Sunday, September 11, 2016

हमरे अनहद बाजे बाजे, हमरे किये सभे कुछ साजे I हम ही लहर तरंग उठावे , हम ही प्रगट हम छिप जावे I

हमरे अनहद बाजे बाजे, हमरे किये सभे कुछ साजे I
हम ही लहर तरंग उठावे , हम ही प्रगट हम छिप जावे I

Il भग की राह हम नहीं आए,  जन्म मरण में नहीं समाए l 
त्रीगुण पांच तत्व हमरे नाहीं, इच्छा रूपी देह हम आहीं ll

अनंतकोटी ब्रम्हांड का एक रति नही भार...
सदगुरू पुरुष कबीर है कुल के सिरजनहार...

कबीर–राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नांही संसार।
जिन साहेब संसार किया, सो किन्हूं न जन्म्या नार।।

सतगुरू बोले अमृत वाणी | गुरूबिन मुक्ति नही रे प्रानी ||
गुरू है आदी अंत के दाता गुरू है मुक्ति पदारथ भ्राता ||
गुरू है गंगा काशी अस्थाना चारी वेद गुरू गमते जाना ||
गुरू है सुरसरी निर्मल धारा | बिन गुरू घट नाहिं हो उजियारा||


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आदरणीय घीसा दास साहेब जी को भी पूज्य पारब्रह्म कबीर परमेश्वर जी सशरीर मिले-
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भारत वर्ष सदा से ही संतों के आशीर्वाद युक्त रहा है। प्रभु के भेजे संत व स्वयं परमेश्वर समय-समय पर इस भूतल को पावन करते रहे हैं। उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ में एक पावन ग्राम खेखड़ा है,जिसमें विक्रमी सं.1860सन्1803में परमेश्वर के कृपा पात्र संत घीसा दास जी का आविर्भाव हुआ। जब आप जी सात वर्ष के हुए तो पूर्ण ब्रह्म कविर्देव (कबीर परमेश्वर) सतलोक (ऋतधाम) से सशरीर आए तथा गाँव के बाहर खेल रहे आपजी को दर्शन दिए। परम पूज्य कबीर साहेब (कविर्देव) ने अपने प्यारे हंस घीसादास जी को प्रभु साधना करने को कहा तथा लगभग एक घण्टे तक सत्संग सुनाया। बहुत से बच्चे उपस्थित थेतथा एक वृद्धा भी उपस्थित थी। परमेश्वर कबीर जी के मुख कमल से अपनी ही (परमेश्वर की) महिमा सुनकर आदरणीय घीसा दास साहेब जी ने सत्यलोकचलने की प्रबल इच्छा व्यक्त की। तब प्रभु कबीर (कविर्देव) ने कहा कि पुत्रा आओ,एकांत स्थान पर मंत्रा दान करूंगा। अन्य श्रोताओं से200फुट की दूरी पर ले जाकर नाम दान किया,मंत्रित जल अपने लोटे(एक पात्रा) से पिलाया तथा कुछ मिश्री संत घीसा दास साहेब जी को खिलाई। शाम का अंधेरा होने लगा था। परमेश्वर कबीर (कविर्देव) अन्तध्र्यान हो गए। सात वर्षीय बालक घीसादास साहेब जी अचेत हो गए। वृद्धा भतेरी ने गाँव में आकर आप जी के माता-पिता को बताया कि आपके बच्चे को एक जिन्दा महात्मा ने मन्त्रिात जल पिला दिया,तुम्हारा बेटा तो अचेत हो गया तथा वह जिन्दा अदृश हो गया। आपजी के माता-पिता जी को वृद्ध अवस्था में एक संत के आशीर्वाद से संतान रूप में आपजी कीप्राप्ति हुई थी। समाचार सुनते ही माता-पिता अचेत हो गए। अन्य ग्रामवासी घटना स्थल पर पहुँचे और अचेत अवस्था में ही बालक घीसा दास साहेब जी को घर ले आए। जब माता-पिता होश में आए। बच्चे की गंभीर दशा देखकर विलाप करने लगे। सुबह सूर्य उदय होते ही बालक घीसा जी सचेत हो गए। फिर आप जी ने बताया कि यह बाबा जिंदा रूप में स्वयं पूर्ण परमात्मा कबीर जी थे,यही पूर्ण परमात्मा काशी में धाणक (जुलाहा) रूपमें एक सौ बीस वर्ष रह कर सशरीर वापिस चले गए थे। कल मुझे अपने साथ सतलोक लेकर गए थे। आज वापिस छोड़ा है। माता-पिता ने बच्चे के स्वस्थ हो जाने पर सुख की सांस ली,बच्चे की बातों पर विशेषध्यान नहीं दिया।आदरणीय घीसा दास साहेब जी समाज की परवाह न करते हुए भक्ति प्रचार मेंलगे रहे तथा पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर्देव) के उपदेशों का प्रचार करने लगे। सर्व को बताने लगे कि वही कबीर जी जो काशी में जुलाहा रूप में रह कर चला गया,पूर्ण परमात्मा है,वह साकार है।










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