शब्द दुरिया न दुरै, कहूँ जो ढोल बजाय |
जो जन होवै जौहोरी, लेहैं सीस चढ़ाय ||
ढोल बजाकर कहता हूँ निर्णय - वचन किसी के
छिपाने (निन्दा उपहास करने) से नहीं छिपते | जो
विवेकी - पारखी होगा, वह निर्णय - वचनों को
शिरोधार्य कर लेगा |
जो जन होवै जौहोरी, लेहैं सीस चढ़ाय ||
ढोल बजाकर कहता हूँ निर्णय - वचन किसी के
छिपाने (निन्दा उपहास करने) से नहीं छिपते | जो
विवेकी - पारखी होगा, वह निर्णय - वचनों को
शिरोधार्य कर लेगा |
एक शब्द सुख खानि है, एक शब्द दुःखराखि है |
एक शब्द बन्धन कटे, एक शब्द गल फंसि ||
समता के शब्द सुख की खान है, और विषमता के शब्द
दुखो की ढेरी है | निर्णय के शब्दो से विषय - बन्धन
कटते हैं, और मोह - माया के शब्द गले की फांसी हो जाते हैं |
एक शब्द बन्धन कटे, एक शब्द गल फंसि ||
समता के शब्द सुख की खान है, और विषमता के शब्द
दुखो की ढेरी है | निर्णय के शब्दो से विषय - बन्धन
कटते हैं, और मोह - माया के शब्द गले की फांसी हो जाते हैं |
सीखै सुनै विचार ले, ताहि शब्द सुख देय |
बिना समझै शब्द गहै, कहु न लाहा लेय ||
जो निर्णय शब्दो को सुनता, सीखता और
विचारता है, उसको शब्द सुख देते हैं | यदि बिना
समझे कोई शब्द रट ले, तो कोई लाभ नहीं पाता |
हरिजन सोई जानिये, जिहा कहैं न मार |
आठ पहर चितवर रहै, गुरु का ज्ञान विचार ||
हरि - जन उसी को जानो जो अपनी जीभ से भी
नहीं कहता कि "मारो" | बल्कि आठों पहर गुरु के
ज्ञान - विचार ही में मन रखता है |
आठ पहर चितवर रहै, गुरु का ज्ञान विचार ||
हरि - जन उसी को जानो जो अपनी जीभ से भी
नहीं कहता कि "मारो" | बल्कि आठों पहर गुरु के
ज्ञान - विचार ही में मन रखता है |
कुटिल वचन सबते बुरा, जारि करे सब छार |
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार ||
टेड़े वचन सबसे बुरे होते हैं, वे जलाकर राख कर देते हैं |
परन्तु सन्तो के वचन शीतल जलमय हैं, जो अमृतकी धारा बनकर बरसते हैं |
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार ||
टेड़े वचन सबसे बुरे होते हैं, वे जलाकर राख कर देते हैं |
परन्तु सन्तो के वचन शीतल जलमय हैं, जो अमृतकी धारा बनकर बरसते हैं |
खोद खाद धरती सहै, काट कूट बनराय |
कुटिल वचन साधु सहै, और से सहा न जाय ||
खोद - खाद प्रथ्वी सहती है, काट - कूट जंगल सहता
है | कठोर वचन सन्त सहते हैं, किसी और से सहा नहीं जा सकता |
खोद - खाद प्रथ्वी सहती है, काट - कूट जंगल सहता
है | कठोर वचन सन्त सहते हैं, किसी और से सहा नहीं जा सकता |
मुख आवै सोई कहै, बोलै नहीं विचार |
हते पराई आत्मा, जीभ बाँधि तरवार ||
कितने ही मनुष्य जो मुख में आया, बिना विचारे
बोलते जी जाते हैं | ये लोग परायी आत्मा को दुःख
देते रहते है अपने जिव्हा में कठोर वचनरूपी तलवार बांधकर |
हते पराई आत्मा, जीभ बाँधि तरवार ||
कितने ही मनुष्य जो मुख में आया, बिना विचारे
बोलते जी जाते हैं | ये लोग परायी आत्मा को दुःख
देते रहते है अपने जिव्हा में कठोर वचनरूपी तलवार बांधकर |
जंत्र - मंत्र सब झूठ है, मत भरमो जग कोय |
सार शब्द जानै बिना, कागा हंस न होय |
टोने - टोटके, यंत्र - मंत्र सब झूठ हैं, इनमे कोई मत फंसो |
सार शब्द जानै बिना, कागा हंस न होय |
टोने - टोटके, यंत्र - मंत्र सब झूठ हैं, इनमे कोई मत फंसो |
निर्णय - वचनों के ज्ञान बिना, कौवा हंस नहीं होता |
शब्द जु ऐसा बोलिये, मन का आपा खोय |
औरन को शीतल करे, आपन को सुख होय ||
शरीर का अहंकार छोड़कर वचन उच्चारे | इसमें आपको
शीतलता मिलेगी, सुनने वाले को भी सुख प्राप्त होगो |
औरन को शीतल करे, आपन को सुख होय ||
शरीर का अहंकार छोड़कर वचन उच्चारे | इसमें आपको
शीतलता मिलेगी, सुनने वाले को भी सुख प्राप्त होगो |
कागा काको धन हरै, कोयल काको देत |
मीठा शब्द सुनाय को, जग अपनो करि लेत ||
कौवा किसका धन हरण करता है, और कोयल
किसको क्या देती है ? केवल मीठा शब्द सुनाकर जग
को अपना बाना लेती है |
मीठा शब्द सुनाय को, जग अपनो करि लेत ||
कौवा किसका धन हरण करता है, और कोयल
किसको क्या देती है ? केवल मीठा शब्द सुनाकर जग
को अपना बाना लेती है |
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