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Thursday, August 3, 2017

सारी उम्र सजाने सवारने में लगाते हो अंत में ये देहि राख बन जाएगी, और आपके हाथ कुछ नहीं लगेगा,

जिस देहि को आप सारी उम्र सजाने सवारने में लगाते हो अंत में ये देहि राख बन जाएगी, और आपके हाथ कुछ नहीं लगेगा,
कबीर साहेब कहते हैं”

ये तन काचा कुंभ था, तू लिए फीरे था साथ,
ठुबका लाग्या फुट गया, तेरे कुछ न आया हाथ”

इस कच्चे घड़े जैसे शरीर पर अभिमान न करके इससे हमे भगति करके मोक्ष प्राप्त करना चाहिए.. जिसे आप गहनों और मोतियों से सजाने सवारने में लगे रहते हो…अंत में पता चला कि गहने घर के लूट ले गए और शरीर राख बनते ही कुछ हवा ले गई और कुछ गंगा का नीर ले गया..जो काम इस देहि से लेना था हमने वो तो कभी लिया नहीं

“गहने मोति तन की शोभा ये तन तो काचो भाँडो,
बिना भजन फिर कुतिया बनोगी राम भजो न रांडो”


ये देह परमात्मा ने भगती और मोक्ष के लिए दी है ।अन्यथा हमसे अच्छा जीवन तो जानवर भी जी रहे हैं, पशु पक्षी भी जी रहे हैं.फिर मालिक को मानुष शरीर देने की क्या जरूरत पड़ी..
.कबीर साहेब-

पतिव्रता मैली भली, काली कुचल करूप..,
पतिव्रता के मुख पर बरहों कोटि स्वरूप

“पतिव्रता जमी पर जियूं, जियूं धर है पाँव,
समरथ झाड़ू दैत हैं, न कांटा लग जाव

“परमात्मा कहते हैं भक्ति करने वाली नारी चाहे गोरी हो चाहे काली, सूंदर हो अथवा नहीं.. परमात्मा को भगती प्यारी है फिर चाहे वो कोई भी करता हो कुरूप स्त्री अगर भक्ति करती है तो वो सुंदर स्त्री से कई गुना सूंदर है परमात्मा की नजरों में,क्या फायदा अगर ये देह सुन्दर है पर इससे भक्ति नहीं बनी/ किया  तो अगला जनम कुतिया का होगा, फिर कहाँ जाएगी वो सुंदरता..

“बीबी परदे रहे थी, ड्योडी लगे थी बाहर..,
अब गात उघाड़े फिरती है वो बन कुतिया बाजार”

“वो परदे की सुंदरी, सुनो संदेसा मोर,
अब गात उघाड़े फिरती है वो करे सरायों शोर”

“नक बेसर नक पर बनी, पहने थी हार हमेल,
सुंदरी से कुतिया बनी सुण साहेब के खेल”

इस लिए सुन्दर देह का अभिमान न करके और इस को सजाने सवारने में समय बर्बाद ना करके, इस देहि से अपनी भक्ति रुपी कमाई करके सतलोक, सचखण्ड उस अमर धाम चलो जहाँ से फिर मुड़के इस गंदे लोक में न आना पड़े..

Saturday, April 30, 2016

अवश्य पढे , पर्भु प्रेमी आत्माऐ परदेश(काललोक) से स्वदेश(अमरलोक) लौटने की सडक(विधि)

अवश्य पढे , पर्भु प्रेमी आत्माऐ    परदेश(काललोक) से स्वदेश(अमरलोक) लौटने की सडक(विधि)
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घीसादास जी कहते है मूल कमल से सीधी सडक जात है सतनाम(ओम + तत) ले जा उडा कर...
जैसे हमे अपने घर से दूसरे देश जाना हो तो पहले बस या कार से by सडक airport जायेगे उसके बाद हम बस कार से नही जा सकते फिर हमे airport से हवाई जहाज से उडकर जाना पडेगा..
ठीक इसी तरह मूल कमल से त्रिकुटी तक सीधी सडक जाती है गुरू जी का प्रथम मंत्र समझो बस कार जो हमे त्रिकुटी तक लेकर जायेगा.. त्रिकुटी हवाई अडडा समझो.. त्रिकुटी से आगे हमे सतनाम का मंत्र उडाकर लेकर जायेगा.. सतनाम के दो अक्षर को हवाई जहाज समझो.. ( नाम की नौका ही भवसागर से पार करती है)
विशेष जानकारी->]

नोट - हमारा शरीर एक ब्रह्मांड का नक्शा है जो कुछ एक ब्रह्मांड मे है वो हम शरीर मे भी देख सकते है जैसे internet पर आप कुछ भी देख सकते हो इसी तरह परमात्मा की पावर से हम ब्रह्मांड को इस शरीर मे देख सकते है संत कमल बोलते है योगी चक्र बोलते है ये कमल चक्र इन देवताओ के आवास स्थल है जहा ये रहते है ये ब्रह्मांड मे ही है ये समझ लो हमारा शरीर मिनी ब्रह्मांड है ये देवता कमल के अन्दर हमारे शरीर मे भी विधमान है..

विस्तार से - संत रामपाल जी महाराज के तीन बार मे नामदान देते है प्रथम नाम , दूसरा नाम, तीसरा नाम (सारनाम)... अब जानिये तीनो मंत्रो का महत्व

प्रथम नाम का महत्व======
ये ब्रह्मांड सात कमलो(चक्रो) मे बांटा हुआ है और हर कमल मे एक एक देवी देवता को प्रधान बना रखा है..
मूल कमल --------
मूल कमल से सीधी सडक त्रिकुटी तक जाती है.. जब साधक की भक्ति पूरी हो जाती है तो कबीर परमेश्वर एक विमान लेकर गुरू रूप मे आते है..
(नोट - हमारी आत्मा पर पांच शरीर चढे हुए है स्थूल, सूक्ष्म ,कारण, महाकारण, कैवल्य शरीर..)
हम 5 तत्व के स्थूल शरीर को छोडकर सूक्षम शरीर मे आ जाते है तब हमारा विमान पहले मूल कमल से गुजरता है वहा गणेश जी विधमान है हम गंणेश के मंत्र की कमाई उनको देकर उनके कर्ज से मुक्त हो जायेगे..
फिर गंणेश जी हमे आगे जाने की अनुमति देगे...
स्वाद कमल------
फिर हम स्वाद कमल मे प्रवेश कर जायेगे यहा के प्रधान ब्रह्मा और सवित्री है.. हम ब्रह्मा सवित्री के मंत्र की कमाई इनको देकर कर्ज चुका देगे.. क्योकि ब्रह्मा हमारी उत्पति कर्ता है.. इसके बाद ब्रह्मा जी हमे आगे जाने की अनुमति हमे देगे..
नाभी कमल------
फिर हम नाभी कमल मे प्रवेश कर जायेगे नाभी कमल मे विष्णु लक्ष्मी प्रधान है हम इनके मंत्र की कमाई इनको देकर कर्ज चुका देगे.. क्योकि विष्णु पालन पोषण कर्ता है. फिर विष्णु जी हमारे विमान को आगे जाने की अनुमति देगे..
हदय कमल-----
फिर हम हदय कमल मे प्रवेश कर जायेगे. यहा के प्रधान शिव पार्वती है इनके मंत्र की कमाई इनको देकर इनका कर्ज चुका देगे.. क्योकि शिव संहार करते है.. फिर शिव हमारे विमान को आगे जाने की अनुमति द्गे.
कंठ कमल-----
फिर हम कंठ कमल मे प्रवेश कर जायेगे.. यहा की प्रधान दुर्गा माता है हम दुर्गा माता के मंत्र की कमाई दुर्गा माता को देकर इसका कर्ज चुका देगे.. फिर दुर्गा माता हमे आगे जाने की अनुमति देगी..
त्रिकुटी कमल-----
फिर हम त्रिकुटी कमल दसवे द्वार मे प्रवेश कर जायेगे... दसवे द्वार मे आगे चलकर त्रिवेणी आती है.. तीन रास्ते हो जाते है.. ये हवाई अडडा समझो प्रथम मंत्र हमे यहा तक लाकर छोड देते है. इससे आगे सतनाम के दो अक्षर उडाकर लेकर जाते है..

दूसरा नाम( सतनाम) का महत्व
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त्रिकुटी मे आगे चलकर तीन रास्ते हो जाते है जिसे त्रिवेणी बोलते है.. वहा काल के पुजारी दायं बाय चले जाते है.. लेकिन सामने जो रास्ता होता है उसको ब्रह्मरंद( बज्रकपाट) बोलते है.. वह अमरलोक जाने का रास्ता है.. कबीर परमात्मा कहते है शिव ने भी 97 बार try किया था.. लेकिन वो भी इस गेट को नही खोल पाये थे.. वो भी उल्टे हट गये थे क्योकि शिव के पास सतनाम मंत्र नही है..
गरीब- ब्रह्मरंद को खोलत है कोई एक
द्वारे से फिर जात है ऐसे बहुत अनेक
इस ब्रह्मरंद के बज्रकपाट को सतनाम के दो अक्षर खोलते है तब हम दसवे द्वार मे आगे सहंसार कमल मे प्रवेश करते है.. (यहा से ब्रह्मा विष्णु शिव के पिता काल की सीमा शुरू होती है.. जहा पर काल अपने भयानक वास्तविक रूप मे बैठा है) आगे बहुत भयानक आवाजे आती है डाकनी शाकनी बहुत सारी मिलती है.. सतनाम के मंत्र को सुनकर सब भाग जाते है.. (सतनाम मे इतनी पावर है अगर 12 करोड यम के दूत और साथ मे ब्रह्मा विष्णु शिव का पिता काल ये सभी एक साथ आ जाये मात्र एक जाप सबको उठाकर फैक देगा) आगे चलकर काल अपने वास्तविक रूप मे बैठा नजर आता है लेकिन गुरू रूप मे परमात्मा साथ होते है.. तब हमे तीनो मंत्रो का जाप एक साथ करना होता है.. 

तीसरे नाम (सारनाम) का महत्व
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(सतनाम के बाद जब हम तीसरा सारनाम गुरू जी से लेते है तो गुरू जी सतनाम के दो अक्षर मे ही सारनाम का एक अक्षर एड कर देते है ऐसे ब्रह्म परब्रह्म पूर्णब्रह्म तीनो का जाप एक साथ करना होता है.. जाप विधि गुरू जी बताते है गीता अध्याय 17 के 23 मे लिखा है ओम- तत- सत ये पूर्ण परमात्मा का मंत्र(नाम) कहा है ओम सीधा ही है तत सत कोड वर्ड है सतगुरू रामपाल जी महाराज बतायेगे.. फिर इन तीनो मंत्र का एक साथ जाप करना होता है सतनाम और सारनाम एक नाम बन जाता है)
जब हम दसवे द्वार के last मे जाते है तो वहा काल वास्तविक रूप मे बैठा है.. वहा हम जब इन तीनो मंत्रो (सतनाम और सारनाम)का जाप एक साथ करते है तो काल निरंजन सर झुका देता है गीता 8/13 श्लोक मे ओम मंत्र काल ब्रह्म का है इसकी कमाई काल अपने पास रख लेता है और हमे आगे आठवे कमल ग्यारहवे द्वार मे जाने की अनुमति दे देता है. इसके सर के पीछे ग्यारहवा द्वार है. जब काल सर झुकाता है तो हम इसके सर पर पैर रख कर ग्यारहवे द्वार परब्रह्म के लोक आठवे कमल मे प्रवेश कर जाते है वहा हमारा सूक्ष्म शरीर छुट जाता है हमारे पास तत और सत मंत्र की कमाई शेष रह जाती है जब हम परब्रह्म(अक्षरपुरूष) के लोक मे आगे बढते जाते है हमारी तत मंत्र की कमाई परब्रह्म रख लेता है क्योकि तत मंत्र परब्रह्म का है और हमे आगे जाने की अनुमति दे देता है. हमारे कारण महाकारण शरीर छुट जाते है केवल कैवल्य शरीर शेष रह जाता है (नौवे कमल मे बारहरवा द्वार पार करके अमरलोक है) ग्यारहवा द्वार के last मे भव्वर गुफा आती है वहा पर मानसरोवर बना है वहा से अमरलोक दिखाई देने लगता है वहा परमात्मा इस आत्मा को मानसरोवर मे स्नान करवाते है तब इस आत्मा का कैवल्य शरीर छुट जाता है और वास्तविक नूरी रूप बन जाता है तब वहा इस आत्मा के शरीर का प्रकाश सोलह सुरज और चंद्रमा जितना हो जाता है.. फिर सत मतलब सारनाम मंत्र की कमाई लेकर ये आत्मा सतलोक मतलब अमरलोक मे प्रवेश कर जाती है.. वहा सदा के लिए स्थाई हो जाती है.. मौज मनाती है नाचती गाती है परमात्मा कबीर साहेब के रोज दर्शन करती है.. इस तरह से ये आत्मा काल के जाल से निकलकर अपने घर अपने वतन अमरलोक लौट आती है.. फिर कभी काल के लोक मे वापिस नही आती.. सदा के लिए अमर और स्थाई हो जाती है.. सदा के लिए जन्म मरन से पीछा छुट जाता है.. फोटो मे लिखी कबीर सागर की अमरलोक की कबीर वाणी पढिये.. वहा जन्म मरण बुढापा नही होता सदा युवा रहती है आत्मा.. अमरलोक मे भी नर नारी है परिवार है. लेकिन शब्द शक्ति से बच्चे पैदा होते है गर्भ से नही होते.. वहा कोई कर्म नही करना पडता.. अमरलोक मे बाग बगीचे है फल फूल नदी मानसरोवर है लेकिन सब कुछ नूरी है हिरे की तरह स्वय प्रकासित.. वहा सभी प्रेम से रहते है.. कोई किसी को जरा भी बुरा नही बोलता..
सत साहेब जैसा इस दास ने गुरू जी के ज्ञान को समझा वैसा बता दिया कोई गलती हो तो गुरू जी क्षमा करना.. अज्ञानी जीव हु..
अमरलोक कबीर परमेश्वर की वाणी मे
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चल देखो देश हमारा रे, जहाँ कोटि पदम उजियारा रे, 🏃
🏃 देखो देश हमारा रे,जहाँ उजल भँवर गुंजारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ चवंर सुहगंम डारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ चन्द्र सूरज नहीं तारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, नहीं धर अम्बर कैनारा रे,🌎 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ अनन्त फूल गुलजारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ भाटी चवै कलारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ धूमत है मतवारा रे,🚁
रे मन कीजै दारमदारा रे तुझे ले छोडूं दरबारा रे,
फिर वापिस ना ही आवे रे सतगुरु सब नाँच मिटावै रे, 🏃
चल अजब नगर विश्रामा रे, तुम छोड़ो देना बाना रे, 🏃
चल देखो देश अमानी रे, जहाँ कुछ पावक ना पानीरे,🚣 🏃
चल देखो देश अमानी रे, जहाँ झलकै बारा बानी रे, 🏃
चल अक्षर धाम चलाऊं रे, मैं अवगत पंथ लखाऊं रे,
कर मकरतार पियाना रे, क्यों शब्दै शब्द समाना रे,🌞 🌳
जहाँ झिलझिल दरिया नागर रे, जहाँ हंस रहे सुखसागर रे, 
जहाँ अनहद नाद बजन्ता रे, जहाँ कुछ आदि नहीं अन्ता रे,💥 🌿
जहाँ अजब हिरम्बर हीरा रे,त जहाँ हंस रहे सुख तीरा रे, 🌲
जहाँ अजब हिरम्बर हीरा रे, जहाँ यम दण्ड नहीं दुख पीडा रे ..

आदरणीय गरीब दासजी महाराज परमेश्वर कबीर साहिब जी को सतलोक में आँखों देख कर बता रहे हैं
🏃चल देखो देश अमानी रे मैं तो सतगुरु पर कुर्बानी रे, 🏃
चल देखो देश बिलन्दा रे, जहाँ बसे कबीरा जिन्दा रे,🌳 🏃
चल देखो देश अगाहा रे, जहाँ बसे कबीर जुलाहा रे🏤 🏃
चल देखो देश अमोली रे, जहाँ बसे कबीरा कोली रे 🏃
चल देखो देश अमाना रे, जहाँ बुने कबीरा ताना रे,🏇 🏃
चल अवगत नगर निबासा रे, जहाँ नहीं मन माया का बासा रे 🏃
चल देखो देश अगाहा रे, जह बसै कबीर जुलाहा रे.. .
हे मालिक आपके चरणों में कोटि कोटि दण्डवत् प्रमाण, ऐसा निर्मल ग्यान देने के लिए... ऐसा निर्मल ग्यान है जो निर्मल करे शरीर, और ग्यान मण्डलीक कहै ये चकवै ग्यान कबीर।
और ग्यान सब ग्यानडी कबीर ग्यान सो ग्यान,
जैसे गोला तोब का अब करता चलै मैदान।
और संत सब कूप है, केते झरिया नीर,
दादू अगम अपार है ये दरिया सत् कबीर
Plz visit - www.jagatgururampalji.org

Sunday, April 24, 2016

5 body on soul

१ स्थुल  sthul sarir 
२ शुक्ष्म  sukshyama sarir
३ कारण  karan sarir
४ माहाकारण   MahaKaran sarir
५ कैवल्य    kewalya sarir

Monday, December 28, 2015

*** पूर्णमोक्ष VS अघुरा मोक्ष ***



*** पूर्णमोक्ष VS अघुरा मोक्ष ***

Supreme God VS God साहेब कबीर VS ब्रह्मा,विष्णु, शिव,दुर्गा,ब्रह्म

सतगुरू संत VS साधु,योगी,ऋषि,ब्रह्माणं विहंगम

(पक्षी)मार्ग VS पपील(चीटी) मार्ग
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==== योगी साघुओ ऋषियो ब्रह्माण ====
योगी साधु अपने घरो को छोड देते हैा ये
ब्रह्मचारी रहने मे विश्वास रखते हैा.. ये ब्रह्मा
विष्णु शिव के पुजारी होते हैा कुछ एक ब्रह्म
निरंजन काल के पुजारी होते हैा..
ये मान बडाई के भूखे होते हैा इनमे बहुत ज्यादा
अंहकार होता हैा.. ये तरह तरह के आडम्बरो से
जानता का मुर्ख बनाते हैा कुछ नंगे घूमते हैा
जबकी शिव भगवान भी कपडे पहने हुए होते हैा नंगे
रहने से भगवान मिले तो सबसे पहले कुत्ते गधो को
मिल जाना चाहिये.. ये तप करते हैा इनका उदेश्य
सिद्धी पाना राज पाना या कोई संसारिक शक्ति
पाना होता हैा.. जैसे गोरखनाथ सिद्धी पाकर
प्रभु बन गया.. जैसे शिव ने रावण को वरदान दे
दिया.. ब्रह्मा ने हिरणाकश्यप को वर दे दिया..
जैसे विष्णु जी ने ध्रुव पहलाद को धरती और स्वर्ग
का राज दे दिया.. अधिकतर बहुत अंहकारी होते हैा
जैसे कपील ऋषि ने सगड के 60 हजार बेटो को जला
कर राखकर दिया.. दुर्वासा ऋषि ने 56 करोड यादवो
को सराप देकर यादव कुल का नाश कर दिया.. चुणक
ऋषि ने मानधाता राजा की 72 करोड सेना का
कत्लेआम कर दिया.. ये सभी ब्रह्मा विष्णु शिव
और काल ब्रह्म तक के ही पुजारी होते हैा..इनमे
कुछ ऋषि पंडीत होते है कुछ योगी साधु .. ये अपनी
भक्ति तप की कमाई को दुवा बदूवा देकर नष्ट कर
देते हैा ये मान बडाई के भूखे होते हैा योगी
साधुओ मे अपने सन्यासी होने का अहंकार होता
हैा तो ब्रह्माण ऋषियो मे जाति का अहंकार
होता हैा.. ये केवल 10 द्वार तक ही जा सकते हैा
ग्यारहवे और बारहवे द्वार का इनको ज्ञान नही
होता..
ये केवल 7 कमलो(चक्रो) तक ही ज्ञान रखते है
जबकी नौ कमल(चक्र) होते हैा
============= संत सतगुरू ==========
संत परम्परा कबीर साहेब से चली उनसे पहले कोई संत
नही था उनसे पहले ऋषि ब्रह्मांण योगी साधु हुआ
करते थे
संत ब्रह्मा विष्णु शिव ब्रह्म की पूजा नही करते
बल्कि इनका आदर करते है वह सीधे कबीर साहेब
पूर्णब्रह्म सतपुरूष की पूजा करते है और करवाते
हैा.. इनमे जाति अंहकार नही होता.. संत दास की
तरह रहते हैा ये सन्यासी नही होते गृहस्थी होते
हैा (क्योकि ब्रह्मचारी रहने से भगवान मिलता तो
सबसे पहले हिजडो को मिल जाता) ये लाल कपडे नही
पहनते.. सफेद कपडे पहनते हैा ये दाढी मुछ रखने मे
विश्वास नही रखते क्योकि भगवान दाढी मुछ देकर
दर्शन नही देता वह तो भक्ति के आधार से मिलता
हैा दाढी रखो या मत रखो जरूरी नही होती संतो के
लिए.. संत बाहरी आडम्बर नही करते दिखावे के
लिए.. संतो मे कोध नही होता ये सरप नही देते...
जैसे अंहकारी ऋषि महाऋषि दिया करते थे..
संतो मे सतगुरू मे सबसे पहला नाम कबीर साहेब का
आता हैा उन्होने गृहस्थी मे रहकर दिखाया..
उन्होने अपने मुहबोले माता पिता की सेवा की
उन्होने शादी नही की थी दो बच्चो को जीवित
किया था कमाल और कमाली उनको बच्चो के रूप मे
रखकर परवरिश कि..हमे उदारण दिया गृहस्थी मे भी
पार हो सकते है नानक जी रविदास धर्मदास गरीबदास
घीसादास सभी संत गृहस्थी थे. संत मान बडाई के
भूखे नही होते.. संत चमत्कार नही दिखाते संतो से
खुद चमत्कार होते हैा.. पूर्णसंत को बारहा द्वार
और नौ कमलो का ज्ञान होता हैा
*********** मार्ग ******************
मार्ग दो प्रकार के होते है 1.पापील(चीटी) मार्ग
2.विहंगम(पक्षी)मार्ग
1.पपील मार्ग-
इस मार्ग से गये हुए साधक स्वर्ग महास्वर्ग को
भोगकर पूण्य समाप्त होने पर लौटकर संसार मे
वापिस आते है. गीता अध्याय 9/20,21 देखे
साधु योगियो ऋषि ब्रह्मणो का मार्ग पपील मार्ग
मतलब चीटी मार्ग होता हैा जैसे चीटी पेड पर सरक
सरक नीचे जड तना डार से होती हुई पेड की चोटी पर
पहुचती हैा.. इस पपील मार्ग से ब्रह्मांड को पार
नही किया जा सकता . ये मार्ग चीटी मार्ग है ये
ब्रह्मांड एक सागर की तरह है चीटी समुंदर पार नही
कर सकती.. इसलिए पीर पैगम्बर ईसा मुसा देवी देवता
साधु योगी ऋषि ब्रह्मांण ब्रह्मा विष्णु शिव
दुर्गा ये सब एक ब्रह्मांड मे ही है ये सभी काल
जाल मे ही है इन सबका मार्ग पपील चीटी मार्ग है.
ये एक ब्रह्मांड को पार नही कर सकते.. ये केवल
त्रिकुटी तक ही जा सकते है ये त्रिकुटी से आगे
नही जा सकते .. इनको केवल दस द्वार का ज्ञान
होता है त्रिकुटी दसवे द्वार पर ही बनी हुई है
त्रिकुटी से आगे विहंगम पक्षी मार्ग लेकर जाता
है जो बारहा द्वारो को पार करवाता है..
विहंगम मार्ग हमे त्रिकुटी से आगे पक्षी की तरह
उडाकर सारे ब्रह्मांडो को पार करता हुआ दसवे
द्वार से निकाल कर बारहवे द्वार को पारकरा कर
पूर्ण मोक्ष दिलाता है विहंगम मार्ग वेद गीता
पुराण कुरान बाइबल गुरूग्रंथ किसी भी सदग्रंथ मे
नही है.. इसके लिए गीता 4/34 मे लिखा है
तत्वदर्शी संतो के पास जाओ.. कुरान शरीफ सु० फु
25 आयत 59 मे लिखा है किसी बाखबर इल्मवाले से
पूछो ...
आइए अब बताते है तत्वदर्शी संत बाखबर का विहंगम
मार्ग...
आगे पढिये विहंगम पक्षी वाला मार्ग..
2.विहंगम मार्ग-
इस मार्ग से साधक स्वर्ग महास्वर्ग को पार करके
सतलोक सचखंड चले जाते है जहा से लौटकर फिर कभी
संसार मे नही आते.. गीता 8/8,9,10 और 15/4 श्लोक
देखे
सतगुरू जो मार्ग बताते वह संतो का मार्ग होता है
वह विहंगम मार्ग होता हैा जैसे पक्षी नीचे से
उडकर सीधा पेड की चोटी पर जाकर बैठ जाता हैा.
ये ब्रह्मांड एक सागर की तरह है पक्षी सागर को
भी पार कर सकता है. संत इस काल के भवसागर को पार
कर जाते है. जैसे पक्षी समुंदर को पार कर जाता
है. कबीर परमात्मा की शरण मे आकर ये जीव तीनो
नाम गायत्री सतनाम और सारशब्द से काल के सभी
ब्रह्मांडो को पार जाता हैा कबीर परमात्मा का
प्रथम नाम जिसमे 5 प्रधान शक्तियो के 5 मंत्र
होते है वह त्रिकुटी दसवे द्वार तक पहुचाते है.
दूसरा सतनाम का मंत्र जिसमे दो अक्षर होते है
त्रिकुटी से आगे सतनाम का मंत्र आत्मा को
पक्षी की तरह उडाकर लेकर जाता है यह मंत्र काल
ब्रह्म के 21 ब्रह्मांडो को और परब्रह्म के 7संख
ब्रह्मांडो को पार करवाता है यह सतनाम का मंत्र
आत्मा को दसवे द्वार से निकालता हुआ काल
ब्रह्म के सर पर पैर रखकर ग्यारवे द्वार से होता
हुआ बारहवे द्वार के पास भव्वर गुफा पर छोड देता
है वहा से सचखंड सतलोक दिखाई देता हैा उससे आगे
तिसरा नाम सारनाम जो पूर्णब्रह्म कबीर साहेब
सतपुरूष का मंत्र है यह मंत्र आत्मा को बारहवे
द्वार से पार करवाकर सतलोक सचखंड मे ले जाकर
छोड देता है उसके बाद आत्मा इस संसार मे लौटकर
भी नही आती
गीता 8/8,910 और 15/4 शलोक मे लिखा है वहा गए हुए
साधक संसार मे लोटकर कभी नही आते..
आत्मा का पूर्ण मोक्ष हो जाता है.. सतलोक मे
आत्मा का नूरी अजर अमर शरीर होता है सदा वहा
आन्नद उठाती है.
कबीर - सिद्ध तारे पिंड अपना, साधु तारे खंड..
सतगुरू सोई जानिये, जो तार देवे ब्रह्मांड...
इस पूरी पृथ्वी पर संत रामपाल जी महाराज है जो
ये तीनो नाम तीन बार मे देते है वरना सभी एक बार
मे ही नाम देते हैा.. इस विहंगम मार्ग से कबीर
साहेब ने बहुत आत्माओ को पार किया.. सतयुग मे
कबीर साहेब सत सुकृत नाम से आये थे.. त्रेता मे
मुनिंद्र नाम से आये थे तब मंदोदरी हनुमान
चंद्रविजय भाट को पार किया था.. द्वापरयुग मे
कबीर साहेब करूणामय नाम से आये थे तब रानी
इंद्रमति और सुदर्शन भंगी को पार किया था.. और
सुपच का रूप बनाकर पांडोव की यज्ञ सफल किया
था. कलियुग मे अपने original नाम कबीर नाम से आये
थे. नानक धर्मदास दादू घीसा मलूक और गरीब दास
को पार किया सचखंड पहुचाया.. रविदास अब्रहिम
सुलतान को पार किया.. ये कुछ उदारण दिये है ना
जाने कितनी आत्माओ को पार किया..
**** पपील मार्ग विस्तार से *****
योगी साधु ब्रह्मांण ऋषि इस मार्ग से ब्रह्मा
विष्णु शिव दुर्गा काल(ब्रह्म) के साधक जाते हैा
===============================
ये तप करते हैा तप से राज मिलता है और साथ मे जो
जिसे इष्ट मानकर पूजता हैा वह साधक उसी के लोक
मे चला जाता हैा
कबीर - तपेशवरी सो राजेशवरी,राजेवरी सो
नरकेशवरी.
कबीर- तप से राज,राध मध मानम.
जन्म तीसरे शुकर स्वानम्
अर्थ - जिसका जितना तप होता है उसको उसी हिसाब
से राज मिलता हैा किसी को पूरी पृथ्वी का राज,
तो किसी को स्वर्ग का राज मिलता है तो राजा मे
अंहकार होता है निर्दोष लोगो को सजा देता हैा
मदिरा पीता हैा फिर राज भोग कर नरक और कुत्ते
शूअर के शरीर प्राप्त करता हैा जैसे राजा
प्रियवर्त ने 11 अरब वर्ष तप किया फिर 11 अरब वर्ष
राज किया फिर नरक मे चला गया.. तप से सिद्धियां
मिलती है तप से स्वर्ग या पृथ्वी का राज मिलता
हैा फिर नरक चौरासी मिलती हैा..
ये साधक जिसे अपना इष्टदेव मानकर मंत्र जाप करते
है वह उसके लोक मे चला जाता है जैसे विष्णु का
साधक विष्णुलोक मे, शिव का साधक शिव लोक मे,
ब्रह्मा का साधक ब्रह्मालोक मे, काल ब्रह्म का
साधक ब्रह्मलोक मे चला जाता हैा गीता 9/25,26
और 8/8,9,10 श्लोक मे लिखा है जो जिसकी भक्ति
करता है उसी के पास चला जाता हैा गीता 9/20,21
मे लिखा है वह दिव्य स्वर्ग को भोगकर फिर
मुत्युलोक मे आते हैा..
मानव शरीर को पाने के लिए देवता भी तरसते है
क्योकि मानव शरीर मे ही आत्मा मोक्ष को
प्राप्त कर सकती हैा..
मानव शरीर मे कमल बने हुए है योगी जिनको चक्र
बोलते हैा इनको केवल सात कमलो का ज्ञान होता
हैा..
1.मूल कमल(चक्र) - इसमे गणेश जी का वास होता हैा
यह चार पखुडिया का होता हैा फोटो मे देख सकते
हो यह रीढ की हडडी के अन्त मे अन्दर की तरफ गुदा
के पास होता हैा..
2. स्वाद कमल- इसमे ब्रह्मा सवित्री का वास होता
हैा इसमे छह पखुडिया होती हैा यह रिढ की हडडी
मे अन्दर की तरफ गुप्तइंद्री के पास होता हैा
3.नाभिकमल- इसमे विष्णु लक्ष्मी जी का वास
होता हैा.. इसमे आठ पंखुडिया होती हैा यह नाभि
के पास पीछे रीढ की हडडी मे अन्दर की तरफ होता
हैा..
4. हदयकमल- इसमे शिव पार्वती का वास होता हैा
इसमे बारहा पखुडिया होती हैा यह हदय मे पीछे रीढ
की हडडी मे अन्दर की तरफ होता हैा..
5. कंठकमल - इसमे दुर्गा देवी का वास होता हैा
इसमे सोलहा पंखुडिया होती हैा यह कंठ मे पीछे
रीढ की हडडी मे अन्दर की तरफ होता हैा
6.त्रिकुटी कमल- यह दो पखुडियो का कमल होता है
काला और सफेद सुरत निरत से जाप .. यह सर के पीछे
जैसा फोटो मे दिखाई दे रहा हैा..
7. संहास्रार कमल- यह हजार पखुडियो का होता हैा
इसमे ब्रह्मा विष्णु शिव के पिता काल निरजन
ब्रह्म का वास होता हैा.. जहा ब्रह्मांण चोटी
रखते है वहा होता हैा....
आगे आठवा और नौवा कमल ओर होता है वह इस शरीर मे
मौजूद नही है क्योकि इस शरीर मे एक ब्रह्मांड का
ही नक्शा बना हुआ हैा आठवा और नौवा कमल काल
के 21 ब्रह्मांडो को पार करके आता हैा
इनको केवल सात कमल और दस द्वारो का ज्ञान होता
हैा.. दसवा द्वार को सुष्मना द्वार भी बोलते हैा
शरीर के नौ द्वार प्रत्यक्ष दिखाई देते हैा दसवा
द्वार नाक के दोनो छिदो के बीच मे उपर की तरफ
खुलता हैा जो सुई की नोक जितना होता हैा वह
मंत्रो के जाप से खुलता हैा दसवे द्वार मे आगे
चलकर त्रिकुटी आती हैा इनकी समाधी केवल
त्रिकुटी तक ही जा सकती हैा.. जब इनका शरीर
छुटता है तो ये त्रिकुटी पर जाते हैा त्रिकुटी पर
तीन रास्ते हो जाते हैा मोक्ष का रास्ता सामने
वाला होता है जिसको ब्रह्मरंद्र बोलते हैैा इन
योगी साधु पंडित ऋषियो के पास वह सतनाम का
मंत्र नही होता जो उस ब्रह्मरंद्र को खोलकर
ग्यारवे द्वार मे प्रवेश करवाता हैा.. इसलिए ये
सामने वाले ब्रह्मरंद्र को न खोल पाने के कारण
दाए और बाये अपनी अपनी भक्ति के कारण जिसने
जिस इष्ट की साधना की है ये उसी के लोक मे चले
जाते हैा अपने पूण्यो को खर्च करके फिर अपने
पापो को भोगने को के लिए नरक और लाख चौरासी
मे जाते हैा फिर कभी मानव जीवन मिलता है भक्ति
की तो स्वर्ग वरना नरक. देवी पुराण मे लिखा है
ब्रह्मा विष्णु शिव की जन्म मुत्यु होती हैा
गीता 2/12 और 4/5,9 श्लोक मे ब्रह्म कहता हैा
अर्जुन तेरे मेरे बहुत से जन्म हो चुके हैा उनको
तु नही जानता मै जानता हैा मेरे जन्म और कर्म
दिव्य अलौकिक हैा..
नोट- इससे स्पष्ट होता है जब ब्रह्मा विष्णु शिव
और काल ब्रह्म भी नाशवान हैा तो इनके पुजारी
साधक कैसे जन्म मरण से मुक्त हो सकते हैा..
अर्थात ये सभी जन्ममरण मे हैा इसलिए गीता
4/34,32 शलोक मे गीता ज्ञान देने वाला भगवान कह
रहा है अर्जुन तू तत्वदर्शी संतो के पास जा वो
तुझे उस तत्वज्ञान का उपदेश करेगे जिसको जानकर
तू कर्म बंधन से सर्वथा मुक्त हो जायेगा.. गीता
8/8,9,10 और 15/3,4 श्लोक मे गीता ज्ञान देने
वाला भगवान कहता है तू उस परमेशवर की शरण मे चला
जायेगा जहा गये हुए साधक इस संसार मे लौटकर कभी
नही आते मै गीता का ज्ञान देने वाला भगवान भी
उसी आदि नारायण परमेश्वर की शरण मे हुं..... मतलब
वह मेरा भी पूज्यदेव हैा. आओ आपको संतो का वह
विंहगम मार्ग बताते है जहा गये हुए साधक लौटकर
इस संसार मे नही आते...
*** विहंगम मार्ग विस्तार से (संतो का मार्ग)****
इस मार्ग से पूर्णब्रह्म Supreme God कबीर साहेब
के साधक जाते हैा नानक जी रविदास जी गरीब दास
सभी इसी मार्ग से गये हैा
==============================
जैसे हम पहले बता चुके है शरीर मे सात कमल और दस
द्वारो के बारे मे...
सातवा संहसार कमल- इसमे ब्रह्म(क्षरपुरूष) काल
का वास होता है ये एक हजार पंखुडी का बना होता
हैा..
आठवा कमल- इसमे परब्रह्म (अक्षरपुरूष) का वास
होता है यह दस हजार पंखुडी का बना होता हैा..
नौवा कमल- इसमे पूर्णब्रह्म(परमअक्षरपुरूष) कबीर
साहेब का वास होता हैा..इसकी असख्य पंखुडिया
होती हैा.
अब बताते है नौ कमल और.बारहा द्वारो के बारे मे
शुरू से....
संत रामपाल जी महाराज हमे जो पहला गायत्री
मंत्र देते है वह कमल के पांच प्रधानो का होता
हैा जिसके जाप से हमारा मूल कमल से त्रिकुटी तक
का रास्ता साफ हो जाता हैा मूलकमल से त्रिकुटी
तक सीधी सडक जाती हैा जैसे हमे विदेश जाना हो
तो international airport तक हम बस या कार से जाते
हैा त्रिकुट समझो international airport होता हैा
airport के बाद उडकर जाना होता हैा तो दूसरा
सतनाम का दो अक्षर का मंत्र हमे त्रिकुटी से
उडाकर लेकर जाता हैा... जैसे विदेश से अपने देश
मे आना हो तो विदेश मे ऋण मुक्त सर्टीफिकेट
लेना पडता हैा जब विदेश से स्वदेश आने की
अनुमति मिलती हैा हमे अपने स्वदेश सतलोक जाना
है फिर कभी काल के लोक मे नही आना हैा इसलिए
हमे सभी कमल प्रधानो से ऋण मुक्त सर्टीफिकेट
लेना पडेगा तब ही हम अपने स्वदेश सतलोक आ सकते
हैा
नोट- योगी,साधु,ब्रह्मांण,ऋषियो को तत्वदर्शी
संत ना मिलने के कारण इनके पास वह मोक्ष मंत्र
नही होता जो ऋण मुक्त करके इनके सतलोक भेज दे..
इनकी भक्ति काल ब्रह्म तक ही होती हैा इसलिए ये
अपनी साधना के अनुसार स्वर्ग महास्वर्ग मे घूमकर
फिर पृथ्वी लोक पर चले जाते हैा)
कबीर -पीर पैगम्बर कुतब ओलिया,सुरनर मुनिजन
ज्ञानी..
ऐता को तो राह नही पाया, ये काल के बंधे प्राणी
अर्थ- पीर पैगम्बर कुतब ओलिया मे मुसलमानो के ह०
मुहोम्मद आदम मुसा ईसा ये सब आ जाते है.. सुरनर
मुनिजन ज्ञानी मे हिन्दूओ के देवता ब्रह्मा
विष्णु शिव और ऋषि योगी साघु ब्रह्मांण सब आ
जाते हैा कबीर साहेब कहते है इनको भी वो मार्ग
नही मिला ये सब काल की भगती करके काल की कैद
मे ही रह गये हैा ये काल की जन्म मरण की डोरी मे
बंधे हैा
आओ जो मार्ग इन सब को नही मिला.. जो मार्ग काल
की कैद से आपको निकाल ले जायेगा वह मार्ग
विहंगम मार्ग आपको बताते हैा...
संत रामपाल जी महाराज का पहला मंत्र हमे हमारे
कमलो के पांच प्रधानो से ऋण मुक्त सर्टीफिकेट
दिलवायेगा..
मूल कमल से त्रिकुटी तक सीधा रास्ता जाता हैा..
1.हम मूल कमल मे जाकर गणेश जी के मंत्र जाप की
कमाई गणेश जी को दे देगे तो गणेश जी हमे अपने ऋण
से मुक्त कर देगे..
2. उसके बाद हम स्वाद कमल मे ब्रह्मा सावित्री के
लोक से होकर गुजरेगे तो ब्रह्मा सवित्री के मंत्र
की कमाई हम उनको दे देगे तो ब्रह्मा जी हमे अपने
ऋण से मुक्त कर देगे क्योकी ब्रह्मा जी सभी
जीवो की उत्पति करते हैा
3. उसके बाद हम नाभिकमल मे विष्णु लक्ष्मी के
लोक से होकर गुजरेगे तो उनके मंत्र की कमाई
विष्णु लक्ष्मी जी को दे देगे तो विष्णु जी हमे
अपने ऋण से मुक्त कर देगे.. क्योकि विष्णु जी
पालन पोषन करते है हमारा...
4. उसके बाद हम हदय कमल मे शिव पार्वती के लोक से
होकर गुजरेगे तो शिव पार्वती के मंत्र की कमाई
उनको दे देगे.. तो वे हमे अपने ऋण से मुक्त कर
देगे.. क्योकि शिव संहार करते है सभी जीवो का...
5. उसके बाद हम कंठ कमल मे दुर्गा माता जी के
लोक से गुजरेगे तो दुर्गा जी के मंत्र की कमाई
दुर्गा माता जी को दे देगे तो दुर्गा माता जी
हमे अपने ऋण से मुक्त कर देगी.. भक्ति की कमाई
कम नही बल्कि ज्यादा होनी चाहिए...
आगे चलकर दसवे द्वार पर हम international airport
त्रिकुट पर पहुच जाते हैा त्रिकुटी पर आगे चलकर
तीन रास्ते हो जाते है वैसे तो परमात्मा शब्द रूप
मे हमारे साथ चलते है हर जगह लेकिन त्रिकुटी पर
कबीर परमात्मा गुरू रूप मे आते हैा आगे चलकर तीन
रास्ते हो जाते हैा दसवे द्वार के सामने वाले गेट
को ब्रह्मरंद्र बोलते है उस पर ताला लगा होता हैा
..आगे वो ही साधक जाता है जिसके पास सतनाम का
मंत्र होता हैा ये योगी ऋषि साधु ब्रह्मांण
ब्रह्मा विष्णु शिव ये आगे नही जा सकते ये
त्रिकुट से वापिस दाय बाय मुड जाते हैा कहते है
शिव ने 97 बार कौशिस की थी ब्रह्मरंद्र को
खोलने की लेकिन खोल नही पाये क्याकि उनके
पास भी वह सतनाम का मंत्र नही हैा..
गरीब- ब्रह्मरान्द्र को खोलत है कोई एक,उल्टे फिर
जाते है ऐसे अनेक...
गीता 17/23 मे लिखा है ओम तत सत ऐसे यह उस पूर्ण
परमात्मा का नाम कहा हैा.. तत सत इसमे सांकेतिक
हैा उनको गीता 4/34 श्लोक मे तत्वदर्शी संत
बतायेगा..
गरीब- भक्ति मुक्ती ले उतरे , मेटन तीनो ताप..
जुलाये का घर डेरा लिया कह कबीरा बाप...
अर्थ- गरीबदास जी महाराज बता रहे है वह परमात्मा
कबीर साहेब इस धरती पर सही भक्ति और मुक्ती
मार्ग को लेकर आते हैा 600 साल पहले उन्होने एक
जुलाये
के घर वास किया और उसको अपना बाप बनाया...
रामपाल जी महाराज सतनाम का मंत्र देते हैैा जो
कबीर साहेब ने नानक जी को दिया था.. उस मंत्र से
त्रिकुटी के सामने का रास्ता ब्रह्मरांद्र खुल
जाता हैा गुरू रूप मे परमात्मा हमारे साथ होते
हैा... सतनाम का मंत्र international Airport त्रिकुटी
से हमे उडाकर लेकर जाता हैा रास्ते मे डाकनी
साकनी बहुत भयानक आकृति के यम के दूत मिलते
हैा.. सतनाम के जाप से वो सब भाग जाते हैा आगे
जब हम सातवे संहासार कमल से होकर गुजरते हैा तो
21 वे ब्रह्मांड मे दसवे द्वार के End मे ब्रह्मा
विष्णु शिव के पिता काल निरंजन ब्रह्म बैठे हैा
काल का बहुत भयानक और बहुत विशाल शरीर है अपने
सर से ग्यारवे द्वार को काल ने बंद कर रखा हैा..
गीता 18/66 शलोक मे काल ब्रह्म कहता हैा अर्जुन
सभी धार्मिक अनुष्ठानो की कमाई तू मुझे देकर
एक सर्व शक्तिमान परमेशवर की शरण मे चला जा मै
तुझे सब पापो से मुक्त कर दूंगा..(नोट-व्रज का
अर्थ जाना होता है नकली गुरूओ ने आना किया
हैा)
सतनाम मे दो मंत्र गुरू जी देते है एक ब्रह्म
(क्षरपुरूष) का दूसरा परब्रह्म(अक्षरपुरूष) का
मंत्र होता हैैा तो हम ब्रह्म क्षरपुरूष काल को
उसके एक मंत्र के जाप की कमाई और सारे पूण्य दे
देगे जिसके कारण काल भगवान हमे अपने ऋण से
मुक्त कर देगा और हमे हमारे स्वदेश सतलोक जाने
देगा..
जब हम वहा सतनाम और सारनाम का जाप करेगे तो
काल भगवान सर झुका देगा उसके सर पर पैर रखकर हम
परब्रह्म के लोक मे आठवे कमल मे ग्यारहवे द्वार मे
प्रवेश कर जायेगे.. हमारा सूक्ष्म शरीर भी छूट
जाता हैा आगे परब्रह्म के 7 संख ब्रह्मांडो को
हमे पार करना पडता हैा सतनाम का दूसरा मंत्र
परब्रह्म(अक्षरपुरूष) का होता हैा दूसरे मंत्र की
कमाई परब्रह्म को देगे तो वह अपने सात संख
ब्रह्मांडो को पार करने लंघाने की अनुमति दे
देगा..
नानक- सोई गुरू पूरा कहावे दो अक्षर का भेद
बतावे..
एक छुडावे एक लघांवे , तो प्राणी निज घर को
पावे.
अर्थ- नानक जी कहते है वह गुरू पूरा होगा जो
सतनाम के दो अक्षरो का भेद बतायेगा.. एक अक्षर
काल से छुडवायेगा दूसरा अक्षर परब्रह्म के 7 संख
ब्रह्मांडो को लंघायेगा...
जब हम परब्रह्म के सात संख ब्रह्मांडो को पार
करेगे तो हमारा कारण और महाकारण शरीर छुट जाता
हैा केवल कैवल्य शरीर बचता हैा जब परब्रह्म के
सात संख ब्रह्मांडो को पार कर लेते है भव्वर
गुफा के पास मान सरोवर आता हैा कबीर परमात्मा
वहा आत्मा से पूछते है तेरी कोई संसार की इच्छा
तो मन मे नही रही अगर संसार मे इच्छा रह गई होगी
तो अात्मा को मालिक दुबारा काल के लोक मे भेज
देते हैा लेकिन वहा आत्मा काल की मोह माया से
बाहर हो जाती हैा आत्मा कहती है कोई इच्छा नही
रही मालिक सतलोक ले चलो.. फिर कबीर परमात्मा
आत्मा को मानसरोवर मे स्नान करवा देते हैा तो
आत्मा का कैवल्य शरीर छुट जाता हैा आत्मा का
Original नूरी शरीर हो जाता हैा जिसकी 16 सुरज 16
चंद्रमा जितना प्रकाश हो जाता हैा वहा से
सतलोक दिखाई देता हैा फिर सारनाम की कमाई हमे
भव्वर गुफा पार करवा कर सतलोक हमारे निजलोक
हमारे स्वदेश ले जाती हैा उसके बाद हम नौवे कमल
पूर्णब्रह्म के लोक बारहरवे द्वार मे प्रवेश कर
जाते हैा वह हमारा सतलोक है वहा कभी जन्म मरन
नही हैा ऐसे ये आत्मा अपने घर पहुच जाती हैा..
फिर कभी काल के लोक मे वापिस नही आती ..
आत्मा सतलोक मे पूर्ण आन्नद उठाती हैा.. इसको
पूर्णमोक्ष कहते हैा
कबीर - जहा के बिछुडे तहा मिलाऊ करो साध सतसंग
रे..
कबीर- अमर करू सतलोक पठाऊ , ताते बंदिछोड कहाऊ
========== सतलोक महिमा=========
पूर्णब्रह्म कबीर साहेब ने सतलोक मतलब अमरलोक मे
सभी आत्माओ की उत्पति की.. सभी आत्माओ को
सुंदर नूरी शरीर दिया.उस शरीर की चमक इतनी थी
जितनी 16 सुरज और चांद की मिलकर रोशनी भी
फिकी रहे.. और परमातमा कबीर साहेब की एक रोम
कूप की शोभा इतनी है कि करोड सुरज और करोड
चांद की मिली जुली ऱोशनी भी फिकी रहे.. अमर
लोक हिरे की तरह खुद तेजोमेय है. वहा बाग बगीचे
फल फूल हर चीज का अपना परकाश है.. वहा नर नारी है
वहा जनम मरन नही है..कोई बीमारी या दुख नही
है..केवल सुख ही सुख था..
हम ऐसे सुनदर देश अमरलोक मे रहा करते थे..
(कबीर - हंसा देश सुदेश का, पडा कुदेशो आये
जिनका चारा मोतीया वो घोघो कयो पतियाये)
कबीर साहेब बता रहे है तू उस सुंदर देश का रहने
वाला हंस मतलब अच्छी आत्मा था वहा मोती खाता
था. आैर यहाँ काल के लोक मे तू बगुला काग बन गया
है मोती छोड घोघे कीडे खा रहा है..
=======सतलोक अमरलोक की महिमा=======
कबीर वानी कबीर सागर से..
तहँवा रोग सोग नहि होई, कीरडा विनोद सब कोई..
चंदर ना सूरज ना दिवस नही राती, वरण भेद ना जाती
अजाती..
satlok m koi rog nhi h koi sok nhi karta Sab koi mooj
masti karte h. waha na chand h na suraj na din na raat
h. waha na Jati h na koi varan h.
तहँवा जरा मरन नही होई, अमरत भोजन करत आहारा.
काया सुंदर ताहि परमाना,उदित भये जनु षोडस
भाना..
waha budapa maran nhi h sabi amrat bhozan karte h.
har ek ki body ka itna parkash h jitna 16 suraj ek sath
chamak jaye..
इतना एक हंस उजियारा,शोभित चिकुर तहा जनु तारा.
विमल बास तहँवा बिसगाई,योजन चार लो बास उडाई.
satlok m koi smell badbu Nhi h.. is dharti ki badbu 400
yojan matlab 1200 km uper tak jati h..
सदा मनोहर छत्र सिर छाजा, बूझ न परै रंक और राजा.
नहि तहां काल वचन की खानी,अमरत वचन बोल भल
वानी..
us manohar parmatma ke sar par chhatar h mukut.
waha kaal ka dar nhi h. sabi badi piyari boli bolte h..
आलस निंदा नही परकाशा, बहुत परेम सुख करै
विलासा.
.Saltok m koi alash nindra nhi h. sabi Bade prem se
rehte h.
साखी- अस सुख है हमरे घर, कह कबीर समुझाय
सतशबद को जान के, असथिर बैठे जाये..
kabir Parmatma kehte h ki hamare Ghar satlok m ehsa
sukh h.. Jo insan pure Guru se Satsabd le kar bagti
karega. wo hi satlok m ja sakta h..
SATLOK KI Mahima :- गरीबदास जी की वानी
शवेत सिंहासन शवेत ही अंगा, शवेत छत्र जाका शवेत
रंगा..
शवेत खवास शवेत ही चौरा, शवेत पोप शवेत ही
भौरा..
शवेत नाद शवेत ही तूरा, शवेत सिंहासन नाचे हुरा..
शवेत नदी जहा शवेत ही वृक्षा ,शवेत चंदर जहा
मसतक चरचा..
शवेत सरोवर शवेत ही हंसा, शवेत जाका सब कुल
वंशा..
शवेत मंदिर चंदर जयोती,शवेत माणक मुकता मोती.
शवेत गुबंद जहा शवेत ही शयाना, शवेत धवजा जहां
शवेत ही निशाना..
गरीबदास ये धाम हमार

जब लग नाता जगत का, तब लग भक्ति न होय । नाता तोड़े हरि भजे, भगत कहावें सोय ॥७



जब लग नाता जगत का, तब लग भक्ति न होय ।
नाता तोड़े हरि भजे, भगत कहावें सोय ॥७

दिव्य दृष्टि खुली हमारी, सार शब्द से टोया वो |
गरीबदास गायत्री लापी, शीश पीट जम रोया वो ||
खान पान कुछ करदा नाही, है महबूब अचारी वो |
कौम छत्तीस रीत सब दुनिया, सब से रहै विचारी वो |
... बेपरवाह शाहनपति शाहं, जिन ये धारना धारी वो |
अन्तोल्या अन्मोल्या देवै, करोड़ी लाख हजारी वो |
अरब ख़रब और नील पदम् लग, संखो संख भंडारी वो |
जो सेवै ताहि को खेवै, भवजल पार उतारी वो |
सुरति निरति गल बंधन डोरी, पावै बिरह अजारी वो |
ब्रह्मा विष्णु महेश सरीखे, उसकी उठावैं झारी वो |
शेष सहंस्र मुख करे विनती, हरदम बारम्बारी वो |
शब्द अतीत अनाहद पद है, ना वो पुरुष ना नारी वो |
सूक्ष्म रूप स्वरुप समाना, खेलैं अधर अधारी वो |
जाकूं कहै कबीर जुलाहा, रची सकल संसारी वो |
गरीबदास शरणागति आये, साहिब लटक बिहारी वो ||
मंद-मंद मुस्कात मुसाफिर, है महबूब परेवा वो |
ब्रह्मा विष्णु महेश शेष से, सब देवनपति देवा वो |
अमृतकंद इन्द्री नहीं मोसर, अमी महारस मेवा वो |
कोटि सिद्ध परसिद्ध चरण में, जाकी कर ले सेवा वो |
तीरथ कोटि नदी सब चरणों, गंगा जमुना रेवा वो |
सबके घर दर आगे ठाढा, कोई ना जाने भेवा वो |
रिंचक सा प्रपंच भरया है, अवगत अलख अभेवा वो |
समर्थ दाता कबीर धनि है, और सकल है लेवा वो |
गरीबदास कूं सतगुरु मिलिया, भवसागर का खेवा वो


कबीरा।हरि।की।भगति करो।
तज विषयोँ रस चोज
बार।बार।न पाओगे
मानुष।जन्म।की।मौज
सत् साहेब

sarir gyan

शरीर ज्ञान परिचय**------------
हे धर्मदास ! अब शरीर के बारे में जानो । 5 तत्व से बना ये कुम्भ ( घङा या घट रूपी ) रूपी शरीर है । तथा शरीर में 7 धातुयें - रक्त । माँस । मेद । मज्जा । रस । शुक्र । और अस्थि हैं । इनमें रस बना खून सारे शरीर में दौङता हुआ शरीर का पोषण करता है । जैसे प्रथ्वी पर असंख्य पेङ पौधे हैं । वैसे ही प्रथ्वी रूपी इस शरीर पर करोंङो रोम ( रोंये ) होते है । इस शरीर की संरचना में 72 कोठे हैं । जहाँ 72000 नाङियों की गाँठ बँधी हुयी है । इस तरह शरीर में धमनी और शिरा प्रधान नाङियाँ हैं । 72 नाङियों में 9 पुहुखा । गंधारी । कुहू । वारणी । गणेशनी । पयस्विनी । हस्तिनी । अलंवुषा । शंखिनी हैं । इन 9 में भी इङा । पिंगला । सुषमना ये 3 प्रधान हैं । इन तीन नाङियों में भी सुषमना खास है । इस नाङी के द्वारा ही योगी सत्य यात्रा करते हैं ।
नीचे मूलाधार चक्र से लेकर ऊपर बृह्मरंध्र तक जितने भी कमल दल चक्र आते हैं । उनसे शब्द उठता है । और उनका गुण प्रकट करता है । तब वहाँ से फ़िर उठकर वह शब्द शून्य 0 में समा जाता है । आँत का 21 हाथ होने का प्रमाण है । और आमाशय सवा हाथ अनुमान है । नभ क्षेत्र का सवा हाथ प्रमाण है । और इसमें सात खिङकी - दो कान । दो आँख । दो नाक छिद । एक मुँह है ।
इस तरह इस शरीर में स्थित प्राण वायु के रहस्य को जो योगी जान लेता है । और निरंतर ये योग करता है । परन्तु सदगुरु की भक्ति के बिना वह भी लख 84 में ही जाता है ।
हर तरह से ज्ञान योग कर्म योग से श्रेष्ठ है । अतः इन विभिन्न योगों के चक्कर में न पङकर नाम की सहज भक्ति से अपना उद्धार करे । और शरीर में रहने वाले अत्यन्त बलबान शत्रु काम । क्रोध । मद । लोभ आदि को ज्ञान द्वारा नष्ट करके जीवन मुक्त होकर रहे ।
हे धर्मदास ! ये सब कर्मकांड मन के व्यवहार हैं । अतः तुम सदगुरु के मत से ज्ञान को समझो । काल निरंजन या मन शून्य 0 में ज्योति दिखाता है । जिसे देखकर जीव उसे ही ईश्वर मानकर धोखे में पङ जाता है । इस प्रकार ये मन रूपी काल निरंजन अनेक प्रकार के भृम उत्पन्न करता है ।
हे धर्मदास ! योग साधना में मस्तक में प्राण रोकने से जो ज्योति उत्पन्न होती है । वह आकार रहित निराकार मन ही है । मन में ही जीवों को भरमाने उन्हें पाप कर्मों में विषयों में प्रवृत करने की शक्ति है । उसी शक्ति से वह सब जीवों को कुचलता है । उसकी यह शक्ति तीनों लोक में फ़ैली हुयी है । इस तरह मन द्वारा भृमित यह मनुष्य खुद को पहचान कर असंख्य जन्मों से धोखा खा रहा है । और ये भी नहीं सोच पाता कि काल निरंजन के कपट से जिन तुच्छ देवी देवताओं के आगे वह सिर झुकाता है । वे सब उसके ( आत्मा - मनुष्य ) के ही आश्रित हैं । हे धर्मदास ! यह सव निरंजन का जाल है । जो मनुष्य देवी देवताओं को पूजता हुआ कल्याण की आशा करता है । परन्तु सत्यनाम के बिना यह यम की फ़ाँस कभी नहीं कटेगी