Saturday, April 2, 2016

शब्द भेद तब जानिये, रहे शब्द के माहिँ|

शब्द भेद तब जानिये,
रहे शब्द के माहिँ|
शब्दे शब्द परगट भया,
दूजा दीखे नाहिँ||
लोहे चुम्बक प्रीति है,
लोहे लेत उठाय|
ऐसेहिँ शब्द कबीर का,
जम से लेत छुड़ाय||
शब्द द्वारा श्रष्टि रचना

" महाउदघोष " ही वास्तव में शब्द की ताकत है । और मालिक-ए-कुल की परिपूर्ण ताकत है । जो खण्डों ब्रहमण्डों को लिए खडी़ है । यह चैतन्य आत्मक धारा है , यह धुन सहित थरथराहट है । यह महाचैतन्य है । इसी धारा से मालिक कुल जहान को पैदा करता है । यह धारा मालिक से निकल कर सबके अन्दर पहुंच रही है । इस धारा से सबकी सम्हाल करता है । इस धारा में अनन्त ध्वनियां हैं । इससे अनन्त राग रागनियां निकल रही हैं ।

सतगुरु कबीर साहेबजी फरमाते हैं कि यही शब्द- गुरू है । वहां :-
अनन्त कोटि जहां बाजे बाजें।
शब्द विदेही जहां बिराजें ।।
सार शब्द से लोक बनाया ।
वही सार हंसन मुक्ताया ।।
शब्द अखण्ड होत दिन राती।
न कोई पूजा न कोई पाती ।।
बिन कर ताल पखावज बाजें।
बिना नींव के मंदिर साजें ।।
भूमि कहो तो भूमि नांही ।
मंदिर रचे तासु के मांहि ।।
बिना भूमि जहां बहती गंगा ।
बिना नीर जहां उठें तरंगा ।।
बिन बादल बिजली चमकारा।
बिना नीर जहां चलें फुवारा ।।
घरहर गरजें अति अधिकाई ।
लौर उठे बादल कोई नांहि ।।
मोर चकोर कोयल किलकारें।
बिना अंग के शब्द उचारें ।।
यह राग रागिनियां किसी वक्त गुरू की बताई युक्ति से सुनाई देती हैं । ज्यों-ज्यों हम सूक्ष्म होते जाते हैं , त्यों-त्यों धुनें साफ सुनाई देती हैं । इनके माध्यम से जीव अपने मालिक तक रसाई पाता है , पुनः जीवन मरण से आजाद हो जाता है ।

सार शब्द से लोक बनाया ।
वही सार हंसन मुक्ताया ।।

सारांश यह है कि कुल रचना शब्द से हुई गुरू वाणी में गुरू नानक जी फरमाते हैं :--
शब्दै धरती शब्दै आकाश ।
शब्दै शब्द भया प्रकाश ।।
सकल सृष्टि शब्द के पाछे ।
नानक शबद घटों घट आछे ।।
सतगुरु कबीर साहेबजी कहते हैं :-
सत्य के शब्द से धरन आकाश हैं ।
सत्य के शब्द से पवन पानी ।।
धरती आकाश पवन पानी सभी शब्द से पैदा हुए ।
गोस्वामी गरीबदास जी फरमाते हैं: -
शब्द स्थावर जंगम जोगी ।
दास , गरीब शब्द रस भोगी ।।
शब्द अति सूक्ष्म और सर्व व्यापक है । कुल रचना इसमें समाई हुई है ।
सतगुरु कबीर साहेबजी फरमाते हैं।: -
रैन समानी सूर्य में सूर्य समाना आकाश ।
आकाश समाना शब्द में खोजे कोई निज दास।।
सूर्य के उदय होते ही रैन का अंधेरा उसी में लोप हो जाता है । इसी प्रकार कुल ब्रहमाण्ड शब्द में समाये हुए हैं । अर्थात् शब्द सर्वत्र है । जहां पुरष प्रकृति का मेल है जहां कार्य और कारण उत्पन्न हुए तहां भी एक गति है , थरथराहट शब्द के कारण है । शब्द वहां भी व्याप्त है । शब्द एक थरथराहट और हरकत का नाम है । ध्वनि सहित है । यह सूक्ष्म में है स्थूल में भी है । यह नाद भी है और वाणी भी यही शब्द है कहीं अनहद है , कहीं ओंकार कहीं सोहं यह सब इसकी अवस्थाएं हैं । इस शब्द की ध्वनि सागर की लहरों में है । बादल की गर्जन में है । बिजली की कड़क मे है । तूफानों की रफ्तार में है । एटम बम्ब की आवाज में है । सृष्टि और प्रलय यही शब्द करता है । सतगुरु कबीर साहेबजी फरमाते हैं: -
जब नहीं चन्द्र सूर्य अवतारा ।
जब नहीं तीनों गुण विस्तारा ।।
नाही सुन्न पवन न पानी ।
समर्थ की गति काहू न चानी।।
आदि ब्रहम नही किया पसारा।
आप अकह तब हता न्यारा ।।
शब्द विदेह भयो उचारा ।
तेहि पीछे सब सृष्टि पसारा ।।
उत्पत्ति तथा प्रलय दोनों शब्द से होती हैं । वही सृष्टि के पूर्व था और प्रलय के बाद भी होगा ।
बीजक में भी कहे है कि,:-
साँचा शब्द कबीर का,ह्रदय देखु विचार ।
चित दै समुझे नही,मोहि कहत भैल युग चार ।।
(बीजक साखी--६४)
बाईबल में आया: -
Word of God is quick and powerful and sharpen than two edged sword.
शब्द शक्तिशाली है और समर्थ है । यह दो धारी तलवार से भी तेज है ।
By the word of lord were the heavens made परमात्मा के शब्द से स्वर्ग बने ।
यह शब्द अदृष्ट है । अगोचर है । सीमा रहित है । असीम है । यह पढ़ने लिखने बोलने में नहीं आता । वक्त गुरू द्वारा बताई युक्ति द्वारा लखा जा सकता है । शब्द गुरू प्रकट होने से राग रागनियां सुनाई देने लगती हैं । शब्द जहां है वहां गति है । थरथराहट है । अणुओं में आप देखते हैं गति है । गति का कारण शब्द है । गति का कारण शब्द है । जहां शब्द है , जहां शब्द है , वहां चैतन्यता है । इसीलिए शब्द महा चैतन्य है " शक्तिशाली " है । छोटे-छोटे अणुओं से बम्ब बनता है उसके विस्फोट से सर्वनाश होता है इससे शब्द की शक्तियों का अनुमान लगाया जा सकता है ।
दूसरा पक्ष भी शब्द का है । जहां मधुर-मधुर मन मोहक जीवन संचार करने वाली राग रागनियां होती हैं । यह जीव वृक्ष पौधे सब में जीवन संचार करती हैं । 

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