Wednesday, January 4, 2017

गरीबदास जी की वाणी में "नरक लोक" का वर्णन :-

गरीब, जम किंकर के धाम कूं, साईं न ले जाय |
बड़ी भयंकर मार है, सतगुरु करैसहाय ||

गरीब, कारे कारे किंगरे, नीला जम का धाम |
जेते जामे जीव है, नहीं चैन विश्राम ||
गरीब, है तांबे की धरतरी, चोरासी मध कुंड |
आदि अंत के जिव जित, होते रुंडक मुंड ||
गरीब, चोरासी जहाँ कुंड हैं, खंभ अनंत अपार |
करनी भुगते आपनी, नाना बिधि की मार ||
गरीब, चोदा कोटि भयंकरम, चोदा मुनि दिवान |
कोटि कोटि ताबै किये, साईं का फुरमान ||
गरीब, रुधिर भरे जहाँ कुंड हैं, कुंभी जिनका नाम |
दवारा हैं मुख लोड का, बड़ा भयंकर धाम ||
गरीब, सो सो योजन कुंड है, गिरद गता बहु भीर |
कोट्यो जिव उसारिये, कहिं न पावै थीर ||
गरीब, हाथ पैर जिनके नहीं, नहीं सीस मुखद्वार |
तलछू माछू होत हैं, परै गैब की मार ||
गरीब, लघुसी बानी कहत हूँ, दीरघ कही न जाय |
जम किंकर की मार से, साईं लेत छुड़ाय ||
गरीब, नीले जिनके होंठ हैं, काली जिनकी जीभ |
चिसमे जिनके लाल है, रक्त टपकै पीव ||
गरीब, सूर स्वान के मुख बने, धड़ तो जिनकी देह |
दस्तो जिनके गुर्ज हैं, मारे निर संदेह ||
गरीब, स्याम वर्ण शंका नही, दागड दुम खलील |
उरध चुंच मुख काग का, चिसमे जिनके नील ||
गरीब, शक्ति सरुपी तन धरै, लघु दीरघ हो जाहिं |
बाहर भीतर मार हैं, तन कूं बहु विधि खाहिं ||
गरीब, कोटि-कोटि की जोट हैं, कोटि-कोटि एक संग |
एका-एकी फिरत है, ऐसेभयंकर अंग ||


जय हो बन्दिछोड़ की..........!!!!

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