गरीब, चौरासी बंधन कटे, कीनी कलप कबीर।
भवन चतुरदश लोक सब, टूटे जम जंजीर।।
गरीब, अनंत कोटि ब्रांड में, बंदी छोड़ कहाय।
सो तौ एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।
गरीब, शब्द स्वरूप साहिब धनी, शब्द सिंध सब माँहि।
बाहर भीतर रमि रह्या, जहाँ तहां सब ठांहि।।
गरीब, जल थल पृथ्वी गगन में, बाहर भीतर एक।
पूरणब्रह्म कबीर हैं, अविगत पुरूष अलेख।।
गरीब, सेवक होय करि ऊतरे, इस पृथ्वी के माँहि।
जीव उधारन जगतगुरु, बार बार बलि जांहि।।
गरीब, काशीपुरी कस्त किया, उतरे अधर अधार।
मोमन कूं मुजरा हुवा, जंगल में दीदार।।
गरीब, कोटि किरण शशि भान सुधि, आसन अधर बिमान।
परसत पूरणब्रह्म कूं, शीतल पिंडरू प्राण।।
गरीब, गोद लिया मुख चूंबि करि, हेम रूप झलकंत।
जगर मगर काया करै, दमकैं पदम अनंत।।
गरीब, काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर।
कोई कहै ब्रह्मा विष्णु हैं, कोई कहै इन्द्र कुबेर।।
गरीब, कोई कहै छल ईश्वर नहींं, कोई किंनर कहलाय।
कोई कहै गण ईश का, ज्यूं ज्यूं मात रिसाय।।
गरीब, कोई कहै वरूण धर्मराय है, कोई कोई कहते ईश।
सोलह कला सुभांन गति, कोई कहै जगदीश।।
गरीब, भक्ति मुक्ति ले ऊतरे, मेटन तीनूं ताप।
मोमन के डेरा लिया, कहै कबीरा बाप।।
गरीब, दूध न पीवै न अन्न भखै, नहींं पलने झूलंत।
अधर अमान धियान में, कमल कला फूलंत।।
गरीब, काशी में अचरज भया, गई जगत की नींद।
ऎसे दुल्हे ऊतरे, ज्यूं कन्या वर बींद।।
गरीब, खलक मुलक देखन गया, राजा प्रजा रीत।
जंबूदीप जिहाँन में, उतरे शब्द अतीत।।
गरीब, दुनी कहै योह देव है, देव कहत हैं ईश।
ईश कहै पारब्रह्म है, पूरण बीसवे बीस।
भवन चतुरदश लोक सब, टूटे जम जंजीर।।
गरीब, अनंत कोटि ब्रांड में, बंदी छोड़ कहाय।
सो तौ एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।
गरीब, शब्द स्वरूप साहिब धनी, शब्द सिंध सब माँहि।
बाहर भीतर रमि रह्या, जहाँ तहां सब ठांहि।।
गरीब, जल थल पृथ्वी गगन में, बाहर भीतर एक।
पूरणब्रह्म कबीर हैं, अविगत पुरूष अलेख।।
गरीब, सेवक होय करि ऊतरे, इस पृथ्वी के माँहि।
जीव उधारन जगतगुरु, बार बार बलि जांहि।।
गरीब, काशीपुरी कस्त किया, उतरे अधर अधार।
मोमन कूं मुजरा हुवा, जंगल में दीदार।।
गरीब, कोटि किरण शशि भान सुधि, आसन अधर बिमान।
परसत पूरणब्रह्म कूं, शीतल पिंडरू प्राण।।
गरीब, गोद लिया मुख चूंबि करि, हेम रूप झलकंत।
जगर मगर काया करै, दमकैं पदम अनंत।।
गरीब, काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर।
कोई कहै ब्रह्मा विष्णु हैं, कोई कहै इन्द्र कुबेर।।
गरीब, कोई कहै छल ईश्वर नहींं, कोई किंनर कहलाय।
कोई कहै गण ईश का, ज्यूं ज्यूं मात रिसाय।।
गरीब, कोई कहै वरूण धर्मराय है, कोई कोई कहते ईश।
सोलह कला सुभांन गति, कोई कहै जगदीश।।
गरीब, भक्ति मुक्ति ले ऊतरे, मेटन तीनूं ताप।
मोमन के डेरा लिया, कहै कबीरा बाप।।
गरीब, दूध न पीवै न अन्न भखै, नहींं पलने झूलंत।
अधर अमान धियान में, कमल कला फूलंत।।
गरीब, काशी में अचरज भया, गई जगत की नींद।
ऎसे दुल्हे ऊतरे, ज्यूं कन्या वर बींद।।
गरीब, खलक मुलक देखन गया, राजा प्रजा रीत।
जंबूदीप जिहाँन में, उतरे शब्द अतीत।।
गरीब, दुनी कहै योह देव है, देव कहत हैं ईश।
ईश कहै पारब्रह्म है, पूरण बीसवे बीस।
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