Friday, September 15, 2017
Tuesday, September 27, 2016
मन रुपी जिन्न से बचने का उपाय
एक बार संत जी ज्ञान प्रचार के लिए तीन दिन के लिऐ एक नगरी मे चले गये । शिष्य अकेला कुटिया मे रह गया था।एक दिन शिष्य ने सोचा की आज तीसरा दिन है और गुरूदेँव जी भी आने वाले है कुछ टाईम मे तब तक उस सिध्दी का प्ररिक्षण करते है जो गुरुदेँव जी ने सिखाई है।शिष्य ने गुरुदेँव के बताऐ अनुसार मँत्र उचारण किया तभी एक जिन्न प्रकट हुआ।जिन्न ने कहा मुझे काम बताओ नही तो तुम्हे मार दुँगा। तभी वो शिष्य बोला गाँव से भिक्षा ले आओ तभी जिन्न ने कुछ देर मे भिक्षा ले आया । फिर कपड़े धोने को बोला ऐसे जिन्न से सब काम करवा लिया।
तब जिन्न बोला कि और काम बताओ जब कुछ देर तक उस शिष्य ने कोई काम ना बताया तो जिन्न उसे मारने के लिऐ दौड़ा तभी वो शिष्य रास्ते की और दोड़ा तो गुरुदेँव आते दिंखाई दिये शिष्य जोर जोर से आवाज लगाता की गुरु जी बचाओ गुरु जी बचाओ आवाज लगाता गुरुदेँव की और तेजी से दौड़ा। तभी संत जी ने पुँछा की क्या हु आ बच्चा तब शिष्य ने सारी घटना बताई और कहा गुरु जी माफ करो मुझे बचाऔ नही तो वो जिन्न हमे मार डालेगा।
तब संत जी ने शिष्य को कहा की जिन्न को कहो की एक मजबुत लम्बा बाँस लेकर आओ और उसे जमीन मे गाड़ दो । जिन्न ने एक बाँस का लठ्ठ जमीन मे गाँड़ दिया । तब संन्त जी ने शिष्य को कहा की अब जिन्न को कहो की अब इस बाँस पर चढते और उतरते रहो । तब शिष्य ने जिन्न को बाँस पर चढने उतरने का काम देकर राहत की साँस ली ।
इसी प्रकार परमेश्वर बताते है की मन रुपी जिन्न से बचने का उपाय गुरूदेँव जी से मिला हुआ नाम रुपी बाँस है जिस पर मन को लगाऐ रखे अन्यथा हमे ये मन रुपी जिन्न विचलित कर भगतिहीन बना देगा इस से बचने का उपाय केवल नाम आधार है मन रुपी घोड़े को रोका नही जा सकता इसकी दिशा चैज की जा सकती है जितनी स्पीड से ये बुराई के लिए दौड़ रहा था जब इसे अच्छाई पर लगाया जाऐगा तब उतनी स्पीड से अच्छाई ग्रहण करेगा ।
।। सत साहेब जी ।।
Saturday, May 14, 2016
परदेश(काललोक) से स्वदेश(अमरलोक) लौटने की सडक(विधि)
परदेश(काललोक) से स्वदेश(अमरलोक) लौटने की सडक(विधि)
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घीसादास जी कहते है मूल कमल से सीधी सडक जात है सतनाम(ओम + तत) ले जा उडा कर...
जैसे हमे अपने घर से दूसरे देश जाना हो तो पहले बस या कार से by सडक airport जायेगे उसके बाद हम बस कार से नही जा सकते फिर हमे airport से हवाई जहाज से उडकर जाना पडेगा..
ठीक इसी तरह मूल कमल से त्रिकुटी तक सीधी सडक जाती है गुरू जी का प्रथम मंत्र समझो बस कार जो हमे त्रिकुटी तक लेकर जायेगा.. त्रिकुटी हवाई अडडा समझो.. त्रिकुटी से आगे हमे सतनाम का मंत्र उडाकर लेकर जायेगा.. सतनाम के दो अक्षर को हवाई जहाज समझो.. ( नाम की नौका ही भवसागर से पार करती है)
विशेष जानकारी->
नोट - हमारा शरीर एक ब्रह्मांड का नक्शा है जो कुछ एक ब्रह्मांड मे है वो हम शरीर मे भी देख सकते है जैसे internet पर आप कुछ भी देख सकते हो इसी तरह परमात्मा की पावर से हम ब्रह्मांड को इस शरीर मे देख सकते है संत कमल बोलते है योगी चक्र बोलते है ये कमल चक्र इन देवताओ के आवास स्थल है जहा ये रहते है ये ब्रह्मांड मे ही है ये समझ लो हमारा शरीर मिनी ब्रह्मांड है ये देवता कमल के अन्दर हमारे शरीर मे भी विधमान है..
ये ब्रह्मांड सात कमलो(चक्रो) मे बांटा हुआ है और हर कमल मे एक एक देवी देवता को प्रधान बना रखा है..
मूल कमल --------
मूल कमल से सीधी सडक त्रिकुटी तक जाती है.. जब साधक की भक्ति पूरी हो जाती है तो कबीर परमेश्वर एक विमान लेकर गुरू रूप मे आते है..
(नोट - हमारी आत्मा पर पांच शरीर चढे हुए है स्थूल, सूक्ष्म ,कारण, महाकारण, कैवल्य शरीर..)
हम 5 तत्व के स्थूल शरीर को छोडकर सूक्षम शरीर मे आ जाते है तब हमारा विमान पहले मूल कमल से गुजरता है वहा गणेश जी विधमान है हम गंणेश के मंत्र की कमाई उनको देकर उनके कर्ज से मुक्त हो जायेगे..
फिर गंणेश जी हमे आगे जाने की अनुमति देगे...
स्वाद कमल------
फिर हम स्वाद कमल मे प्रवेश कर जायेगे यहा के प्रधान ब्रह्मा और सवित्री है.. हम ब्रह्मा सवित्री के मंत्र की कमाई इनको देकर कर्ज चुका देगे.. क्योकि ब्रह्मा हमारी उत्पति कर्ता है.. इसके बाद ब्रह्मा जी हमे आगे जाने की अनुमति हमे देगे..
नाभी कमल------
फिर हम नाभी कमल मे प्रवेश कर जायेगे नाभी कमल मे विष्णु लक्ष्मी प्रधान है हम इनके मंत्र की कमाई इनको देकर कर्ज चुका देगे.. क्योकि विष्णु पालन पोषण कर्ता है. फिर विष्णु जी हमारे विमान को आगे जाने की अनुमति देगे..
हदय कमल-----
फिर हम हदय कमल मे प्रवेश कर जायेगे. यहा के प्रधान शिव पार्वती है इनके मंत्र की कमाई इनको देकर इनका कर्ज चुका देगे.. क्योकि शिव संहार करते है.. फिर शिव हमारे विमान को आगे जाने की अनुमति द्गे.
कंठ कमल-----
फिर हम कंठ कमल मे प्रवेश कर जायेगे.. यहा की प्रधान दुर्गा माता है हम दुर्गा माता के मंत्र की कमाई दुर्गा माता को देकर इसका कर्ज चुका देगे.. फिर दुर्गा माता हमे आगे जाने की अनुमति देगी..
त्रिकुटी कमल-----
फिर हम त्रिकुटी कमल दसवे द्वार मे प्रवेश कर जायेगे... दसवे द्वार मे आगे चलकर त्रिवेणी आती है.. तीन रास्ते हो जाते है.. ये हवाई अडडा समझो प्रथम मंत्र हमे यहा तक लाकर छोड देते है. इससे आगे सतनाम के दो अक्षर उडाकर लेकर जाते है..
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त्रिकुटी मे आगे चलकर तीन रास्ते हो जाते है जिसे त्रिवेणी बोलते है.. वहा काल के पुजारी दायं बाय चले जाते है.. लेकिन सामने जो रास्ता होता है उसको ब्रह्मरंद( बज्रकपाट) बोलते है.. वह अमरलोक जाने का रास्ता है.. कबीर परमात्मा कहते है शिव ने भी 97 बार try किया था.. लेकिन वो भी इस गेट को नही खोल पाये थे.. वो भी उल्टे हट गये थे क्योकि शिव के पास सतनाम मंत्र नही है..
गरीब- ब्रह्मरंद को खोलत है कोई एक
द्वारे से फिर जात है ऐसे बहुत अनेक
इस ब्रह्मरंद के बज्रकपाट को सतनाम के दो अक्षर खोलते है तब हम दसवे द्वार मे आगे सहंसार कमल मे प्रवेश करते है.. (यहा से ब्रह्मा विष्णु शिव के पिता काल की सीमा शुरू होती है.. जहा पर काल अपने भयानक वास्तविक रूप मे बैठा है) आगे बहुत भयानक आवाजे आती है डाकनी शाकनी बहुत सारी मिलती है.. सतनाम के मंत्र को सुनकर सब भाग जाते है.. (सतनाम मे इतनी पावर है अगर 12 करोड यम के दूत और साथ मे ब्रह्मा विष्णु शिव का पिता काल ये सभी एक साथ आ जाये मात्र एक जाप सबको उठाकर फैक देगा) आगे चलकर काल अपने वास्तविक रूप मे बैठा नजर आता है लेकिन गुरू रूप मे परमात्मा साथ होते है.. तब हमे तीनो मंत्रो का जाप एक साथ करना होता है..
तीसरे नाम (सारनाम) का महत्व
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(सतनाम के बाद जब हम तीसरा सारनाम गुरू जी से लेते है तो गुरू जी सतनाम के दो अक्षर मे ही सारनाम का एक अक्षर एड कर देते है ऐसे ब्रह्म परब्रह्म पूर्णब्रह्म तीनो का जाप एक साथ करना होता है.. जाप विधि गुरू जी बताते है गीता अध्याय 17 के 23 मे लिखा है ओम- तत- सत ये पूर्ण परमात्मा का मंत्र(नाम) कहा है ओम सीधा ही है तत सत कोड वर्ड है सतगुरू रामपाल जी महाराज बतायेगे.. फिर इन तीनो मंत्र का एक साथ जाप करना होता है सतनाम और सारनाम एक नाम बन जाता है)
जब हम दसवे द्वार के last मे जाते है तो वहा काल वास्तविक रूप मे बैठा है.. वहा हम जब इन तीनो मंत्रो (सतनाम और सारनाम)का जाप एक साथ करते है तो काल निरंजन सर झुका देता है गीता 8/13 श्लोक मे ओम मंत्र काल ब्रह्म का है इसकी कमाई काल अपने पास रख लेता है और हमे आगे आठवे कमल ग्यारहवे द्वार मे जाने की अनुमति दे देता है. इसके सर के पीछे ग्यारहवा द्वार है. जब काल सर झुकाता है तो हम इसके सर पर पैर रख कर ग्यारहवे द्वार परब्रह्म के लोक आठवे कमल मे प्रवेश कर जाते है वहा हमारा सूक्ष्म शरीर छुट जाता है हमारे पास तत और सत मंत्र की कमाई शेष रह जाती है जब हम परब्रह्म(अक्षरपुरूष) के लोक मे आगे बढते जाते है हमारी तत मंत्र की कमाई परब्रह्म रख लेता है क्योकि तत मंत्र परब्रह्म का है और हमे आगे जाने की अनुमति दे देता है. हमारे कारण महाकारण शरीर छुट जाते है केवल कैवल्य शरीर शेष रह जाता है (नौवे कमल मे बारहरवा द्वार पार करके अमरलोक है) ग्यारहवा द्वार के last मे भव्वर गुफा आती है वहा पर मानसरोवर बना है वहा से अमरलोक दिखाई देने लगता है वहा परमात्मा इस आत्मा को मानसरोवर मे स्नान करवाते है तब इस आत्मा का कैवल्य शरीर छुट जाता है और वास्तविक नूरी रूप बन जाता है तब वहा इस आत्मा के शरीर का प्रकाश सोलह सुरज और चंद्रमा जितना हो जाता है.. फिर सत मतलब सारनाम मंत्र की कमाई लेकर ये आत्मा सतलोक मतलब अमरलोक मे प्रवेश कर जाती है.. वहा सदा के लिए स्थाई हो जाती है.. मौज मनाती है नाचती गाती है परमात्मा कबीर साहेब के रोज दर्शन करती है.. इस तरह से ये आत्मा काल के जाल से निकलकर अपने घर अपने वतन अमरलोक लौट आती है.. फिर कभी काल के लोक मे वापिस नही आती.. सदा के लिए अमर और स्थाई हो जाती है.. सदा के लिए जन्म मरन से पीछा छुट जाता है.. फोटो मे लिखी कबीर सागर की अमरलोक की कबीर वाणी पढिये.. वहा जन्म मरण बुढापा नही होता सदा युवा रहती है आत्मा.. अमरलोक मे भी नर नारी है परिवार है. लेकिन शब्द शक्ति से बच्चे पैदा होते है गर्भ से नही होते.. वहा कोई कर्म नही करना पडता.. अमरलोक मे बाग बगीचे है फल फूल नदी मानसरोवर है लेकिन सब कुछ नूरी है हिरे की तरह स्वय प्रकासित.. वहा सभी प्रेम से रहते है.. कोई किसी को जरा भी बुरा नही बोलता..
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चल देखो देश हमारा रे, जहाँ कोटि पदम उजियारा रे, 🏃
🏃 देखो देश हमारा रे,जहाँ उजल भँवर गुंजारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ चवंर सुहगंम डारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ चन्द्र सूरज नहीं तारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, नहीं धर अम्बर कैनारा रे,🌎 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ अनन्त फूल गुलजारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ भाटी चवै कलारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ धूमत है मतवारा रे,🚁
रे मन कीजै दारमदारा रे तुझे ले छोडूं दरबारा रे,
फिर वापिस ना ही आवे रे सतगुरु सब नाँच मिटावै रे, 🏃
चल अजब नगर विश्रामा रे, तुम छोड़ो देना बाना रे, 🏃
चल देखो देश अमानी रे, जहाँ कुछ पावक ना पानीरे,🚣 🏃
चल देखो देश अमानी रे, जहाँ झलकै बारा बानी रे, 🏃
चल अक्षर धाम चलाऊं रे, मैं अवगत पंथ लखाऊं रे,
कर मकरतार पियाना रे, क्यों शब्दै शब्द समाना रे,🌞 🌳
जहाँ झिलझिल दरिया नागर रे, जहाँ हंस रहे सुखसागर रे, जहाँ अनहद नाद बजन्ता रे, जहाँ कुछ आदि नहीं अन्ता रे,💥 🌿जहाँ अजब हिरम्बर हीरा रे,त जहाँ हंस रहे सुख तीरा रे, 🌲जहाँ अजब हिरम्बर हीरा रे, जहाँ यम दण्ड नहीं दुख पीडा रे ..आदरणीय गरीब दासजी महाराज परमेश्वर कबीर साहिब जी को सतलोक में आँखों देख कर बता रहे हैं
🏃चल देखो देश अमानी रे मैं तो सतगुरु पर कुर्बानी रे, 🏃चल देखो देश बिलन्दा रे, जहाँ बसे कबीरा जिन्दा रे,🌳 🏃चल देखो देश अगाहा रे, जहाँ बसे कबीर जुलाहा रे🏤 🏃चल देखो देश अमोली रे, जहाँ बसे कबीरा कोली रे 🏃
चल देखो देश अमाना रे, जहाँ बुने कबीरा ताना रे,🏇 🏃
चल अवगत नगर निबासा रे, जहाँ नहीं मन माया का बासा रे 🏃चल देखो देश अगाहा रे, जह बसै कबीर जुलाहा रे.. .
हे मालिक आपके चरणों में कोटि कोटि दण्डवत् प्रमाण, ऐसा निर्मल ग्यान देने के लिए...
ऐसा निर्मल ग्यान है जो निर्मल करे शरीर,
और ग्यान मण्डलीक कहै ये चकवै ग्यान कबीर।
और ग्यान सब ग्यानडी कबीर ग्यान सो ग्यान,
जैसे गोला तोब का अब करता चलै मैदान।
और संत सब कूप है, केते झरिया नीर,
दादू अगम अपार है ये दरिया सत् कबीर
Plz visit - www.jagatgururampalji.org
Monday, May 2, 2016
Saturday, April 30, 2016
धर्मदास यह कठिन कहानी | गुरुमत ते कोई बिरले जानी ||
कबीर साहब बोले - सत्यज्ञान बल से सदगुरु काल पर विजय प्राप्त कर अपनी शरण में आये हुये हँस जीव को सत्यलोक ले जाते हैं । जहाँ पर हँस जीव मनुष्य सत्यपुरुष के दर्शन पाता है । और अति आनन्द को प्राप्त करता है । फ़िर वह वहाँ से लौटकर कभी भी इस कष्टदायक दुखदायी संसार में वापस नहीं आता । यानी उसका मोक्ष हो जाता है ।
हे धर्मदास ! मेरे वचन उपदेश को भली प्रकार से गृहण करो । जिज्ञासु इंसान को सत्यलोक जाने के लिये सत्य के मार्ग पर ही चलना चाहिये । जैसे शूरवीर योद्धा एक बार युद्ध के मैदान में घुसकर पीछे मुढकर नहीं देखता । बल्कि निर्भय होकर आगे बढ जाता है । ठीक वैसे ही कल्याण की इच्छा रखने वाले जिज्ञासु साधक को भी सत्य की राह पर चलने के बाद पीछे नहीं हटना चाहिये ।
अपने पति के साथ सती होने वाली नारी और युद्ध भूमि में सिर कटाने वाले वीर के महान आदर्श को देख समझकर जिस प्रकार मनुष्य दया संतोष धैर्य क्षमा वैराग विवेक आदि सदगुणों को गृहण कर अपने जीवन में आगे बढते हैं । उसी अनुसार दृण संकल्प के साथ सत्य सन्तमत स्वीकार करके जीवन की राह में आगे बढना चाहिये ।
जीवित रहते हुये भी मृतक भाव अर्थात मान अपमान हानि लाभ मोह माया से रहित होकर सत्यगुरु के बताये सत्यज्ञान से इस घोर काल कष्ट पीङा का निवारण करना चाहिये ।
हे धर्मदास ! लाखो करोंङो में कोई एक विरला मनुष्य ही ऐसा होता है । जो सती शूरवीर और संत के बताये हुये उदाहरण के अनुसार आचरण करता है । और तब उसे परमात्मा के दर्शन साक्षात्कार प्राप्त होता है ।
तब धर्मदास बोले - हे साहिब ! मुझे मृतक भाव क्या होता है ? इसे पूर्ण रूप से स्पष्ट बताने की कृपा करें ।
कबीर साहब बोले - हे धर्मदास ! जीवित रहते हुये जीवन में मृतक दशा की कहानी बहुत ही कठिन है । इस सदगुरु के सत्यज्ञान से कोई बिरला ही जान सकता है । सदगुरु के उपदेश से ही यह जाना जाता है ।
धर्मदास यह कठिन कहानी । गुरुमत ते कोई बिरले जानी ।
जीवन में मृतक भाव को प्राप्त हुआ सच्चा मनुष्य अपने परम लक्ष्य मोक्ष को ही खोजता है । वह सदगुरु के शब्द विचार को अच्छी तरह से प्राप्त करके उनके द्वारा बताये गये सत्य मार्ग का अनुसरण करता है ।
उदाहरण स्वरूप जैसे भृंगी ( पंख वाला चींटा जो दीवाल खिङकी आदि पर मिट्टी का घर बनाता है । ) किसी मामूली से कीट के पास जाकर उसे अपना तेज शब्द घूँ घूँ घूँ सुनाता है ।
तव वह कीट उसके गुरु ज्ञान रूपी शब्द उपदेश को गृहण करता है । गुंजार करता हुआ भृंगी अपने ही तेज शब्द स्वर की गुंजार सुना सुनाकर कीट को प्रथ्वी पर डाल देता है । और जो कीट उस भृंगी शब्द को धारण करे । तब भृंगी उसे अपने घर ले जाता है । तथा गुंजार गुंजार कर उसे अपना स्वाति शब्द सुनाकर उसके शरीर को अपने समान बना लेता है । भृंगी के महान शब्द रूपी स्वर गुंजार को यदि कीट अच्छी तरह से स्वीकार कर ले । तो वह मामूली कीट से भृंगी के समान शक्तिशाली हो जाता है । फ़िर दोनों में कोई अंतर नहीं रहता । समान हो जाता है ।
असंख्य झींगुर कीटों में से कोई कोई बिरला कीट ही उपयुक्त और अनुकूल सुख प्रदान कराने वाला होता है । जो भृंगी के प्रथम शब्द गुंजार को ह्रदय से स्वीकारता है । अन्यथा कोई दूसरे और तीसरे शब्द को ही शब्द स्वर मानकर स्वीकार कर लेता है । तन मन से रहित भृंगी के उस महान शब्द रूपी गुंजार को स्वीकार करने में ही झींगुर कीट अपना भला मानते हैं ।
भृंगी के शब्द स्वर गुंजार को जो कीट स्वीकार नहीं करता । तो फ़िर वह कीट योनि के आश्रय में ही पङा रहता है । यानी वह मामूली कीट से शक्तिशाली भृंगी नहीं बन सकता ।
हे धर्मदास ! यह मामूली कीट का भृंगी में बदलने का अदभुत रहस्य है । जो कि महान शिक्षा प्रदान करने वाला है । इसी प्रकार जङ बुद्धि शिष्य जो सदगुरु के उपदेश को ह्रदय से स्वीकार करके गृहण करता है । उससे वह विषय विकारों से मुक्त होकर अज्ञान रूपी बंधनों से मुक्त होकर कल्याणदायी मोक्ष को प्राप्त होता है ।
हे धर्मदास ! भृंगी भाव का महत्व और श्रेष्ठता को जानों । भृंगी की तरह यदि कोई मनुष्य निश्चय पूर्ण बुद्धि से गुरु के उपदेश को स्वीकार करे । तो गुरु उसे अपने समान ही बना लेते हैं । जिसके ह्रदय में गुरु के अलावा दूसरा कोई भाव नहीं होता । और वह सदगुरु को समर्पित होता है । वह मोक्ष को प्राप्त होता है । इस तरह वह नीच योनि में बसने वाले कौवे से बदलकर उत्तम योनि को प्राप्त हो हँस कहलाता है ।
Jai Ho Bandichhor sadguru Rampal ji maharaj ki......
अवश्य पढे , पर्भु प्रेमी आत्माऐ परदेश(काललोक) से स्वदेश(अमरलोक) लौटने की सडक(विधि)
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घीसादास जी कहते है मूल कमल से सीधी सडक जात है सतनाम(ओम + तत) ले जा उडा कर...
जैसे हमे अपने घर से दूसरे देश जाना हो तो पहले बस या कार से by सडक airport जायेगे उसके बाद हम बस कार से नही जा सकते फिर हमे airport से हवाई जहाज से उडकर जाना पडेगा..
ठीक इसी तरह मूल कमल से त्रिकुटी तक सीधी सडक जाती है गुरू जी का प्रथम मंत्र समझो बस कार जो हमे त्रिकुटी तक लेकर जायेगा.. त्रिकुटी हवाई अडडा समझो.. त्रिकुटी से आगे हमे सतनाम का मंत्र उडाकर लेकर जायेगा.. सतनाम के दो अक्षर को हवाई जहाज समझो.. ( नाम की नौका ही भवसागर से पार करती है)
विशेष जानकारी->]
नोट - हमारा शरीर एक ब्रह्मांड का नक्शा है जो कुछ एक ब्रह्मांड मे है वो हम शरीर मे भी देख सकते है जैसे internet पर आप कुछ भी देख सकते हो इसी तरह परमात्मा की पावर से हम ब्रह्मांड को इस शरीर मे देख सकते है संत कमल बोलते है योगी चक्र बोलते है ये कमल चक्र इन देवताओ के आवास स्थल है जहा ये रहते है ये ब्रह्मांड मे ही है ये समझ लो हमारा शरीर मिनी ब्रह्मांड है ये देवता कमल के अन्दर हमारे शरीर मे भी विधमान है..
ये ब्रह्मांड सात कमलो(चक्रो) मे बांटा हुआ है और हर कमल मे एक एक देवी देवता को प्रधान बना रखा है..
मूल कमल --------
मूल कमल से सीधी सडक त्रिकुटी तक जाती है.. जब साधक की भक्ति पूरी हो जाती है तो कबीर परमेश्वर एक विमान लेकर गुरू रूप मे आते है..
(नोट - हमारी आत्मा पर पांच शरीर चढे हुए है स्थूल, सूक्ष्म ,कारण, महाकारण, कैवल्य शरीर..)
हम 5 तत्व के स्थूल शरीर को छोडकर सूक्षम शरीर मे आ जाते है तब हमारा विमान पहले मूल कमल से गुजरता है वहा गणेश जी विधमान है हम गंणेश के मंत्र की कमाई उनको देकर उनके कर्ज से मुक्त हो जायेगे..
फिर गंणेश जी हमे आगे जाने की अनुमति देगे...
स्वाद कमल------
फिर हम स्वाद कमल मे प्रवेश कर जायेगे यहा के प्रधान ब्रह्मा और सवित्री है.. हम ब्रह्मा सवित्री के मंत्र की कमाई इनको देकर कर्ज चुका देगे.. क्योकि ब्रह्मा हमारी उत्पति कर्ता है.. इसके बाद ब्रह्मा जी हमे आगे जाने की अनुमति हमे देगे..
नाभी कमल------
फिर हम नाभी कमल मे प्रवेश कर जायेगे नाभी कमल मे विष्णु लक्ष्मी प्रधान है हम इनके मंत्र की कमाई इनको देकर कर्ज चुका देगे.. क्योकि विष्णु पालन पोषण कर्ता है. फिर विष्णु जी हमारे विमान को आगे जाने की अनुमति देगे..
हदय कमल-----
फिर हम हदय कमल मे प्रवेश कर जायेगे. यहा के प्रधान शिव पार्वती है इनके मंत्र की कमाई इनको देकर इनका कर्ज चुका देगे.. क्योकि शिव संहार करते है.. फिर शिव हमारे विमान को आगे जाने की अनुमति द्गे.
कंठ कमल-----
फिर हम कंठ कमल मे प्रवेश कर जायेगे.. यहा की प्रधान दुर्गा माता है हम दुर्गा माता के मंत्र की कमाई दुर्गा माता को देकर इसका कर्ज चुका देगे.. फिर दुर्गा माता हमे आगे जाने की अनुमति देगी..
त्रिकुटी कमल-----
फिर हम त्रिकुटी कमल दसवे द्वार मे प्रवेश कर जायेगे... दसवे द्वार मे आगे चलकर त्रिवेणी आती है.. तीन रास्ते हो जाते है.. ये हवाई अडडा समझो प्रथम मंत्र हमे यहा तक लाकर छोड देते है. इससे आगे सतनाम के दो अक्षर उडाकर लेकर जाते है..
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त्रिकुटी मे आगे चलकर तीन रास्ते हो जाते है जिसे त्रिवेणी बोलते है.. वहा काल के पुजारी दायं बाय चले जाते है.. लेकिन सामने जो रास्ता होता है उसको ब्रह्मरंद( बज्रकपाट) बोलते है.. वह अमरलोक जाने का रास्ता है.. कबीर परमात्मा कहते है शिव ने भी 97 बार try किया था.. लेकिन वो भी इस गेट को नही खोल पाये थे.. वो भी उल्टे हट गये थे क्योकि शिव के पास सतनाम मंत्र नही है..
गरीब- ब्रह्मरंद को खोलत है कोई एक
द्वारे से फिर जात है ऐसे बहुत अनेक
इस ब्रह्मरंद के बज्रकपाट को सतनाम के दो अक्षर खोलते है तब हम दसवे द्वार मे आगे सहंसार कमल मे प्रवेश करते है.. (यहा से ब्रह्मा विष्णु शिव के पिता काल की सीमा शुरू होती है.. जहा पर काल अपने भयानक वास्तविक रूप मे बैठा है) आगे बहुत भयानक आवाजे आती है डाकनी शाकनी बहुत सारी मिलती है.. सतनाम के मंत्र को सुनकर सब भाग जाते है.. (सतनाम मे इतनी पावर है अगर 12 करोड यम के दूत और साथ मे ब्रह्मा विष्णु शिव का पिता काल ये सभी एक साथ आ जाये मात्र एक जाप सबको उठाकर फैक देगा) आगे चलकर काल अपने वास्तविक रूप मे बैठा नजर आता है लेकिन गुरू रूप मे परमात्मा साथ होते है.. तब हमे तीनो मंत्रो का जाप एक साथ करना होता है..
तीसरे नाम (सारनाम) का महत्व
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(सतनाम के बाद जब हम तीसरा सारनाम गुरू जी से लेते है तो गुरू जी सतनाम के दो अक्षर मे ही सारनाम का एक अक्षर एड कर देते है ऐसे ब्रह्म परब्रह्म पूर्णब्रह्म तीनो का जाप एक साथ करना होता है.. जाप विधि गुरू जी बताते है गीता अध्याय 17 के 23 मे लिखा है ओम- तत- सत ये पूर्ण परमात्मा का मंत्र(नाम) कहा है ओम सीधा ही है तत सत कोड वर्ड है सतगुरू रामपाल जी महाराज बतायेगे.. फिर इन तीनो मंत्र का एक साथ जाप करना होता है सतनाम और सारनाम एक नाम बन जाता है)
जब हम दसवे द्वार के last मे जाते है तो वहा काल वास्तविक रूप मे बैठा है.. वहा हम जब इन तीनो मंत्रो (सतनाम और सारनाम)का जाप एक साथ करते है तो काल निरंजन सर झुका देता है गीता 8/13 श्लोक मे ओम मंत्र काल ब्रह्म का है इसकी कमाई काल अपने पास रख लेता है और हमे आगे आठवे कमल ग्यारहवे द्वार मे जाने की अनुमति दे देता है. इसके सर के पीछे ग्यारहवा द्वार है. जब काल सर झुकाता है तो हम इसके सर पर पैर रख कर ग्यारहवे द्वार परब्रह्म के लोक आठवे कमल मे प्रवेश कर जाते है वहा हमारा सूक्ष्म शरीर छुट जाता है हमारे पास तत और सत मंत्र की कमाई शेष रह जाती है जब हम परब्रह्म(अक्षरपुरूष) के लोक मे आगे बढते जाते है हमारी तत मंत्र की कमाई परब्रह्म रख लेता है क्योकि तत मंत्र परब्रह्म का है और हमे आगे जाने की अनुमति दे देता है. हमारे कारण महाकारण शरीर छुट जाते है केवल कैवल्य शरीर शेष रह जाता है (नौवे कमल मे बारहरवा द्वार पार करके अमरलोक है) ग्यारहवा द्वार के last मे भव्वर गुफा आती है वहा पर मानसरोवर बना है वहा से अमरलोक दिखाई देने लगता है वहा परमात्मा इस आत्मा को मानसरोवर मे स्नान करवाते है तब इस आत्मा का कैवल्य शरीर छुट जाता है और वास्तविक नूरी रूप बन जाता है तब वहा इस आत्मा के शरीर का प्रकाश सोलह सुरज और चंद्रमा जितना हो जाता है.. फिर सत मतलब सारनाम मंत्र की कमाई लेकर ये आत्मा सतलोक मतलब अमरलोक मे प्रवेश कर जाती है.. वहा सदा के लिए स्थाई हो जाती है.. मौज मनाती है नाचती गाती है परमात्मा कबीर साहेब के रोज दर्शन करती है.. इस तरह से ये आत्मा काल के जाल से निकलकर अपने घर अपने वतन अमरलोक लौट आती है.. फिर कभी काल के लोक मे वापिस नही आती.. सदा के लिए अमर और स्थाई हो जाती है.. सदा के लिए जन्म मरन से पीछा छुट जाता है.. फोटो मे लिखी कबीर सागर की अमरलोक की कबीर वाणी पढिये.. वहा जन्म मरण बुढापा नही होता सदा युवा रहती है आत्मा.. अमरलोक मे भी नर नारी है परिवार है. लेकिन शब्द शक्ति से बच्चे पैदा होते है गर्भ से नही होते.. वहा कोई कर्म नही करना पडता.. अमरलोक मे बाग बगीचे है फल फूल नदी मानसरोवर है लेकिन सब कुछ नूरी है हिरे की तरह स्वय प्रकासित.. वहा सभी प्रेम से रहते है.. कोई किसी को जरा भी बुरा नही बोलता..
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चल देखो देश हमारा रे, जहाँ कोटि पदम उजियारा रे, 🏃
🏃 देखो देश हमारा रे,जहाँ उजल भँवर गुंजारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ चवंर सुहगंम डारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ चन्द्र सूरज नहीं तारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, नहीं धर अम्बर कैनारा रे,🌎 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ अनन्त फूल गुलजारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ भाटी चवै कलारा रे, 🏃
चल देखो देश हमारा रे, जहाँ धूमत है मतवारा रे,🚁
रे मन कीजै दारमदारा रे तुझे ले छोडूं दरबारा रे,
फिर वापिस ना ही आवे रे सतगुरु सब नाँच मिटावै रे, 🏃
चल अजब नगर विश्रामा रे, तुम छोड़ो देना बाना रे, 🏃
चल देखो देश अमानी रे, जहाँ कुछ पावक ना पानीरे,🚣 🏃
चल देखो देश अमानी रे, जहाँ झलकै बारा बानी रे, 🏃
चल अक्षर धाम चलाऊं रे, मैं अवगत पंथ लखाऊं रे,
कर मकरतार पियाना रे, क्यों शब्दै शब्द समाना रे,🌞 🌳
जहाँ झिलझिल दरिया नागर रे, जहाँ हंस रहे सुखसागर रे,
चल देखो देश अमाना रे, जहाँ बुने कबीरा ताना रे,🏇 🏃
चल अवगत नगर निबासा रे, जहाँ नहीं मन माया का बासा रे 🏃
और ग्यान सब ग्यानडी कबीर ग्यान सो ग्यान,
जैसे गोला तोब का अब करता चलै मैदान।
और संत सब कूप है, केते झरिया नीर,
दादू अगम अपार है ये दरिया सत् कबीर
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Thursday, April 28, 2016
Wednesday, April 27, 2016
सतनाम का एक विधिवत सुमरण दस लाख मौखिक जाप के बराबर है।
न जाने कौन इंतज़ार कर रहा है!!!!!!....
"एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय"
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पाराशर पुत्री sukadev rishi
उनको क्षोभित किया।।28. 29।। जिस प्रकार क्रियाशील न होने पर भी गंध अपनी सन्निधि मात्र से ही प्रधान व पुरुष को पे्ररित करते हैं।
रखा। अध्याय 7, रूद्र संहिता, शिव महापुराण (प ष्ठ 103, 104)।
यही काल महाविष्णु रूप धारकर अपनी नाभि से एक कमल उत्पन्न कर लेता है। ब्रह्मा आगे कहता है कि फिर होश में आया। कमल की मूल को ढूंढना चाहा, परन्तु असफल रहा। फिर तप करने की आकाशवाणी हुई। तप किया। फिर मेरी तथा विष्णु की किसी बात पर लड़ाई हो गई।
यह पहले अचेत था, फिर सचेत करके तीनों को इक्कठे कर दिया) तथा
काल (ब्रह्म-ज्योति निरंजन) खाता है। इसीलिए जन्म-म त्यु तथा अन्य दुःखदाई योनियों में पीडि़त करता है तथा अपने तीनों पुत्रों रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी से उत्पत्ति, स्थिति, पालन
तथा संहार करवा कर अपना आहार तैयार करवाता है। क्योंकि काल को एक लाख मानव शरीरधारी प्राणियों का आहार करने का शाप लगा है, क पया श्रीमद् भगवत गीता जी में भी देखें ‘काल (ब्रह्म) तथा प्रक ति (दुर्गा) के
पति-पत्नी कर्म से रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव की उत्पत्ति।
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GYAN GANGA ( ज्ञान गंगा)
कृपया अवश्य जानिए ...
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सत साहेब
: इस पोस्ट को आगे आगे शेयर किजिये.
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न जाने कौन इंतज़ार कर रहा है!!!!!!....
अवश्य पढे और पढाये श्रीमद्भगवद्गीता जी का अनमोल यथार्थ पुर्ण ब्रम्ह ज्ञान (गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित)
1. मैं सबको जानता हूँ, मुझे कोई नहीं जानता (अध्याय 7 मंत्र 26)
3. मैं अदृश्य/निराकार रहता हूँ (अध्याय 6 मंत्र 30) निराकार क्यो रहता है इसकी वजह नहीं बताया सिर्फ अनुत्तम/घटिया भाव काहा है,
ही इन गंदी योनियों में पटकता हू, (अध्याय 4 मंत्र 35)
1.क्षर , अक्षर, निअक्षर
2. ब्रम्ह, परब्रह्म, पूर्ण/पार ब्रम्ह
3. ॐ, तत्, सत्
4. ईश, ईश्वर, परमेश्वर
तीनों देव शाखा भये, पात रुप संसार।। "
उम्र :-
1. इन्द्र की उम्र 72*4 युग
2. ब्रम्हा जी की उम्र - -
1 दिन =14 इन्द्र मर जाते हैं" तो उम्र 100 साल=720,00000
चतुर्युग
3.विष्णु जी की उम्र =7 ब्रम्हा मरते हैं
तब 1 विष्णु जी की मृत्यु
होती है तो कुल उम्र 504000000 चतुर्युग
4.शिव जी की =7 विष्णु जी
मरते हैं तब 1शिव जी की मृत्यु
होती है =3528000000 चतुर्युग(ये तीनों देव ब्रम्हा विष्णुजी महेश देवी भागवत महापुराण में अपने को भाई-भाई मानते हैं और शेरोवाली/अष्टांगी/प्रकृति को अपनी मां और अपनी जन्म-मृत्यु होना स्वीकारते हैं
6 ब्रम्ह की आयु =1000 महाशिव मरते हैं,
कबीर परमेश्वर द्वारा बादशाह सिकंदर की शंकाओं का समाधान
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है ? (ख). यह सभी के सामने क्यों नहीं आता ?
(सृष्टी रचना भाग १ --> https://www.facebook.com/photo.php?fbid=229186393872936&set=a.195066310618278.20780.171494336308809&type=1
सृष्टी रचना भाग २ --> https://www.facebook.com/photo.php?fbid=229187727206136&set=a.195066310618278.20780.171494336308809&type=1
सृष्टी रचना भाग ३ --> https://www.facebook.com/photo.php?fbid=229188800539362&set=a.195066310618278.20780.171494336308809&type=1 )
उत्तर - पवित्र बाईबल में उत्पत्ति विषय में लिखा है कि पूर्ण परमात्मा मनुष्यों तथा अन्य प्राणियों की रचना छः दिन में करके तख्त अर्थात् सिंहासन पर चला गया। उसके बाद इस लोक की बाग डोर ब्रह्म ने संभाल ली। इसने कसम खाई है कि मैं सब के सामने कभी नहीं आऊँगा। इसलिए सभी कार्य अपने तीनों पुत्रों (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) के द्वारा करवाता रहता है या स्वयं किसी के शरीर में प्रवेश करके प्रेत की तरह बोलता है या आकाशवाणी करके आदेश देता है। प्रेत, पित्तर तथा अन्य देवों (फरिश्तों) की आत्माऐं भी किसी के शरीर में प्रवेश करके अपना आदेश करती हैं। परन्तु श्रद्धालुओं को पता नहीं चलता कि यह कौन शक्ति बोल रही है। पूर्ण परमात्मा ने माँस खाने का आदेश नहीं दिया। पवित्रा बाईबल उत्पत्ति विषय में सर्व प्राणियों के खाने के विषय में पूर्ण परमात्मा का प्रथम तथा अन्तिम आदेश है कि मनुष्यों के लिए फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे दिए हैं जो तुम्हारे खाने के लिए हैं तथा अन्य प्राणियों को जिनमें जीवन के प्राण हैं उनके लिए छोटे-छोटे पेड़ अर्थात् घास, झाडि़याँ तथा बिना फल वाले पेड़ आदि खाने को दिए हैं। इसके बाद पूर्ण प्रभु का आदेश न पवित्र बाईबल में है तथा न किसी कतेब (तौरत, इंजिल, जुबुर तथा र्कुआन शरीफ) में है। इन कतेबों में ब्रह्म तथा उसके फरिश्तों तथा
पित्तरों व प्रेतों का मिला-जुला आदेश रूप ज्ञान है।
उत्तर - सूर्यवंश में राजा नाभिराज हुआ। उसका पुत्र राजा ऋषभदेव हुआ जो जैन धर्म का प्रवर्तक तथा प्रथम तीर्थकर माना जाता है। वही ऋषभदेव ही बाबा आदम हुआ, यह विवरण जैन धर्म की पुस्तक ‘‘आओ जैन धर्म को जाने‘‘ के पृष्ठ 154 पर लिखा है। इससे स्पष्ट है कि बाबा आदम से भी पूर्व सृष्टी थी। पृथ्वी का अधिक क्षेत्र निर्जन था। एक दूसरे क्षेत्र के व्यक्ति भी आपस में नहीं जानते थे कि कौन कहाँ रहता है। ऐसे स्थान पर ब्रह्म ने फिर से मनुष्य आदि की सृष्टी की। हजरत आदम तथा हव्वा की उत्पत्ति ऐसे स्थान पर की जो अन्य व्यक्तियों से कटा हुआ था। काल के पुत्र ब्रह्मा के लोक से यह पुण्यात्मा (बाबा आदम) अपना कर्म संस्कार भोगने आया था। फिर शास्त्र अनुकूल साधना न मिलने के कारण पित्तर योनी को प्राप्त होकर पित्तर लोक में चला गया। बाबा आदम से पूर्व फरिश्ते थे। पवित्र बाईबल ग्रन्थ में लिखा है।
उत्तर - पवित्र बाईबल में उत्पत्ति विषय में लिखा है कि पूर्ण परमात्मा ने छः दिन में सृष्टी रचकर सातवें दिन विश्राम किया। उसके बाद बाबा आदम तथा अन्य नबियों को अव्यक्त अल्लाह (काल) के फरिश्ते तथा पित्तर आदि ने अपने आदेश दिए हैं। जो बाद में र्कुआन शरीफ तथा बाईबल में लिखे गए हैं।
उत्तर - ज्योति निरंजन(अव्यक्त माना जाने वाला प्रभु) पूर्ण परमात्मा के डर से यह नहीं छुपा सकता कि पूर्ण परमात्मा कोई अन्य है। यह पूर्ण प्रभु की वास्तविक पूजा की विधि से अपरिचित है। इसलिए यह केवल अपनी साधना का ज्ञान ही प्रदान करता है तथा महिमा गाता है पूर्ण प्रभु की भी।
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सिकंदर ने सोचा कि ऐसे भगवान को दिल्ली में ले चलता हूँ और हो सकता है वहाँ के व्यक्ति भी इस परमात्मा के चरणों में आकर एक हो जाऐं। यह हिन्दू और मुसलमान का झगड़ा समाप्त हो जाऐं। कबीर साहेब के विचार कोई सुनेगा तो उसका भी उद्धार होगा। दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी ने प्रार्थना की कि हे ‘‘सतगुरुदेव एक बार हमारे साथ दिल्ली चलने की कृपा करो।’’ कबीर साहेब ने सिकंदर लौधी से कहा कि पहले आप मेरे से उपदेश लो फिर आपके साथ चल सकता हूँ।