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Wednesday, February 8, 2017

जो साधना हम पहले कर रहे हैं, क्या वह त्यागनी पड़ेगी

प्रश्न: जो साधना हम पहले कर रहे हैं, क्या वह त्यागनी पड़ेगी?

उत्तर: यदि शास्त्राविधि रहित है तो त्यागनी पड़ेगी। यदि अनाधिकारी से दीक्षा ले रखी है, उसका कोई लाभ नहीं होना। पूर्ण गुरु से साधना की दीक्षा लेनी पड़ेगी।

प्रश्न: गीता अध्याय 18 श्लोक 47 में तथा गीता अध्याय 3 श्लोक 35 में कहा है:-
श्रेयान् स्वधर्मः विगुणः परधर्मात् स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनम् श्रेयः परधर्मः, भयावहः।। (गीता अध्याय 3 श्लोक 35)
अच्छी प्रकार आचरण में लाए हुए दूसरे के धर्म से गुणरहित भी अपना धर्म अति उत्तम है। अपने धर्म में तो मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धर्म भय को देने वाला है।

उत्तर: यह अनुवाद गलत है। यदि यह बात सही है कि अपना धर्म चाहे गुणरहित हो तो भी उसे नहीं त्यागना चाहिए तो फिर श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान 18 अध्यायों के 700 श्लोकों में लिखने की क्या आवश्यकता थी? एक यह श्लोक पर्याप्त था कि अपनी साधना जैसी भी हो उसे करते रहो, चाहे वह गुणरहित (लाभ रहित) भी क्यों न हो। फिर गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में यह क्यों कहा कि रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव की पूजा राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूर्ख लोग मुझे नहीं भजते। गीता ज्ञान दाता ने उन साधकों से उनका धर्म अर्थात् धार्मिक साधना त्यागने को कहा है तथा गीता अध्याय 7 के ही श्लोक 20 से 23 में कहा है कि जो मेरी पूजा न करके अन्य देवताओं की पूजा करते हैं, वे अज्ञानी हैं। उनकी साधना से शीघ्र समाप्त होने वाला सुख (स्वर्ग समय) प्राप्त होता है। फिर अपनी धार्मिक पूजा अर्थात् धर्म भी त्यागने को कहा है। पूर्ण लाभ के लिए परम अक्षर ब्रह्म का धर्म अर्थात् धार्मिक साधना ग्रहण करने के लिए कहा है।

गीता अध्याय 3 श्लोक 35 का यथार्थ अनुवाद इस प्रकार है:-

अनुवाद: (विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्) दूसरों के गुण रहित अर्थात् लाभ रहित अच्छी प्रकार चमक-धमक वाले धर्म अर्थात् धार्मिक कर्म से (स्वर्धमः) अपना शास्त्राविधि अनुसार धार्मिक कर्म (श्रेयान्) अति उत्तम है। (स्वधर्मे) अपने शास्त्रविधि अनुसार धर्म-कर्म के संघर्ष में (निधनम्) मरना भी (श्रेयः) कल्याणकारक है। (परधर्म) दूसरों का धार्मिक कर्म (भयावहः) भय को देने वाला है।

भावार्थ है कि जैसे जागरण वगैरह होता है तो उसमें बड़ी सुरीली तान में सुरीले गीत गाए जाते हैं। तड़क-भड़क भी होती है। अपने शास्त्राविधि अनुसार धर्म-कर्म में केवल नाम-जाप या सामान्य तरीके से आरती की जाती है। किसी भी वेद या गीता में श्री देवी जी की पूजा तथा जागरण करने की आज्ञा नहीं है। जिस कारण शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण हुआ, इसलिए व्यर्थ है। दूसरों का शास्त्रविधि रहित धार्मिक कर्म देखने में अच्छा लगता है, उसमें लोग-दिखावा अधिक होता है तो सत्य साधना करने वाले को दूसरों के धार्मिक कर्म को देखकर डर बन जाता है कि कहीं हमारी भक्ति ठीक न हो। परन्तु तत्व ज्ञान को समझने के पश्चात् यह भय समाप्त हो जाता है। तत्व ज्ञान में बताया है कि:-

दुर्गा ध्यान पड़े जिस बगड़म, 
ता संगति डूबै सब नगरम्।
दम्भ करें डूंगर चढ़ै, अन्तर झीनी झूल।
जग जाने बन्दगी करें, बोवें सूल बबूल।।


इसलिए निर्गुण अर्थात् लाभरहित धार्मिक साधना को त्यागकर सत्य साधना शास्त्रविधि अनुसार करने से ही कल्याण होगा।

Wednesday, December 7, 2016

कृपया विरोधी आलोचक पोस्ट को ध्यान से पढ़े और यथार्थ सत्य को जाने...

शंका समाधान...

प्रश्न:- सन्त रामपाल जी महाराज देवी देवताओं की निन्दा करते है ?

उत्तर:- सन्त रामपाल जी महाराज 'आदि सनातन धर्म' के उपासक है तथा आदि सनातन धर्म की दीक्षा देते है। सन्त रामपाल जी महाराज देवी देवताओं को पूर्ण आदर देने व पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर की पूजा करने की बात करते है और यह पूर्ण मोक्ष के लिये जरूरी है।

"गरीब, तीनो देवा दिल में बसे, ब्रह्मा विष्णु महेश
प्रथम इनकी वंदना फिर सुन सतगुरु उपदेश"


संत रामपाल जी महाराज किसी भी देवी देवताओं की निन्दा नहीं करते है अपितु आदर से इनका नाम लेते है और इनकी यथार्थ स्थिति बताते है। यथार्थ बात बताना निन्दा नहीं होती।

सन्त रामपाल जी महाराज आदि सनातन धर्म का यथार्थ मार्ग बताते है। सनातन धर्म में देवी देवताओं की पूजा का विधान है तथा मोक्ष प्राप्त करने की अन्य विधि बतायी जाती है,

सच्चाई यह है आदि सनातन धर्म के मोक्ष के अलावा किसी भी प्रकार का मोक्ष पूर्ण नहीं है। पूर्ण मोक्ष सिर्फ आदि सनातन धर्म की साधना से प्राप्त किया जा सकता है। आदि सनातन धर्म की साधना के मंत्र "ओम् तत् सत्" है जो शास्त्र प्रमाणित है जिसे पूर्ण सन्त/ तत्वदर्शी संत द्वारा प्रदान किया जाता है।

जिसको शास्त्रविधि के अनुसार साधना कर पूर्ण मोक्ष प्राप्त करना है उस मोक्ष के इच्छुक व्यक्ति को सन्त रामपाल जी महाराज के यथार्थ मार्ग के अनुसार चलना पड़ेगा। अब हमने आदि सनातन धर्म को अपनाना पड़ेगा, जिसका आधार "श्रीमदभगवत गीता, चार वेद तथा सूक्ष्म वेद है।

अन्य किसी भी साधना से क्षणिक लाभ और अधूरा मोक्ष है। सच्चाई जानने के लिये प्रमाण सहित किताब 'ज्ञान गंगा' का अध्ययन जरूर करे।

प्रश्न:- सन्त रामपाल जी महाराज सभी धर्म गुरूओं की निन्दा करते हैं ?

उत्तर:- सन्त रामपाल जी महाराज ने किसी धर्मगुरू की निन्दा नहीं की अपितु जिज्ञासु अनुयायी जो वेद पुराण गीता व अन्य धार्मिक ग्रन्थों का निष्कर्ष निकालने की जी तोड़ कोशिश कर रहे थे और उन ग्रन्थों का निष्कर्ष निकालते-निकालते उलझ गये,

ऐसे ही जिज्ञासुओं ने प्रथम प्रश्न करके सन्त रामपाल जी महाराज से जानना चाहा। सन्त रामपाल जी महाराज ने सभी शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद प्रमाण सहित सभी यथार्थ बातें बतायी।

यथार्थ बात कहना कोई निन्दा नहीं है मानो या ना मानो।

सन्त रामपाल जी महाराज ने शाश्त्रों से निकाले तत्वज्ञान को किसी को मानने के लिए विवश नहीं किया है। सन्त रामपाल जी महाराज के उत्तर से संतुष्ट होने पर ही ऐसे विद्वान जिज्ञासु सन्त रामपाल जी महाराज के अनुयायी बन गये।

प्रश्न:- अन्य धर्म गुरूओं की निन्दा करना क्या ठीक है ?

उत्तर:- जो आत्म कल्याण का इच्छुक है जिसे ज्ञान समझ में आ गया है उसे मर्यादा

बतायी जाती है। किसी धर्मगुरू की निन्दा करना हमारी संस्कृति मे नहीं है। जो जैसा बोयेगा वैसा काटेगा।यथार्थ बात कहना निन्दा नहीं होती है।

सच्चाई बताना निन्दा नहीं होती है,

जिस प्रकार सरकार असली और नकली नोटों को टीवी व समाचार-पत्रों के माध्यम से जनता को दिखाकर ठगने से बचाती है।

उसी प्रकार सन्त रामपाल जी महाराज किसी की बुराई नहीं करते अपितु सभी सन्तों के शास्त्रविरुद्ध ज्ञान और हमारे सर्वमान्य शास्त्रों का प्रमाणित ज्ञान जनता के सामने रख रहे है।

अब कोई नकली नोट छापने वाला अर्थात् शास्त्रविरुद्ध ज्ञान बताने वाला कहें कि सरकार हमारे नोटों की आलोचना करती है या बुराई करती है... तो वह कितना बुद्धिमान होगा आप सोच सकते हो।

सरकार ने किसी की बुराई या आलोचना नहीं की अपितु परोपकार किया है, जनता को ठगने से बचाया है। बस इतना सा काम सन्त रामपाल जी महाराज कर रहे है।

सभी सन्तों के शास्त्रविरुद्ध ज्ञान को जनता के सामने रख रहे है। जनता को शास्त्रविरुद्ध साधना से हटाकर शास्त्रानुकूल साधना पर प्रेरित कर रहे है। सन्त रामपाल जी महाराज के इस महान परोपकार के कार्य को कोई आलोचना कहें तो वह कितना बुद्धिमान होगा।

परोपकार के कार्य को निन्दा कहने वाला व्यक्ति उसी गैंग या समूह का सदस्य है जो नकली नोट छापता है अर्थात् जो गलत साधना बताता है वही यथार्थ बात को निन्दा कहकर परिभाषित करेगा।

"जैता मीठा बोलता, तैता सन्त ना हो
और खरी-खरी जो कहत है, सन्त कहावै सो"


मीठा बोलने वाला हितेषी नहीं होता...खरी-खरी सत्य कहने वाला ही जनता का सच्चा हितेषी होता है। सत् साहिब जी।

बन्दीछोड़ सदगुरु रामपाल जी महाराज की जय हो।।

Saturday, September 24, 2016

पूजा क्या होती है??

१.ध्यान -- जैसे हम मूर्ति या फोटो को देखते है भगवान की याद आती है .. भगवान को जितनी बार याद करते है उससेे ध्यान यज्ञ का फल मिलता है.. चाहे कही बैठ कर कर लो..

२..ज्ञान.... सुबह शाम आरती करना धार्मिक बुक गीता या कबीर नानक वाणी को पढना ये होती है ज्ञान यज्ञ.. इससे ज्ञान यज्ञ का फल मिलता है.. 

३.हवन.... जैसे हम ज्योति लगाते है देशी घी की उससे हमे हवन यज्ञ का फल मिलता है... 

४. धर्म... जैसे हम भंडारा आदि भूखे को भोजन कराते है उससे धर्म यज्ञ का फल मिलता है.. 

५.. प्रणाम.. जो हम लम्बे लेट कर भगवान को प्रणाम करते है प्रणाम यज्ञ का फल मिलता है.. 

ये पांच यज्ञ करनी होती है साथ मे जो गुरू नाम (मंत्र )भी जाप करना होता है.. 


नाम(मंत्र) क्या होता है??? 

जिस इष्टदेव की आप पूजा करते हो उसका एक गुप्त आदि नाम होता है उसको मंत्र(नाम) बोलते है.. उदाहरण - जैसे नाग बिन के वश होता है बिन बजते ही सावधान हो जाता है.. ऐसे ही ये देवता भगवान अपने अपने मंत्र के वश होते है ... नारद ने ध्रुव को ऐसा मंत्र दिया था ध्रुव ने ऐसी कसक के साथ जाप किया था 6 महीने मे बिषणु भगवान को बुला दिया था.. 
ये 5 यज्ञ करना और साथ मे गुरूमंत्र का जाप करना ही पूजा करलाती है.. … 

उदाहरण के लिए - आपका शरीर समझो खेत है .. पूजा मे ये गुरूमंत्र समझो बीज है ये पांच यज्ञ समझो खाद पानी निराई गुडाई है... अगर आप गुरूमंत्र जापकर रहे हो पांचो यज्ञ नही कर रहे हो तो आप ऐसे हो -- जैसे आप खेत मे बीज डाल रहे है खाद पानी नही दोगे तो बीज नही होगा.. आपका बीज डालना व्यर्थ है... और अगर आपने गुरूमंत्र नही लिया है केवल पांच यज्ञ ही कर रहे हो तो ऐसा है... जैसे खेत मे खाद पानी डाल रहे हो बीज आपने डाला ही नही तो खाद पानी डालना व्यर्थ है.. उससे घास फूस झाडिया ही उगेगी...फसल नही जैसे खेत मे बीज और खाद पानी डालना जरूरी है, वैसे ही भगवान की पूजा भगती मे गुरूमंत्र(बीज) और पांचो यज्ञ (खाद पानी) करने जरूरी है...

 रामपाल जी महाराज कबीर साहेब ने ऐसे पूजा करने को कहा है.. ये गीता वेद शास्त्रो मे ऐसे ही लिखी है...

लेकिन हिन्दू धर्म के लोग इसके विपरीत कर रहे है ना तो वो गुरू बनाते है। राम कृष्ण मीरा घ्रुव पहलाद सबने गुरू बनाया क्या वो पागल थे.. ?

जिस इष्टदेव की पूजा करते है उनका मंत्र इनके पास नही है.. मंदिर की घंटी बजा कर फुल चढा कर पाच रूपये का प्रसाद बाटकर पूजा समझते है.. ओस के चाटने से प्यास नही बुझती.... 

रामपाल जी महाराज हमे सभी देवी देवताओ का आदर सत्कार करने को बोलते है... 

हम हिन्दू धर्म, वेद गीता , देवी देवताओ सबको मानते है सबका सत्कार करते हैा 

जैसे पतिवर्ता औरत पूजा अपने पति की करती है बाकी देवर जेठ जेठानी देवरानी सास ससुर सबका आदर करती है.. ऐसे ही हम पूजा कबीर साहेब पूर्णब्रह्म की करते है और सभी देवी देवता ब्रह्मा विषणु शिव दुर्गा ब्रह्म परब्रह्म सबका आदर सत्कार करते है.... 

ये संसार एक पेड की तरह है ये संसार के लोग संसार रूपी पेड के पत्ते है ३३ करोड देवी देवता छोटी छोटी टहनिया है..      आगे ब्रह्मा बिषणु शिव तीन मोटी शाखा है आगे ब्रह्म( काल) निरंजन डार है।  ------->आगे परब्रह्म तना है अागे--------> पूर्णब्रह्म (कविर्देव) कबीर साहेब संसार रूपी पेड की जड है.... 

संत रामपाल जी महाराज ये नही कहते कि इन टहनी पत्तो डार शाखा को काट दो मतलब इन देवी देवताओ को छोड दो.. 

संत रामपाल जी ये कहते है आप केवल जड मे पानी डालो मतलब पूर्णब्रह्म कबीर साहेब की पूजा करो..

गीता अ०-15 श्लोक 4 मे गीता ज्ञान दाता कह रहा है मै भी उसी आदि नारायण परमेश्वर की शरण मे हुँ. उसी की पूजा करनी चाहिये.. . जड पूरे पेड का मूल  है जड के सामने सारे टहनी पत्ते शाखा डार तना सब भिखारी है.. जड मे पानी डालने से पूरे पेड को आहार मिलेगा पूरे पेड का विकास होगा.. 

एक पूर्णब्रह्म के सामने सब भिखारी है एक पूर्णब्रह्म की पूजा मे सब की पूजा हो जाती है जैसे जड मे पानी डालने से पूरे पेड का विकास हो जाता है... 

ये साधना शास्त्रानुकूल साधना है.. 

कबीर - एक साधे सब सधे, सब साधे सब जावे... 
माली सिंचे मूल को फले फूले अंगाहे... 

लेकिन दुनिया वाले क्या कर रहे है देवी देवताओ को पूजते है ये तो ऐसे है टहनी और शाखाओ मे पानी देना... जड मूल(पूर्णब्रह्म) का लोगो को मालूम नही है.. जड को छोड टहनियो शाखाओ मे पानी दोगे तो पेड सूखेगा ही... ये शास्त्रविरूद्ध साधना है.. ये तो ओस चाटना है ओस चाटने से प्यास नही बुझती...

अवोर 
 आप को शास्त्रविरूद्ध साधना करने  से आपको कोइ फल नही मिलता हे/ 
पिछ्ले पुण्य कर्मो के हि फल इस जन्म मे मिलता हे जी आपको ।

अधिक जानकारी के लिए जगत गुरु रामपाल जी महाराजका सात संग जरुर देखे आवोर सुने 

   


Tuesday, June 28, 2016

प्रश्न- कुछ लोग बोलते है कबीर साहेब ने मूर्ति पूजा का विरोध किया है.. रामपाल जी महाराज भी ऐसा ही कर रहे है??

प्रश्न- कुछ लोग बोलते है कबीर साहेब ने मूर्ति पूजा का विरोध किया है.. रामपाल जी महाराज भी ऐसा ही कर रहे है??

रामपाल जी हिन्दू धर्म की पूजा को गलत बता रहे है????

उत्तर - देखिए कबीर साहेब ने ये कहा है फोटो मूर्ति का काम इतना होता है हमे भगवान की याद आती हैा लेकिन मूर्ति के सामने घंटी बजाना या मूर्ति को भोग लगाना पैसे चढाना रोज नहलाना कपडे पहराना मतलब मूर्ति पर आश्रित होना वो गलत है..

पूजा क्या होती है??
१.ध्यान -- जैसे हम मूर्ति या फोटो को देखते है भगवान की याद आती है .. भगवान को जितनी बार याद करते है उससेे ध्यान यज्ञ का फल मिलता है.. चाहे कही बैठ कर कर लो..
२..ज्ञान.... सुबह शाम आरती करना धार्मिक बुक गीता या कबीर नानक वाणी को पढना ये होती है ज्ञान यज्ञ.. इससे ज्ञान यज्ञ का फल मिलता है..
३.हवन.... जैसे हम ज्योति लगाते है देशी घी की उससे हमे हवन यज्ञ का फल मिलता है...
४. धर्म... जैसे हम भंडारा आदि भूखे को भोजन कराते है उससे धर्म यज्ञ का फल मिलता है..
५.. प्रणाम.. जो हम लम्बे लेट कर भगवान को प्रणाम करते है प्रणाम यज्ञ का फल मिलता है.. ये पांच यज्ञ करनी होती है साथ मे जो गुरू नाम (मंत्र )भी जाप करना होता है..

नाम(मंत्र) क्या होता है???
जिस इष्टदेव की आप पूजा करते हो उसका एक गुप्त आदि नाम होता है उसको मंत्र(नाम) बोलते है.. उदाहरण - जैसे नाग बिन के वश होता है बिन बजते ही सावधान हो जाता है.. ऐसे ही ये देवता भगवान अपने अपने मंत्र के वश होते है ... नारद ने ध्रुव को ऐसा मंत्र दिया था ध्रुव ने ऐसी कसक के साथ जाप किया था 6 महीने मे बिषणु को बुला दिया था..ये 5 यज्ञ करना और साथ मे गुरूमंत्र का जाप करना ही पूजा करलाती है.. उदाहरण के लिए - आपका शरीर समझो खेत है .. पूजा मे ये गुरूमंत्र समझो बीज है ये पांच यज्ञ समझो खाद पानी निराई गुडाई है...
अगर आप गुरूमंत्र जापकर रहे हो पांचो यज्ञ नही कर रहे हो तो आप ऐसे हो -- जैसे आप खेत मे बीज डाल रहे है खाद पानी नही दोगे तो बीज नही होगा.. आपका बीज डालना व्यर्थ है... और अगर आपने गुरूमंत्र नही लिया है केवल पांच यज्ञ ही कर रहे हो तो ऐसा है... जैसे खेत मे खाद पानी डाल रहे हो बीज आपने डाला ही नही तो खाद पानी डालना व्यर्थ है.. उससे घास फूस झाडिया ही उगेगी...फसल नही जैसे खेत मे बीज और खाद पानी डालना जरूरी है, वैसे ही भगवान की पूजा भगती मे गुरूमंत्र(बीज) और पांचो यज्ञ (खाद पानी) करने जरूरी है... रामपाल जी महाराज कबीर साहेब ने ऐसे पूजा करने को कहा है.. ये गीता वेद शास्त्रो मे ऐसे ही लिखी है... लेकिन हिन्दू धर्म के लोग इसके विपरीत कर रहे है ना तो वो गुरू बनाते है

राम कृष्ण मीरा घ्रुव पहलाद सबने गुरू बनाया क्या वो पागल थे..??

 जिस इष्टदेव की पूजा करते है उनका मंत्र इनके पास नही है.. मंदिर की घंटी बजा कर फुल चढा कर पाच रूपये का प्रसाद बाटकर पूजा समझते है.. ओस के चाटने से प्यास नही बुझती....रामपाल जी महाराज हमे सभी देवी देवताओ का आदर सत्कार करने को बोलते है... हम हिन्दू धर्म, वेद गीता , देवी देवताओ सबको मानते है सबका सत्कार करते हैा जैसे पतिवर्ता औरत पूजा अपने पति की करती है बाकी देवर जेठ जेठानी देवरानी सास ससुर सबका आदर करती है.. ऐसे ही हम पूजा कबीर साहेब पूर्णब्रह्म की करते है और सभी देवी देवता ब्रह्मा विषणु शिव दुर्गा ब्रह्म परब्रह्म सबका आदर सत्कार करते है.... ये संसार एक पेड की तरह है ये संसार के लोग संसार रूपी पेड के पत्ते है ३३ करोड देवी देवता छोटी छोटी टहनिया है..आगे ब्रह्मा बिषणु शिव तीन मोटी शाखा है आगे ब्रह्म( काल) निरंजन डार है आगे परब्रह्म तना है अागे पूर्णब्रह्म (कविर्देव) कबीर साहेब संसार रूपी पेड की जड है.... संत रामपाल जी महाराज ये नही कहते कि इन टहनी पत्तो डार शाखा को काट दो मतलब इन देवी देवताओ को छोड दो.. संत रामपाल जी ये कहते है आप केवल जड मे पानी डालो मतलब पूर्णब्रह्म कबीर साहेब की पूजा करो... जड पूरे पेड का center है जड के सामने सारे टहनी पत्ते शाखा डार तना सब भिखारी है.. जड मे पानी डालने से पूरे पेड को आहार मिलेगा पूरे पेड का विकास होगा.. एक पूर्णब्रह्म के सामने सब भिखारी है एक पूर्णब्रह्म की पूजा मे सब की पूजा हो जाती है जैसे जड मे पानी डालने से पूरे पेड का विकास हो जाता है... ये साधना शास्त्रानुकूल साधना है..

कबीर - एक साधे सब सधे, सब साधे सब जावे...
माली सिंचे मूल को फले फूले अंगाहे...
लेकिन दुनिया वाले क्या कर रहे है देवी देवताओ को पूजते है ये तो ऐसे है टहनी और शाखाओ मे पानी देना... जड मूल(पूर्णब्रह्म) का लोगो को मालूम नही है.. जड को छोड टहनियो शाखाओ मे पानी दोगे तो पेड सूखेगा ही... ये शास्त्रविरूद्ध साधना है.. ये तो ओस चाटना है ओस चाटने से प्यास नही बुझती..

Wednesday, June 1, 2016

अगर आपके गुरु भगवान हैं तो वो जेल से बाहर क्यों नही आते?

जो पूण्य आत्माएं संत रामपाल जी महाराज के शिश्यों से बार बार ये स्वाल करते हैं के अगर आपके गुरु भगवान हैं तो वो जेल से बाहर क्यों नही आते?

हम आपके स्वाल का जवाब जरूर देंगे लेकिन उससे पहले आपको इतिहास पे एक नजर ढलवाते हैं।

1 सतोगुण प्रधान विष्णु जी के अवतार श्री कृष्ण जी का जन्म जेल में ही हुआ और पूरी उम्र उनकी युद्ध जितने में ही निकल गयी। महाभारत जैसा युद्ध जिसमे करोड़ों लोग मारे गए जिसमे उनके पक्ष की भी बहुत सी नेक आत्माएं मृत्यू को प्राप्त हुई थी, क्या वो उन युद्धों को टाल नही सकते थे। 
समझिये परमात्मा की वाणी से:-
श्री कृष्ण गोवर्धन धारयो, द्रोणागीरि हनुमान।
शेसनाग सब पृथ्वी धारी, इनमे कौन भगवान।।
परमात्मा कबीर जी कहते हैं के आपके द्वारा प्रचलित कथाएँ ही कहती हैं के श्री कृष्ण और हनुमान ने पहाड़ उठाये।और आप ही कहते हो के शेसनाग के फैन पे सारी पृथ्वी है तो भगवान कौन हुए धरती के एक छोटे से पहाड़ को उठाने वाले या पूरी पृथ्वी उठाने वाला?
2 सतोगुण प्रधान विष्णु जी के दूसरे अवतार श्री रामचंद्र जी अपनी पत्नी सीता को ढूंढते हुए रोते रहे।उसी समुन्दर को जहाज से पार करके एक राक्षस सीता माता को उठा ले गया लेकिन भगवान पुल बना रहे हैं। 

परमात्मा की वाणी है :-
समुदर पाट लंका गए, सीता के भरतार।
उन्हें अगस्त ऋषि पिय गए, इनमे कौन करतार।।
जिस समुदर को पार करने के लिए श्री रामचंद्र जी ने पुल इतनी मुश्किल से बनाया उस एक समुद्र नही बल्कि सातों समुद्रों को एक अगस्त नामक ऋषि अपनी सिद्धि से केवल एक घूंट में पी गए थे तो इन दोनों में बड़ा कौन हुआ? 
मालिक की दूसरी वाणी:-

काटे बंधन विपत्ति में, कठिन कियो संग्राम।
चिन्हो रे नर प्राणिया, वो गरुड़ बड़ो के राम।।
जिस गरुड़ ने मेघनाथ के नागपास में फंसे श्री राम जी और लक्षमण की जान बचाई वो बड़े हुए या राम?
अब आइये संतों पे आधरणीय नानक जी को उस समय लोगों ने भला बुरा कहा 13 महीने तक उस संत को जेल में रखा और आज सब मानते हैं के वो परमात्मा की प्यारी आत्मा थे।लेकिन उस समय हम उनके जीते जी उनका आदर ना कर सके। 

इशा मसीह जी को उस समय लोगों ने शरीर में कीलें ठोक ठोक के मारा आज आधा विश्व उनको मानता है।।लेकिन उस समय उनका आदर ना कर सके 

वो भी मुर्ख है जो कहता है की राम कृष्ण अवतार नही थे। वो तीन लोक के भगवान विष्णु के अवतार थे ।लेकिन हमे पूर्ण मोक्ष के लिये इनसे ऊपर के भगवान की तलास करनी है।

अब आपको बताते हैं के संत रामपाल जी महाराज क्यों चमत्कारी तरीके से जेल से बाहर नही आते ??

सतयुग द्वापर त्रेता और कलयुग के भी लगभग 200 साल पहले के टाइम तक संचार माध्यमों का अभाव था ,कोई भी घटना अगर यहां घटती है तो 200 से 400k m तक उस घटना की जानकारी फैलने में भी महीनो लग जाते थे। इसी लिए उस समय के संत या अवतार चमत्कार कर देते थे,क्योंकि व्यवस्था बनी रहती थी लोगों तक खबर भी एक साथ नही पहुंचती थी और खबर मिलने के बाद लोग भी एक साथ नही पहुंच पाते थे। लेकिन आज के इस साइंस युग में जब भारत के किसी कोने में हो रही घटना लाइव पुरे संसार में देखी जा रही है।और घंटों के अंदर लोग संसार में कहीं भी पहुंच जाते हैं तो ऎसे में क्या संत रामपाल जी महाराज के कोई चमत्कार दिखाने के बाद आप पुरे संसार को छोटे से हरियाणा में आप कंट्रोल कर पाएंगे। नही । मुर्ख मत बनिए ज्ञान को आधार बनाइये।

समय का इंतजार करें और समजे की ऐसा क्या ज्ञान है संत रामपाल जी महाराज का की उनके शिष्य उनके दूसरी बार जेल जाने के बाद भी पीछे हटने को त्यार नही ।

वो समय दूर नही जब पूरा संसार संत रामपाल जी महाराज के बताये मार्ग पे चलेगा। लेकिन इस समय को तरसेंगे वो लोग जो आज ये कहते हैं के अभी नही बाद में देखेंगे।और वो तो फुट फुट कर रोयेंगे जो आज निंदक बने बैठे हैं। उन्हें छुपने को जगह नही मिलेगी। हाथ जोड़ कर विनति के समय रहते ज्ञान को समझे।

उसके लिए 7:40से 8:40 pm तक साधना टीवी और सुबह 06 से 07 बजे तक हरियाणा न्यूज़ देखें।
ज्ञान गंगा पुस्तक पढ़ें और किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए आप किसी भी संत रामपाल जी महाराज के शिष्य से मिलिए।

हम सब परमात्मा के कुते आप पूण्य आत्माओं तक इस ज्ञान को पहुंचाने में हर संभव मदद के लिए तैयार बैठे है।

सत साहेब