अमर करू सतलोक पाठाऊ, ताते बन्दी छोड़ कहाऊ I
हम ही सतपुरुष दरवानी, मेट्टू उत्पति आवा जानी I
जो कोई कहा हमारा माने, सार शब्द कुं निश्चय आने I
हम ही शब्द शब्द की खानी, हम अविगत प्रवानी I
हमरे अनहद बाजे बाजे, हमरे किये सभे कुछ साजे I
हम ही लहर तरंग उठावे , हम ही प्रगट हम छिप जावे I
हम ही गुप्त गुह्ज गम्भीरा, हम ही अविगत हमे कबीरा I
हम ही गरजे,हम ही बरषे, हम ही कुलफ जड़े हम निरखे I
हम ही सराफ जोहरी कहिया, हमरे हाथ लेखन सब बहिया I
यह सब खेल हमरे किये, हमसे मिले सो निश्चय जीये I
हम ही अदली जिन्दा जोगी , हम ही अमी महारस भोगी I
हमरा भेद न जाने कोई , हम ही सत्य शब्द निरमोहि I
ऐसा अदली दीप हमारा , कोटि बैकुण्ठ रूप की लारा I
संख पदम एक फुनि पर साजे , जहाँ अदली सत्य कबीर विराजे I
जहाँ कोटिक विष्णु खड़े कर जोरे, कोटिक शम्भु माया मोरे I
जहाँ संखो ब्रह्म वेद उचारी , कोटि कन्हेया रास विचारी I
हम है अमर अचल अनरागी, शब्द महल में तारी लागी I
दास गरीब हुक्म का हेला , हम अविगत अदली का चेल।।।।
_____सत
_________साहेब
Sunday, April 24, 2016
अमर करू सतलोक पाठाऊ, ताते बन्दी छोड़ कहाऊ I
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