एक संत अपने एक शिष्य के साथ एक नगर के पास के वन मे रहते थे।एक दिन संत जी ने अपने शिष्य को एक सिध्दी सिखाई और बताया की इस सिध्दी का प्रयोग मेरी गैर हाजरी मे प्रयोग मत करना।
एक बार संत जी ज्ञान प्रचार के लिए तीन दिन के लिऐ एक नगरी मे चले गये । शिष्य अकेला कुटिया मे रह गया था।एक दिन शिष्य ने सोचा की आज तीसरा दिन है और गुरूदेँव जी भी आने वाले है कुछ टाईम मे तब तक उस सिध्दी का प्ररिक्षण करते है जो गुरुदेँव जी ने सिखाई है।शिष्य ने गुरुदेँव के बताऐ अनुसार मँत्र उचारण किया तभी एक जिन्न प्रकट हुआ।जिन्न ने कहा मुझे काम बताओ नही तो तुम्हे मार दुँगा। तभी वो शिष्य बोला गाँव से भिक्षा ले आओ तभी जिन्न ने कुछ देर मे भिक्षा ले आया । फिर कपड़े धोने को बोला ऐसे जिन्न से सब काम करवा लिया।
तब जिन्न बोला कि और काम बताओ जब कुछ देर तक उस शिष्य ने कोई काम ना बताया तो जिन्न उसे मारने के लिऐ दौड़ा तभी वो शिष्य रास्ते की और दोड़ा तो गुरुदेँव आते दिंखाई दिये शिष्य जोर जोर से आवाज लगाता की गुरु जी बचाओ गुरु जी बचाओ आवाज लगाता गुरुदेँव की और तेजी से दौड़ा। तभी संत जी ने पुँछा की क्या हु आ बच्चा तब शिष्य ने सारी घटना बताई और कहा गुरु जी माफ करो मुझे बचाऔ नही तो वो जिन्न हमे मार डालेगा।
तब संत जी ने शिष्य को कहा की जिन्न को कहो की एक मजबुत लम्बा बाँस लेकर आओ और उसे जमीन मे गाड़ दो । जिन्न ने एक बाँस का लठ्ठ जमीन मे गाँड़ दिया । तब संन्त जी ने शिष्य को कहा की अब जिन्न को कहो की अब इस बाँस पर चढते और उतरते रहो । तब शिष्य ने जिन्न को बाँस पर चढने उतरने का काम देकर राहत की साँस ली ।
इसी प्रकार परमेश्वर बताते है की मन रुपी जिन्न से बचने का उपाय गुरूदेँव जी से मिला हुआ नाम रुपी बाँस है जिस पर मन को लगाऐ रखे अन्यथा हमे ये मन रुपी जिन्न विचलित कर भगतिहीन बना देगा इस से बचने का उपाय केवल नाम आधार है मन रुपी घोड़े को रोका नही जा सकता इसकी दिशा चैज की जा सकती है जितनी स्पीड से ये बुराई के लिए दौड़ रहा था जब इसे अच्छाई पर लगाया जाऐगा तब उतनी स्पीड से अच्छाई ग्रहण करेगा ।
।। सत साहेब जी ।।
एक बार संत जी ज्ञान प्रचार के लिए तीन दिन के लिऐ एक नगरी मे चले गये । शिष्य अकेला कुटिया मे रह गया था।एक दिन शिष्य ने सोचा की आज तीसरा दिन है और गुरूदेँव जी भी आने वाले है कुछ टाईम मे तब तक उस सिध्दी का प्ररिक्षण करते है जो गुरुदेँव जी ने सिखाई है।शिष्य ने गुरुदेँव के बताऐ अनुसार मँत्र उचारण किया तभी एक जिन्न प्रकट हुआ।जिन्न ने कहा मुझे काम बताओ नही तो तुम्हे मार दुँगा। तभी वो शिष्य बोला गाँव से भिक्षा ले आओ तभी जिन्न ने कुछ देर मे भिक्षा ले आया । फिर कपड़े धोने को बोला ऐसे जिन्न से सब काम करवा लिया।
तब जिन्न बोला कि और काम बताओ जब कुछ देर तक उस शिष्य ने कोई काम ना बताया तो जिन्न उसे मारने के लिऐ दौड़ा तभी वो शिष्य रास्ते की और दोड़ा तो गुरुदेँव आते दिंखाई दिये शिष्य जोर जोर से आवाज लगाता की गुरु जी बचाओ गुरु जी बचाओ आवाज लगाता गुरुदेँव की और तेजी से दौड़ा। तभी संत जी ने पुँछा की क्या हु आ बच्चा तब शिष्य ने सारी घटना बताई और कहा गुरु जी माफ करो मुझे बचाऔ नही तो वो जिन्न हमे मार डालेगा।
तब संत जी ने शिष्य को कहा की जिन्न को कहो की एक मजबुत लम्बा बाँस लेकर आओ और उसे जमीन मे गाड़ दो । जिन्न ने एक बाँस का लठ्ठ जमीन मे गाँड़ दिया । तब संन्त जी ने शिष्य को कहा की अब जिन्न को कहो की अब इस बाँस पर चढते और उतरते रहो । तब शिष्य ने जिन्न को बाँस पर चढने उतरने का काम देकर राहत की साँस ली ।
इसी प्रकार परमेश्वर बताते है की मन रुपी जिन्न से बचने का उपाय गुरूदेँव जी से मिला हुआ नाम रुपी बाँस है जिस पर मन को लगाऐ रखे अन्यथा हमे ये मन रुपी जिन्न विचलित कर भगतिहीन बना देगा इस से बचने का उपाय केवल नाम आधार है मन रुपी घोड़े को रोका नही जा सकता इसकी दिशा चैज की जा सकती है जितनी स्पीड से ये बुराई के लिए दौड़ रहा था जब इसे अच्छाई पर लगाया जाऐगा तब उतनी स्पीड से अच्छाई ग्रहण करेगा ।
।। सत साहेब जी ।।