कीस ब्रह्मण्ड़ों के प्राणियों की विशेष आदत है कि अपनी व्यर्थ महिमा बनाता है। जैसे दुर्गा जी श्री विष्णु जी को कह रही है कि तेरी पूजा जग में होगी। मैंने तुझे तेरे पिता के दर्शन करा दिए। दुर्गा ने केवल प्रकाश दिखा कर श्री विष्णु जी को बहका दिया। श्री विष्णु जी भी प्रभु की यही स्थिति अपने अनुयाइयों को समझाने लगे कि परमात्मा का केवल प्रकाश दिखाई देता है। परमात्मा निराकार है।

इसके बाद आदि भवानी रूद्र (महेश जी) के पास गई तथा कहा कि महेश तू भी कर ले अपने पिता की खोज तेरे दोनों भाइयों को तो तुम्हारे पिता के दर्शन नहीं हुए उनको जो देना था वह प्रदान कर दिया है। अब आप माँगो जो माँगना है। तब महेश ने कहा कि हे जननी ! मेरे दोनों बड़े भाईयों को पिता के दर्शन नहीं हुए फिर प्रयत्न करना व्यर्थ है। कृपा मुझे ऐसा वर दो कि मैं अमर (मृत्युजय) हो जाऊँ। तब माता ने कहा कि यह मैं नहीं कर सकती। हाँ युक्ति बता सकती हूँ, जिससे तेरी आयु सबसे अधिक होगी. तब दुर्गा ने शिवजी को योग समाधि बिधि बताई कि बेटा अपनी श्वासौ को 10 वे द्वार में स्थित करो जिससे तेरी श्वास की गति कम हो जायेगी.क्युकी श्वासौं से सभी की उम्र निर्धारित होती है.

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आपका धन्यवाद

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Wednesday, September 14, 2016

आदरणीय नानक साहेब जी की वाणी में सृष्टि रचना का संकेत "

श्री नानक साहेब जी की अमृतवाणी ,महला 1 राग विलावलु, अंश 1 ( गुरु ग्रंथ ) पृष्ठ 839
आपे सचु कीआ कर जोड़ी । अंडज फोड़ि जोड़ी विछोड ।।
धरती आकाश कीए बैसण क उ थाउ । राति दिनंतु कीए भ उ भाउ ।।
जिन कीए करि वेखणहारा (3)
त्रितीया ब्रम्हा विष्णु महेसा । देवी देव उपाए वेसा ।।4
प्उण पाणी अगनी बिसराउ । ताहि निरंजन साचो नाउ ।।
तिसु महि मनुआ रहिआ लिव लाई । प्रणवति नानकु कालु न खाई ।।10 )

उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि सच्चे परमात्मा ( सतपुरुष ) ने स्वंय ही अपने हाथों से सर्व सृष्टि की रचना की है । उसी ने अंडा बनाया फिर फोड़ा तथा उसमे से ज्योतनिरंजन निकला । उसी पूर्ण परमात्मा ने सर्व प्राणीयों के रहने के लिए धरती आकाश पवन पानी आदि पांच तत्व रचे । अपने द्वारा रची सृष्टि का स्वंय ही साक्षी है । दूसरा कोई सही जानकारी नहीं दे सकता । फिर अंडे के फूटने से निकले निरंजन के बाद तीनों श्री ब्रम्हा जी श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी की उतपत्ति हुई तथा अन्य देवी देवता उतपन्न हुए तथा अनगिनत जीवों की उतपत्ति हुई। उसके बाद अन्य देवों के जीवन चरित्र तथा अन्य ऋषियों के अनुभव के छ: शास्त्र तथा अठारह पुराण बन गए पूर्ण परमात्मा के सचे नाम ( सत्यनाम ) कि साधना अनन्य मन से करने से तथा गुरू मर्यादा मे रहने वाले (प्रणवति) को श्री नानक जी कह रहे हैं कि काल नहीं खाता ।


राग मारू अंश अमृतवाणी महला 1 (गुरु ग्रंथ पृष्ठ 1037 )

सुनहु ब्रम्हा बिसनु महेसु उपाए । सुनें वरते जुग सबाए ।।
इसु पद बिचारे सो जनु पुरा । तिस मिलिए भरमु चुकाईदा ।।3।।
साम वेदु रुगु जुजरु अथरबणु । ब्रम्हे मुख माइया है त्रैगुण् ।।
ता की किमत कहि न सकै । को तिउ बोले जिउ बुलाईदा ।।9।।

उपरोक्त अमृतवाणी का सारांश है कि जो संत पूर्ण सृष्टि रचना सुना देगा तथा बताएगा की अण्डे के दो भाग होकर कौन नीकला जिसने फिर ब्रम्हालोक की सुन्न में अर्थात् गुप्त स्थान पर ब्रम्हा विष्णु शिव जी की उतपत्ति की तथा वह परमात्मा कौन है जिसने ब्रम्हा (काल ) के मुख से चारों वेदों ( पवित्र ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद अथर्ववेद ) को उच्चारण करवाया वह पूर्ण परमात्मा जैसा चाहे वैसे ही प्रत्येक प्राणी को बुलवाता है इस सर्व ज्ञान को पूर्ण बताने वाला सन्त मिल जाए तो उसके पास जाइये तथा जो सभी शंकाओं का निवारण करता है वही पूर्ण सन्त अर्थात् तत्वदर्शी है ।

श्री गुरु ग्रंथ साहेब पृष्ट 929 अमृत वाणी श्री नानक साहेब जी की राग रामकली महला 1 दखणी ओंअंकार

ओंअंकारि ब्रम्हा उतपत्ति । ओअंकारु कीआ जिनि चित ।
ओअंकारी सैल जुग भ्ए । ओंअंकारि बेद निरम्ए ।
ओअंकारि सबदि उभरे । ओअंकारि गुरुमुखि तरे ।
ओनम अखर सुणहु बिचारु । ओनम अखरु त्रिभवण सारु ।


उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि ओंकार अर्थात् ज्योति निरंजन ( काल ) से ब्रम्हा जी की उतपत्ति हुई । क्ई युगों मस्ती मार कर ओंकार ( ब्रम्हा ) ने वेदों की उतपत्ति की जो ब्रम्हा जी को प्राप्त हुए। तीन लोक की भक्ति का केवल एक ॐ मंत्र ही वास्तव में जाप करने का है । इस ॐ शब्द को पूरे सन्त से उपदेश लेकर अर्थात् गुरु धारण करके जाप करने से उद्घार होता है । 


विशेष :--- श्री नानक साहेब जी ने तीनों मंत्रों ( ॐ+ तत+सत) का स्थान स्थान पर विवरण दिया है । उसको केवल पूर्ण संत ही समझ सकता है तथा तीनों मंत्रों के जाप को उपदेशी को समझाया जाता है 

पृष्ठ ( 1038)


उतम सतिगुर पुरुष निराले सबदि रते हरि रस मतवाले ।
रिधि बुधि सिधि गिआन गुरु ते पाइये पूरे भाग मिलाइदा ।।5।।
सतिगुरू ते पाए बीचारा सुन समाधि सचे घरबारा ।
नानक निरमल नादु सबद धुनि सचु रामैं नामि समाईदा (17) ।।5।।17।।

उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि वास्तविक ज्ञान देने वाले सतगुरु तो निराले ही हैं वे केवल नाम जाप को जपते हैं अन्य हठयोग साधना नहीं बताते । यदि आप को धन दौलत पद बुध्दि या भक्ति शक्ति भी चाहिए तो वह भक्ति मार्ग का ज्ञान पूर्ण संत ही पूरा प्रदान करेगा ऐसा पूर्ण संत बड़े भाग्य से ही मिलता है । वही पूर्ण संत विवरण बताएगा की ऊपर सुन (आकाश) में अपना वास्तविक घर



(सत्यलोक) परमेश्वर ने रच रखा है उसमें एक वास्तविक सार नाम कि धुन ( आवाज) हो रही है उस आनंद में अविनाशी परमेश्वर के सार शब्द से समाया जाता है अर्थात् उस वास्तविक सुखदाई स्थान में वास हो सकता है अन्य नामों तथा अधुरे से नहीं हो सकता ।

आंशिक अमृतवाणी महला पहला (श्री गुरु ग्रंथ साहेब पृष्ठ 359 -360





सिव नगरी महि आसणि बैस्उ कलप त्यागी वादं (।)
सिंडी सबद सदा धुनि सोहै अहिनिसि पूरै नादं (2)
हरि कीरति रह रासि हमारी गुरु मुख पंथ अतीत (3)
सगली जोति हमारी समिआ नाना वरण अनेकं ।
कह नानक सुणि भरथरी जोगी पारब्रह्म लिव एकं । (4)

उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि हे भरथरी योगी जी आप की साधना भगवान शिव तक है ऊससे आपको शिव नगरी ( शिव लोक) में स्थान मिला है और शरीर में जो सिंगी शब्द आदि हो रहा है वह ईन्ही कमलों का है । हम तो एक परमात्मा पारब्रह्म अर्थात् सर्वसे पार जो पूर्ण परमात्मा है अन्य किसी और एक परमात्मा में लौ (अनन्य मन से लग्न ) लगाते हैं । हम उपरी दिखावा ( भस्म लगाना हाथ में डंडा रखना ) नहीं करते। मै तो सर्व प्राणीयों को एक पूर्ण परमात्मा ( सतपुरुष की ) संतान समझता हूँ सर्व उसी शक्ति से चलायमान है हमारी मुद्रा तो सचा नाम जाप गुरु से प्राप्त करके करना है तथा क्षमा करना हमारा बाणा ( वेशभूषा) है मैं तो पूर्ण परमात्मा का उपासक हूँ तथा पूर्ण सतगुरू का भक्ति मार्ग ईससे भिन्नहै ।

अमृत वाणी राग आसा महला 1 (श्री गुरु ग्रंथ पृष्ठ 420 ) आसा महला ।। 


जिनी नामु विसारिआ दूजै भरम भुलाई । मुलु छोडि डाली लगे किआ पावहि छाई ।।1।।
साहिबु मेरा एकु है अवरु नहीं भाई । किरपा ते सुख पाइआ साचे परथाई ।।3।।
गुर कि सेवा सो करे जिसु आपे कराए । नानक सिरु दे छुटिऐ दरगह पति पाए ।।8।।

उपरोक्त वाणी का भावार्थ है की श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं की जो पूर्ण परमात्मा का वास्तविक नाम भुल कर अन्य भगवानों के नामों के जाप में भ्रम रहे हैं वे तो ऐसा कर रहे हैं कि मुल ( पूर्ण परमात्मा) को छोड़कर डालीयों ( तीनों गुणों रुप रजगुण ब्रम्हा जी सतगुण विष्णु जी तमगुण शिव जी कि ) सिंचाई (पूजा ) कर रहे हैं । उस साधना से कोई सुख नहीं हो सकता अर्थात् पौधा सुख जाएगा तो छाया में नहीं बैठ पाओगे ।

भावार्थ है कि शास्त्र विधि रहित साधना करने से व्यर्थ प्रयत्न है कोई लाभ नहीं । इसी का प्रमाण पवित्र गीता अध्याय 16 श्लोक 23 24 में भी है । उस पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करने के लिए मनमुखि साधना त्याग कर पूर्ण गुरुदेव को समर्पण करने से तथा सच्चे नाम के जाप से ही मोक्ष संभव है नहीं तो मृत्यु के उपरांत नरक जाएगा ।

श्री गुरु ग्रंथ साहेब पृष्ठ नं 843 -844 ) 

।। बिलावलु महला ।।

मैं मन चाहु घणा साचि विगासी राम । मोही प्रेम पिरे प्रभु अविनाशी राम ।।
अविगतो हरि नाथु नाथह तिसै भावै सो थीऐ । किरपालु सदा द्इयालु दाता जीआ अंदरि तूं जीऐ ।
मैं आधारु तेरा तू खसमु मेरा मै ताणु तकीओ तेर्ओ साचि सूचा सदा नानक गुरसबदि झगरु निबेर्ओ ।।4 ।।2।।

उपरोक्त अमृतवाणी में श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि अविनाशी पूर्ण परमात्मा नाथों का भी नाथ है अर्थात् देवों का भी देव है ( सर्व प्रभुओं श्री ब्रम्हा जी श्री विष्णु जी श्री शिव जी तथा ब्रम्हा व परब्रह्म पर भी नाथ है अर्थात् स्वामी है ) मैं तो सचे नाम को ह्रदय में समा चुका हूँ । हे परमात्मा सर्व प्राणी का जीवन आधार भी आप ही हो मैं आपके आश्रित हूँ आप मेरे मालिक हो । आपने ही गुरु रुप में आकर सत्यभक्ति का निर्णायक ज्ञान देकर सर्व झगड़ा निपटा दिया अर्थात् सर्व शंका का समाधान कर दिया ।

(श्री गुरु ग्रंथ साहेब पृष्ठ नं 721 राग तिलंग महला 1 )

यक अर्ज गुफतम पेश तो दर कुन करतार ।
हक्का कबीर करीम तू बेअब परबदिगार ।
नानक बुगोयद जन तुरा तेरे चाकरां पाखाक । 

उपरोक्त अमृतवाणी में स्पष्ट कर दिया कि हे ( हक्का कबीर ) आप सत कबीर ( कुन करतार ) शब्द शक्ति से रचना करने वाले शब्द स्वरुपि प्रभु अर्थात् सर्व सृष्टि के रचनहार हो आप ही बेएब निर्विकार ( परवर्दिगार ) सर्व के पालन करता दयालु प्रभु हो मैं आपके दासों का भी दास हूँ ।


श्री गुरु ग्रंथ साहेब पृष्ठ नं 24 राग सीरी महला 1 )
तेरा एक नाम तारे संसार मैं एहा आस ऐहो आधार । 
नानक नीच कहै बिचार धाणक रुप रहा करतार ।।

उपरोक्त अमृतवाणी में प्रमाण किया है कि जो काशी में धाणक ( जुलाहा ) है यही करतार कुल का सृजनहार है । अति आधीन होकर श्री नानक देव जी कह रहे हैं कि मै सत कह रहा हूँ के यह धाणक अर्थात् कबीर जुलाहा ही पूर्ण ब्रम्हा ( सतपुरुष) है 

विशेष:----- उपरोक्त प्रमाणों के सांकेतिक ज्ञान से प्रमाणित हुआ कि सृष्टि रचना कैसे हुई ? अब पूर्ण परमात्मा की प्राप्ती करनी चाहिए। और यह पूर्ण संत से नाम लेकर ही संभव है 

बोलो सतगुरू देव की 
जय

सत साहेब जी

आज के समय में जिस तरह ज्ञान का बोलबाला है हर तरफ ज्ञान ही ज्ञान संत महंत गुरु और साधु हर कोई ज्ञानी है हजारों की नहीं बल्कि लाखों कि संख्या में लोगों ने नाम दान ले रखा है कोई गुरु का चेला है तो कोई कृष्ण का भक्त कोई साधू के पास जाता है तो कोई माता का भक्त हर कोई कहीं न कहीं किसी न किसी से जुड़ा हुआ है और हर कोई अपने गुरु अपने भगवान अपनी देवी या अपने साधु महाराज को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं कोई अगर इनके गुरु अथवा भगवान को कुछ बोल दे तो ये भक्त लोग मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं ।

इतना ज्ञान और ज्ञानी लोग इस दुनिया में मौजूद हैं फिर भी कहीं न कहीं अनर्थ हो जाता है कहीं बाढ़ आ जाती है कहीं सुखा पड़ जाता है कहीं भ्रष्टाचार होता है तो कहीं बलात्कार हो जाता हैं एक सोचने वाली बात है कि जब इतना ज्ञान और ज्ञानी ध्यानी लोग इस दुनिया में हैं तो ऐसा क्यों हो रहा है कोई भक्त माता के दर्शन के लिए घर से अछा भला गया और रास्ते में एकसीडेंट हुआ और भगवान को प्यारा हो गया ऐसा क्यों हुआ ऐसा नहीं होना चाहिए था कयोंकि वो तो माता जी के दर्शन करने जा रहा था ।

क्या आप जानते हैं की ऐसा क्यों होता है कयोंकि हमारी साधना गलत है और हम गलत गुरुओं और पंडो के चक्कर में पड़े हुए हैं दोस्तो आज कोई भी लुच्चा लफंगा चोर ऊचका या कोई अधुरा गुरु चार श्लोक याद करके नाम दान देना शुरू कर देता है । धिरे धिरे पब्लिक बढती जाती है और लोगों को लगने लगता है कि ये संत या साधु सच में ही महान है और हमारे हिंदू भाई भेड़ चाल चलने में माहिर हैं बस किसी ने चार बातें सुना दी तो हो लिए उसके पिछे बिना सोचे समझे बस लगे माथा और नाक रगड़ने पाखंडी संत और महंत देख लेते हैं की मुर्गा नया है फसा लो अब उसे नाम दान दिया जाता है और कसमे भी खिलाई जाती हैं ।

पहली कसम :- किसी धर्म अथवा किसी गुरु कि लिखी किताब नहीं पढनी है
दुसरी कसम :-- हमारे सिवा किसी का सतसंग नहीं सुनना है 


और भी बहुत सी कसमे खिलाते हैं पर ये दो कसमें अति महत्वपूर्ण है । और ये भी कहते हैं की अगर तुमने दुसरे गुरु की किताब पढ़ी या सतसंग सुना तो सिधे नरक में जाओगे 

आजकल ऐसे ऐसे गुरु पैदा हो गए हैं जिनका खुद का मोह लोभ और अंहकार खत्म नहीं हुआ और दुसरों को उपदेश कर रहे है चार चार नाम रखकर भीड़ इकट्ठी कर रखी है 


ताजा उदाहरण आपके सामने है पहले तो महाशय प्रवचन ही करते थे पर अब अपने भक्तों के लिए फिल्में भी बनाने लगे फुल टाइम पास । 


एक और गुरुजी की कहानी सुनीए कहते हैं कि हमसे नाम दान ले लो खाओ पिओ चाहे जो मर्जी पर हमारा नाम लेते रहो फुल ऐश मांस खाओ शराब पिओ परनारी भोगो जो जी मे आए करो पर हमारा नाम लेते रहो इससे तुम्हारे पाप कर्म कटते रहेंगे और मंत्र क्या दे रखा है दुनिया तो आज तक वाहेगुरू वाहेगुरू का जाप जपति थी लेकिन इस पाखंडी ने इस वाहेगुरू को उल्टा करके संगत को ( गुरुवाहे ) जपने का आदेश दे दिया बताओ अब कौन है पाखंडी ।

Wednesday, April 27, 2016

कबीर परमेश्वर द्वारा बादशाह सिकंदर की शंकाओं का समाधान

कबीर परमेश्वर द्वारा बादशाह सिकंदर की शंकाओं का समाधान
सत साहेब जी सभी को
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कबीर परमेश्वर द्वारा बादशाह सिकंदर की शंकाओं का समाधान
प्रश्न - बादशाह सिकंदर लोधी ने पूछा, हे परवरदिगार (क). यह ब्रह्म(काल) कौन शक्ति
है ? (ख). यह सभी के सामने क्यों नहीं आता ?
उत्तर - परमेश्वर कबीर साहेब जी ने सिकंदर लोधी बादशाह के प्रश्न ‘क-ख‘ के उत्तर में सृष्टी रचना सुनाई।
(सृष्टी रचना भाग १ --> https://www.facebook.com/photo.php?fbid=229186393872936&set=a.195066310618278.20780.171494336308809&type=1
सृष्टी रचना भाग २ --> https://www.facebook.com/photo.php?fbid=229187727206136&set=a.195066310618278.20780.171494336308809&type=1
सृष्टी रचना भाग ३ --> https://www.facebook.com/photo.php?fbid=229188800539362&set=a.195066310618278.20780.171494336308809&type=1 )

प्रश्न - (ग). क्या बाबा आदम जैसे महापुरुष भी इसी के जाल में फंसे थे ?
उत्तर - पवित्र बाईबल में उत्पत्ति विषय में लिखा है कि पूर्ण परमात्मा मनुष्यों तथा अन्य प्राणियों की रचना छः दिन में करके तख्त अर्थात् सिंहासन पर चला गया। उसके बाद इस लोक की बाग डोर ब्रह्म ने संभाल ली। इसने कसम खाई है कि मैं सब के सामने कभी नहीं आऊँगा। इसलिए सभी कार्य अपने तीनों पुत्रों (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) के द्वारा करवाता रहता है या स्वयं किसी के शरीर में प्रवेश करके प्रेत की तरह बोलता है या आकाशवाणी करके आदेश देता है। प्रेत, पित्तर तथा अन्य देवों (फरिश्तों) की आत्माऐं भी किसी के शरीर में प्रवेश करके अपना आदेश करती हैं। परन्तु श्रद्धालुओं को पता नहीं चलता कि यह कौन शक्ति बोल रही है। पूर्ण परमात्मा ने माँस खाने का आदेश नहीं दिया। पवित्रा बाईबल उत्पत्ति विषय में सर्व प्राणियों के खाने के विषय में पूर्ण परमात्मा का प्रथम तथा अन्तिम आदेश है कि मनुष्यों के लिए फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे दिए हैं जो तुम्हारे खाने के लिए हैं तथा अन्य प्राणियों को जिनमें जीवन के प्राण हैं उनके लिए छोटे-छोटे पेड़ अर्थात् घास, झाडि़याँ तथा बिना फल वाले पेड़ आदि खाने को दिए हैं। इसके बाद पूर्ण प्रभु का आदेश न पवित्र बाईबल में है तथा न किसी कतेब (तौरत, इंजिल, जुबुर तथा र्कुआन शरीफ) में है। इन कतेबों में ब्रह्म तथा उसके फरिश्तों तथा
पित्तरों व प्रेतों का मिला-जुला आदेश रूप ज्ञान है।

प्रश्न -(घ)-. क्या बाबा आदम से पहले भी सृष्टी थी ?
उत्तर - सूर्यवंश में राजा नाभिराज हुआ। उसका पुत्र राजा ऋषभदेव हुआ जो जैन धर्म का प्रवर्तक तथा प्रथम तीर्थकर माना जाता है। वही ऋषभदेव ही बाबा आदम हुआ, यह विवरण जैन धर्म की पुस्तक ‘‘आओ जैन धर्म को जाने‘‘ के पृष्ठ 154 पर लिखा है। इससे स्पष्ट है कि बाबा आदम से भी पूर्व सृष्टी थी। पृथ्वी का अधिक क्षेत्र निर्जन था। एक दूसरे क्षेत्र के व्यक्ति भी आपस में नहीं जानते थे कि कौन कहाँ रहता है। ऐसे स्थान पर ब्रह्म ने फिर से मनुष्य आदि की सृष्टी की। हजरत आदम तथा हव्वा की उत्पत्ति ऐसे स्थान पर की जो अन्य व्यक्तियों से कटा हुआ था। काल के पुत्र ब्रह्मा के लोक से यह पुण्यात्मा (बाबा आदम) अपना कर्म संस्कार भोगने आया था। फिर शास्त्र अनुकूल साधना न मिलने के कारण पित्तर योनी को प्राप्त होकर पित्तर लोक में चला गया। बाबा आदम से पूर्व फरिश्ते थे। पवित्र बाईबल ग्रन्थ में लिखा है।

प्रश्न -(ड़).- यदि अल्लाह का आदेश मनुष्यों को माँस न खाने का है तो बाईबल तथा र्कुआन शरीफ में कैसे लिखा गया ?
उत्तर - पवित्र बाईबल में उत्पत्ति विषय में लिखा है कि पूर्ण परमात्मा ने छः दिन में सृष्टी रचकर सातवें दिन विश्राम किया। उसके बाद बाबा आदम तथा अन्य नबियों को अव्यक्त अल्लाह (काल) के फरिश्ते तथा पित्तर आदि ने अपने आदेश दिए हैं। जो बाद में र्कुआन शरीफ तथा बाईबल में लिखे गए हैं।

प्रश्न -(च)- अव्यक्त(गायव) प्रभु काल ने यह सर्व वास्तविक ज्ञान छुपाया है तो पूर्ण परमात्मा का संकेत किसलिए किया ?
उत्तर - ज्योति निरंजन(अव्यक्त माना जाने वाला प्रभु) पूर्ण परमात्मा के डर से यह नहीं छुपा सकता कि पूर्ण परमात्मा कोई अन्य है। यह पूर्ण प्रभु की वास्तविक पूजा की विधि से अपरिचित है। इसलिए यह केवल अपनी साधना का ज्ञान ही प्रदान करता है तथा महिमा गाता है पूर्ण प्रभु की भी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सिकंदर ने सोचा कि ऐसे भगवान को दिल्ली में ले चलता हूँ और हो सकता है वहाँ के व्यक्ति भी इस परमात्मा के चरणों में आकर एक हो जाऐं। यह हिन्दू और मुसलमान का झगड़ा समाप्त हो जाऐं। कबीर साहेब के विचार कोई सुनेगा तो उसका भी उद्धार होगा। दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी ने प्रार्थना की कि हे ‘‘सतगुरुदेव एक बार हमारे साथ दिल्ली चलने की कृपा करो।’’ कबीर साहेब ने सिकंदर लौधी से कहा कि पहले आप मेरे से उपदेश लो फिर आपके साथ चल सकता हूँ।

Saturday, April 2, 2016

धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।।

धर्मदास यह जग बौराना।
कोइ न जाने पद निरवाना।।
अब मैं तुमसे कहों चिताई। त्रियदेवन की उत्पति भाई।।
ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई।
मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।
माँ अष्टंगी पिता निरंजन।
वे जम दारुण वंशन अंजन।।
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछेसे माया उपजाई।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये।
ब्रम्हा विष्णु शिव नाम धराये।।
तीन देव विस्त्तार चलाये।
इनमें यह जग धोखा खाये।।
तीन लोक अपने सुत दीन्हा।
सु निरंजन बासा लीन्हा।।
अलख निरंजन सु ठिकाना।
ब्रम्हा विष्णु शिव भेद न जाना।।
अलख निरंजन बड़ा बटपारा। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।
ब्रम्हा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।।
तिनके सुत हैं तीनों देवा।
आंधर जीव करत हैं सेवा।।
तीनों देव और औतारा।
ताको भजे सकल संसारा।।
तीनों गुणका यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।
गुण तीनों की भक्ति में,
भूल परो संसार।
कहै कबीर निज नाम बिन,
कैसे उतरें पार।।।
।। सत साहेँब ।।

Monday, March 21, 2016

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Monday, December 28, 2015

SHRISTIRACHNA:-... कबीर वानी मे कबीर सागर से...



कबीर वानी मे कबीर सागर से...

kabir sahib apne sisye Dharmdas ko samjha rahe h .. sirsti ki rachna suna rahe h..
धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।।
dharamdas ye sansar bhula pada h koi bhi real moksh marag ko nhi janta
यहि कारन मैं कथा पसारा। जगसे कहियो राम नियारा।।
isliye sachai batane ke liye mujhe sansar m aana pada.. is jag se bhi niyra h Ek Ram .. (kabir sahib yaha apne ko chupa kar bol rahe h agar wo ye keh dete ki wo Ram m hu to dhrandas ek nhi sunta) Ram means Allah God
यही ज्ञान जग जीव सुनाओ। सब
जीवों का भरम नशाओ।।
ye hi Gyan sab jivo ko Sunao or unka bharam dur karo..


अब मैं तुमसे कहों चिताई। त्रायदेवन

की उत्पति भाई।।

कुछ संक्षेप कहों गुहराई। सब संशय तुम्हरे मिट जाई।।

an tujhe 3no devo barhma Vishnu shiv ki utpatti batata hu.. kuch vistaar se batata hu jis se tumhre saare bharam mit jayege.

भरम गये जग वेद पुराना। आदि राम का का भेद न जाना।

ye sansar vedh kuran purano m bhula beitha h lekin aadiRam sabse pehle wale RAM ka bhedh nhi jaan saka..

राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोइ बिरला जाने।।

Ram Ram ye jagat bolta h lekin us aadi Ram ko to koi birla hi janta h..

ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य

ना पाई।

mere Gyan ko Gyani sunega to hirde se lagayga. murkh ki samjh m nhi aayega.

माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।

Brahma Vishnu Shiv ki Maa durga h pita Niranjan kaal h..

पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछे से

माया उपजाई।।

pehle Satlok m kaal ki utpatti Ande se hui.. kafi samey baad durga ko banaya.

माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।।

durga ke sundar rup ko dekh kar kaal Niranjan ne durga ke sath balatkar Karna chaya.

कामदेव धर्मराय सत्ताये।

देवी को तुरतही धर खाये।

Niranjan sex m andha ho gaya to durga ne apni jaan bachane ke liye Niranjan kaal ke peth m Saran li..

पेट से देवी करी पुकारा। साहब

मेरा करो उबारा।।

phir peth se durga ne pukar ki he Sahib meri raksha karo..

टेर सुनी तब हम तहाँ आये।

अष्टंगी को बंद छुड़ाये।

durga ki pukar sunkar hum(Sahib kabir) waha aaye. or Durga ko peth se bahar nikal diya kaal ke.. ( durga ki 8 bhuja h isliye isko Astangi bhi bolte h)

सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरंजन

दिन्हा निकारि।।

Satlok jisi jannat m ehsi bayanak Galti karne se kaal ko Satlok se nikal diya.. Sath m durga ko bhi kyoki durga ne sabse pehle apni marzi se kaal niranjan ke pass aana caha tha.

माया समेत दिया भगाई, सोलह संख कोस दूरी पर

आई।।

durga samet kaal Niranjan ko Satlok se 16 sankh ki duri par bhaga diya with 21 barhmand.. or ye bhi Sarap diya ki Niranjan aaj se tera naam kaal hoga tu daily 1lakh manav ko khayega.

अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।।

धर्मराय को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर

लीन्हा।।

ab Durga or kaal apne 21 barhmand m akele the.. Phir dono ne milkar sex kiya

धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा।।

kaal Niranjan se sex karne ke baad durga parignint ho gayi..

तीन पुत्रा अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु

शिव नाम धराये।।

phir 3 beto ko janam diyo.. Unke Barhma Vishnu Shiv Naam rakh diye..

तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग

धोखा खाये।।

ye 3 bete kaal ke kaal ki company ko chala rahe h.. or ye jag in teeno ko bhagwn Supriem God mankar dokha kha raha h..

पुरुष गम्य कैसे को पावै। काल निरंजन जग भरमावै।।

us Supriem God ko bhala koi kise jaan sakta h kaal ne sabko misguide kar rakha h..

तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन्न

निरंजन बासा लीन्हा।।

Teen lok ka Raaz dekar apne putro ko.. kaal Niranjan Gupt hokar 21 be barhmand ke Top m ja beitha... ( jise koi Company ka malik chain se Apne Ghar hota h or Manager Superviser company ko chalate h.. durga maneger barhma Vishnu shiv superviser samjho)

अलख निरंजन सुन्न ठिकाना। ब्रह्मा विष्णु शिव भेद न जाना।।

kaal rupi Alakh Niranjan uper 21 ve barhmand ke Top m MATLAB Sun m rehta h.. barhma Vishnu shiv ek barhmand ke 14 loko m se 3 loko m rehte h.. ye bhi aaj tak apne pita ka bhedh Nhi jaan paye..

तीन देव सो उनको धावें। निरंजन का वे पार ना पावें।।

teeno dev bhi niranjan ka dhyan lagate h lekin kaal niranjan ka paar nhi PA sake. kaal niranjan ne kasam kha rakhi h wo kisi ko darsn nhi dega..

अलख निरंजन बड़ा बटपारा। तीन लोक जिव

कीन्ह अहारा।।

Alakh Niranjan kaal dokhebaaz h ye teeno loko ke jivo ko khata h.


ब्रह्मा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर

उड़ाये।।

ye Brahma Vishnu shiv ko bhi nhi chodta.. na jane kitni baar inko bhi kha chuka h.. phir dusri aatmao ko inke sathan par beitha deta h..

तिनके सुत हैं तीनों देवा। आंधर जीव

करत हैं सेवा।।

ye teen bete h kaal durga ke or ye TatavGyan heen Andhe log inko hi Supriem God mankar pooja karte h

अकाल पुरुष काहू नहिं चीन्हां। काल पाय

सबही गह लीन्हां।।

Akaal purush MATLAB supriem God ko koi nhi janta.. sab kaal ki pooja m lage h. isliye mujhe ye Gyan dene aana padta h

ब्रह्म काल सकल जग जाने। आदि ब्रह्मको ना पहिचाने।।

kaal ko to sab bagwan MATLAB baram mante h.. lekin us Aadibaram MATLAB Sabse pehle Supriem God ko pehchante bhi nhi

तीनों देव और औतारा। ताको भजे सकल संसारा।।

तीनों गुणका यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।

teeno devta barhma Vishnu shiv or inke avtaar ko sara sansar poojta h.

teeno devtao ki yeh kahani h

गुण तीनों की भक्ति में, भूल परो संसार।

कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरैं पार।।

teen goon Barhma Vishnu shiv ki bagti m Sara sansar bhula pada h lekin mere nijnaan( Saar Nam or satnam) bina ye jeev paar nhi ho sakte.. MATLAB hum sabi aatma satlok ki rehne wali h yaha kaal ki jail m bandh h. Hum sabi aatmao ne niranjan kaal ke lok m apni marzi ke aana chaha tha tab kabir parmesver ne hume bizh rup m durga ko de diya tha or durga ko kaal ke pass bhez diya tha.. jaha hum reh rahe ye kaal ke 21 barhmand h.. ye 21 barhmand kaal niranjan ne 70+70+64 yug tap karke kabir Parmatma se manage the..


to kabir parmatma ke Nijnaam (Saar Nam,satnam) se hi hum kaal ke 21barhmano se paar apne Ghar satlok ja sakte h.

कबीर- हंसा देश सुदेश का पडा कुदेशा आये..

जिनका चारा मोतीया वो घोघो कयो पतियाये..

tum satlok ke moti khane wale Hans ho jaha budapa janam maran nhi h.. koi rog duk dard nhi h waha suksagar h.. us suksagar ke tum rehne wale yaha kaal ke duksagar m Gohge kha rahe ho. yaha koi sukhi nhi.. kya haal bana rakha h kaal ne tumhra.. 84 lakh yoniyo m dal kar kast deta h tumko.. manav jivin m bhi sukhi nhi.. 21 barmand aag lagi h..

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मेरे सतगुरु जी ना रुठे

सारा जग रुठे तो रुठण दे"

गुरु मर्यादा ना छुटे,

किसी का दिल टुटे तो टुटण दे