Saturday, January 9, 2016

गरीब, बेखो के लश्कर फ़िरे ये वाणी चोर कठोर। सतगुरु धाम ना पहुचेंगे ये चोरासी के ढोर।।

गीता अध्याय न. 7 शलोक न.15
माया के द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चूका है, ऐसे असुर सवभाव को धारण किये हुए मनुष्य नीच दूषित कर्म करने वाले मुर्ख मुझको नही भजते अर्थात वे तीनो गुणों ( रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिवजी) की साधना ही करते रहते है।।।
गीता अध्याय न. 16 शलोक न.23
जो पुरुष सस्त्र विधि को त्याग कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता हे वह न सिद्धि को प्राप्त होता हे न परम गति को न सुख को ही।।
कबीर, भांग ,तमाकू, सूरा पान जो जो प्राणी खाये। करम धर्म सब नष्ट किये,
सभी रसातल जाये।
गरीब, बेखो के लश्कर फ़िरे ये वाणी चोर कठोर।
सतगुरु धाम ना पहुचेंगे ये चोरासी के ढोर।।
गरीब, हुक्का हर दम पीवते, लाल मिलावे धूर।
इसमें संशय है नही, जनम पिछले सूर।।
गरीब, सौ नारी जारी करे, सूरा पैन सौ बार।
एक चिलम हुक्का भरे, डूबे काली धार।।
गरीब, सूर गौ कु खात है, भक्ति बिहुने राड।
भांग तंबाखू खा गए, सो चाबत है हाड।।
गरीब, भांग तंबाखू पिव्हि, सूरा पान से हेत।
गोस्त मिटटी खाये कर, जंगली बने प्रेत।।
गरीब, पान तंबाखू चाबही, नास नाक में देत।
सो तो ईराने गए, ज्यूँ भड़भूजे का खेत।।
गरीब, भांग तंबाकू पिव ही, गोस्त गला कबाब।
मोर मृग कू भखत है, देंगे कहा जवाब।।

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