Saturday, March 5, 2016

कड़वा सत्य

।। कड़वा सत्य ।।
महाभारत में एक प्रकरण आता है:-
जिस समय द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था।
उस समय भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य
तथा करण इन सबकी दुर्याेधन
राजा द्वारा विशेष आवाभगत की जाती थी,
इसी कारण से राजनीति दोष से ग्रस्त होकर
अपने कर्तव्य को भूल गए थे। पाण्डव
अपनी बेवकूफी के कारण राजनीति के षड़यंत्र के
शिकार होकर विवश हो गए थे।
उस सभा (पंचायत) में एक धर्मनीतिज्ञ
पंचायती विदुर जी थे। उसने स्पष्ट कहा।
आदरणीय गरीबदास जी की वाणी में:-
विदुर कह यह बन्धु थारा, एकै कुल एकै परिवारा।
दुर्याेधन न जुल्म कमावै, क्षत्रीय
अबला का रक्षक कहावै।
अपनी इज्जत आप उतारै, तेरी निन्द हो जग में
सारै।
विदुर के मुख पर लगा थपेड़ा, तू तो है
पाण्डवों का चेरा (चमचा)।
तू तो है बान्दी का जाया, भीष्म, द्रोण करण
मुसकाया।
भावार्थः- उस पंचायत में केवल धर्मनीतिज्ञ
पंचायती भक्त विदुर जी थे। निष्पक्ष वचन कहे
कि हे दुर्योधन! कुछ विचार कर आपके कुल की बहू
(द्रोपदी) को नंगा करके आप
अपनी बेइज्जती आप ही कर रहे हो। क्षत्रीय धर्म
को भी भूल गए हो, क्षत्रीय
तो स्त्री का रक्षक होता है।
बुद्धि भ्रष्ट अभिमानी दुर्योधन ने
पंचायती की धर्मनीति को न मानकर
उल्टा अपने भाई दुशासन से कहा कि इस विदुर
को थप्पड़ मार। दुशासन ने
ऐसा ही किया तथा कहा कि तू
तो सदा पाण्डवों के पक्ष में
ही बोलता रहता है, तू तो इनका चमचा है।
अहंकारी दुर्योधन ने राजनीतिवश होकर अपने
चाचा विदुर को भी थप्पड़ मारने की राय दे
दी। विदुर धर्मनीतिज्ञ पंचायती सभा छोड़कर
चला गया। पंचायती का यह कर्तव्य
होना चाहिए। सत्य कह, नहीं माने
तो सभा छोड़कर चला जाना चाहिए।
परंतु उस सभा में
द्रोपदी को नंगा किया जा रहा था। भीष्म
पितामह, द्रोणाचार्य, करण फिर
भी विद्यमान रहे। उनका उद्देश्य क्या था?
स्पष्ट है उनमें महादोष था, वे
भी स्त्री का गुप्तांग देखने के इच्छुक थे।
सज्जनों! यदि इन तीनों (भीष्म पितामह,
द्रोणाचार्य तथा करण) में से एक
भी खड़ा होकर कह देता कि खबरदार अगर
किसी ने ‘‘स्त्री‘‘ के चीर को हाथ लगाया। ये
तीनों इतने योद्धा थे कि उनमें से एक से
भी टकराने की हिम्मत किसी में नहीं थी।
भीष्म दादाजी थे, प्रथम तो उसका कर्तव्य
था, कहता कि दुर्योधन! द्रोपदी का चीर हरण
मत कर, तुम भाई-भाई जो करना है करो। दूसरे
कहना था कि हे अपराधी दुशासन! अपने
चाचा पर हाथ उठा दिया तो समझो अपने
पिता पर हाथ उठा दिया,
उसको धमकाना चाहिए था। लेकिन
राजनीति के कायल किसी ने
भी पंचायती फर्ज अदा नहीं किया।
उसी कारण से महाभारत के युद्ध में सर्व
दुर्गति को प्राप्त हुए। केवल विदुर
ही धर्मात्मा था जो अच्छा पंचायती था।

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