Wednesday, June 29, 2016

kabir saheb's dohe

(21)
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥
(22)
जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप ।
जहाँ क्रोध तहाँ पाप है, जहाँ क्षमा तहाँ आप ॥

(23)
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान ।
जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥
(24)
जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान । 
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥ 

(25)
पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय । 
एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ॥
(26)
गारी ही सों ऊपजे, कलह कष्ट और मींच । 
हारि चले सो साधु है, लागि चले सो नींच ॥
(27)
कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और । 
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर ॥
(28)
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । 
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥ 

(29)
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय । 
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय ॥ 

(30)
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार । 
तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार ॥
(31)
आय हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर । 
एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधे जात जंजीर ॥
(32)
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर । 
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥

(33)
शीलवन्त सबसे बड़ा, सब रतनन की खान । 
तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ॥ 

(34)
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । 
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥ 

(35)
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय । 
हीना जन्म अनमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥ 

(36)
नींद निशानी मौत की, उठ कबीरा जाग । 
और रसायन छांड़ि के, नाम रसायन लाग ॥ 

(37)
जहाँ आपा तहाँ आपदां, जहाँ संशय तहाँ रोग । 
कह कबीर यह क्यों मिटे, चारों धीरज रोग ॥ 
  
(38)
माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख । 
माँगन से तो मरना भला, यह सतगुरु की सीख ॥ 

(39)
माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय । 
भगता के पीछे लगे, सम्मुख भागे सोय ॥ 

(40)
आया था किस काम को, तु सोया चादर तान । 
सुरत सम्भाल ए गाफिल, अपना आप पहचान ॥

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