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Thursday, August 24, 2017

राम शब्द सुन्ना साथ मानव समाजले श्री रामचन्द्रजी लाई याद गर्दछन। तर सतयुगमा पनि राम नाम प्रचलित थियो, ती कुन राम हुन र कुन रामको पूजा गर्दथे?

1. राम शब्द सुन्ना साथ मानव समाजले श्री रामचन्द्रजी लाई याद गर्दछन। तर सतयुगमा पनि राम नाम प्रचलित थियो, ती कुन राम हुन र कुन रामको पूजा गर्दथे। त्यति बेला श्री रामचन्द्रजीको जन्म पनि भएको थिएन। रामायणको धटना हुनु भन्दा 10,000 वर्ष अगाडि डाकु रत्नाकरले राम नाम जपेर रामायण लेखेका थिए। कुन रामको नाम जपे र शक्ति प्राप्त गरे???

2. रामको सहि अर्थ हो- स्वामी, मालिक, पुरुष, भगवान, Owner, God, अल्लाह, देव, Sir, साहेब आदि।

3. रामको प्रकार तुलसी दासद्वारा रचित घटरामायणबाट:-
एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा।
एक राम का जगत पसारा, एक राम सब जग से न्यारा।।
(क) एउटा राम राजा दशरथजीको छोरा विष्णुजीको अवतार श्री रामचन्द्र हुन।
(ख) दोस्रो राम मन हो जुन सबैमा बिद्यमान छ।
(ग) तेस्रो राम 21 ब्रह्माण्डको मालिक भगवान काल ब्रह्म हुन।
(घ) चौथो राम सम्पुर्ण ब्रह्माण्डको मालिक, सबका रचइता पुर्णब्रह्म कविर्देव हुन।

4. रामको शक्तिमा फरक-
ब्रह्मा विष्णु र शिव एक ब्रह्माण्डको तीन लोकमा एक-एक विभागको राम हुन अर्थात स्वामी हुन। 21 ब्रह्माण्डको स्वामी ब्रह्म पनि राम हुन। परब्रह्म 7 संख ब्रह्माण्डको स्वामी पनि राम हुन र पुर्णब्रह्म कविर्देवजी पनि असंख ब्रह्माण्डको स्वामी, राम हुन। सबै रामको स्तर अनुसार शक्तिमा फरक रहेको छ।
5. कविर्देवले नै राम-
अलख इलाही एक है, नाम धराया दोय।
कहै कविर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।
राम रहीमा एक है, नाम धराया दोय।
कहै कविर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।
कृष्ण करीमा एक है, नाम धराय दोय।
कहै कविर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।
काशी काबा एक है, एकै राम रहीम।
मैदा एक पकवान बहु, बैठि कविरा जीम।।
एक वस्तु के नाम बहु, लीजै वस्तु पहिचान।
नाम पक्ष नहीं कीजिये, सांचा शब्द निहार।
पक्षपान ना किजिये, कहै कविर विचार।।
राम कविरा एक है, दूजा कबहू ना होय।
अंतर टाटी कपट की, तातै दीखे दोय।
राम कविर एक है, कहन सुजन को दोय।
दो करि सोई जानई, सतगुरु मिला न होय।।
भरम गये जग वेद पुराना। आदि राम का भेद न जाना।
राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोइ बिरला जाने।।

कुन भगवान ठूला

कुन भगवान ठूला हुन भन्ने कुरामा धेरैको फरक मत देखिन्छ। पुराण र गीतालाई आधार मान्ने हो भने:-  नरदले आफ्ना पिता ब्रह्मालाई सोध्दा भगवान ब्रह्माले भगवान विष्णु ठूला हुन भन्छन्, (श्री देवी पुराण प्रथम स्कन्ध अध्याय 4 पृष्ठ 28.29) भगवान ब्रह्माले भगवान विष्णुलाई सोध्दा भगवान तपाईले कस्को ध्यान लगाएर पूजा गर्नु हुन्छ भन्दा माता जगदम्बा दुर्गाको भन्छन् (श्री देवी पुराण प्रथम स्कन्ध अ. 4 पृष्ठ 28.29)
दुर्गालाई कस्को पूजा गर्नु पर्छ भन्दा, ब्रह्मको भन्नुहुन्छ जुन दिब्य आकाशको ब्रह्मलोकमा बिराजमान छन् उनको स्मरण मन्त्र ॐ हो, (श्री देवी पुराण सातौ स्कन्ध अध्याय 36 पृष्ठ 562-563)
तीनै भगवान ब्रह्मले गीता अ.7 श्लो. 18,24 मा मेरो पूजा अनुत्तम हो किनकि मेरो पूजा गरेमा स्वर्गको भोग सकेपछि फेरि दु:खदायी संसारमा जन्म लिनु पर्छ त्यसैले पुर्ण शान्ति र मोक्षको लागि उत्तम पूरुषको ॐ तत सत साधना कुनै तत्वदर्शि संतबाट दिक्षा लिएर जप गर भन्छन्।(गीता अ.8 श्लो. अ.9 श्लो. 20,21, अ.15 श्लो.17 अ.17 श्लो.23, अ.8 श्लो.22, अ.4 श्लो.34, अ.18 श्लो.62,66)

सदगुरुदेव संत रामपालजी महाराजले प्रदान गर्नु भएको अनमोल रत्न
“ज्ञान गंगा” पुस्तक http://www.jagatgururampalji.org/click.php?id=106 र 
गीता तेरा ज्ञान अमृत http://www.jagatgururampalji.org/click.php?id=1 

Thursday, September 29, 2016

बुद्धिमानो के लिए सन्देश

बुद्धिमानो के लिए

1 सतोगुण प्रधान विष्णु जी के अवतार श्री कृष्ण जी का जन्म जेल में ही हुआ और पूरी उम्र उनकी युद्ध जितने में ही निकल गयी। महाभारत जैसा युद्ध जिसमे करोड़ों लोग मारे गए जिसमे उनके पक्ष की भी बहुत सी नेक आत्माएं मृत्यू को प्राप्त हुई थी, क्या वो उन युद्धों को टाल नही सकते थे। समझिये परमात्मा की वाणी से:-

श्री कृष्ण गोवर्धन धारयो, द्रोणागीरि हनुमान।
शेसनाग सब पृथ्वी धारी, इनमे कौन भगवान।।

परमात्मा कबीर जी कहते हैं के आपके द्वारा प्रचलित कथाएँ ही कहती हैं के श्री कृष्ण और हनुमान ने पहाड़ उठाये।और आप ही कहते हो के शेसनाग के फैन पे सारी पृथ्वी है तो भगवान कौन हुए धरती के एक छोटे से पहाड़ को उठाने वाले या पूरी पृथ्वी उठाने वाला?


2 सतोगुण प्रधान विष्णु जी के दूसरे अवतार श्री रामचंद्र जी अपनी पत्नी सीता को ढूंढते हुए रोते रहे।उसी समुन्दर को जहाज से पार करके एक राक्षस सीता माता को उठा ले गया लेकिन भगवान पुल बना रहे हैं।

परमात्मा की वाणी है :-
समुदर पाट लंका गए, सीता के भरतार।
उन्हें अगस्त ऋषि पिय गए, इनमे कौन करतार।।

जिस समुदर को पार करने के लिए श्री रामचंद्र जी ने पुल इतनी मुश्किल से बनाया उस एक समुद्र नही बल्कि सातों समुद्रों को एक अगस्त नामक ऋषि अपनी सिद्धि से केवल एक घूंट में पी गए थे तो इन दोनों में बड़ा कौन हुआ?


मालिक की दूसरी वाणी:-
काटे बंधन विपत्ति में, कठिन कियो संग्राम।
चिन्हो रे नर प्राणिया, वो गरुड़ बड़ो के राम।।

जिस गरुड़ ने मेघनाथ के नागपास में फंसे श्री राम जी और लक्षमण की जान बचाई वो बड़े हुए या राम?

अब आइये संतों पे
आधरणीय नानक जी को उस समय लोगों ने भला बुरा कहा 13 महीने तक उस संत को जेल में रखा और आज सब मानते हैं के वो परमात्मा की प्यारी आत्मा थे।लेकिन उस समय हम उनके जीते जी उनका आदर ना कर सके।

इशा मसीह जी को उस समय लोगों ने शरीर में कीलें ठोक ठोक के मारा आज आधा विश्व उनको मानता है।।लेकिन उस समय उनका आदर ना कर सके

वो भी मुर्ख है जो कहता है की राम कृष्ण अवतार नही थे। वो तीन लोक के भगवान विष्णु के अवतार थे ।लेकिन हमे पूर्ण मोक्ष के लिये इनसे ऊपर के भगवान की तलास करनी है।

ज्ञान गंगा पुस्तक पढ़ें और किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए आप किसी भी संत रामपाल जी महाराज के शिष्य से मिलिए। हम सब परमात्मा के कुते आप पूण्य आत्माओं तक इस ज्ञान को पहुंचाने में हर संभव मदद के लिए तैयार बैठे है।

सत साहेब

Wednesday, September 7, 2016

भिक्षुक बन कर ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश माता अनुसुइयाके दर पर जाकर माता से निर्वस्त्र हो कर भोजन करवाने की धृष्टता की और भगवान कहलाए। ....क्यों....???

भिक्षुक बन कर रावणने सीता माता का हरण करने का नीच कर्म किया और राक्षस कहलाया।

भिक्षुक बन कर ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश माता अनुसुइयाके दर पर जाकर माता से निर्वस्त्र हो कर भोजन करवाने की धृष्टता की और भगवान कहलाए। ....क्यों....???

रावण जिसने सीता माता को बन्दी बना कर रखा पर शीलभंग करने की नीचता नही की। विष्णु जी ने राजा जलन्धर की पत्नी रानी वृंदा का शील भंग करने की नीचता की और फिर भी भगवान ............ क्यों....???

Wednesday, June 29, 2016

नल नील मे ऐसा क्या था जो उनमे सामने हनुमान राम लक्ष्मण सभी फेल हो गये थे????

जरा सोचिये समुंद्र ने राम की पूरी सेना मे केवल नल नील का ही नाम क्यो लिया.. नल नील मे ऐसा क्या था जो उनमे सामने हनुमान राम लक्ष्मण सभी फेल हो गये थे????

आपने अधुरी कथा सुनी है कृप्या अब पूरी सुनियेकृपया विस्तार से पढे.

.<< त्रेता युग में कविर्देव (कबीर साहेब) का मुनिन्द्र नाम से प्राकाट्य >>

त्रेता युग में स्वयंभु (स्वयं प्रकट होने वाला) कविर्देव(कबीर परमेश्वर) रूपान्तर करके मुनिन्द्र ऋषि के नाम सेआए हुए थे। अनल अर्थात् नल तथा अनील अर्थात् नील दोनों आपस में मौसी के पुत्र थे। माता-पिता का देहान्त हो चुका था। नल तथा नीलदोनों शारीरिक व मानसिक रोग से अत्यधिक पीड़ीतथे। सर्व ऋषियों व सन्तों से कष्ट निवारणकी प्रार्थना कर चुके थे। सर्व सन्तों ने बताया था कि यह आप का प्रारब्ध का पाप कर्मका दण्ड है, यह आपको भोगना ही पड़ेगा। इसका कोई समाधान नहीं है। दोनों दोस्त जीवन से निराश होकर मृत्यु का इंतजार कर रहे थे । एक दिन दोनों को मुनिन्द्र नाम से प्रकट पूर्णपरमात्मा का सतसंग सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। सत्संगके उपरांत ज्यों ही दोनों ने परमेश्वर कविर्देव (कबीरसाहेब) उर्फ मुनिन्द्र ऋषि जी के चरण छुए तथा परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने सिर पर हाथ रखा तो दोनों का असाध्य रोग छू मन्तरहो गया अर्थात् दोनों नल तथा नील स्वस्थ हो गए । इस अद्धभुत चमत्कार को देख कर प्रभु के चरणों में गिरकर घण्टों रोते रहे तथा कहा आज हमें प्रभु मिलगया जिसकी तलाश थी तथा उससे प्रभावित होकरउनसे नाम (दीक्षा) ले लिया तथा मुनिन्द्र साहेबजी के साथ ही सेवा में रहने लगे। पहले संतों का समागमपानी की व्यवस्था देख कर नदी के किनारे परहोता था। नल और नील दोनों बहुत प्रभुप्रेमी तथा भोली आत्माएँ थी। परमात्मा में श्रद्धा बहुत थी। सेवा बहुत किया करते थे। समागमों मेंरोगी व वद्ध व विकलांग भक्तजन आते तो उनके कपड़े धोते तथा बर्तन साफ करते। उनके लोटे और गिलास मांजदेते थे। परंतु थे भोले से दिमाग के। कपड़े धोने लग जातेतो सत्संग में जो प्रभुकी कथा सुनी होती उसकी चर्चा करने लग जाते। वेदोनों प्रभु चर्चा में बहुत मस्त हो जाते और वस्तुएँदरिया के जल में डूब जाती। उनको पता भी नहीं चलता । किसी की चार वस्तु लेकर जाते तो दो वस्तु वापिस ला कर देते थे। भक्तजनकहते कि भाई आप सेवा तो बहुत करते हो, परंतु हमारा तो बहुत काम बिगाड़ देते हो । ये खोई हुई वस्तुएँहम कहाँ स ले कर आयें ? आप हमारी सेवा ही करनी छोड़दो । हम अपनी सेवा आप ही कर लेंगे। फिर नलतथा नील रोने लग जाते थे कि हमारी सेवा न छीनों ।अब की बार नहीं खोएँगे। परन्तु फिर वही काम करते।फिर प्रभु की चर्चा में लग जाते और वस्तुएँ दरिया जल मेंडूब जाती । भक्तजनों ने ऋषि मुनिन्द्र जी सेप्रार्थना की कि कृपया नल तथा नील को समझाओ।ये न तो मानते है और मना करते हैं तो रोने लग जाते हैं।हमारी तो आधी भी वस्तुएँ वापिस नहीं लाते। येनदी किनारे सत्संग में सुनी भगवान की चर्चा में मस्तहो जाते हैं और वस्तुएँ डूब जाती हैं।मुनिन्द्र साहेब ने एक दो बार तो उन्हें समझाया। वेरोने लग जाते थे कि साहेब हमारी ये सेवा न छीनों।सतगुरु मुनिन्द्र साहेब ने कहा बेटा नल तथा नील खूबसेवा करो, आज के बाद आपके हाथ से कोई भी वस्तुचाहे पत्थर या लोहा भी क्यों न हो जल मेंनहीं डुबेगी। मुनिन्द्र साहेब ने उनको यह आशीर्वाद देदिया।आपने रामायण सुनी है। एक समय की बात हैकि सीता जी को रावण उठा कर ले गया। भगवानराम को पता भी नहीं कि सीता जी को कौनउठा ले गया? श्री रामचन्द्र जी इधर उधर खोज करते हैं।हनुमान जी ने खोज करकेबताया कि सीता माता लंकापति रावण (राक्षस)की कैद में है। पता लगने के बाद भगवान राम ने रावण केपास शान्ति दूत भेजेतथा प्रार्थना की कि सीता लौटा दे। परन्तु रावणनहीं माना। युद्ध की तैयारी हुई। तब समस्या यह आईकि समुद्र से सेना कैसे पार करें?भगवान श्री रामचन्द्र ने तीन दिन तक घुटनों पानी मेंखड़ा होकर हाथ जोड़कर समुद्र सेप्रार्थना की कि रास्ता दे दे। परन्तु समुद्र टस से मस नहुआ। जब समुद्र नहीं माना तब श्री राम ने उसेअग्नि बाण से जलाना चाहा। भयभीत समुद्र एकब्राह्मण का रूप बनाकर सामने आया औरकहा कि भगवन सबकी अपनी-अपनी मर्यादाएँ हैं। मुझेजलाओ मत। मेरे अंदर न जाने कितने जीव-जंतु बसे हैं। अगरआप मुझे जला भी दोगे तो भी आप मुझे पार नहीं करसकते, क्योंकि यहाँ पर बहुत गहरा गड्डा बन जायेगा,जिसको आप कभी भी पार नहीं कर सकते। समुद्र नेकहा भगवन ऐसा काम करो कि सर्प भी मर जाए औरलाठी भी न टूटे। मेरी मर्यादा भी रह जाए औरआपका पुल भी बन जाए। तब भगवान श्री राम ने समुद्रसे पूछा कि वह क्या विधि है ? ब्राह्मण रूप में खडेसमुद्र ने कहा कि आपकी सेना में नल और नील नाम के दो सैनिक हैं। उनके पास उनके गुरुदेव से प्राप्त एकऐसी शक्ति है कि उनके हाथ से पत्थर भी जल पर तैरजाते हैं। हर वस्तु चाहे वह लोहे की हो, तैर जाती है।श्री रामचन्द्र ने नल तथा नील को बुलाया और उनसेपूछा कि क्या आपके पास कोई ऐसी शक्ति है? नलतथा नील ने कहा कि हाँ जी, हमारे हाथ से पत्थरभी जल नहीं डूबेंगे । श्रीराम ने कहा कि परीक्षणकरवाओ। उन नादानों (नल-नील) ने सोचा कि आजसब के सामने तुम्हारी बहुत महिमा होगी। उस दिनउन्होंने अपने गुरुदेव भगवान मुनिन्द्र(कबीर साहेब)को यह सोचकर याद नहीं किया कि अगर हमउनको याद करेंगे तो कहीं श्रीराम ये न सोच लेंकि इनके पास शक्ति नहीं है, यह तो कहीं और से मांगतेहैं। उन्होंने पत्थर उठाकर पानी में डाला तो वह पत्थरपानी में डूब गया। नल तथा नील ने बहुत कोशिश की,परन्तु उनसे पत्थर नहीं तैरे। तब भगवान राम ने समुद्रकी ओर देखा मानो कहना चाह रहे हों कि आपतो झूठ बोल रहे हो। इनमें तो कोई शक्ति नहीं है। समुद्रने कहा कि नल-नील आज तुमने अपने गुरुदेव को यादनहीं किया। नादानों अपने गुरुदेव को याद करो। वेदोनों समझ गए कि आज तो हमने गलती कर दी। उन्होंनेसतगुरु मुनिन्द्र साहेब जी को याद किया। सतगुरुमुनिन्द्र (कबीर साहेब) वहाँ पर पहुँच गए। भगवानरामचन्द्र जी ने कहा कि हे ऋषिवर! मेरा दुर्भाग्य हैकि आपके सेवकों के हाथों से पत्थर नहीं तैर रहे हैं।मुनिन्द्र साहेब ने कहा कि अब इनके हाथ से तैरेंगेभी नहीं, क्योंकि इनको अभिमान हो गया है। सतगुरुकी वाणी प्रमाण करती है किः-गरीब, जैसे माता गर्भ को, राखे जतन बनाय।ठेस लगे तो क्षीण होवे, तेरी ऐसे भक्ति जाय।।उस दिन के पश्चात् नल तथा नील की वहशक्ति समाप्त हो गई। श्री रामचन्द्र जी ने परमेश्वरमुनिन्द्र साहेब जी से कहा कि हे ऋषिवर! मुझ पर बहुतआपत्ति आयी हुई है। दया करो किसी प्रकारसेना परले पार हो जाए। जब आप अपनेसेवकों को शक्ति दे सकते हो तो प्रभु कुछ रजा करो।मुनिन्द्र साहेब ने कहा कि यह जो सामने वाला पहाड़है, मैंने उसके चारों तरफ एक रेखा खींच दी है। इसकेबीच-बीच के पत्थर उठा लाओ, वे नहीं डूबेंगे। श्री रामने परीक्षण के लिए पत्थर मंगवाया। उसको पानी पररखा तो वह तैरने लग गया। नल तथा नील कारीगर(शिल्पकार) भी थे। हनुमान जी प्रतिदिन भगवान यादकिया करते थे। उसने अपनी दैनिक क्रिया भी साथरखीराम राम भी लिखता रहा और पहाड़ के पहाड़ उठा करले आता था। नल नील उनको जोड़-तोड़ कर पुल मेंलगा लेते थे। इस प्रकार पुल बना था। धर्मदास जी कहतेहैं:-रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिरानेवाले।धन-धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।कबीर साहेब जी ने इस प्रसंग के बारे में अपनी वाणी मेंखुद प्रमाण देते हुए कहा है ::-त्रेता में नल नील चेताया,लंका में चन्द्र विजयसमझाया।सीख मन्दोदरी रानी मानी, समझा नहीं रावणअभिमानी।।विभिषण किन्ही सेव हमारी, तातें हुआलंका छत्तरधारी।हार गए थे जब त्रिभुवन राया, समुद्र पर सेतु मैंही बनवाया।।तीन दिवश राम अर्ज लगाई, समुद्रप्रकट्या युक्ति बताई।नल नील की शक्ति बताई, नल नील में मस्ती छाई।।उन नहीं किन्हा याद गुरूदेव, तातें हम शक्ति छीन लेव।नल नील को लगी अंघाई, तातें पत्थर तिरे नहीं भाई।।मैं किन्हें हल्के वे पत्थर भारी, सेतु बांध रघुवरसेना तारी।लीन्हें चरण राम जब मोरे, लक्ष्मण ने दोहों कर जोरे।।दोनों बोले एक बिचार, ऋषिवर तुम्हरी शक्ति अपार।हनुमान नत मस्तक होया, अंगद सुग्रीव ने माना लोहा।।सेतु बन्ध का भेद न जाने भाई, सुकी दीन्हीं राम बड़ाई।रामचन्द्र कह कोई शक्ति न्यारी, जिन्ह यहरचि सृष्टी सारी।।अज्ञानी कहें रामचन्द्र रचनेहारा, जिने दशरथ घरलीन्हा अवतारा।ऐसी भूल पड़ी धर्मदासा, यथार्थ ज्ञान न किसही पासा।।कोई कहता था कि हनुमान जी ने पत्थर पर रामका नाम लिख दिया था इसलिए पत्थर तैर गये। कोईकहता था कि नल-नील ने पुल बनाया था। कोईकहता था कि श्रीराम ने पुल बनाया था। परन्तु यह सतकथा ऐसे है, जैसे आपको ऊपर बताई गई है।======****==========****============

(सत कबीर की साखी - पेज 179 से 182 तक)-:पीव पिछान को अंग:-

कबीर- तीन देव को सब कोई ध्यावै, चैथे देव का मरम नपावै।
चैथा छाड़ पंचम को ध्यावै, कहै कबीर सो हम पर आवै।।3।।

कबीर- ओंकार निश्चय भया, यह कर्ता मत जान।
साचा शब्द कबीर का, परदे मांही पहचान।।5।।

कबीर- राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नांही संसार।
जिन साहेब संसार किया, सो किन्हूं न जन्म्या नार।।17।।

कबीर - चार भुजा के भजन में, भूलि परे सब संत।
कबिरा सुमिरो तासु को, जाके भुजा अनंत।।23।।

कबीर - समुद्र पाट लंका गये, सीता को भरतार।
ताहि अगस्त मुनि पीय गयो, इनमें को करतार।।26।।

कबीर - गोवर्धनगिरि धारयो कृष्ण जी,द्रोणागिरि हनुमंत।
शेष नाग सब सृष्टि सहारी, इनमें को भगवंत।।27।

Arun Dass
August 30, 2015  • 

Tuesday, June 28, 2016

नारद मुनि ने भगवान विष्णु जी श्राप देना

नारायण नारायण कहने रट लगाने वाले नारद मुनि ने ही अपने ही भगवान विष्णु जी को श्राप दे दिया की आप इक महिला के वियोग में इक जीवन बिताओगे।

पढ़िए पुराण की कथा ज्यो की त्यों...

श्री नारद बड़े ही तपस्वी और ज्ञानी ऋषि हुए जिनके ज्ञान और तप की माता पार्वती भी प्रशंसक थीं। तब ही एक दिन माता पार्वती श्री शिव से नारद मुनि के ज्ञान की तारीफ करने लगीं। शिव ने पार्वती जी को बताया कि नारद बड़े ही ज्ञानी हैं। लेकिन किसी भी चीज का अंहकार अच्छा नहीं होता है। एक बार नारद को इसी अहंकार (घमंड) के कारण बंदर बनना पड़ा था। यह सुनकर माता पार्वती को बहुत आश्चर्य हुआ । उन्होंने श्री शिव भगवान से पूरा कारण जानना चाहा। तब श्री शिव ने बतलाया। नारद को एक बार अपने इसी तप और बुद्धि का अहंकार (घमंड) हो गया था । इसलिए नारद को सबक सिखाने के लिए श्री विष्णु को एक युक्ति सूझी।

हिमालय पर्वत में एक बड़ी पवित्र गुफा थी। उस गुफा के निकट ही गंगा जी बहती थीं। वह परम पवित्र गुफा नारद जी को अत्यन्त सुहावनी लगी। वहां पर के पर्वत, नदी और वन को देख कर उनके हृदय में श्री हरि विष्णु की भक्ति अत्यन्त बलवती हो उठी और वे वहीं बैठ कर तपस्या में लीन हो गए । नारद मुनि की इस तपस्या से देवराज इंद्र भयभीत हो गए कि कहीं देवर्षि नारद अपने तप के बल से उनका स्वर्ग नहीं छीन लें।

इंद्र ने नारद की तपस्या भंग करने के लिये कामदेव को उनके पास भेज दिया। वहां पहुंच कर कामदेव ने अपनी माया से वसंत ऋतु को उत्पन्न कर दिया। पेड़ और पत्ते पर रंग-बिरंगे फूल खिल गए कोयले कूकने लगीं और भौंरे गुंजार करने लगे। कामाग्नि को भड़काने वाली शीतल.मंद.सुगंध सुहावनी हवा चलने लगी। रंभा आदि अप्सराएं नाचने लगीं।

किन्तु कामदेव की किसी भी माया का नारद मुनि पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा। तब कामदेव को डर सताने लगा कि कहीं नारद मुझे शाप न दे दें। इसलिए उन्होंने श्री नारद से क्षमा मांगी। नारद मुनि को थोड़ा भी क्रोध नहीं आया और उन्होंने कामदेव को क्षमा कर दिया। कामदेव वापस अपने लोक में चले गए।

कामदेव के चले जाने पर नारद मुनि के मन में अहंकार (घमंड) हो गया कि मैंने कामदेव को जीत लिया। वहां से वे शिव जी के पास चले गए और उन्हें अपने कामदेव को हारने का हाल कह सुनाया। भगवान शिव समझ गए कि नारद को अहंकार हो गया है। शंकरजी ने सोचा कि यदि इनके अहंकार की बात विष्णु जी जान गए तो नारद के लिए अच्छा नहीं होगा। इसलिए उन्होंने नारद से कहा कि तुमने जो बात मुझे बताई है उसे श्री हरि को मत बताना।


नारद जी को शिव जी की यह बात अच्छी नहीं लगी। उन्होंने सोचा कि आज तो मैने कामदेव को हराया है और ये भी किसी को नहीं बताऊं । नारद जी क्षीरसागर पह़ुंचे गए और शिव जी के मना करने के बाद भी सारी कथा उन्हें सुना दी। भगवान विष्णु समझ गए कि आज तो नारद को अहंकार (घमंड) ने घेर लिया है। अपने भक्त के अहंकार को वे सह नहीं पाते इसलिए उन्होंने अपने मन में सोचा कि मैं ऐसा उपाय करूंगा कि नारद का घमंड भी दूर हो जाए और मेरी लीला भी चलती रहे।

नारद जी जब श्री विष्णु से विदा होकर चले तो उनका अभिमान और भी बढ़ गया। इधर श्री हरि ने अपनी माया से नारद जी के रास्ते में एक बड़े ही सुन्दर नगर को बना दिया । उस नगर में शीलनिधि नाम का वैभवशाली राजा रहता था। उस राजा की विश्व मोहिनी नाम की बहुत ही सुंदर बेटी थी, जिसके रूप को देख कर लक्ष्मी भी मोहित हो जाएं। विश्व मोहिनी स्वयंवर करना चाहती थी इसलिए कईं राजा उस नगर में आए हुए थे।

नारद जी उस नगर के राजा के यहां पहुंचे तो राजा ने उनका पूजन कर के उन्हें आसन पर बैठाया। फिर उनसे अपनी कन्या की हस्तरेखा देख कर उसके गुण-दोष बताने के लिया कहा। उस कन्या के रूप को देख कर नारद मुनि वैराग्य भूल गए और उसे देखते ही रह गए । उस कन्या की हस्तरेखा बता रही थी कि उसके साथ जो विवाह करेगा वह अमर हो जाएगा, उसे संसार में कोई भी जीत नहीं सकेगा और संसार के समस्त जीव उसकी सेवा करेंगे। यह बात नारद मुनि ने राजा को नहीं बताईं और राजा को उन्होंने अपनी ओर से बना कर कुछ और अच्छी बातें कह दी।

अब नारद जी ने सोचा कि कुछ ऐसा उपाय करना चाहिए कि यह कन्या मुझसे ही विवाह करे। ऐसा सोचकर नारद जी ने श्री हरि को याद किया और भगवान विष्णु उनके सामने प्रकट हो गए। नारद जी ने उन्हें सारी बात बताई और कहने लगे, हे नाथ आप मुझे अपना सुंदर रूप दे दो, ताकि मैं उस कन्या से विवाह कर सकूं। भगवान हरि ने कहा हे नारद! हम वही करेंगे जिसमें तुम्हारी भलाई हो। यह सारी विष्णु जी की ही माया थी । विष्णु जी ने अपनी माया से नारद जी को बंदर का रूप दे दिया । नारद जी को यह बात समझ में नहीं आई। वो समझे कि मैं बहुत सुंदर लग रहा हूं। वहां पर छिपे हुए शिव जी के दो गणों ने भी इस घटना को देख लिया।

ऋषिराज नारद तत्काल विश्व मोहिनी के स्वयंवर में पहुंच गए और साथ ही शिव जी के वे दोनों गण भी ब्राह्मण का रूप बना कर वहां पहुंच गए। वे दोनों गण नारद जी को सुना कर कहने लगे कि भगवान ने इन्हें इतना सुंदर रूप दिया है कि राजकुमारी सिर्फ इन पर ही रीझेगी। उनकी बातों से नारद जी मन ही मन बहुत खुश हुए। स्वयं भगवान विष्णु भी उस स्वयंवर में एक राजा का रूप धारण कर आ गए। विश्व मोहिनी ने कुरूप नारद की तरफ देखा भी नहीं और राजा रूपी विष्णु के गले में वरमाला डाल दी।

मोह के कारण नारद मुनि की बुद्धि नष्ट हो गई थी । राजकुमारी द्वारा अन्य राजा को वरमाला डालते देख वे परेशान हो उठे। उसी समय शिव जी के गणों ने ताना कसते हुए नारद जी से कहा – जरा दर्पण में अपना मुंह तो देखिए। मुनि ने जल में झांक कर अपना मुंह देखा और अपनी कुरूपता देख कर गुस्सा हो उठें। गुस्से में आकर उन्होंने शिव जी के उन दोनों गणों को राक्षस हो जाने का शाप दे दिया। उन दोनों को शाप देने के बाद जब मुनि ने एक बार फिर से जल में अपना मुंह देखा तो उन्हें अपना असली रूप फिर से मिल चुका था।

नारद जी को अपना असली रूप वापस मिल गया था। लेकिन भगवान विष्णु पर उन्हें बहुत गुस्सा आ रहा था , क्योंकि विष्णु के कारण ही उनकी बहुत ही हंसी हुई थी। वे उसी समय विष्णु जी से मिलने के लिए चल पड़े। रास्ते में ही उनकी मुलाकात विष्णु जी जिनके साथ हो गई।

उन्हें देखते ही नारद जी ने कहा आप दूसरों की खुशियां देख ही नहीं सकते। आपके भीतर तो ईर्ष्या और कपट ही भरा हुआ है। समुद्र- मंथन के समय आपने श्री शिव को बावला बना कर विष और राक्षसों को मदिरा पिला दिया और स्वयं लक्ष्मी जी और कौस्तुभ मणि को ले लिया। आप बड़े धोखेबाज और मतलबी हो। हमेशा कपट का व्यवहार करते हो। हमारे साथ जो किया है उसका फल जरूर पाओगे। आपने मनुष्य रूप धारण करके विश्व मोहिनी को प्राप्त किया है , इसलिए मैं आपको शाप देता हूं कि आपको मनुष्य जन्म लेना पड़ेगा । आपने हमें स्त्री से दूर किया है , इसलिए आपको भी स्त्री से दूरी का दुख सहना पड़ेगा और आपने मुझको बंदर का रूप दिया इसलिए आपको बंदरों से ही मदद लेना पड़े।


नारद के शाप को श्री विष्णु ने पूरी तरह स्वीकार कर लिया।माया के हट जाने से अपने द्वारा दिए शाप को याद कर के नारद जी को बहुत दुख हुआ किन्तु दिया गया शाप वापस नहीं हो सकता था। इसीलिए श्री विष्णु को श्री राम के रूप में मनुष्य बन कर अवतरित होना पड़ा।


शिव जी के उन दोनों गणों ने जब देखा कि नारद अब माया से मुक्त हो चुके हैं तो उन्होंने नारद जी के पास आकर और उनके चरणों में गिरकर कहा हे मुनिराज! हम दोनों शिव जी के गण हैं। हमने बहुत बड़ा अपराध किया है जिसके कारण हमें आपसे शाप मिल चुका है। अब हमें अपने शाप से मुक्त करने की कृपा करें ।

नारद जी बोलें मेरा शाप झूठा नहीं हो सकता इसलिए तुम दोनों रावण और कुंभ कर्ण के रूप में महान ऐश्वर्यशाली बलवान तथा तेजवान राक्षस बनोगे और अपनी भुजाओं के बल से पूरे विश्व पर विजय प्राप्त करोगे। उसी समय भगवान विष्णु राम के रूप में मनुष्य शरीर धारण करेंगे। युद्ध में तुम दोनों उनके हाथों से मारे जाओगे।

Sunday, June 26, 2016

काल गुप्त रूप से किसी और के शरीर में प्रवेश कर के कार्य करता है

काल गुप्त रूप से किसी और के शरीर में प्रवेश कर के कार्य करता है - पवित्र विष्णु पुराण में प्रमाण
काल भगवान जो इक्कीस ब्रह्मण्ड का प्रभु है, उसने प्रतिज्ञा की है कि मैं अपने शरीर में व्यक्त (मानव सदृष्य अपने वास्तविक) रूप में सबके सामने नहीं आऊँगा। उसी ने सूक्ष्म शरीर बना कर प्रेत की तरह श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके पवित्र गीता जी का ज्ञान कहा।
विष्णु पुराण में प्रकरण है की काल भगवान महविष्णु रूप में कहता है कि मैं किसी और के शरीर में प्रवेश कर के कार्य करूंगा।
1. श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) चतुर्थ अंश अध्याय दूसरा श्लोक 26 में पृष्ठ 233 पर विष्णु जी (महाविष्णु अर्थात् काल रूपी ब्रह्म) ने देव तथा राक्षसों के युद्ध के समय देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करके कहा है कि मैं राजऋषि शशाद के पुत्र पुरन्ज्य के शरीर में अंश मात्र अर्थात् कुछ समय के लिए प्रवेश करके राक्षसों का नाश कर दूंगा।
2. श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) चतुर्थ अंश अध्याय तीसरा श्लोक 6 में पृष्ठ 242 पर श्री विष्ण जी ने गंधर्वाे व नागों के युद्ध में नागों का पक्ष लेते हुए कहा है कि “मैं (महाविष्णु अर्थात् काल रूपी ब्रह्म) मानधाता के पुत्र पुरूकुत्स में प्रविष्ट होकर उन सम्पूर्ण दुष्ट गंधर्वो का नाश कर दूंगा”।

Saturday, May 28, 2016

बैष्णव संत रामानन्द जी

जब १०४ बर्षीय बैष्णव संत रामानन्द जी ले ५ बर्षीय कबीर साहेबलाई सत्यधाम अर्थत धूलोकको तेस्रो स्थानमा क्षर र अक्षर भन्दा पर राजाको जस्तो विराजमान भएको र पुर्थ्वीमा सामान्य रुपमा लीला गरेको देखेर कबीर साहेबको शरणमा आउनुहुन्छ र 

कृष्णको भक्ती त्यागेर कबीर साहेबको स्तुतीमा भन्नुहुन्छ की:-

तहा वहा चित चक्रित भया, देखि फजल दरवार।
कहै रामानन्द सिजदा किया, हम पाये दिदार॥
तुम स्वामी मै बाल बुद्धि, भर्म कर्म किये नाश।
कहै रामानन्द निज ब्रह्म तुम, हमरै दुढ विश्वाश॥
सुन्न-बेसुन्न सै तुम परै, उरै से हमरै तीर।
कहै रामानन्द सरबंगमे, अविगत पुरूष कबीर॥
कोटि कोटि सिजदे करै, कोटि कोटि प्रणाम।
कहै रामानन्द अनहद अधर, हम परसै तुम धाम॥
बोलत रामानन्द, सुन कबीर करतार।
कहै रामानन्द सब रूप मे, तुमही बोलन हार॥
तुम साहिब तुम सन्त हौ। तुम सतगुरू तुम परमहसं।
कह रामानन्द तुम रूप बिन और न दुजा अंस॥
मै भगता मुक्ता भया, किया कर्म कुन्द नाश।
कहै रामानन्द अविगत मिले, मेटी मन की बास॥
दोहू ठौर है एक तू, भया एक से दोय।
कहै रामानन्द हम कारणै, उतरे है मघ जोय॥
बोलत रामानन्द जी, सुन कबीर करतार।
कहै रामानन्द सब रूप मे, तू ही बोलनहार॥
*
योहो सच्चा संत भनेको जो सत्य जान्ने वितिक्कै कृष्ण को भक्ती त्यागेर पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेबको शरणमा आए।

Wednesday, April 27, 2016

कृष्ण के मरने के बाद गोपीयो को भिल्लो ने लूठा अर्जुन को भी पीटा..

कृष्ण के मरने के बाद गोपीयो को भिल्लो ने लूठा अर्जुन को भी पीटा.. दुनिया के लोग कृष्ण की फोटो के सामने अपनी अपने बच्चो की जान की भीख मांगते है जब कृष्ण जी शरीर मे थे जब वह यादवो और अभिमन्यु को नही बचा पाये तुम लोग तो फोटो को भगवान माने बैठे हो तुम्हे कैसे बचायेगे.. 

लोग शिव को भगवान मानते है एक बार भष्मासूर ने तप किया शिव से भष्म कडा लेकर शिव के पीछे भाग लिया.. शिव भगवान डर कर आगे आगे भाग रहे थे और उनका पुजारी उनको मारने के लिए उनके पीछे भाग रहा था. बताओ शिव खुदकी रक्षा नही कर सकते अगर शिव को भी मरने से डर लगता हैा पार्वती हवन कुंड मे कूदकर मर गई थी शिव तो अन्तर्यामी भगवान थे उनको क्यो मालूम नही हुआ.. क्यो पार्वती को नही बचा पाये.. जो अपनी पत्नी की रक्षा नही कर सकते वह दूसरो की क्या करेगे.. केदारनाथ मे सैकडो लोग मारे गए शिव क्यो नही बचा पाये.. हरिद्वार 1991 मे नीलकंठ पर हजारो लोग मारे गए थे एक बार हरिद्वार मे 2500 साधु कुम्भ के मेले मे आपस मे कट कर कर मर गये शिव क्यो नही बचा पाये?? भगवान थे तो क्यो नही बचाया ????

--> राम को भगवान मानते हो राम को ये नही पता मेरी सीता को कौन उठा ले गया ?? 
सीता का पता लगाने के लिए भी सेना का सहारा लिया काहे का भगवान??? 
सीता को रावण उठा ले गया..राम एक सीता की रक्षा नही कर पाया तुम्हारी क्या करेगा.. 14 वर्ष जंगल मे भटकने की क्या जरूरत थी.. अगर जंगल मे राक्षसो को मारना था तो वैसे जाकर भी मार सकते थे.. ये वनवासी का ढोंग करने  की क्या जरूरत थी.. राम जी तो भगवान थे पहुच जाते सीधे लंका मे मार देते रावण को... क्या जरूरत थी सीता को 12 साल तक रावण की कैद मे डालने की... 

हिन्दू धर्म के मुर्खो जैसे राम ने रावण को मारने के लिए अपनी प्रिय सीता को उसकी कैद मे डाला था और करोडो सैनिको का बलिदान दिया ... 

ठीक इसी तरह रामपाल जी महाराज ने इस संसार से काल के अज्ञान को हराकर पूर्ण परमात्मा के ज्ञान को जीताने के लिए अपने अतिप्रिय शिष्यो को कुछ समय के लिए पुलिस की जेल मे डाला और खुद भी चले गये.. जैसे सीता माता के लिए करोडो सैनिको ने बलिदान दिया.. ठीक इसी तरह इस विश्व कल्याण के लिए सतलोक आश्रम मे कुछ भगत बहनो ने बलिदान दिया.. आने वाले समय मे दुनिया उनको याद करेगी.. किसान को ज्यादा से ज्यादा लोगो का पेट भरने के लिए बीज को मिटटी मे मिलाना पडता हैा इसी तरह रामपाल जी महाराज ने विश्व कल्याण के लिए अपने शिष्यो और खुद को जेल मे ले जाकर मिटटी मे मिला दिया है लेकिन भविष्य मे इस विश्व के लोग रामपाल जी को पलखो पर बैठायेगे जब उनको सच्चाई का पता चलेगा..
कबीर - जब कलयुग 5500 वर्ष बीत जाये, 
तब एक महापुरूष फरमान जग तारन को आये..

तो कलयुग 5500 वर्ष बीत चुका है रामपाल
जी महाराज आ चुके हैं । —

Monday, April 25, 2016

काल भगवान

काल भगवान
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जो इक्कीस ब्रह्मण्ड का प्रभु है, उसने प्रतिज्ञा की है कि मैं अपने शरीर में व्यक्त (मानव सदृष्य अपने वास्तविक) रूप में सबके सामने नहीं आऊँगा। उसी ने सूक्ष्म शरीर बना कर प्रेत की तरह श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके पवित्र गीता जी का ज्ञान कहा। विष्णु पुराण में प्रकरण है की काल भगवान महविष्णु रूप में कहता है कि मैं किसी और के शरीर में प्रवेश कर के कार्य करूंगा।

1. श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) चतुर्थ अंश अध्याय दूसरा श्लोक 26 में पृष्ठ 233 पर विष्णु जी (महाविष्णु अर्थात् काल रूपी ब्रह्म) ने देव तथा राक्षसों के युद्ध के समय देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करके कहा है कि मैं राजऋषि शशाद के पुत्र पुरन्ज्य के शरीर में अंश मात्र अर्थात् कुछ समय के लिए प्रवेश करके राक्षसों का नाश कर दूंगा।

2. श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) चतुर्थ अंश अध्याय तीसरा श्लोक 6 में पृष्ठ 242 पर श्री विष्ण जी ने गंधर्वाे व नागों के युद्ध में नागों का पक्ष लेते हुए कहा है कि “मैं (महाविष्णु अर्थात् काल रूपी ब्रह्म) मानधाता के पुत्र पुरूकुत्स में प्रविष्ट होकर उन सम्पूर्ण दुष्ट गंधर्वो का नाश कर दूंगा”।

Thursday, March 24, 2016

त्रिगुणमयी जालमा उल्झेको संसार nepali


कबीर, अक्षर पुरुष एक पेड है, निरंजन वाकी डार ।
त्रिदेवा (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) शाखा भये, पात भया संसार ।।
कबीर, तीन देवको सब कोई ध्यावै, चौथा देवका मरम न पावै
चौथा छाडि पँचम ध्यावै ,कहै कबीर सो हमरे आवै ।।
कबीर, तीन गुणन की भक्ति में, भूलि पर्यो संसार ।
कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरे पार ।।
कबीर, ओंकार नाम ब्रह्म (काल) का, यह कर्ता मति जानि ।
सांचा शब्द कबीर का, परदा माहिं पहिचानि ।।
कबीर, तीन लोक सब राम जपत हैं, जान मुक्तिको धाम ।
रामचन्द्र वसिष्ठ गुरु किया, तिन कहि सुनायो नाम ।।
कबीर, राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नाही संसार ।
जिन साहब संसार किया, सो किनहू न जनम्यां नारि ।।
कबीर, चार भुजाके भजनमे, भूलि परे सब संत ।
कविरा सुमिरै तासु को,  जाके भुजा अनंत ।।
कबीर, वाशिष्ट मुनि से तत्वेता, ज्ञानी, शोध कर लग्न धरै ।
सीता हरण मरण दशरथ को, बन बन राम फिरै ।।
कबीर, समुद्र पाटि लंका गये, सीता को भरतार।
ताहि अगस्त मुनि पीय गयो, इनमें को करतार ।।
कबीर, गोवर्धन कृष्ण जी उठाया, द्रोणगिरि हनुमंत ।
शेष नाग सब सृष्टी उठाई, इनमें को भगवंत ।।
कबीर, दुर्वासा कोपे तहां, समझ न आई नीच ।
छप्पन कोटी यादव कटे, मची रुधिर की कीच ।।
कबीर, काटे बंधन विपति में, कठिन किया संग्राम ।
चीन्हों रे नर प्राणिया, गरुड बडो की राम ।।
कबीर, कह कबीर चित चेतहू, शब्द करौ निरुवार ।
श्री रामचन्द्र को कर्ता कहत हैं, भूलि पर्यो संसार ।।
कबीर, जिन राम कृष्ण निरंजन किया, सो तो करता न्यार ।

Monday, December 28, 2015

वेद पुराण यह करे पुकारा। सबही से इक पुरुष नियारा।



“ऐसा राम कबीर ने जाना”
वेद पढ़े और भेद न जाने। नाहक यह जग झगड़ा ठाने।।
वेद पुराण यह करे पुकारा। सबही से इक पुरुष नियारा।
तत्वदृष्टा को खोजो भाई, पूर्ण मोक्ष ताहि तैं पाई।
कविः नाम जो बेदन में गावा, कबीरन् कुरान कह समझावा।
वाही नाम है सबन का सारा, आदि नाम वाही कबीर हमारा।।

मां अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछेसे माया उपजाई।।
माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।।
कामदेव धर्मराय सत्ताये। देवी को तुरतही धर खाये।।

पेट से देवी करी पुकारा। साहब मेरा करो उबारा।।
टेर सुनी तब हम तहाँ आये। अष्टंगी को बंद छुड़ाये।।
सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरंजन दिन्हा निकारि।।
माया समेत दिया भगाई, सोलह संख कोस दूरी पर आई।।

अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।।
धर्मराय को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।

कबीरा खड़ा बाज़ार मे,लिया लुकाठी हाथ ।
जो घर जारै आपना ,वे चले हमारे साथ ।।

जब लग नाता जगत का, तब लग भक्ति न होय । नाता तोड़े हरि भजे, भगत कहावें सोय ॥७



जब लग नाता जगत का, तब लग भक्ति न होय ।
नाता तोड़े हरि भजे, भगत कहावें सोय ॥७

दिव्य दृष्टि खुली हमारी, सार शब्द से टोया वो |
गरीबदास गायत्री लापी, शीश पीट जम रोया वो ||
खान पान कुछ करदा नाही, है महबूब अचारी वो |
कौम छत्तीस रीत सब दुनिया, सब से रहै विचारी वो |
... बेपरवाह शाहनपति शाहं, जिन ये धारना धारी वो |
अन्तोल्या अन्मोल्या देवै, करोड़ी लाख हजारी वो |
अरब ख़रब और नील पदम् लग, संखो संख भंडारी वो |
जो सेवै ताहि को खेवै, भवजल पार उतारी वो |
सुरति निरति गल बंधन डोरी, पावै बिरह अजारी वो |
ब्रह्मा विष्णु महेश सरीखे, उसकी उठावैं झारी वो |
शेष सहंस्र मुख करे विनती, हरदम बारम्बारी वो |
शब्द अतीत अनाहद पद है, ना वो पुरुष ना नारी वो |
सूक्ष्म रूप स्वरुप समाना, खेलैं अधर अधारी वो |
जाकूं कहै कबीर जुलाहा, रची सकल संसारी वो |
गरीबदास शरणागति आये, साहिब लटक बिहारी वो ||
मंद-मंद मुस्कात मुसाफिर, है महबूब परेवा वो |
ब्रह्मा विष्णु महेश शेष से, सब देवनपति देवा वो |
अमृतकंद इन्द्री नहीं मोसर, अमी महारस मेवा वो |
कोटि सिद्ध परसिद्ध चरण में, जाकी कर ले सेवा वो |
तीरथ कोटि नदी सब चरणों, गंगा जमुना रेवा वो |
सबके घर दर आगे ठाढा, कोई ना जाने भेवा वो |
रिंचक सा प्रपंच भरया है, अवगत अलख अभेवा वो |
समर्थ दाता कबीर धनि है, और सकल है लेवा वो |
गरीबदास कूं सतगुरु मिलिया, भवसागर का खेवा वो


कबीरा।हरि।की।भगति करो।
तज विषयोँ रस चोज
बार।बार।न पाओगे
मानुष।जन्म।की।मौज
सत् साहेब

चार राम

चार राम



राम नाम रटते रहाे, जबतक घटमे प्रान ।

राम नाम रटते रहाे, जबतक घटमे प्रान ।
कबहु दिनदयालकी भनक पडेगी कान ।।
राम रटत दरिद्र भला, टुटि घरकी छान ।
वाे सुन्दर महल किसकामका , जाहा भक्ति नहि भगवान ।।
 अाया हे ताे जाऐंगे, राजा रङ्क फकिर।।
एक जन्जिर से बांधके, एक चढके पुष्पक बिमान ।। -सत् साहेब जी ।।


कबीर-सत्यनाम सुमरण बिन,
मिटे न मन का दाग..!
विकार मरे मत जानियो,
ज्यो भूभल में आग.!!!!