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Wednesday, April 27, 2016

कृष्ण के मरने के बाद गोपीयो को भिल्लो ने लूठा अर्जुन को भी पीटा..

कृष्ण के मरने के बाद गोपीयो को भिल्लो ने लूठा अर्जुन को भी पीटा.. दुनिया के लोग कृष्ण की फोटो के सामने अपनी अपने बच्चो की जान की भीख मांगते है जब कृष्ण जी शरीर मे थे जब वह यादवो और अभिमन्यु को नही बचा पाये तुम लोग तो फोटो को भगवान माने बैठे हो तुम्हे कैसे बचायेगे.. 

लोग शिव को भगवान मानते है एक बार भष्मासूर ने तप किया शिव से भष्म कडा लेकर शिव के पीछे भाग लिया.. शिव भगवान डर कर आगे आगे भाग रहे थे और उनका पुजारी उनको मारने के लिए उनके पीछे भाग रहा था. बताओ शिव खुदकी रक्षा नही कर सकते अगर शिव को भी मरने से डर लगता हैा पार्वती हवन कुंड मे कूदकर मर गई थी शिव तो अन्तर्यामी भगवान थे उनको क्यो मालूम नही हुआ.. क्यो पार्वती को नही बचा पाये.. जो अपनी पत्नी की रक्षा नही कर सकते वह दूसरो की क्या करेगे.. केदारनाथ मे सैकडो लोग मारे गए शिव क्यो नही बचा पाये.. हरिद्वार 1991 मे नीलकंठ पर हजारो लोग मारे गए थे एक बार हरिद्वार मे 2500 साधु कुम्भ के मेले मे आपस मे कट कर कर मर गये शिव क्यो नही बचा पाये?? भगवान थे तो क्यो नही बचाया ????

--> राम को भगवान मानते हो राम को ये नही पता मेरी सीता को कौन उठा ले गया ?? 
सीता का पता लगाने के लिए भी सेना का सहारा लिया काहे का भगवान??? 
सीता को रावण उठा ले गया..राम एक सीता की रक्षा नही कर पाया तुम्हारी क्या करेगा.. 14 वर्ष जंगल मे भटकने की क्या जरूरत थी.. अगर जंगल मे राक्षसो को मारना था तो वैसे जाकर भी मार सकते थे.. ये वनवासी का ढोंग करने  की क्या जरूरत थी.. राम जी तो भगवान थे पहुच जाते सीधे लंका मे मार देते रावण को... क्या जरूरत थी सीता को 12 साल तक रावण की कैद मे डालने की... 

हिन्दू धर्म के मुर्खो जैसे राम ने रावण को मारने के लिए अपनी प्रिय सीता को उसकी कैद मे डाला था और करोडो सैनिको का बलिदान दिया ... 

ठीक इसी तरह रामपाल जी महाराज ने इस संसार से काल के अज्ञान को हराकर पूर्ण परमात्मा के ज्ञान को जीताने के लिए अपने अतिप्रिय शिष्यो को कुछ समय के लिए पुलिस की जेल मे डाला और खुद भी चले गये.. जैसे सीता माता के लिए करोडो सैनिको ने बलिदान दिया.. ठीक इसी तरह इस विश्व कल्याण के लिए सतलोक आश्रम मे कुछ भगत बहनो ने बलिदान दिया.. आने वाले समय मे दुनिया उनको याद करेगी.. किसान को ज्यादा से ज्यादा लोगो का पेट भरने के लिए बीज को मिटटी मे मिलाना पडता हैा इसी तरह रामपाल जी महाराज ने विश्व कल्याण के लिए अपने शिष्यो और खुद को जेल मे ले जाकर मिटटी मे मिला दिया है लेकिन भविष्य मे इस विश्व के लोग रामपाल जी को पलखो पर बैठायेगे जब उनको सच्चाई का पता चलेगा..
कबीर - जब कलयुग 5500 वर्ष बीत जाये, 
तब एक महापुरूष फरमान जग तारन को आये..

तो कलयुग 5500 वर्ष बीत चुका है रामपाल
जी महाराज आ चुके हैं । —

Monday, April 25, 2016

काल भगवान

काल भगवान
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जो इक्कीस ब्रह्मण्ड का प्रभु है, उसने प्रतिज्ञा की है कि मैं अपने शरीर में व्यक्त (मानव सदृष्य अपने वास्तविक) रूप में सबके सामने नहीं आऊँगा। उसी ने सूक्ष्म शरीर बना कर प्रेत की तरह श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके पवित्र गीता जी का ज्ञान कहा। विष्णु पुराण में प्रकरण है की काल भगवान महविष्णु रूप में कहता है कि मैं किसी और के शरीर में प्रवेश कर के कार्य करूंगा।

1. श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) चतुर्थ अंश अध्याय दूसरा श्लोक 26 में पृष्ठ 233 पर विष्णु जी (महाविष्णु अर्थात् काल रूपी ब्रह्म) ने देव तथा राक्षसों के युद्ध के समय देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करके कहा है कि मैं राजऋषि शशाद के पुत्र पुरन्ज्य के शरीर में अंश मात्र अर्थात् कुछ समय के लिए प्रवेश करके राक्षसों का नाश कर दूंगा।

2. श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) चतुर्थ अंश अध्याय तीसरा श्लोक 6 में पृष्ठ 242 पर श्री विष्ण जी ने गंधर्वाे व नागों के युद्ध में नागों का पक्ष लेते हुए कहा है कि “मैं (महाविष्णु अर्थात् काल रूपी ब्रह्म) मानधाता के पुत्र पुरूकुत्स में प्रविष्ट होकर उन सम्पूर्ण दुष्ट गंधर्वो का नाश कर दूंगा”।

Thursday, March 24, 2016

त्रिगुणमयी जालमा उल्झेको संसार nepali


कबीर, अक्षर पुरुष एक पेड है, निरंजन वाकी डार ।
त्रिदेवा (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) शाखा भये, पात भया संसार ।।
कबीर, तीन देवको सब कोई ध्यावै, चौथा देवका मरम न पावै
चौथा छाडि पँचम ध्यावै ,कहै कबीर सो हमरे आवै ।।
कबीर, तीन गुणन की भक्ति में, भूलि पर्यो संसार ।
कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरे पार ।।
कबीर, ओंकार नाम ब्रह्म (काल) का, यह कर्ता मति जानि ।
सांचा शब्द कबीर का, परदा माहिं पहिचानि ।।
कबीर, तीन लोक सब राम जपत हैं, जान मुक्तिको धाम ।
रामचन्द्र वसिष्ठ गुरु किया, तिन कहि सुनायो नाम ।।
कबीर, राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नाही संसार ।
जिन साहब संसार किया, सो किनहू न जनम्यां नारि ।।
कबीर, चार भुजाके भजनमे, भूलि परे सब संत ।
कविरा सुमिरै तासु को,  जाके भुजा अनंत ।।
कबीर, वाशिष्ट मुनि से तत्वेता, ज्ञानी, शोध कर लग्न धरै ।
सीता हरण मरण दशरथ को, बन बन राम फिरै ।।
कबीर, समुद्र पाटि लंका गये, सीता को भरतार।
ताहि अगस्त मुनि पीय गयो, इनमें को करतार ।।
कबीर, गोवर्धन कृष्ण जी उठाया, द्रोणगिरि हनुमंत ।
शेष नाग सब सृष्टी उठाई, इनमें को भगवंत ।।
कबीर, दुर्वासा कोपे तहां, समझ न आई नीच ।
छप्पन कोटी यादव कटे, मची रुधिर की कीच ।।
कबीर, काटे बंधन विपति में, कठिन किया संग्राम ।
चीन्हों रे नर प्राणिया, गरुड बडो की राम ।।
कबीर, कह कबीर चित चेतहू, शब्द करौ निरुवार ।
श्री रामचन्द्र को कर्ता कहत हैं, भूलि पर्यो संसार ।।
कबीर, जिन राम कृष्ण निरंजन किया, सो तो करता न्यार ।

Monday, December 28, 2015

वेद पुराण यह करे पुकारा। सबही से इक पुरुष नियारा।



“ऐसा राम कबीर ने जाना”
वेद पढ़े और भेद न जाने। नाहक यह जग झगड़ा ठाने।।
वेद पुराण यह करे पुकारा। सबही से इक पुरुष नियारा।
तत्वदृष्टा को खोजो भाई, पूर्ण मोक्ष ताहि तैं पाई।
कविः नाम जो बेदन में गावा, कबीरन् कुरान कह समझावा।
वाही नाम है सबन का सारा, आदि नाम वाही कबीर हमारा।।

मां अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछेसे माया उपजाई।।
माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।।
कामदेव धर्मराय सत्ताये। देवी को तुरतही धर खाये।।

पेट से देवी करी पुकारा। साहब मेरा करो उबारा।।
टेर सुनी तब हम तहाँ आये। अष्टंगी को बंद छुड़ाये।।
सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरंजन दिन्हा निकारि।।
माया समेत दिया भगाई, सोलह संख कोस दूरी पर आई।।

अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।।
धर्मराय को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।

कबीरा खड़ा बाज़ार मे,लिया लुकाठी हाथ ।
जो घर जारै आपना ,वे चले हमारे साथ ।।

पितरो के लिए किया जाने वाला श्राद्ध कर्म वेदों में अविद्या कहा गया है अर्थात यह शास्त्र विरुद्ध होने के कारण निषेध है |

(((( श्राद्ध पक्ष पर विशेष ))))


पितरो के लिए किया जाने वाला श्राद्ध कर्म वेदों में अविद्या कहा गया है अर्थात यह शास्त्र विरुद्ध होने के कारण निषेध है |

मार्कण्डेय पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) में अध्याय ‘‘रौच्य मनु की उत्पत्ति कथा’’ पृष्ठ 242 से 244 तक में प्रमाण है की वेदों में कर्ममार्ग अर्थात् श्राद्ध आदि करने को अविद्या कहा अर्थात् शास्त्र विधि रहित साधना मनमाना आचरण कहा है।


कथा का अंश मार्कण्डेय जी कहते है:- पूर्व काल में एक रूची नामक ऋषि वेदों से ज्ञान ग्रहण कर के साधना कर रहा था। वह बाल ब्रह्मचारी था उस समय वह प्रौढ़ हो चुका था। जिस समय रूचि ऋषि को उसके चार पितर (पिता, पितामह, परपितामह तथा दूसरा परपितामह) दिखाई दिए।


उन्होंने कहा बेटा आपने विवाह क्यों नहीं किया। गृहस्थ पुरूष समस्त देवताओं की पितरों, ऋषियों और अतिथियों की पूजाकरके पुण्यमय लोकों को प्राप्त करता है। वह ‘‘स्वाह’’ के उच्चारण से (देवताओं को) ‘‘स्वधा’’ शब्द से (पितरों को) तथा अन्नदान (बलिवैश्वदेव) आदि से भूत आदि प्राणियों एवं अतिथियों को उनका भाग समर्पित करता है। बेटा हम ऐसा मानते हैं।
रूचि बोलाः- पितामहो! वेद में कर्म मार्ग को अविद्या कहा गया है। फिर क्यों आप लोग मुझे उस मार्ग में लगाते हैं।
पितर बोले:- यह सत्य है कि कर्म को अविद्या ही कहा गया है इस में तनिक भी मिथ्या नहीं है। फिर भी वत्स! तुम विधिपूर्वक स्त्री संग्रह करो ऐसा न हो कि इस लोक का लाभ न मिलने के कारण तुम्हारा जन्म निष्फल हो जाए।
रूचि ने कहाः- पितरो! अब तो मैं बूढ़ा हो गया हूँ। भला मुझ को कौन स्त्री देगा। मेरे जैसा दरिद्र (कंगाल) स्त्री को कैसे रख सकेगा।
पितर बोले - वत्स! यदि हमारी बात नहीं मानेगा तो हम लोगों का पतन हो जाएगा और तुम्हारी भी अधोगति होगी।
मार्कण्डेय जी ने कहा:- इस प्रकार कह कर पितर अदृश हो गए। रूचि उनकी बातों से चिन्तित हो गया। विवाह के लिए प्रयत्न किया। तपस्या की। तपस्या करके पत्नी प्राप्त करके गृहस्थी बन गया। फिर पितरों के श्राद्ध किए।

विचार करें :-
            रूचि ऋषि के पूर्वज स्वयं शास्त्रविधि रहित श्राद्ध आदि द्वारा पितर पूजा करके पितर बने खड़े है। फिर अपने बच्चे को गुमराह कर रहे हैं। जो शास्त्र विधि अनुसार (वेदों अनुसार) साधना कर रहा था। पितर यह भी स्वीकार कर रहे हैं कि वेदों में कर्म मार्ग (श्राद्ध आदि करना) अविद्या (मुर्ख कार्य) कहा है। पितर भी अपने लोक वेद के आधार से अपने बच्चे रूचि को शिक्षा दे रहे है कि पितर, देवता व भूतों की पूजा करके पुण्यमय लोकों को प्राप्त करता है। विचार करने वाली बात है कि पितर क्यों नहीं गए उन पुण्यमय लोको को ? स्वयं शास्त्र विधि त्याग कर साधना करके भूखे मर रहे हैं। रूचि को भी पितर बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं। स्वयं कह रहे हैं कि यदि तू श्राद्ध नहीं करेगा तो हमारा पतन हो जाएगा। भावार्थ है कि श्राद्ध करने से ही पितरों को आहार मिलता है। फिर उनके पुण्य कहां गए ? वास्तविकता यह है कि पितर पूजा करके पितर बन गए। पितर योनि बहुत कष्टमय होती है। इसकी आयु भी अधिक होती है। इस योनि को भोग कर फिर अन्य प्राणियों की योनियों में शरीर धारण करना पड़ेगा।

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शंका प्रश्नः- यदि किसी के माता-पिता भूखे हो वे दिखाई दे कर भोजन के लिए कहें तो वह पुत्र नहीं जो उनकी इच्छा पूरी न करे !! ?

शंका समाधानः-
                        यदि किसी का बच्चा कुएं में गिरा हो वह तो चिल्लाएगा मुझे बचा लो। पिता जी आ जाओ मैं मर रहा हूँ। वह पिता मूर्ख होगा जो भावुक हो कर कुएं में छलांग लगाकर बच्चे को बचाने की कोशिश करके स्वयं भी डूब कर मर जाएगा। बच्चे को भी नही बचा पाएगा। उस को चाहिए कि लम्बी रस्सी का प्रबन्ध करे। फिर उस कुएं में छोड़े। बच्चा उसे पकड़ ले फिर बाहर खेंच कर बच्चे को कुएं से निकाले। इसी प्रकार पूर्वज तो शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण (पूजा) करके पितर बन चुके हैं। संतान को भी पितर बनाने के लिए पुकार रहे हैं।


इसलिए श्रद्धालुओं से प्रार्थना है कि तत्वज्ञान को समझ कर अपना कल्याण कराए , पुरे विश्व में केवल एकमात्र जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के पास परमेश्वर कबीर बंदी छोड़ जी की प्रदान की हुई वह विधि है जो साधक का तो कल्याण करेगी ही साथ में उसके पितरों की भी पितर योनि छूट कर मानव जन्म प्राप्त होगा तथा भक्ति युग में जन्म होकर सत्य भक्ति करके एक या दो जन्म में पूर्ण मोक्ष प्राप्त करेगें।

विचार करें:-
                    जैसा कि उपरोक्त रूचि ऋषि की कथा में पितर डर रहे हैं कि यदि हमारे श्राद्ध नहीं किए गए तो हम पतन को प्राप्त होगें अर्थात् हमारा पतन (मृत्यु) हो जाएगा। अब उनको पितर योनि जो अत्यंत कष्टमय है अच्छी लग रही है। उसे त्यागना नहीं चाह रहे यह तो वही कहानी वाली बात है कि ‘‘एक समय एक ऋषि को अपने भविष्य के जन्म का ज्ञान हुआ। उसने अपने पुत्रों को बताया कि मेरा अगला जन्म अमूक व्यक्ति के घर एक सूअरी से होगा। मैं सूअर का जन्म पाऊंगा उस सूअरी के गले में गांठ है यह उसकी पहचान है उसके उदर से मेरा जन्म होगा। मेरी पहचान यह होगी की मेरे सिर पर गांठ होगी जो दूर से दिखाई देगी। मेरे बच्चों उस व्यक्ति से मुझे मोल ले लेना तथा मुझे मार देना, मेरी गति कर देना। बच्चों ने कहा बहुत अच्छा पिता जी। ऋषि ने फिर आँखों में पानी भर कर कहा बच्चों कही लालच वश मुझे मोल न लो और मुझे तुम मारो नहीं, यह कार्य तुम अवश्य करना, नहीं तो मैं सूअर योनि में महाकष्ट उठाऊंगा। बच्चों ने पूर्ण विश्वास दिलाया। उसके पश्चात् उस ऋषि का देहांत हो गया। उसी व्यक्ति के घर पर उसी गले में गांठ वाली सुअरी के वहीं सिर पर गांठ वाला बच्चा भी अन्य बच्चों के साथ उत्पन्न हुआ। उस ऋषि के बच्चों ने वह सुअरी का बच्चा मोल ले लिया। जब उसे मारने लगे उसी समय वह बच्चा बोला बेटा मुझे मत मारो मेरा जीवन नष्ट करके तुम्हें क्या मिलेगा। तब उस ऋषि के पूर्व जन्म के बेटों ने कहा, पिता जी! आपने ही तो कहा था। तब वह सुअर के बच्चे रूप में ऋषि बोला मैं आपके सामने हाथ जोड़ता हूँ मुझे मत मारो, मेरे भाईयों (अन्य सूअर के बच्चों) के साथ मेरा दिल लगा है। मुझे बख्श दो। बच्चों ने वह बच्चा छोड़ दिया मारा नहीं। इस प्रकार यह जीव जिस भी योनि में उत्पन्न हो जाता है उसे त्यागना नहीं चाहता। जबकि यह शरीर एक दिन सर्व का जाएगा। इसलिए भावुकता में न बह कर विवेक से कार्य करना चाहिए। जगतगुरु तत्वदर्शी पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी जो भी साधना बताएँगे उससे आम के आम और गुठलियों के दाम भी मिलेगें इसी विष्णु पुराण मे तृतीय अंश के अध्याय 15 श्लोक 55,56 पृष्ठ 213 पर लिखा है कि --

‘‘(और्व ऋषि सगर राजा को बता रहा है )’’ हे राजन् श्राद्ध करने वाले पुरूष से पितरगण, विश्वदेव गण आदि सर्व संतुष्ट हो जाते हैं। हे भूपाल! पितरगण का आधार चन्द्रमा है और चन्द्रमा का आधार योग (शास्त्र अनुकूल भक्ति) है। इसलिए श्राद्ध में योगी जन (तत्व ज्ञान अनुसार शास्त्र विधि अनुसार भक्ति कर रहे साधक जन) को अवश्य बुलाए। यदि श्राद्ध में एक हजार ब्राह्मण भोजन कर रहे हों उनके सामने एक योगी (शास्त्र अनुकूल साधक) भी हो तो वह उन एक हजार ब्राह्मणों का भी उद्धार कर देता है तथा यजमान तथा पितरों का भी उद्धार कर देता है। (पितरों का उद्धार का अर्थ है कि पितरों की योनि छूट कर मानव शरीर मिलेगा यजमान तथा ब्राह्मणों के उद्धार से तात्पर्य यह है कि उनको सत्य साधना का उपदेश करके मोक्ष का अधिकारी बनाएगा )

योगी की परिभाषा:- गीता अध्याय 2 श्लोक 53 में कहा है कि हे अर्जुन ! जिस समय आप की बुद्धि भिन्न-भिन्न प्रकार के भ्रमित करने वाले ज्ञान से हट कर एक तत्व ज्ञान पर स्थिर हो जाएगी तब तू योगी बनेगा अर्थात् भक्त बनेगा। भावार्थ है कि तत्व ज्ञान आधार से साधना करने वाला ही मोक्ष का अधिकारी बनता है उसी में नाम साधना (भक्ति) का धन होता है वह राम नाम की कमाई का धनी होता है।


इसलिए तत्वदर्शी पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी आपको वह शास्त्र अनुकूल साधना प्रदान करेंगे जिससे आप योगी (सत्य साधक) हो जाओगे। आपका कल्याण तथा आपके पितरों का भी कल्याण हो जाएगा। जैसा कि विष्णु पुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित ) तृतीय अंश अध्याय 15 श्लोक 13 से 17 पृष्ठ 210 पर लिखा है कि देवताओं के निमित्त श्राद्ध (पूजा) में अयुग्म संख्या (3,5,7,9 की संख्या) में ब्राह्मणों को एक साथ भोजन कराए तथा उनका मुंह पूर्व की ओर बैठा कर भोजन कराए तथा पितरों के लिए श्राद्ध (पूजा) करने के समय युग्म संख्या (दो, चार, छः, आठ की संख्या) में उत्तर की ओर मुख करके बैठाए तथा भोजन कराए। विचार करने की बात यह है कि इसी विष्णु पुराण, इसी तृतीय अंश के अध्याय 15 में श्लोक 55,56 पृष्ठ 213 पर यह भी तो लिखा है कि एक योगी (शास्त्र अनुकूल सत्य साधक) अकेला ही पितरों तथा एक हजार ब्राह्मणों तथा यजमान सहित सर्व का उद्धार कर देगा। क्यों न हम एक योगी की खोज करें जिससे सर्व लाभ प्राप्त हो जाएगा।


कबीर परमेश्वर जी ने कहा है:-
एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय,
माली सीचें मूल को, फलै फूलै अघाय।।


तत्वदर्शी पूर्णसंत रामपाल जी महाराज जी भी धार्मिक अनुष्ठान (श्रद्धा से पूजा) करते और कराते है। जिसके करने से साधक पितर, भूत नहीं बनता अपितु पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है तथा जो पूर्वज गलत साधना (शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् पूजा) करके पितर भूत बने हैं, उनका भी छुटकारा हो जाता है। यही प्रमाण इसी विष्णु पुराण पृष्ठ 209 पर इसी तृतीय अंश के अध्याय 14 श्लोक 20 से 31 में भी लिखा है कि जिसके पास श्राद्ध करने के लिए धन नहीं है तो वह यह कहे ‘‘ हे पितर गणों आप मेरी भक्ति से तृप्ति लाभ प्राप्त करें। क्योंकि मेरे पास श्राद्ध करने के लिए वित्त नहीं है’’

कृप्या पाठक जन विचार करें कि जब भक्ति (मन्त्र जाप की कमाई) से पितर तृप्त हो जाते हैं तो फिर अन्य कर्मकाण्ड की क्या आवश्यकता है। यह सर्व प्रपण्च ज्ञानहीन गुरू लोगों ने अपने उदर पोषण के लिए ही किया है। क्योंकि गीता अध्याय 4 श्लोक 33 में भी लिखा है द्रव्य (धन द्वारा किया) यज्ञ (धार्मिक अनुष्ठान) से ज्ञान यज्ञ (तत्वज्ञान आधार पर नाम जाप साधना) श्रेष्ठ है।


एक और विशेष विचारणीय विषय है कि विष्णु पुराण में पितर व देव पूजने का आदेश एक ऋषि का है तथा वेदों व गीता जी में पितरों वे देवताओं की पूजा का निषेध है जो आदेश ब्रह्म (काल रूपी ब्रह्म) भगवान का है। यदि पुराणों के अनुसार साधना करते हैं तो प्रभु के आदेश की अवहेलना होती है। जिस कारण से साधक दण्ड का भागी होता है।


अत: आप सभी आत्माओ से प्रार्थना है कि जल्दी से जल्दी सतलोक आश्रम , बरवाला , हिसार , हरियाणा मे आये तथा शास्त्र अनुकूल सत भक्ति करके अपना और अपने पूर्वजो का कल्याण कराये | आश्रम में रहना , खाना , सोना इत्यादि सब कुछ निशुल्क है |


_/\_ || सत साहेब ||_/\_

पुरी में श्री जगन्नाथ जी का मन्दिर अर्थात् धाम कैसे बना ??

उड़ीसा प्रांत में एक इन्द्रदमन नाम का राजा था। वह भगवान श्री कृष्ण जी का अनन्य भक्त था। एक रात्री को श्री कृष्ण जी ने राजा को स्वपन में दर्शन देकर कहा कि जगन्नाथ नाम से मेरा एक मन्दिर बनवा दे। श्री कृष्ण जी ने यह भी कहा था कि इस मन्दिर में मूर्ति पूजा नहीं करनी है। केवल एक संत छोड़ना है जो दर्शकों को पवित्र गीता अनुसार ज्ञान प्रचार करे। समुद्र तट पर वह स्थान भी दिखाया जहाँ मन्दिर बनाना था। सुबह उठकर राजा इन्द्रदमन ने अपनी पत्नी को बताया कि आज रात्री को भगवान श्री कृष्ण जी दिखाई दिए। मन्दिर बनवाने के लिए कहा है। रानी ने कहा शुभ कार्य में देरी क्या? सर्व सम्पत्ति उन्हीं की दी हुई है। उन्हीं को समर्पित करने में क्या सोचना है? राजा ने उस स्थान पर मन्दिर बनवा दिया जो श्री कृष्ण जी ने स्वपन में समुद्र के किनारे पर दिखाया था। मन्दिर बनने के बाद समुद्री तुफान उठा, मन्दिर को तोड़ दिया। निशान भी नहीं बचा कि यहाँ मन्दिर था। ऐसे राजा ने पाँच बार मन्दिर बनवाया। पाँचों बार समुद्र ने तोड़ दिया। राजा ने निराश होकर मन्दिर न बनवाने का निर्णय ले लिया। यह सोचा कि न जाने समुद्र मेरे से कौन-से जन्म का प्रतिशोध ले रहा है। कोष रिक्त हो गया, मन्दिर बना नहीं। कुछ समय उपरान्त पूर्ण परमेश्वर (कविर्देव) ज्योति निरंजन (काल) को दिए वचन अनुसार राजा इन्द्रदमन के पास आए तथा राजा से कहा आप मन्दिर बनवाओ। अब के समुद्र मन्दिर (महल) नहीं तोड़ेगा। राजा ने कहा संत जी मुझे विश्वास नहीं है। मैं भगवान श्री कृष्ण (विष्णु) जी के आदेश से मन्दिर बनवा रहा हूँ। श्री कृष्ण जी समुद्र को नहीं रोक पा रहे हैं। पाँच बार मन्दिर बनवा चुका हूँ, यह सोच कर कि कहीं भगवान मेरी परीक्षा ले रहे हों। परन्तु अब तो परीक्षा देने योग्य भी नहीं रहा हूँ क्योंकि कोष भी रिक्त हो गया है। अब मन्दिर बनवाना मेरे वश की बात नहीं। परमेश्वर ने कहा इन्द्रदमन जिस परमेश्वर ने सर्व ब्रह्मांडों की रचना की है, वही सर्व कार्य करने में सक्षम है, अन्य प्रभु नहीं। मैं उस परमेश्वर की वचन शक्ति प्राप्त हूँ। मैं समुद्र को रोक सकता हूँ (अपने आप को छुपाते हुए यर्थाथ कह रहे थे)। राजा ने कहा कि संत जी मैं नहीं मान सकता कि श्री कृष्ण जी से भी कोई प्रबल शक्ति युक्त प्रभु है। जब वे ही समुद्र को नहीं रोक सके तो आप कौन से खेत की मूली हो। मुझे विश्वास नहीं होता तथा न ही मेरी वितिय स्थिति मन्दिर (महल) बनवाने की है। संत रूप में आए कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने कहा राजन् यदि मन्दिर बनवाने का मन बने तो मेरे पास आ जाना मैं अमूक स्थान पर रहता हूँ। अब के समुद्र मन्दिर को नहीं तोड़ेगा। यह कह कर प्रभु चले आए।
उसी रात्री में प्रभु श्री कृष्ण जी ने फिर राजा इन्द्रदमन को दर्शन दिए तथा कहा इन्द्रदमन एक बार फिर महल बनवा दे। जो तेरे पास संत आया था उससे सम्पर्क करके सहायता की याचना कर ले। वह ऐसा वैसा संत नहीं है। उसकी भक्ति शक्ति का कोई वार-पार नहीं है। राजा इन्द्रदमन नींद से जागा, स्वपन का पूरा वृतान्त अपनी रानी को बताया। रानी ने कहा प्रभु कह रहे हैं तो आप मत चुको। प्रभु का महल फिर बनवा दो। रानी की सद्भावना युक्त वाणी सुन कर राजा ने कहा अब तो कोष भी खाली हो चुका है। यदि मन्दिर नहीं बनवाऊंगा तो प्रभु अप्रसन्न हो जायेंगे। मैं तो धर्म संकट में फंस गया हूँ। रानी ने कहा मेरे पास गहने रखे हैं। उनसे आसानी से मन्दिर बन जायेगा। आप यह गहने लो तथा प्रभु के आदेश का पालन करो, यह कहते हुए रानी ने सर्व गहने जो घर रखे थे तथा जो पहन रखे थे निकाल कर प्रभ के निमित अपने पति के चरणों में समर्पित कर दिये। राजा इन्द्रदमन उस स्थान पर गया जो परमेश्वर ने संत रूप में आकर बताया था। कबीर प्रभु अर्थात् अपरिचित संत को खोज कर समुद्र को रोकने की प्रार्थना की। प्रभु कबीर जी (कविर्देव) ने कहा कि जिस तरफ से समुद्र उठ कर आता है, वहाँ समुद्र के किनारे एक चैरा (चबूतरा) बनवा दे। जिस पर बैठ कर मैं प्रभु की भक्ति करूंगा तथा समुद्र को रोकूंगा।
राजा ने एक बड़े पत्थर को कारीगरों से चबूतरा जैसा बनवाया, परमेश्वर कबीर उस पर बैठ गए। छटी बार मन्दिर बनना प्रारम्भ हुआ। उसी समय एक नाथ परम्परा के सिद्ध महात्मा आ गए। नाथ जी ने राजा से कहा राजा बहुत अच्छा मन्दिर बनवा रहे हो, इसमें मूर्ति भी स्थापित करनी चाहिए। मूर्ति बिना मन्दिर कैसा? यह मेरा आदेश है। राजा इन्द्रदमन ने हाथ जोड़ कर कहा नाथ जी प्रभु श्री कृष्ण जी ने मुझे स्वपन में दर्शन दे कर मन्दिर बनवाने का आदेश दिया था तथा कहा था कि इस महल में न तो मूर्ति रखनी है, न ही पाखण्ड पूजा करनी है। राजा की बात सुनकर नाथ ने कहा स्वपन भी कोई सत होता है। मेरे आदेश का पालन कीजिए तथा चन्दन की लकड़ी की मूर्ति अवश्य स्थापित कीजिएगा। यह कह कर नाथ जी बिना जल पान ग्रहण किए उठ गए। राजा ने डर के मारे चन्दन की लकड़ी मंगवाई तथा कारीगर को मूर्ति बनाने का आदेश दे दिया। एक मूर्ति श्री कृष्ण जी की स्थापित करने का आदेश श्री गोरख नाथ जी का था। फिर अन्य गुरुओं-संतों ने राजा को राय दी कि अकेले प्रभु कैसे रहेंगे? वे तो श्री बलराम को सदा साथ रखते थे। एक ने कहा बहन सुभद्रा तो भगवान श्री कृष्ण जी की लाड़ली बहन थी, वह कैसे अपने भाई बिना रह सकती है? तीन मूर्तियाँ बनवाने का निर्णय लिया गया। तीन कारीगर नियुक्त किए। मूर्तियाँ तैयार होते ही टुकड़े-टुकड़े हो गई। ऐसे तीन बार मूर्तियाँ खण्ड हो गई। राजा बहुत चिन्तित हुआ। सोचा मेरे भाग्य में यह यश व पुण्य कर्म नहीं है। मन्दिर बनता है वह टूट जाता है। अब मूर्तियाँ टूट रही हैं। नाथ जी रूष्ट हो कर गए हैं। यदि कहूँगा कि मूर्तियाँ टूट जाती हैं तो सोचेगा कि राजा बहाना बना रहा है, कहीं मुझे शाप न दे दे। चिन्ता ग्रस्त राजा न तो आहार कर रहा है, न रात्री भर निन्द्रा आई। सुबह अशान्त अवस्था में राज दरबार में गया। उसी समय पूर्ण परमात्मा (कविर्देव) कबीर प्रभु एक अस्सी वर्षीय कारीगर का रूप बनाकर राज दरबार में उपस्थित हुआ। कमर पर एक थैला लटकाए हुए था जिसमें आरी बाहर स्पष्ट दिखाई दे रही थी, मानों बिना बताए कारीगर का परिचय दे रही थी तथा अन्य बसोला व बरमा आदि थेले में भरे थे। कारीगर वेश में प्रभु ने राजा से कहा मैंने सुना है कि प्रभु के मन्दिर के लिए मूर्तियाँ पूर्ण नहीं हो रही हैं। मैं 80वर्ष का वृद्ध हो चुका हूँ तथा 60वर्ष का अनुभव है।
चन्दन की लकड़ी की मूर्ति प्रत्येक कारीगर नहीं बना सकता। यदि आप की आज्ञा हो तो सेवक उपस्थित है। राजा ने कहा कारीगर आप मेरे लिए भगवान ही कारीगर बन कर आये लगते हो। मैं बहुत चिन्तित था। सोच ही रहा था कि कोई अनुभवी कारीगर मिले तो समस्या का समाधान बने। आप शीघ्र मूर्तियाँ बना दो। वृद्ध कारीगर रूप में आए कविर्देव (कबीर प्रभु) ने कहा राजन मुझे एक कमरा दे दो, जिसमें बैठ कर प्रभु की मूर्ति तैयार करूंगा। मैं अंदर से दरवाजा बंद करके स्वच्छता से मूर्ति बनाऊंगा। ये मूर्तियां जब तैयार हो जायेंगी तब दरवाजा खुलेगा, यदि बीच में किसी ने खोल दिया तो जितनी मूर्तियाँ बनेगी उतनी ही रह जायेंगी। राजा ने कहा जैसा आप उचित समझो वैसा करो। बारह दिन मूर्तियाँ बनाते हो गए तो नाथ जी आ गए। नाथ जी ने राजा से पूछा इन्द्रदमन मूर्तियाँ बनाई क्या? राजा ने कर बद्ध हो कर कहा कि आप की आज्ञा का पूर्ण पालन किया गया है महात्मा जी। परन्तु मेरा दुर्भाग्य है कि मूर्तियाँ बन नहीं पा रही हैं। आधी बनते ही टुकड़े-टुकड़े हो जाती हैं नौकरों से मूर्तियों के टुकड़े मंगवाकर नाथ जी को विश्वास दिलाने के लिए दिखाए।
नाथ जी ने कहा कि मूर्ति अवश्य बनवानी है। अब बनवाओं मैं देखता हूँ कैसे मूर्ति टूटती है। राजा ने कहा नाथ जी प्रयत्न किया जा रहा है। प्रभु का भेजा एक अनुभवी 80 वर्षीय कारीगर बन्द कमरें में मूर्ति बना रहा है। उसने कहा है कि मूर्तियाँ बन जाने पर मैं अपने आप द्वार खोल दूंगा। यदि किसी ने बीच में द्वार खोल दिया तो जितनी मूर्तियाँ बनी होंगी उतनी ही रह जायेंगी। आज उसे मूर्ति बनाते बारह दिन हो गये। न तो बाहर निकला है, न ही जल पान तथा आहार ही किया है। नाथ जी ने कहा कि मूर्तियाँ देखनी चाहिये, कैसी बना रहा है? बनने के बाद क्या देखना है। ठीक नहीं बनी होंगी तो ठीक बनायेंगे। यह कहकर नाथ जी राजा इन्द्रदमन को साथ लेकर उस कमरे के सामने गए जहाँ मूर्ति बनाई जा रही थी तथा आवाज लगाई कारीगर द्वार खोलो। कई बार कहा परन्तु द्वार नहीं खुला तथा जो खट-खट की आवाज आ रही थी, वह भी बन्द हो गई। नाथ जी ने कहा कि 80वर्षीय वृद्ध बता रहे हो, बारह दिन खाना-पिना भी नहीं किया है। अब आवाज भी बंद है, कहीं मर न गया हो। धक्का मार कर दरवाजा तोड़ दिया, देखा तो तीन मूर्तियाँ रखी थी, तीनों के हाथ के व पैरों के पंजे नहीं बने थे। कारीगर अन्तध्र्यान था।
मन्दिर बन कर तैयार हो गया और चारा न देखकर अपने हठ पर अडिग नाथ जी ने कहा ऐसी ही मूर्तियों को स्थापित कर दो, हो सकता है प्रभु को यही स्वीकार हो, लगता है श्री कृष्ण ही स्वयं मूर्तियां बना कर गए हैं। मुख्य पांडे ने शुभ मूहूर्त निकाल कर अगले दिन ही मूर्तियों की स्थापना कर दी। सर्व पाण्डे तथा मुख्य पांडा व राजा तथा सैनिक व श्रद्धालु मूर्तियों में प्राण स्थापना करने के लिए चल पड़े।
पूर्ण परमेश्वर (कविर्देव) एक शुद्र का रूप धारण करके मन्दिर के मुख्य द्वार के मध्य में मन्दिर की ओर मुख करके खड़े हो गए। ऐसी लीला कर रहे थे मानों उनको ज्ञान ही न हो कि पीछे से प्रभु की प्राण स्थापना की सेना आ रही है। आगे-आगे मुख्य पांडा चल रहा था। परमेश्वर फिर भी द्वार के मध्य में ही खड़े रहे। निकट आ कर मुख्य पांडे ने शुद्र रूप में खड़े परमेश्वर को ऐसा धक्का मारा कि दूर जा कर गिरे तथा एकान्त स्थान पर शुद्र लीला करते हुए बैठ गए। राजा सहित सर्व श्रद्धालुओं ने मन्दिर के अन्दर जा कर देखा तो सर्व मूर्तियाँ उसी द्वार पर खड़े शुद्र रूप परमेश्वर का रूप धारण किए हुए थी। इस कौतूक को देखकर उपस्थित व्यक्ति अचम्भित हो गए। मुख्य पांडा कहने लगा प्रभु क्षुब्ध हो गया है क्योंकि मुख्य द्वार को उस शुद्र ने अशुद्ध कर दिया है। इसलिए सर्व मूर्तियों ने शुद्र रूप धारण कर लिया है। बड़ा अनिष्ठ हा गया है। कुछ समय उपरान्त मूर्तियों का वास्तविक रूप हो गया। गंगा जल से कई बार स्वच्छ करके प्राण स्थापना की गई।
{ कविर्देव ने कहा अज्ञानता व पाखण्ड वाद की चरम सीमा देखें। कारीगर मूर्ति का भगवान बनता है। फिर पूजारी या अन्य संत उस मूर्ति रूपी प्रभु में प्राण डालता है अर्थात् प्रभु को जीवन दान देता है। तब वह मिट्टी या लकड़ी का प्रभु कार्य सिद्ध करता है, वाह रे पाखण्डियों खूब मूर्ख बनाया प्रभु प्रेमी आत्माओं को। }
मूर्ति स्थापना हो जाने के कुछ दिन पश्चात् लगभग 40फूट ऊँचा समुद्र का जल उठा जिसे समुद्री तुफान कहते हैं तथा बहुत वेग से मन्दिर की ओर चला। सामने कबीर परमेश्वर चैरा (चबुतरे) पर बैठे थे। अपना एक हाथ उठाया जैसे आर्शीवाद देते हैं, समुद्र उठा का उठा रह गया तथा पर्वत की तरह खड़ा रहा, आगे नहीं बढ़ सका। विप्र रूप बना कर समुद्र आया तथा चबूतरे पर बैठे प्रभु से कहा कि भगवन आप मुझे रास्ता दे दो, मैं मन्दिर तोड़ने जाऊंगा। प्रभु ने कहा कि यह मन्दिर नहीं है। यह तो महल (आश्रम) है। इसमें विद्वान् पुरुष रहा करेगा तथा पवित्र गीता जी का ज्ञान दिया करेगा। आपका इसको विधवंश करना शोभा नहीं देता। समुद्र ने कहा कि मैं इसे अवश्य तोडूंगा। प्रभु ने कहा कि जाओ कौन रोकता है? समुद्र ने कहा कि मैं विवश हो गया हूँ। आपकी शक्ति अपार है। मुझे रस्ता दे दो प्रभु। परमेश्वर कबीर साहेब जी ने पूछा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हो? विप्र रूप में उपस्थित समुद्र ने कहा कि जब यह श्री कृष्ण जी त्रेतायुग में श्री रामचन्द्र रूप में आया था तब इसने मुझे अग्नि बाण दिखा कर बुरा भला कह कर अपमानित करके रास्ता मांगा था। मैं वह प्रतिशोध लेने जा रहा हूँ। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि प्रतिशोध तो आप पहले ही ले चुके हो। आपने द्वारिका को डूबो रखा है। समुद्र ने कहा कि अभी पूर्ण नहीं डूबा पाया हूँ, आधी रहती है। वह भी कोई प्रबल शक्ति युक्त संत सामने आ गया था जिस कारण से मैं द्वारिका को पूर्ण रूपेण नहीं समा पाया। अब भी कोशिश करता हूँ तो उधर नहीं जा पा रहा हूँ। उधर जाने से मुझे बांध रखा है।
तब परमेश्वर कबीर (कविर्देव) ने कहा वहाँ भी मैं ही पहुँचा था। मैंने ही वह अवशेष बचाया था। अब जा शेष बची द्वारिका को भी निगल ले, परन्तु उस यादगार को छोड़ देना, जहाँ श्री कृष्ण जी के शरीर का अन्तिम संस्कार किया गया था (श्री कृष्ण जी के अन्तिम संस्कार स्थल पर बहुत बड़ा मन्दिर बना दिया गया। यह यादगार प्रमाण बना रहेगा कि वास्तव में श्री कृष्ण जी की मृत्यु हुई थी तथा पंच भौतिक शरीर छोड़ गये थे। नहीं तो आने वाले समय में कहेंगे कि श्री कृष्ण जी की तो मृत्यु ही नहीं हुई थी)। आज्ञा प्राप्त कर शेष द्वारिका को भी समुद्र ने डूबो लिया। परमेश्वर कबीर जी (कविर्देव) ने कहा अब आप आगे से कभी भी इस जगन्नाथ मन्दिर को तोड़ने का प्रयत्न न करना तथा इस महल से दूर चला जा। आज्ञा प्रभु की मान कर प्रणाम करके समुन्द्र मन्दिर से दूर लगभग डेढ़ किलोमीटर अपने जल को ले गया। ऐसे श्री जगन्नाथ जी का मन्दिर अर्थात् धाम स्थापित हुआ।
पुण्य आत्माओ इस मंदिर पर आज भी छुआ छूत नही होती |
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|| सत साहेब ||

तीनों गुण क्या हैं | What are the Three Gunas three gun kya he

‘‘तीनों गुणों के पुजारी दुष्कर्मी, राक्षसवृती के, मनुष्यों में नीच, मूर्ख हैं’’

‘‘तीनों गुण रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी हैं। ब्रह्म (काल) तथा प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न हुए हैं तथा तीनों नाशवान हैं‘‘


प्रमाण:- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्री शिव महापुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार
पृष्ठ सं. 110 अध्याय 9 रूद्र संहिता
‘‘इस प्रकार ब्रह्मा-विष्णु तथा शिव तीनों देवताओं में गुण हैं, परन्तु शिव (ब्रह्म-काल) गुणातीत कहा गया है।

दूसरा प्रमाण:- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद् देवीभागवत पुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पौद्दार चिमन लाल गोस्वामी,
तीसरा स्कंद, अध्याय 5 पृष्ठ 123:-
भगवान विष्णु ने दुर्गा की स्तुति की: कहा कि मैं (विष्णु), ब्रह्मा तथा शंकर तुम्हारी कृप्या से विद्यमान हैं। हमारा तो आविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) होती है। हम नित्य (अविनाशी) नहीं हैं। तुम ही नित्य हो, जगत् जननी हो, प्रकृति और सनातनी देवी हो। भगवान शंकर ने कहा: यदि भगवान ब्रह्मा तथा भगवान विष्णु तुम्हीं से उत्पन्न हुए हैं तो उनके बाद उत्पन्न होने वाला मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर क्या तुम्हारी संतान नहीं हुआ अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम ही हों। इस संसार की सृष्टि-स्थिति-संहार में तुम्हारे गुण सदा सर्वदा हैं। इन्हीं तीनों गुणों से उत्पन्न हम, ब्रह्मा-विष्णु तथा शंकर नियमानुसार कार्य में तत्त्पर रहते हैं।


उपरोक्त यह विवरण केवल हिन्दी में अनुवादित श्री देवीमहापुराण से है, जिसमें कुछ तथ्यों को छुपाया गया है। इसलिए यही प्रमाण देखें श्री मद्देवीभागवत महापुराण सभाषटिकम् समहात्यम्, खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाश मुम्बई, इसमें संस्कृत सहित हिन्दी अनुवाद किया है।


तीसरा स्कंद अध्याय 4 पृष्ठ 10, श्लोक 42:-
ब्रह्मा - अहम् महेश्वरः फिल ते प्रभावात्सर्वे वयं जनि युता न यदा तू नित्याः, के अन्ये सुराः शतमख प्रमुखाः च नित्या नित्या त्वमेव जननी प्रकृतिः पुराणा (42)।
हिन्दी अनुवाद:- हे मात! ब्रह्मा, मैं तथा शिव तुम्हारे ही प्रभाव से जन्मवान हैं, नित्य नही हैं अर्थात् हम अविनाशी नहीं हैं, फिर अन्य इन्द्रादि दूसरे देवता किस प्रकार नित्य हो सकते हैं। तुम ही अविनाशी हो, प्रकृति तथा सनातनी देवी हो। (42)


पृष्ठ 11-12, अध्याय 5, श्लोक 8:-
यदि दयार्द्रमना न सदांऽबिके कथमहं विहितः च तमोगुणः कमलजश्च रजोगुणसंभवः सुविहितः किमु सत्वगुणों हरिः। (8)
अनुवाद:- भगवान शंकर बोले:-हे मात! यदि हमारे ऊपर आप दयायुक्त हो तो मुझे तमोगुण क्यों बनाया, कमल से उत्पन्न ब्रह्मा को रजोगुण किस लिए बनाया तथा विष्णु को सतगुण क्यों बनाया? अर्थात् जीवों के जन्म-मृत्यु रूपी दुष्कर्म में क्यों लगाया?

श्लोक 12:- रमयसे स्वपतिं पुरुषं सदा तव गतिं न हि विह विद्म शिवे (12)
हिन्दी - अपने पति पुरुष अर्थात् काल भगवान के साथ सदा भोग-विलास करती रहती हो। आपकी गति कोई नहीं जानता।


तीसरा स्कंद पृष्ठ 14, अध्याय 5 श्लोक 43:- एकमेवा द्वितीयं यत् ब्रह्म वेदा वदंति वै। सा किं त्वम् वाऽप्यसौ वा किं संदेहं विनिवर्तय (43)
अनुवाद:- जो कि वेदों में अद्वितीय केवल एक पूर्ण ब्रह्म कहा है क्या वह आप ही हैं या कोई और है? मेरी इस शंका का निवार्ण करें। ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर देवी ने कहा-
देव्युवाच सदैकत्वं न भेदोऽस्ति सर्वदैव ममास्य च।। योऽसौ साऽहमहं योऽसौ भेदोऽस्ति मतिविभ्रमात्।।2।। आवयोरंतरं सूक्ष्मं यो वेद मतिमान्हि सः।। विमुक्तः स तू संसारान्मुच्यते नात्रा संश्यः।।3।।
अनुवाद - यह है सो मैं हूं, जो मैं हूं सो यह है, मति के विभ्रम होनेसे भेद भासता है।।2।। हम दोनों का जो सूक्ष्म अन्तर है इसको जो जानता है वही मतिमान अर्थात् तत्वदर्शी है, वह संसार से पृथक् होकर मुक्त होता है, इसमें संदेह नहीं।। 3।।
सुमरणाद्दर्शनं तुभ्यं दास्येऽहं विषमे स्थिते।। स्वर्तव्याऽहं सदा देवाः परमात्मा सनातनः।। 80।।
उभयोः सुमरणादेव कार्यसिद्धिर संश्यम् ।।ब्रह्मोवाच।।इत्युक्त्वा विससर्जास्मान्द त्त्वा शक्तीः सुसंस्कृतान् ।। 81।।
विष्णवेऽथ महालक्ष्मी महाकालीं शिवाय च।। महासरस्वतीं मह्यं स्थानात्तस्माद्विसर्जिताः।।82।।
अनुवाद - संकट उपस्थित होने पर सुमरण से ही मैं तुमको दर्शन दूंगी, देवताओं! परमात्मा सनातन देवकी शक्तिरूपसे मेरा सदा सुमरण करना।।80।।
दोनों के सुमरण से अवश्य कार्यसिद्धि होगी, ब्रह्माजी बोले इस प्रकार संस्कार कर शक्ति देकर हमको विदा किया।।81।।
विष्णु के निमित्त महालक्ष्मी, शिव के निमित्त महाकाली, और हमको महासरस्वती देकर विदा किया।।82।।
मम चैव शरीरं वै सूत्रामित्याभिधीयते।। स्थूलं शरीरं वक्ष्यामि ब्रह्मणः परमात्मनः।।83।।
अनुवाद - मेरा शरीर सूत्रारूप कहा जाता है, परमात्मा ब्रह्म का स्थूलशरीर कहाता है।।83।

चार राम

चार राम



Friday, December 25, 2015

Only Foolish People Worship other gods (Rajgun Brahma Ji, Satgun Vishnu Ji, and Tamgun Shiv Ji)

Only Foolish People Worship other gods (Rajgun Brahma Ji, Satgun Vishnu Ji, and Tamgun Shiv Ji)

Bhagavad Gita Adhyay 7 Shlok 20 has continuous correlation with Adhyay 7 Shlok 15:
In Bhagavad Gita Adhyay 7 Shlok 15, it has been said that those, whose knowledge has been stolen by the Trigun Maya (those who are limited to the worship of Rajgun-Brahma Ji, Satgun-Vishnu Ji, Tamgun-Shiv Ji and the short-lived happiness obtained from these), such low men with demoniac nature, evil-doers and fools, do not worship me.
In Bhagavad Gita Adhyay 7 Shlok 20, it has been said that because of those material desires, those whose wisdom has been stolen away, they, inspired by their inherent nature, relying on the rule endowed with darkness of ignorance, worship other gods.
In Bhagavad Gita Adhyay 7 Shlok 21, it has been said that the form of whichever god, a devotee wants to worship, I make that devotee’s faith firm in that particular god.
In Bhagavad Gita Adhyay 7 Shlok 22, it is said that endowed with that faith, he worships that god and obtains the objects of his desire from that god, ordained by me alone. Like, a chief minister says that the lower officials are my servants only. I have given them some powers. The benefit which, those who are dependent on these (officials) receive, is also given by me only, but is not a complete benefit.
It is mentioned in Adhyay 7 Shlok 23 that, but that fruit attained by those slowwitted men is perishable. The worshippers of gods go to gods. (Madbhakt) Matavlambi, the bhakts who do bhakti according to the methods of bhakti mentioned in the Vedas, also attain me i.e. nobody is out of Kaal’s trap.
Bhagavad Gita Adhyay 7 Shlok 23
Important: - In Adhyay 7 Shlok 20 to 23, it has been said that whatever sadhna, of whichever pitra, ghost, gods-goddesses etc, they perform by nature, I (Brahm-Kaal) only make those slow-witted people (bhakts) attracted towards that particular god. Whatever benefits those ignorant devotees obtain from the gods, I (Kaal) only have given some powers to those gods. On that basis only, the worshippers of gods will go to gods. But that way of worship of those foolish worshippers will soon take them to the 84 lakh births of various life forms, and those who worship me (Kaal), they go to Tapatshila, and then to my Mahaswarg/Great Heaven (Brahmlok), and thereafter will remain in the cycle of birth-death; will not attain liberation.
The purport is that God Brahm’s sadhna is more beneficial than that of god-goddesses and Brahma, Vishnu, Shiv and Mother Durga. Although the duration of stay in heaven of a devotee, who has gone to MahaSwarg (Great Heaven), can also be upto one Mahakalp (a great age), but after experiencing the pleasures of the virtuous deeds in the Great Heaven, the sufferings in hell and in the lives of other living beings will continue. There is no complete salvation i.e. there is no freedom from Kaal’s trap.

Other Evidences

In Holy Gita and Holy Vedas, the worship of other gods, worship of Pitras (to carry out shraadhs) and worship of ghosts (to pick up ashes, to offer pind, to worship memorial structures/statues) has been forbidden.

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Brahma, Vishnu, and Shiva are in birth and death

Brahma, Vishnu, and Shiva are in birth and death

What are the Three Gunas

“The three gunas (qualities) are Rajgun-Brahma Ji, Satgun-Vishnu Ji, and Tamgun Shiv Ji. They have taken birth from Brahm (Kaal) and Prakriti (Durga) and all three are perishable.”
Evidence: - Shri Shiv Mahapuran, published from Gitapress Gorakhpur, edited by Shri Hanuman Prasad Poddar, on page no. 110, Adhyay 9, Rudra Sanhita “In this way, Brahma, Vishnu, and Shiv, the three gods have qualities, but Shiv (Brahm-Kaal) is said to be beyond qualities.”
Second evidence: - Shrimad'devibhagwat Puran, published from Gitapress Gorakhpur, edited by Shri Hanuman Prasad Poddar and Chiman Lal Goswami, Skand 3, Adhyay 5, page no.123: - God Vishnu prayed to Durga: said that I (Vishnu), Brahma, and Shankar are existing by your grace. We have birth (aavirbhaav) and death (tirobhaav). We are not eternal (immortal). Only you are eternal, are the mother of the world (jagat janani), are Prakriti, and Goddess Sanatani (existing for time immemorial). God Shiv said: If god Brahma, and god Vishnu have taken birth from you, then am I, Shankar, who was born after them and perform Tamoguni leela (divine play), not your son? Henceforth, you are my mother too. Your gunas are always present everywhere in this world’s creation, preservation, and destruction. The three of us, Brahma, Vishnu, and Shankar, born of these three gunas (qualities) remain devoted to work according to the regulations.
Shrimad Devi Bhagwat Puran, Skand 3, Adhyay 4, Page 10, Shlok 42
The above-mentioned description is from Shri Devimahapuran which is translated in Hindi only, and in which some of the facts have been concealed. Therefore, see this very evidence in Shrimad'devibhagwat Mahapuran Sabhashtikam Smahatyam, Khemraj Shri Krishna Das Prakashan Mumbai. In this, besides translation in Hindi, text is also given in Sanskrit. Skand 3, Adhyay 4, Page no. 10, Shlok 42: -
Brahma Aham MaheshwarH fil te prabhawatsarve vyaM jani na yada tu nityaH, Ke anye suraH shatmakh pramukhaH ch nitya nitya twamev janani PrakritiH Purana (42)
Translation: - Oh Mother! Brahma, I, and Shiv take birth from your influence only, are not eternal i.e we are not immortal, then how can other Indra etc, gods be eternal. Only you are immortal, are Prakriti and Sanatani Devi (42).
Shrimad Devi Bhagwat Puran, Page 11-12, Adhyay 5, Shlok 8
Page no. 11-12 Adhyay 5, Shlok 8: - Yadi dayardramna na sadambike kathamhaM vihitH ch tamogunaH Kamaljshch rajogunsambhavH suvihitH kimu satvguno HariH (8)
Translation: - God Shankar said, “Oh Mother! If you are kind to us then why did you make me Tamogun, why did you make Brahma, who has originated from lotus, Rajgun, and why did you make Vishnu, Satgun?” i.e. why did you engage us in the evil deed of the birth and death of the living beings?
Conclusion: It has been proved from the above-mentioned evidences that — Rajgun is Brahma, Satgun is Vishnu and Tamgun is Shiv. These three are perishable. Durga’s husband is Brahm (Kaal). This has also been proved that Durga and Brahm (Kaal) are in form.
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father of bhrama bisnu maheshwar

संखो गुरु गर्द में मिल गए, चेलों को कहाँ ठिकाना । झुठे गुरुवों बात बिगाड़ी, काल जाल नहि जाना ।। बात कहत हैं पार जान की, खड़े वार कै वारै ।। ना गुरु पुरा ना सतनाम उपासना, कैसे प्राण निस्तारै ।। ============================
।।।।अवस्य जानिये।।।। 
1. कौन ब्रह्मा का पिता है ? कौन विष्णु की माँ ? शंकर का दादा कौन है?
2. शेराँवाली माता (दुर्गा अष्टंगी) का पति कौन है?
3. हमको जन्म देने व मरने में किस प्रभु का स्वार्थ है?
4. पूर्ण संत की क्या पहचान है ?
5. हम सभी आत्मायें कहाँ से आई हैं ?
6. ब्रह्मा, विष्णु, महेश किसकी भक्ति करते हैं ?
7. तीर्थ, व्रत, तर्पण एवं श्राद्ध निकालने से कोई लाभ है या नहीं ? (गीतानुसार)
8. समाधी अभ्यास (meditation), राम, हरे कृष्ण, हरि ओम, हंस, तीन व पाँच आदि नामों तथा वाहेगुरु आदि-आदि नामों के जाप से सुख एवं मुक्ति संभव है या नहीं ?
9. श्री कृष्ण जी काल नहीं थे । फिर गीता वाला काल कौन है? ========अधिक जानकारी के लिए " ज्ञान गंगा " पुस्तक अवस्य पढिये OR Please Visitwww.jagatgururampalji.org

आखिर कोई तो बजह है !!!!!!!!!!!

आखिर कोई तो बजह है !!!!!!!!!!! 
जो सन्त रामपाल जी महाराज के अनुयायियों द्वारा कोर्ट अवमानना पर ही उठाया जा रहा है सवाल पर सवाल। सरकार आखिर क्यो नही कराती सी बी आई जांच ।
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आखिर कोई तो बजह है जो सन्त रामपाल जी महाराज के अनुयायियों द्वारा कोर्ट अवमानना पर ही उठाया जा रहा है सवाल पर सवाल।खट्टर सरकार आखिर क्यो नही कराती सी बी आई जांच ।
बोलती खबरे दिल्ली 27-11-15
सन्त रामपाल जी महाराज के सभी अनुयायी सी बी आई जांच के साथ साथ एक नयी मुहिम की तरफ अग्रसर हो चुके है।उनका लक्ष्य अन्तिम समय तक सी बी आई जांच की माँग को वरकरार रखते हुये भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ इलेक्शन के दौरान हर उस दल के पक्ष में वोट देने व प्रचार करने का बनता जा रहा है जो उन्हे सी बी आई जांच का आश्वासन देगा।
ज्ञात हो कि सन्त रामपाल जी महाराज के सभी अनुयायी भारतीय जनता पार्टी के सपोर्टर थे।एक कथित बाबा के दवाब मे सन्त रामपाल जी महाराज व उनके अनुयायियों पर लगाया गया झूठा देशद्रोह का केस भारतीय जनता पार्टी की मुसीबत बन चुका है।और उसी का परिणाम वरवाला कांड के बाद से भारतीय जनता पार्टी हर राज्य मे भोगती जा रही है।एक तरफ इस वोटबैंक के छिटक जाने से भारतीय जनता पार्टी को काफी आघात पहुँचा है।तो वही भारतीय जनता पार्टी द्वारा सी बी आई जांच की मांग ठुकराने से सन्त रामपाल जी महाराज के अनुयायियों मे यह विश्वास गहरा होता जा रहा है कि उनको वोट लेने के नाम पर भारतीय जनता पार्टी ने छला है।कोर्ट अवमानना से लेकर देशद्रोह तक चलने वाला नाटक षड्यंत्र के तहत पूर्व नियोजित था और सब कुछ बाबा के इशारे पर भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओ की करतूत का नतीजा है।भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओ ने सन्त रामपाल जी महाराज के अनुयायियों को निरन्तर गुमराह ही किया है। सन्त के अनुयायियों के प्रत्येक आरोप मे दम है वह जो भी बात कहते है उसका प्रमाण भी साथ साथ दिखाते जा रहे है।अब उनके नये सवाल व आरोप पर भी भारतीय जनता पार्टी मौन क्यो है।उनका कहना है कि कोर्ट अवमानना वाले दिन जिस कोर्ट मे सन्त रामपाल जी महाराज की पेशी थी उस दिन उस कोर्ट मे उन दोनो वकीलो का कोई केस नही था ।लेकिन यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि हिसार कोर्ट के कर्मचारियो ने रजिस्टरो मे फेरबदल करके उन दोनो वकीलो को एक केस मे फर्जी तरीके से दिखाया है ताकि सी बी आई जांच होने की स्थिति मे उन दोनो वकीलो को बचाया जा सके ।और सी बी आई को यह बताया जा सके कि वह दोनो वकील कोर्ट मे उनके मुवक्किलो की पेशी की बजह से आये थे और अन्य जरूरी नकल व कागजात लेने आये थे।आखिर यह किसी के समझ नही आ रहा कि वर्क सस्पेन्ड वाले दिन ही उन दोनो वकीलो को क्यो सूझा कागज व नकल लेने का उपाय। इससे साफ है कि कोर्ट रूम के कर्मचारियो के मध्य सी बी आई जांच का भय है और पहले से ही एक दूसरे को बचाने के प्रयास जारी है।सी बी आई को चाहिए कि वह जब कभी भी जांच करे तब इस बात को स॔ज्ञान मे जरूर रखे कि उन दोनो वकीलो को बचाने के लिये कोर्ट कर्मचारियो द्वारा क्या क्या उपाय किये गये है क्योंकि इस झूठे देशद्रोह का आधार कोर्ट अवमानना का झूठा केस ही तो है।

Modi sarkar kya kar raha he
सत साहेब