Saturday, September 10, 2016

कबीर,कबीरा वा दिन यादकर, पग ऊपरि तल सीस। मृतु मंडल मेँ आयके , बिसरि गया जगदीस ।।

कबीर,राम नाम जाना नहीँ , ता मुख आन धरम ।
के मूसा के कातरा , खाता गया जनम ।।

कबीर, राम नाम जाना नही, पाला सकल कुटुम्ब ।
धन्धचही मेँ पचि मरा , बार भई नहिँ बुम्ब ।।

कबीर,राम नाम जाना नही, मेला मना बिसार ।
ते नर हाली बालदी , सदा पराये बार ।।

कबीर,इसऔसरि चेता नही, पशु ज्योँ पाली देह ।
राम नाम जाना नहीँ , अन्तपरि मुख खेह ।।

कबीर,कबिरा या संसार मेँ , घने मनुष्य मति हीन ।
राम नाम जाना नहीँ , आये टापा दीन ।।

कबीर,राम नाम जाना नहीँ, बात बिनूठी मूल ।
हरी सा ही तू बिसारिया, अन्तपरी मुख धुल ।।

कबीर,राम नाम जाना नहीँ, लागी मोटी खोरि ।
काया हांडी काठकी , ना वह चढैँ बहोरि ।।

कबीर,राम नाम जाना नहीँ, चूक्यो अबकी घात ।
माटी मिलन कुम्हार की, घनी सहैगी लात ।।



कबीर,कबीरा वा दिन यादकर, पग ऊपरि तल सीस।
मृतु मंडल मेँ आयके ,  बिसरि गया जगदीस ।।

कबीर,हरिँ के नाम बिन , राजा रासभ(गधा)होय।
माटी लदै कुभंहार कै , घास ना नीरै कोय ।।

कबीर,हरि के नाम बिना, नारी कुकरी(कुत्ती)होय।
गली-2 भौँकत फिरै, टूक ना डालै कोय ।।

कबीर,पाँच पहर धंधै गया, तीन पहर रहा सोय ।
एक पहर हरि ना भज्योँ , मुक्त कहां ते होय ।।

कबीर,धूमधाम मेँ दिन गया, सोचत हो गई सांझ ।
एक घरि हरि ना भजा , जननी जनि भई बांझ ।।

कबीर,राति गवांई सोय के , घोस गवांया खाय ।
हीरा जन्म अमोल है , कौड़ी बदले जाय ।।

कबीर,चिँता तै हरिनाम की, और न चितवै दास ।
जा कछु चितवे नाम बिनु , सोइ काल का फाँस ।।

कबीर,जबही नाम ह्रदय धरयो , भयो पाप को नाश ।
मानौँ चिगांरी अग्नि की, परी पुराने घास ।।

कबीर,नाम जो रति एक है , पाप जो रति हजार ।
आध रति घट संचरै , जारि करै सब छार ।।

कबीर,राम नाम को सुमिरता , अधरे पतित अनेक ।
कबीर,राम नाम को सुमिरता, अधम तरे अपार ।
अजामेल गनिका सुपच , सदना सिवरी नार ।।


कबीर,स्वप/ मेँ बरराय के, जोरे कहैगा राम ।
वाके पग की पाँवड़ी , मेरे तन को चाम ।।


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