Monday, December 28, 2015

प्रेमी पक्षी दुखी होते है , जे बिछुड़ जाये रैन पढ़े !

प्रेमी पक्षी दुखी होते है , जे बिछुड़ जाये रैन पढ़े !
हम युगो -युगो के बिछुड़े फिरते , कैसे ये मन धीर धरे !!
जैसे जल बिन मीन मरे , मेरी ऐसी हुई तासीर......
की आगये शरण तेरी ..................... !
संकट मोचन कष्ट हरण हो , मंगल कारन कबीर......
की आगये शरण तेरी......................................


"ये सब खेल हमारे किए, हम से मिले सो निश्चल जिए" । 
हरिजन को सोहै नहीं, हुक्का हाथ के माहि । 
कहें कबीर रामजन, हुक्का पीवें नाहिं ॥
भांग तमाखू छूतरा, जन कबीर से खाहिं ।
जोग मन जप तप किये, सबे रसातल जाहि ॥
गरीब, हुक्का हरदम पिवते, लाल मिलावैं धूर।
इसमें संशय है नहीं, जन्म पिछले सूर।।1।।
गरीब, सो नारी जारी करै, सुरा पान सौ बार।
एक चिलम हुक्का भरै, डुबै काली धार।।2।।
गरीब, सूर गऊ कुं खात है, भक्ति बिहुनें राड।
भांग तम्बाखू खा गए, सो चाबत हैं हाड।।3।।
गरीब, भांग तम्बाखू पीव हीं, सुरा पान सैं हेत।
गौस्त मट्टी खाय कर, जंगली बनें प्रेत।।4।।



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