Thursday, March 24, 2016

योगि गोरखनाथलाई पूर्ण ब्रह्म कविर्देवले आफ्नो उमेर वताउंदै nepali


जो बूझे सोई बावरा, क्या है उम्र हमाही ।
असंख युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी।।
कोटि निरंजन हो गए, परलोक सिधारी।
हम तो सदा महबूब हैं, स्वयं ब्रह्मचारी।।
अरबों तो ब्रह्मा गए, उनन्चास कोटि कन्हैया।
सात कोटि शम्भू गए, मोर एक नहीं पलैया।।
कोटिन नारद हो गए, मुहम्मद से चारी।
देवतन की गिनती नहीं है, क्या सृष्टि विचारी।।
नहीं बुढ़ा नहीं बालक, नाहीं कोई भाट भिखारी।
कहैं कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी।।

अविनाशि परमात्मा केवल पुर्ण ब्रह्म कविर्देव भएको प्रमाणः-

अवधु अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक हनै दिखलाया ।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया ।
माता–पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी ।
जलहा को सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी ।।
पांच तत्व का धड नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा ।
सत्य स्वरुपी नाम साबिह का, सो है नाम हमारा ।।
अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा।
ज्योति स्वरुपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी,
धरता ध्यान हमारा ।।
हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी ।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कविर अविनासी ।।

५. यदि कसैलाई संका भएमा आफ्ना सद ग्रन्थहरु पढेर हेर्नुहोस् ।
संदर्भ सामाग्रिः- "ध्यात्मिक ज्ञान गंगा"

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