पुर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर जी का प्राकट समय वि.स. 1455 (सन् 1398) ज्येष्ठ मास की पुर्णिमा के लहर तारा तालाब काशी(बनारस) मे एक कमल के फूल पर ब्रह्ममहूर्त मे एक नवजात शिशु के रुप मे प्रकट हुए और सह शरीर परमधाम जानेका समय वि.स. 1575 (सन् 1518) हे।
उन श्रद्धालुओं के सामने अकाश मे कबीर जी का प्रकाशमय नूरी के शरीर आकाश मे जा रहे थे।उनके शरीर के स्थान पर सुगंधित फूल पाए थे जिसमे हिन्दुओन और मुस्लमान ने आधा आधा फूल तथा एक एक चद्दर बांट कर मगहर नगर में साथ साथ सौ फुट के अन्तर पर यादगारे बना रखी है।
कबीर सागर अध्याय "ज्ञान बोध" (बोध सागर):-
कबीर सागर अध्याय "ज्ञान बोध" (बोध सागर):-
नहीं बाप ना माता जाए, अविगत से हम चल आए।
कल युग में कांशी चल आए, जब हमारे तुम दर्शन पाए।।
भग की राह हम नहीं आए, जन्म मरण में नही समाए।
त्रिगुण पांच तत्व हमारे नहीं, इच्छा रुपी देह हम आहीं।।
कल युग में कांशी चल आए, जब हमारे तुम दर्शन पाए।।
भग की राह हम नहीं आए, जन्म मरण में नही समाए।
त्रिगुण पांच तत्व हमारे नहीं, इच्छा रुपी देह हम आहीं।।
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