Thursday, August 3, 2017

मन

गरीब, मन का मेला भरि रह्या, मन ही के बाजार |
मन ही बणजी करत है, मन ही साहूकार || ४१ ||

गरीब, मन ही सौदागर भया, मन ही बैठ्या हाटि |
मन पद पारख परखियां, मन ही करता साटि || ४२ ||

गरीब, मन ही सरगुण हो रह्या, मन ही निर्गुण नूर |
मन ही  ब्रह्म है, मन ही कुत्ता सूर || ४३ ||

गरीब, मन ही बंगी बंग दी, मन ही पढ़ै नमाज |
मन ही रोजा करत है, मन चिड़ियां मन बाज || ४४ ||

गरीब, मन ही कलमा पढ़त है, मन ही उधेड़ै खाल |
मन ही मछली हो रह्या, मन ही झींवर जाल || ४५ ||

गरीब, मन ही मुल्ला मुर्ग है, मन ही बकरी बोक |
मन ही काजी हो रह्या, सींक भरत है शोख || ४६ ||

गरीब, मन ही भिस्ती हो रह्या, मन ही दोजख दुंद |
मन कूँ सूझे लोक सब, मन ही कुट्टन अंध || ४७ ||

गरीब, मन ही अलह अलेख है, मन ही राम रहीम |
मन ही कादर आप है, मन ही है बहलीम || ४८ ||

गरीब, मन ही माया हो रह्या, मन ही काया काल |
मन ही जानि श्राप दी, मन ही करै निहाल || ४९ ||

गरीब, मन ही माली कूप है, मन ही माली बाग |
मन ही ज्ञाता हो रह्या, मन ही सुनता राग || ५० ||

गरीब, मन ही बहरा गुंग है, मन ही अंधा ऊत |
मन सकादिक हो रह्या, मन ही भैरव भूत || ५१ ||

गरीब, मन ही खित्रपाल है, मन ही देवी देव |
मन ही आगे मन खड़ा, मन ही कर सेव || ५२ ||

गरीब, मन ही दुर्गा हो रह्या, मन ही खित्रपाल |
भुवन चतुर्दश रमि रह्या, मन ही के सब ख्याल || ५३ ||

गरीब, मन ही घोड़ा ऊंट है, मन ही हस्ती जान |
मन ऊपर असवार है, मन ही है पीलवान || ५४ ||

गरीब, मन ही मोर चकोर है, मन ही सर्प भवंग |
मन ही कूँ मन डसत है, मन गारुड़ प्रसंग || ५५ ||

गरीब, मन ही देवी धाम है, मन ही पूजन जाय |
मन के मारे बहि गये, यौह मन बड़ी बलाय || ५६ ||



* मन के अति बलशाली होने के प्रमाण *

गरीब, मन के मारे बन गये, बन तजि बसती हेत |
शृंगी ॠषी से पाकरे, यह मन हेला देत || ५७ ||

गरीब, मन के मारे बन गये, पारा ॠषी प्रवान ||
पुत्री से संजम किया, मन की खोटी बांन || ५८ ||

गरीब, मन के मारे बन गये, नारद से महमंत |
पूत बहत्तर मन किये, ऐसे पूरे संत || ५९ ||

गरीब, सुरपति का तो मन चल्या, गौतम ऋषि की नारि |
इन्द्र सहंस भग हो गये, लगी चंद्र मृगछारि || ६० ||

गरीब, दुर्वासा का मन चल्या, तन मंजन बैराग |
मल्ल अखाड़ै मोहिया, सुने उर्वशी राग || ६१ ||

गरीब, ब्रह्मा का आसन डिग्या, और बड़ा कहो कौन |
मन के मारे मुनि गये, अनहोनी हरि हौंन || ६२ ||

गरीब,शंकर अडिग अडोल है, जाके मन की बूझि |
शंकर का पारा चल्या, हरदम मन से लूझि || ६३ ||

गरीब, विष्णु विसंभर मोहिया, पकरे हैं भगवान |
अनंत कला धरि अवतरे, मन की गई न बान || ६४ ||

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