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Tuesday, September 5, 2017
Tuesday, April 25, 2017
Monday, April 17, 2017
मुक्ति का मार्ग और है, कोई देखो सत्संग करके II टेक II
मुक्ति का मार्ग और है, कोई देखो सत्संग करके II टेक II
कोई देखो सत्संग करके,कोई देखो सत्संग करके
सत्संग किया था बजरंगी ने, मुनीन्द्र जी के संग में |
कह मुनीन्द्र सुनो हनुमाना, तुम उलझे झूठे रंग में |
ये तीस करोड़ राम हो जा लिए, जीत-जीत के जंग ने |
देख्या सतलोक नजारा था, विधि पूछी चरण पकड़ के......
मुक्ति का मार्ग और है, कोई देखो सत्संग करके .......कोई देखो सत्संग करके......
योगजीत के सत्संग में, एक दिन आ गए कागभुसंडा |
ऐसा सत्संग नहीं सुना, मैं फिर लिया नोऊ खंडा |
उपदेश लिया फिर सुमिरन कीन्हा, तब मिटा काल का दंडा |
वो करे आधीनी बंदगी, सतगुरु चरणा के माह पड़के......सतगुरु चरणा के माह पड़के...
मुक्ति का मार्ग और है, कोई देखो सत्संग करके.............कोई देखो सत्संग करके....
सत्संग किया था सतगुरु जी से, पक्षी राज गरुड़ ने |
कह सतसुकृत के स्वाद बतावे, गूंगा खाके गुड़ ने |
अकड़ घनी थी ज्ञान की, फिर लागी गर्दन मुड़ने |
निर्गुण उपदेश लिया सतगुरु से, तब सुरत अगम को सरके......
मुक्ति का मार्ग और है, कोई देखो सत्संग करके 2 ................
साहेब कबीर ने नानक जी से, कही अगम की वाणी |
कह नानक मैं तो वाको मानु, जाकि जोत स्वरुप निशानी |
देखी सतलोक की चांदनी, वा ज्योति फिकी जानी |
वाहे गुरु सतनाम कहा, उन्हें घनी उमंग में भरके......
मुक्ति का मार्ग और है, कोई देखो सत्संग करके ...........
साहेब कबीर के सत्संग में, एक दिन आ गए गोरखनाथा |
वो सिद्धि बल से बोलता, सतगुरु कहं ज्ञान की बाता |
जब पूर्ण सिद्धि दिखलाई, तब नाथ जी रगड़ा माथा |
गोरख ने भेद शब्द का पाया, सतगुरु चरणा बीच पसर के......
मुक्ति का मार्ग और है, कोई देखो सत्संग करके ................
ब्रह्मा विष्णु महेश ने, किया सत्संग गरुड़ के साथा |
तीनों देवा नु कहन लगे, हम सर्व लोक विधाता |
गरुड़ कह ये बालक मर गया, इसे जीवा दो दाता |
नहीं जीया तब नु बोले, ये तो हाथ परम ईश्वर के......ये तो हाथ परम ईश्वर के
मुक्ति का मार्ग और है, कोई देखो सत्संग करके .............कोई देखो सत्संग करके
सत्संग होया था सम्मन के घर, ऐसी हुई सतगुरु मेहमानी |
अन्न नहीं था प्रसाद को, फिर चोरी करन की ठानी |
सतगुरु सेवा कारने, खुद ली लड़के की प्राणी |
भक्त वो पाला जीत गए, जो होए आसरे सतगुरु के......जो होए आसरे सतगुरु के
मुक्ति का मार्ग और है, कोई देखो सत्संग करके ......कोई देखो सत्संग करके
मान गुमान छोड़ मेरे मनवा, तत्वभेद तब दरसे |
प्रेम भाव सतगुरु में हो जा, तब सहज ही अमृत बरसे |
सार शब्द पाए बिना, सतलोक जान ने तरसे |
रामपाल जी ने मुक्ति पाली, हरदम सतगुरु नाम सुमर के...... हरदम सतगुरु नाम सुमर के
मुक्ति का मार्ग और है, कोई देखो सत्संग करके ........... कोई देखो सत्संग करके
कोई देखो सत्संग करके,कोई देखो सत्संग करके
सत्संग किया था बजरंगी ने, मुनीन्द्र जी के संग में |
कह मुनीन्द्र सुनो हनुमाना, तुम उलझे झूठे रंग में |
ये तीस करोड़ राम हो जा लिए, जीत-जीत के जंग ने |
देख्या सतलोक नजारा था, विधि पूछी चरण पकड़ के......
मुक्ति का मार्ग और है, कोई देखो सत्संग करके .......कोई देखो सत्संग करके......
योगजीत के सत्संग में, एक दिन आ गए कागभुसंडा |
ऐसा सत्संग नहीं सुना, मैं फिर लिया नोऊ खंडा |
उपदेश लिया फिर सुमिरन कीन्हा, तब मिटा काल का दंडा |
वो करे आधीनी बंदगी, सतगुरु चरणा के माह पड़के......सतगुरु चरणा के माह पड़के...
मुक्ति का मार्ग और है, कोई देखो सत्संग करके.............कोई देखो सत्संग करके....
सत्संग किया था सतगुरु जी से, पक्षी राज गरुड़ ने |
कह सतसुकृत के स्वाद बतावे, गूंगा खाके गुड़ ने |
अकड़ घनी थी ज्ञान की, फिर लागी गर्दन मुड़ने |
निर्गुण उपदेश लिया सतगुरु से, तब सुरत अगम को सरके......
मुक्ति का मार्ग और है, कोई देखो सत्संग करके 2 ................
साहेब कबीर ने नानक जी से, कही अगम की वाणी |
कह नानक मैं तो वाको मानु, जाकि जोत स्वरुप निशानी |
देखी सतलोक की चांदनी, वा ज्योति फिकी जानी |
वाहे गुरु सतनाम कहा, उन्हें घनी उमंग में भरके......
मुक्ति का मार्ग और है, कोई देखो सत्संग करके ...........
साहेब कबीर के सत्संग में, एक दिन आ गए गोरखनाथा |
वो सिद्धि बल से बोलता, सतगुरु कहं ज्ञान की बाता |
जब पूर्ण सिद्धि दिखलाई, तब नाथ जी रगड़ा माथा |
गोरख ने भेद शब्द का पाया, सतगुरु चरणा बीच पसर के......
मुक्ति का मार्ग और है, कोई देखो सत्संग करके ................
ब्रह्मा विष्णु महेश ने, किया सत्संग गरुड़ के साथा |
तीनों देवा नु कहन लगे, हम सर्व लोक विधाता |
गरुड़ कह ये बालक मर गया, इसे जीवा दो दाता |
नहीं जीया तब नु बोले, ये तो हाथ परम ईश्वर के......ये तो हाथ परम ईश्वर के
मुक्ति का मार्ग और है, कोई देखो सत्संग करके .............कोई देखो सत्संग करके
सत्संग होया था सम्मन के घर, ऐसी हुई सतगुरु मेहमानी |
अन्न नहीं था प्रसाद को, फिर चोरी करन की ठानी |
सतगुरु सेवा कारने, खुद ली लड़के की प्राणी |
भक्त वो पाला जीत गए, जो होए आसरे सतगुरु के......जो होए आसरे सतगुरु के
मुक्ति का मार्ग और है, कोई देखो सत्संग करके ......कोई देखो सत्संग करके
मान गुमान छोड़ मेरे मनवा, तत्वभेद तब दरसे |
प्रेम भाव सतगुरु में हो जा, तब सहज ही अमृत बरसे |
सार शब्द पाए बिना, सतलोक जान ने तरसे |
रामपाल जी ने मुक्ति पाली, हरदम सतगुरु नाम सुमर के...... हरदम सतगुरु नाम सुमर के
मुक्ति का मार्ग और है, कोई देखो सत्संग करके ........... कोई देखो सत्संग करके
Sunday, April 16, 2017
शब्द शब्द बहू अंतरा, शब्द के हाथ न पावं ।
शब्द शब्द बहू अंतरा, शब्द के हाथ न पावं ।
एक शब्द करे औषधि, एक शब्द करे घाव ।।
शब्द सम्भाले बोलियेे, शब्द खीँचते ध्यान ।
शब्द मन घायल करे, शब्द बढाते मान ।।
शब्द मुँह से छूट गया, शब्द न वापस आय ।
शब्द जो हो प्यार भरा, शब्द ही मन मेँ समाएँ ।।
शब्द मेँ है भाव रंग का, शब्द है मान महान ।
शब्द जीवन रुप है, शब्द ही दुनिया जहान ।।
शब्द ही कटुता रोप देँ, शब्द ही बैर हटाएं ।
शब्द जोङ देँ टूटे मन, शब्द ही प्यार बढाएं ।।
एक शब्द करे औषधि, एक शब्द करे घाव ।।
शब्द सम्भाले बोलियेे, शब्द खीँचते ध्यान ।
शब्द मन घायल करे, शब्द बढाते मान ।।
शब्द मुँह से छूट गया, शब्द न वापस आय ।
शब्द जो हो प्यार भरा, शब्द ही मन मेँ समाएँ ।।
शब्द मेँ है भाव रंग का, शब्द है मान महान ।
शब्द जीवन रुप है, शब्द ही दुनिया जहान ।।
शब्द ही कटुता रोप देँ, शब्द ही बैर हटाएं ।
शब्द जोङ देँ टूटे मन, शब्द ही प्यार बढाएं ।।
Wednesday, March 15, 2017
|| अथ राग होरी || बन्दिछोड़_गरीबदास_महाराज_जी_की_वाणी
|| अथ राग होरी ||
बंधुओ इस लोक में जैसे हम सभी आपस में मिलकर रंगों की होली उत्साह के साथ मनाते हैं उसी तरह सतलोक में संत, महापुरष, भक्त और प्रेमी जन राम नाम का रंग चढ़ा कर सदा के लिए होली के उत्सव का आनंद प्राप्त करते हैं | राग होरी के इस शब्द में गरीबदास जी ने पूर्ण परमात्मा के रंग की होली खेलने वाले संतो, महापुरषों और भक्तों का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया है | इस एक शब्द को पढ़ने से अनेकों संतो, महापुरषों और भक्तों के नाम उच्चारण का लाभ प्राप्त होता है | आओ हम सभी सच्चे राम (बन्दिछोड़ कबीर साहेब ) रंग की इस होली के उत्सव का रसास्वादन करें |
मन राजा खेलन चल्या रंग होरी हो, त्रिबैनी के तीर राम रंग होरी हो |
पांच सखी नित संग हैं रंग होरी हो, बरषैं केसर नीर राम रंग होरी हो || १ ||
इला पिंगुला मध्य है रंग होरी हो, बीच सुषमना घाट राम रंग होरी हो |
शिव ब्रह्मादिक खेलहीं रंग होरी हो, सनकादिक जोहैं बाट राम रंग होरी हो || २ ||
शेष सहंसमुख गांवहीं रंग होरी हो, नारद पूरैं नाद राम रंग होरी हो |
हाथ अबीर गुलाल है रंग होरी हो, खेलत हैं सब साध राम रंग होरी हो || ३ ||
इंद्र कुबेर वरुण हैं रंग होरी हो, धर्मराय ध्यान धरंत राम रंग होरी हो |
चित्रगुप्त चितवन करैं रंग होरी हो, कोई न पावै अंत राम रंग होरी हो || ४ ||
ध्रु प्रहलाद जहां खेलहीं रंग होरी हो, नारद का उपदेश राम रंग होरी हो |
हाथ पिचकारी प्रेम की रंग होरी हो, खेलत हैं हमेश राम रंग होरी हो || ५ ||
जनक विदेही खेलहीं रंग होरी हो, बावन गादी व्यास राम रंग होरी हो |
शुकदेव सिंध समूल है रंग होरी हो, गगन मंडल में रास राम रंग होरी हो || ६ ||
विभीषन जहां खेलहीं रंग होरी हो, रुंमी ऋषि मारकंड राम रंग होरी हो |
विश्वामित्र वशिष्ठ हैं रंग होरी हो, खेलैं कागभुशंड राम रंग होरी हो || ७ ||
मोरधज ताम्रधज हैं रंग होरी हो, अम्बरीष प्रवानि राम रंग होरी हो |
दुर्वासा जहां खेलहीं रंग होरी हो, मिट गई खैंचातान राम रंग होरी हो || ८ ||
गोरख हनु हनोज हैं, रंग होरी हो, लछमन और बलदेव राम रंग होरी हो |
भरत अरथ में मिल रह्या रंग होरी हो, करै पुरुष की सेव राम रंग होरी हो || ९ ||
बालनीक बलवंत हैं रंग होरी हो, बालमीक बरियांम राम रंग होरी हो |
पांचौं पंडौं खेलहीं रंग होरी हो, पूर्ण जिनके काम राम रंग होरी हो || १० ||
भरथर गोपीचंद हैं रंग होरी हो, नाथ जलंधर लीन राम रंग होरी हो |
जंगी चरपट खेलहीं रंग होरी हो, हाथ जिन्हौं के बीन राम रंग होरी हो || ११ ||
नामदेव और कबीर हैं रंग होरी हो, पीपा पद प्रवानि राम रंग होरी हो |
रामानंद रंग छिरक हीं रंग होरी हो, निरगुण पद निरबान राम रंग होरी हो || १२ ||
सब संतन सिरताज है रंग होरी हो, मांझी मुकट कबीर राम रंग होरी हो |
जा का ध्यान अमान है रंग होरी हो, टूटैं जम जंजीर राम रंग होरी हो || १३ ||
रंका बंका खेलहीं रंग होरी हो, सेऊ संमन साथ राम रंग होरी हो |
कमाल मल्ल मैदान में रंग होरी हो, रंग छिरकैं रैदास राम रंग होरी हो || १४ ||
सुजा सैंन बाजीद है रंग होरी हो, धन्ना भक्त दरहाल राम रंग होरी हो |
जैदे जगमग ज्योत में रंग होरी हो, हाथ अबीर गुलाल राम रंग होरी हो || १५ ||
दत्त तत्त में मिल रह्या रंग होरी हो, नानक दादू हंस राम रंग होरी हो |
मानसरोवर खेलहीं रंग होरी हो, चिन्ह्या निरगुण बंश राम रंग होरी हो || १६ ||
त्रिलोचन जहां खेलहीं रंग होरी हो, खेलै दास मलूक राम रंग होरी हो |
सदन भक्त जहां खेलहीं रंग होरी हो, गई जिन्हों की भूख राम रंग होरी हो || १७ ||
कर्माबाई भीलनी रंग होरी हो, स्यौरी सिंध समूल राम रंग होरी हो |
अमृत केसर बरषहीं रंग होरी हो, संख वर्ण के फूल राम रंग होरी हो || १८ ||
कमल कमाली ले रही रंग होरी हो, मीरा गूंदै हार राम रंग होरी हो |
आरता दूलह का करै रंग होरी हो, गज मोतियन के थार राम रंग होरी हो || १९ ||
ताल मृदंग उपंग हैं रंग होरी हो, बाजत हैं डफ झांझि राम रंग होरी हो |
शंखा झालरि बाजहीं रंग होरी हो, खेलो तन मन मांजि राम रंग होरी हो || २० ||
मुरली मधुर धुंनि बाजहीं रंग होरी हो, रणसींगौं की टेर राम रंग होरी हो |
अनहद नाद अगाध हैं रंग होरी हो, शहनाई और भेरि राम रंग होरी हो || २१ ||
गायन संख असंख हैं रंग होरी हो, कहां कहूँ उनमान राम रंग होरी हो |
कहन सुनन की है नहीं रंग होरी हो, देखे ही प्रवान राम रंग होरी हो || २२ ||
आदि अंत आगे रहै रंग होरी हो, सूक्ष्म रूप अनूप राम रंग होरी हो |
गरीबदास गलतांन है रंग होरी हो, पाया सत सरूप राम रंग होरी हो || २३ ||
sat saheb
Friday, March 3, 2017
साहेँब कबीर जी आजा, आत्मा तोहेँ पुकारती
साहेँब कबीर जी आजा,
आत्मा तोहेँ पुकारती ।टेक।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की,
22 लाख वर्ष तप किन्ना ,
एक तपस्वी करण,
कहाया तप सेँ राज
राज मदमान नरक ठिकाना पाया,
सिर धुन-2 कर पछताया ,
या थी बाजी हार की ।।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की,
साहेँब कबीर जी आजा,
आत्मा तोहेँ पुकारती ,
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की,
योग विधि से सुखदेव रीषि,
तीनोँ लोक उड़ फिर आवेँ ,
उड़ा फिरे पक्षी की तरिहया
नहीँ मोक्ष द्वारा पावेँ ,
हठ योगी भटक-भटका खावेँ,
ना पावे युत्ति शब्द सार की ,
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की ,
पाँच वक्त निमाज गुजारेँ ,
करे शाम को खूना ,
बिना बँदगी बोक बनेगेँ रहेँ जुनम जून्ना ,
खर देही बना अपला तुन्ना,
मिट्टी ढोहेँ कुम्हार की ।।
तेरे हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की ,
वेँद पुराण शास्त्र पढ़ते ,
कथा करेँ चित लाके
गीता जी सार सुणावेँ ,
मिठ्ठी बात बणाकेँ ,
महाभारत रामायण समझावेँ ,
कथा करेँ उस काल करतार की ,
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की ,
तीर्थ व्रत साधना करतेँ ,
आशा चारोँ धाम की ,
कोटि यज्ञ अश्वमेँघ करतेँ ,
ना जाणेँ महिमा सतनाम की,
नाम बिना बेँकाम की ,
ये सम्पति संसार की ।।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की ,
राबिया रंगी हरि रंग मेँ,
कैसे जीव दया दर्शायी ,
केश उखाड़े वस्त्र उतारेँ ,
एक कुतिया की प्यास भुझाई ,
मंजिल तीन मक्का ले आई,
वो थी प्यासी दिदार की ।।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की
राबिया सेँ बही बनसुरी ,
फिर गँणका ख्याल बणाया,
गँणका से फिर बही कमाली,
तेरा ही शरणा पाया ,
शरण आप की आन्नद पाया,
थी प्यासी दीदार की ।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की ,
शेखफरीद ने द्वादस वर्ष,
तप किया अतिभारी ,
रक्त माँस और चाम सुखाया,
ना हुई फिर भी अलख सेँ यारी6!!
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की ,
गोरखनाथ रिधि सिध्दी मेँ,
फुला नही समावेँ ,
मुर्देँ तक को जिवित करके ,
काल भगति दरढ़ावेँ ,
रामपाल जी सतगुरु शरणा पावेँ,
डोरी मकरतार की ,
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु, सतलोक द्वार की ,।।
बन्दीँ छोँड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय ।
सत साहेब |
आत्मा तोहेँ पुकारती ।टेक।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की,
22 लाख वर्ष तप किन्ना ,
एक तपस्वी करण,
कहाया तप सेँ राज
राज मदमान नरक ठिकाना पाया,
सिर धुन-2 कर पछताया ,
या थी बाजी हार की ।।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की,
साहेँब कबीर जी आजा,
आत्मा तोहेँ पुकारती ,
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की,
योग विधि से सुखदेव रीषि,
तीनोँ लोक उड़ फिर आवेँ ,
उड़ा फिरे पक्षी की तरिहया
नहीँ मोक्ष द्वारा पावेँ ,
हठ योगी भटक-भटका खावेँ,
ना पावे युत्ति शब्द सार की ,
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की ,
पाँच वक्त निमाज गुजारेँ ,
करे शाम को खूना ,
बिना बँदगी बोक बनेगेँ रहेँ जुनम जून्ना ,
खर देही बना अपला तुन्ना,
मिट्टी ढोहेँ कुम्हार की ।।
तेरे हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की ,
वेँद पुराण शास्त्र पढ़ते ,
कथा करेँ चित लाके
गीता जी सार सुणावेँ ,
मिठ्ठी बात बणाकेँ ,
महाभारत रामायण समझावेँ ,
कथा करेँ उस काल करतार की ,
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की ,
तीर्थ व्रत साधना करतेँ ,
आशा चारोँ धाम की ,
कोटि यज्ञ अश्वमेँघ करतेँ ,
ना जाणेँ महिमा सतनाम की,
नाम बिना बेँकाम की ,
ये सम्पति संसार की ।।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की ,
राबिया रंगी हरि रंग मेँ,
कैसे जीव दया दर्शायी ,
केश उखाड़े वस्त्र उतारेँ ,
एक कुतिया की प्यास भुझाई ,
मंजिल तीन मक्का ले आई,
वो थी प्यासी दिदार की ।।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की
राबिया सेँ बही बनसुरी ,
फिर गँणका ख्याल बणाया,
गँणका से फिर बही कमाली,
तेरा ही शरणा पाया ,
शरण आप की आन्नद पाया,
थी प्यासी दीदार की ।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की ,
शेखफरीद ने द्वादस वर्ष,
तप किया अतिभारी ,
रक्त माँस और चाम सुखाया,
ना हुई फिर भी अलख सेँ यारी6!!
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की ,
गोरखनाथ रिधि सिध्दी मेँ,
फुला नही समावेँ ,
मुर्देँ तक को जिवित करके ,
काल भगति दरढ़ावेँ ,
रामपाल जी सतगुरु शरणा पावेँ,
डोरी मकरतार की ,
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु, सतलोक द्वार की ,।।
बन्दीँ छोँड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय ।
सत साहेब |
Thursday, February 23, 2017
Wednesday, February 8, 2017
धन-धन सतगुरू सत कबीर, भगत की पीड़ मिटाने वाले।
सत साहिब जी
धन-धन सतगुरू सत कबीर,
भगत की पीड़ मिटाने वाले।
धन-धन सतगुरू सत कबीर,
भगत की पीड़ मिटाने वाले।।
भगत की पीड़ मिटाने वाले।
धन-धन सतगुरू सत कबीर,
भगत की पीड़ मिटाने वाले।।
रहे नल नील जतन कर हार,
तब सतगुरू से करी पूकार ।
जा सत रेखा लिखी अपार,
सिंधू पै शिला तिराने वाले।
तब सतगुरू से करी पूकार ।
जा सत रेखा लिखी अपार,
सिंधू पै शिला तिराने वाले।
धन-धन सतगुरू सत कबीर,
भगत की पीड़ मिटाने वाले।
धन-धन सतगुरू सत कबीर,
भगत की पीड़ मिटाने वाले।।
भगत की पीड़ मिटाने वाले।
धन-धन सतगुरू सत कबीर,
भगत की पीड़ मिटाने वाले।।
डसी सर्प नै जब जा,
पूकारि इंद्रमति अकूलाए।
आपनें तुरंत करी सहाय,
बैरोली मंत्र सूनाने वाले।
पूकारि इंद्रमति अकूलाए।
आपनें तुरंत करी सहाय,
बैरोली मंत्र सूनाने वाले।
धन-धन सतगुरू सत कबीर,
भगत की पीड़ मिटाने वाले।
धन-धन सतगुरू सत कबीर,
भगत की पीड़ मिटाने वाले।।
भगत की पीड़ मिटाने वाले।
धन-धन सतगुरू सत कबीर,
भगत की पीड़ मिटाने वाले।।
दामोदर सेठ के होवैं थे अकाज,
अरज करी डूबता देख जहाज।
लाज मेरी रखियो गरीब निवाज,
समुंदर से पार लंघाने वाले। ।
अरज करी डूबता देख जहाज।
लाज मेरी रखियो गरीब निवाज,
समुंदर से पार लंघाने वाले। ।
धन-धन सतगुरू सत कबीर,
भगत की पीड़ मिटाने वाले।
धन-धन सतगुरू सत कबीर,
भगत की पीड़ मिटाने वाले।।
भगत की पीड़ मिटाने वाले।
धन-धन सतगुरू सत कबीर,
भगत की पीड़ मिटाने वाले।।
कहै कर जोड़ दीन धर्मदास,
दर्श दे पूर्ण करियो आस।
मेट दयो जनम मरण की त्रास
सहज पद प्राप्त कराने वाले।
दर्श दे पूर्ण करियो आस।
मेट दयो जनम मरण की त्रास
सहज पद प्राप्त कराने वाले।
धन-धन सतगुरू सत कबीर,
भगत की पीड़ मिटाने वाले।
धन-धन सतगुरू सत कबीर,
भगत की पीड़ मिटाने वाले।।
भगत की पीड़ मिटाने वाले।
धन-धन सतगुरू सत कबीर,
भगत की पीड़ मिटाने वाले।।
जय बंदीछोड कि
Tuesday, November 15, 2016
तु हीं मेरे वेदं... तु हीं मेरे नादं...। तु हीं मेरे अंत राम... तु हीं मेरे आदम.
# बंदी छोड़ सतगुरु देव की जय #
💖 तु हीं मेरे वेदं... तु हीं मेरे नादं...।
तु हीं मेरे अंत राम... तु हीं मेरे आदम...💖।।
💖 तु हीं मेरे तिलकं... तु हीं मेरे माला...।
तु हीं मेरे ठाकुर राम... रूप विशाला...💖।।
💖 तु हीं मेरे बागं... तु हीं मेरे बेला...।
तु हीं मेरे पुष्प राम... रूप नबेला...💖।।
💖 तु हीं मेरे तरुवर... तु हीं मेरे शाखा...।
तु हीं मेरे वाणी राम... तु हीं मेरे भाषा...💖।।
💖 तु हीं मेरे पूजा... तु हीं मेरे पाती...।
तु हीं मेरे देवल राम... मैं तेरा जाती 💖।।
💖 तु ही मेरे पाती... तु हीं मेरे पूजा...।
तु मेरे तीर्थ राम... और नही दूजा...💖।।
💖 तु हीं मेरे कल्पवृक्ष... और कामधैना...।
तु हीं मेरे राजा राम...तु हीं मेरे सेना..💖।।
💖 तु हीं मेरे मालिक... तु हीं मेरे मोरा...।
तु हीं मेरे सुल्तान राम... तु हीं हैं उजीरा...💖।।
💖 तु हीं मेरे मुदरा... तु हीं मेरे सेली...।
तु हीं मेरे मुतंगा राम... तु हीं मेरा बेली...💖।।
💖 तु हीं मेरे चीपी... तु हीं मेरे फरूवा...।
मैं तेरा चेला राम... तु हीं मेरे गुरुवा...💖।।
💖 तु हीं कौसति... तु हीं मेरे लालं...।
तु हीं मेरे पारस राम... तु हीं मेरे मालं...💖।।
💖 तु हीं मेरे हीरा... तु हीं मेरे मोती...।
तु हीं वैरागर राम... जगमग ज्योति...💖।।
💖 तु हीं मेरे पौहमी...धरनी आकाशा...।
तु हीं मेरे क़ुरम्भ राम... तु हीं हैँ कैलासा...💖।।
💖 तु हीं मेरे सूरज... तु हीं मेरे चन्दा...।
तु हीं तारायन राम... परमानंदा...💖।।
💖 तु हीं पौंना... तु हीं मेरे पांनी...।
तेरी हीं लीला राम... किन हूं न जानी...💖।।
💖 तु हीं मेरे कार्तिक... स्वामी गणेशा...।
तेरा ही ध्यान राम... धरु हमेशा...💖।।
💖 तु हीं मेरे लक्ष्मी... तु हीं मेरे गोऱा...।
तु हीं सावित्री राम... ॐ अंग तोरा... 💖।।
💖 तु हीं मेरे ब्रह्मा... शेष महेशा...।
तु मेरे विष्णु राम... जय जय आदेशा...💖।।
💖 तु हीं मेरे इंद्र... तु हीं हैं कुबेरा...।
तु हीं मेरे वरुण राम... तु हीं धर्म धीरा...💖।।
💖 तु हीं मेरे सरबंग... सकल व्यापी...।
तु हीं आपनी राम... थापनि थापी...💖।।
💖 तु हीं मेरे पिण्डा... तु हीं मेरे शवासा...।
तेरा हीं ध्यान राम... धरे गरीबदासा...💖।।
........सत साहेब जी.......
💖 तु हीं मेरे वेदं... तु हीं मेरे नादं...।
तु हीं मेरे अंत राम... तु हीं मेरे आदम...💖।।
💖 तु हीं मेरे तिलकं... तु हीं मेरे माला...।
तु हीं मेरे ठाकुर राम... रूप विशाला...💖।।
💖 तु हीं मेरे बागं... तु हीं मेरे बेला...।
तु हीं मेरे पुष्प राम... रूप नबेला...💖।।
💖 तु हीं मेरे तरुवर... तु हीं मेरे शाखा...।
तु हीं मेरे वाणी राम... तु हीं मेरे भाषा...💖।।
💖 तु हीं मेरे पूजा... तु हीं मेरे पाती...।
तु हीं मेरे देवल राम... मैं तेरा जाती 💖।।
💖 तु ही मेरे पाती... तु हीं मेरे पूजा...।
तु मेरे तीर्थ राम... और नही दूजा...💖।।
💖 तु हीं मेरे कल्पवृक्ष... और कामधैना...।
तु हीं मेरे राजा राम...तु हीं मेरे सेना..💖।।
💖 तु हीं मेरे मालिक... तु हीं मेरे मोरा...।
तु हीं मेरे सुल्तान राम... तु हीं हैं उजीरा...💖।।
💖 तु हीं मेरे मुदरा... तु हीं मेरे सेली...।
तु हीं मेरे मुतंगा राम... तु हीं मेरा बेली...💖।।
💖 तु हीं मेरे चीपी... तु हीं मेरे फरूवा...।
मैं तेरा चेला राम... तु हीं मेरे गुरुवा...💖।।
💖 तु हीं कौसति... तु हीं मेरे लालं...।
तु हीं मेरे पारस राम... तु हीं मेरे मालं...💖।।
💖 तु हीं मेरे हीरा... तु हीं मेरे मोती...।
तु हीं वैरागर राम... जगमग ज्योति...💖।।
💖 तु हीं मेरे पौहमी...धरनी आकाशा...।
तु हीं मेरे क़ुरम्भ राम... तु हीं हैँ कैलासा...💖।।
💖 तु हीं मेरे सूरज... तु हीं मेरे चन्दा...।
तु हीं तारायन राम... परमानंदा...💖।।
💖 तु हीं पौंना... तु हीं मेरे पांनी...।
तेरी हीं लीला राम... किन हूं न जानी...💖।।
💖 तु हीं मेरे कार्तिक... स्वामी गणेशा...।
तेरा ही ध्यान राम... धरु हमेशा...💖।।
💖 तु हीं मेरे लक्ष्मी... तु हीं मेरे गोऱा...।
तु हीं सावित्री राम... ॐ अंग तोरा... 💖।।
💖 तु हीं मेरे ब्रह्मा... शेष महेशा...।
तु मेरे विष्णु राम... जय जय आदेशा...💖।।
💖 तु हीं मेरे इंद्र... तु हीं हैं कुबेरा...।
तु हीं मेरे वरुण राम... तु हीं धर्म धीरा...💖।।
💖 तु हीं मेरे सरबंग... सकल व्यापी...।
तु हीं आपनी राम... थापनि थापी...💖।।
💖 तु हीं मेरे पिण्डा... तु हीं मेरे शवासा...।
तेरा हीं ध्यान राम... धरे गरीबदासा...💖।।
........सत साहेब जी.......
Saturday, October 29, 2016
आज लग्या साहिब को भोग, दीन के टुकड़े पानी का !
आज लग्या साहिब को भोग, दीन के टुकड़े पानी का !
कोई जाग्या पुरबला भाग , सफल हुआ दिन जिंदगानी का !
कोई जाग्या पुरबला भाग , सफल हुआ दिन जिंदगानी का !
व्यंजन छतीसो ये नहीं चावें जो मिल ज्यावे रूचि रूचि पावे !!
प्रसाद अलूणा ये पा ज्यावे भाव लर देख प्राणी का !!
कोई जाग्या पुरबला भाग , सफल हुआ दिन जिंदगानी का !
प्रसाद अलूणा ये पा ज्यावे भाव लर देख प्राणी का !!
कोई जाग्या पुरबला भाग , सफल हुआ दिन जिंदगानी का !
सम्मन जी ने भोग लगाया, सर लड़के का काट के ल्याया
बंदी छोड़ ने तुरंत जिवाया पाया फल संत यजमानी का,
कोई जग्य पुरबला भाग सफल हुआ दिन जिंदगानी का !!
बंदी छोड़ ने तुरंत जिवाया पाया फल संत यजमानी का,
कोई जग्य पुरबला भाग सफल हुआ दिन जिंदगानी का !!
जिन भगतों के ये भोग लग ज्यावे , उनके तीनो तीनों ताप नसाये!
कोटि तीर्थ का फल वो पावे, लाभ ये संतो की वाणी का !!
कोई जग्य पुरब्ला भाग सफल हुआ दिन जिंदगानी का !
कोटि तीर्थ का फल वो पावे, लाभ ये संतो की वाणी का !!
कोई जग्य पुरब्ला भाग सफल हुआ दिन जिंदगानी का !
संतो की वाणी है अनमोल, इसे न समझ सके अनभल !
साहिब ने भेद दिया सब खोल, अपनी सतलोक राजधानिका!!
कोई जग्य पुरब्ला भाग सफल हुआ दिन जिंदगानी का !!
साहिब ने भेद दिया सब खोल, अपनी सतलोक राजधानिका!!
कोई जग्य पुरब्ला भाग सफल हुआ दिन जिंदगानी का !!
बलि राजा ने धरम किया था, हरी ने आ के दान लिया था !
पाताल लोक का राज दिया था, ऊँचा है दर्ज दानी का!
कोई जग्य पुरब्ला भाग सफल हुआ दिन जिंदगानी का !!
पाताल लोक का राज दिया था, ऊँचा है दर्ज दानी का!
कोई जग्य पुरब्ला भाग सफल हुआ दिन जिंदगानी का !!
धरमदास ने याग रचाई, बिन दर्शन नहीं जीवन गुसाई!!
दर्शन दे कर प्यास बुझाई, भाव लिया देख क़ुरबानी का !!
कोई जग्य पुरब्ला भाग सफल हुआ दिन जिंदगानी का !!
दर्शन दे कर प्यास बुझाई, भाव लिया देख क़ुरबानी का !!
कोई जग्य पुरब्ला भाग सफल हुआ दिन जिंदगानी का !!
रह्या क्यों मोह ममता में सोया, जगत में जीवन है दिन दोय !
पता न आवन हो के न होय, तेरे इस स्वास सैलानी का !
कोई जग्य पुरब्ला भाग, सफल हुआ दिन जिंदगानी का !१
पता न आवन हो के न होय, तेरे इस स्वास सैलानी का !
कोई जग्य पुरब्ला भाग, सफल हुआ दिन जिंदगानी का !१
जीव जो ना सतसंग में आया, भेद न उसे भजन का पाया !
गरीबदास को भी बावला बताया, के करले इस दुनिया सयानी का !!
कोई जग्य पुरब्ला भाग सफल हुआ दिन जिंदगानी का !!
गरीबदास को भी बावला बताया, के करले इस दुनिया सयानी का !!
कोई जग्य पुरब्ला भाग सफल हुआ दिन जिंदगानी का !!
साध सांगत से भेद जो पाया, गुरु रामदेवनन्द जी ने सफल बनाया !!
संत रामपाल को राह दिखाया, श्री धाम छुड़ानी का !!
कोई जाग्या पुरब्ला भाग सफल हुआ दिन जिंदगानी का!!
संत रामपाल को राह दिखाया, श्री धाम छुड़ानी का !!
कोई जाग्या पुरब्ला भाग सफल हुआ दिन जिंदगानी का!!
आज लग्या साहिब को भोग दीन के टुकड़े पानी का !
कोई जाग्या पुरब्ला भाग, सफल हुआ दीन जिंदगानी का !!
कोई जाग्या पुरब्ला भाग, सफल हुआ दीन जिंदगानी का !!
परमात्मा की अमरवाणी
"युग सत्तर हम ज्ञान दिया, जीव न समझया एक !
गरीबदास घर-घर फिरे, वो धरे कबीरा भेख !!
सत्तर युग सेवन किया, किन्हें ना बूझी बात !
गरीबदास मैं समझावत हूँ, ये मोहें लगावें लात !!
कल्प कोटि युग बितिया, हम आये तिस बेर !
गरीबदास केशव सुनो, देन भक्ति की टेर !!
स्वर्ग मृत्यु पाताल में, हम पैठे कई बार !
गरीबदास घर-घर सजया, मार-मार कहै मार !!
हमरी जात अपूर्वी, पूर्व रेहन हमार !
गरीबदास कैसे जुड़े, इस पश्चिम के तार !!
हम हैं पूर्व ठेठ के, हम उतरे औघट घाट !
गरीबदास जीव दक्षिण के, यूँ न मिलती सांठ !!
जिन हमारी सीख लेई, काटूं जम जंजीर !
गरीबदास केशव सुने, ऐसे कहत कबीर !!
फिर बाज़ी विधना रचे, वे नहीं जीव आवंत !
गरीबदास सतलोक में, अमर पटा पावंत" !!
सत् साहिब जी!
बन्दीछोड़ सदगुरु रामपाल जी महाराज की जय हो!!
Sunday, September 11, 2016
हमरे अनहद बाजे बाजे, हमरे किये सभे कुछ साजे I हम ही लहर तरंग उठावे , हम ही प्रगट हम छिप जावे I
हमरे अनहद बाजे बाजे, हमरे किये सभे कुछ साजे I
हम ही लहर तरंग उठावे , हम ही प्रगट हम छिप जावे I
Il भग की राह हम नहीं आए, जन्म मरण में नहीं समाए l
त्रीगुण पांच तत्व हमरे नाहीं, इच्छा रूपी देह हम आहीं ll
अनंतकोटी ब्रम्हांड का एक रति नही भार...
सदगुरू पुरुष कबीर है कुल के सिरजनहार...
कबीर–राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नांही संसार।
जिन साहेब संसार किया, सो किन्हूं न जन्म्या नार।।
सतगुरू बोले अमृत वाणी | गुरूबिन मुक्ति नही रे प्रानी ||
गुरू है आदी अंत के दाता गुरू है मुक्ति पदारथ भ्राता ||
गुरू है गंगा काशी अस्थाना चारी वेद गुरू गमते जाना ||
गुरू है सुरसरी निर्मल धारा | बिन गुरू घट नाहिं हो उजियारा||
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
आदरणीय घीसा दास साहेब जी को भी पूज्य पारब्रह्म कबीर परमेश्वर जी सशरीर मिले-
**********************
भारत वर्ष सदा से ही संतों के आशीर्वाद युक्त रहा है। प्रभु के भेजे संत व स्वयं परमेश्वर समय-समय पर इस भूतल को पावन करते रहे हैं। उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ में एक पावन ग्राम खेखड़ा है,जिसमें विक्रमी सं.1860सन्1803में परमेश्वर के कृपा पात्र संत घीसा दास जी का आविर्भाव हुआ। जब आप जी सात वर्ष के हुए तो पूर्ण ब्रह्म कविर्देव (कबीर परमेश्वर) सतलोक (ऋतधाम) से सशरीर आए तथा गाँव के बाहर खेल रहे आपजी को दर्शन दिए। परम पूज्य कबीर साहेब (कविर्देव) ने अपने प्यारे हंस घीसादास जी को प्रभु साधना करने को कहा तथा लगभग एक घण्टे तक सत्संग सुनाया। बहुत से बच्चे उपस्थित थेतथा एक वृद्धा भी उपस्थित थी। परमेश्वर कबीर जी के मुख कमल से अपनी ही (परमेश्वर की) महिमा सुनकर आदरणीय घीसा दास साहेब जी ने सत्यलोकचलने की प्रबल इच्छा व्यक्त की। तब प्रभु कबीर (कविर्देव) ने कहा कि पुत्रा आओ,एकांत स्थान पर मंत्रा दान करूंगा। अन्य श्रोताओं से200फुट की दूरी पर ले जाकर नाम दान किया,मंत्रित जल अपने लोटे(एक पात्रा) से पिलाया तथा कुछ मिश्री संत घीसा दास साहेब जी को खिलाई। शाम का अंधेरा होने लगा था। परमेश्वर कबीर (कविर्देव) अन्तध्र्यान हो गए। सात वर्षीय बालक घीसादास साहेब जी अचेत हो गए। वृद्धा भतेरी ने गाँव में आकर आप जी के माता-पिता को बताया कि आपके बच्चे को एक जिन्दा महात्मा ने मन्त्रिात जल पिला दिया,तुम्हारा बेटा तो अचेत हो गया तथा वह जिन्दा अदृश हो गया। आपजी के माता-पिता जी को वृद्ध अवस्था में एक संत के आशीर्वाद से संतान रूप में आपजी कीप्राप्ति हुई थी। समाचार सुनते ही माता-पिता अचेत हो गए। अन्य ग्रामवासी घटना स्थल पर पहुँचे और अचेत अवस्था में ही बालक घीसा दास साहेब जी को घर ले आए। जब माता-पिता होश में आए। बच्चे की गंभीर दशा देखकर विलाप करने लगे। सुबह सूर्य उदय होते ही बालक घीसा जी सचेत हो गए। फिर आप जी ने बताया कि यह बाबा जिंदा रूप में स्वयं पूर्ण परमात्मा कबीर जी थे,यही पूर्ण परमात्मा काशी में धाणक (जुलाहा) रूपमें एक सौ बीस वर्ष रह कर सशरीर वापिस चले गए थे। कल मुझे अपने साथ सतलोक लेकर गए थे। आज वापिस छोड़ा है। माता-पिता ने बच्चे के स्वस्थ हो जाने पर सुख की सांस ली,बच्चे की बातों पर विशेषध्यान नहीं दिया।आदरणीय घीसा दास साहेब जी समाज की परवाह न करते हुए भक्ति प्रचार मेंलगे रहे तथा पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर्देव) के उपदेशों का प्रचार करने लगे। सर्व को बताने लगे कि वही कबीर जी जो काशी में जुलाहा रूप में रह कर चला गया,पूर्ण परमात्मा है,वह साकार है।
हम ही लहर तरंग उठावे , हम ही प्रगट हम छिप जावे I
Il भग की राह हम नहीं आए, जन्म मरण में नहीं समाए l
त्रीगुण पांच तत्व हमरे नाहीं, इच्छा रूपी देह हम आहीं ll
अनंतकोटी ब्रम्हांड का एक रति नही भार...
सदगुरू पुरुष कबीर है कुल के सिरजनहार...
कबीर–राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नांही संसार।
जिन साहेब संसार किया, सो किन्हूं न जन्म्या नार।।
सतगुरू बोले अमृत वाणी | गुरूबिन मुक्ति नही रे प्रानी ||
गुरू है आदी अंत के दाता गुरू है मुक्ति पदारथ भ्राता ||
गुरू है गंगा काशी अस्थाना चारी वेद गुरू गमते जाना ||
गुरू है सुरसरी निर्मल धारा | बिन गुरू घट नाहिं हो उजियारा||
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आदरणीय घीसा दास साहेब जी को भी पूज्य पारब्रह्म कबीर परमेश्वर जी सशरीर मिले-
**********************
भारत वर्ष सदा से ही संतों के आशीर्वाद युक्त रहा है। प्रभु के भेजे संत व स्वयं परमेश्वर समय-समय पर इस भूतल को पावन करते रहे हैं। उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ में एक पावन ग्राम खेखड़ा है,जिसमें विक्रमी सं.1860सन्1803में परमेश्वर के कृपा पात्र संत घीसा दास जी का आविर्भाव हुआ। जब आप जी सात वर्ष के हुए तो पूर्ण ब्रह्म कविर्देव (कबीर परमेश्वर) सतलोक (ऋतधाम) से सशरीर आए तथा गाँव के बाहर खेल रहे आपजी को दर्शन दिए। परम पूज्य कबीर साहेब (कविर्देव) ने अपने प्यारे हंस घीसादास जी को प्रभु साधना करने को कहा तथा लगभग एक घण्टे तक सत्संग सुनाया। बहुत से बच्चे उपस्थित थेतथा एक वृद्धा भी उपस्थित थी। परमेश्वर कबीर जी के मुख कमल से अपनी ही (परमेश्वर की) महिमा सुनकर आदरणीय घीसा दास साहेब जी ने सत्यलोकचलने की प्रबल इच्छा व्यक्त की। तब प्रभु कबीर (कविर्देव) ने कहा कि पुत्रा आओ,एकांत स्थान पर मंत्रा दान करूंगा। अन्य श्रोताओं से200फुट की दूरी पर ले जाकर नाम दान किया,मंत्रित जल अपने लोटे(एक पात्रा) से पिलाया तथा कुछ मिश्री संत घीसा दास साहेब जी को खिलाई। शाम का अंधेरा होने लगा था। परमेश्वर कबीर (कविर्देव) अन्तध्र्यान हो गए। सात वर्षीय बालक घीसादास साहेब जी अचेत हो गए। वृद्धा भतेरी ने गाँव में आकर आप जी के माता-पिता को बताया कि आपके बच्चे को एक जिन्दा महात्मा ने मन्त्रिात जल पिला दिया,तुम्हारा बेटा तो अचेत हो गया तथा वह जिन्दा अदृश हो गया। आपजी के माता-पिता जी को वृद्ध अवस्था में एक संत के आशीर्वाद से संतान रूप में आपजी कीप्राप्ति हुई थी। समाचार सुनते ही माता-पिता अचेत हो गए। अन्य ग्रामवासी घटना स्थल पर पहुँचे और अचेत अवस्था में ही बालक घीसा दास साहेब जी को घर ले आए। जब माता-पिता होश में आए। बच्चे की गंभीर दशा देखकर विलाप करने लगे। सुबह सूर्य उदय होते ही बालक घीसा जी सचेत हो गए। फिर आप जी ने बताया कि यह बाबा जिंदा रूप में स्वयं पूर्ण परमात्मा कबीर जी थे,यही पूर्ण परमात्मा काशी में धाणक (जुलाहा) रूपमें एक सौ बीस वर्ष रह कर सशरीर वापिस चले गए थे। कल मुझे अपने साथ सतलोक लेकर गए थे। आज वापिस छोड़ा है। माता-पिता ने बच्चे के स्वस्थ हो जाने पर सुख की सांस ली,बच्चे की बातों पर विशेषध्यान नहीं दिया।आदरणीय घीसा दास साहेब जी समाज की परवाह न करते हुए भक्ति प्रचार मेंलगे रहे तथा पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर्देव) के उपदेशों का प्रचार करने लगे। सर्व को बताने लगे कि वही कबीर जी जो काशी में जुलाहा रूप में रह कर चला गया,पूर्ण परमात्मा है,वह साकार है।
Saturday, September 10, 2016
कबीर,कबीरा वा दिन यादकर, पग ऊपरि तल सीस। मृतु मंडल मेँ आयके , बिसरि गया जगदीस ।।
कबीर,राम नाम जाना नहीँ , ता मुख आन धरम ।
के मूसा के कातरा , खाता गया जनम ।।
कबीर, राम नाम जाना नही, पाला सकल कुटुम्ब ।
धन्धचही मेँ पचि मरा , बार भई नहिँ बुम्ब ।।
कबीर,राम नाम जाना नही, मेला मना बिसार ।
ते नर हाली बालदी , सदा पराये बार ।।
कबीर,इसऔसरि चेता नही, पशु ज्योँ पाली देह ।
राम नाम जाना नहीँ , अन्तपरि मुख खेह ।।
कबीर,कबिरा या संसार मेँ , घने मनुष्य मति हीन ।
राम नाम जाना नहीँ , आये टापा दीन ।।
कबीर,राम नाम जाना नहीँ, बात बिनूठी मूल ।
हरी सा ही तू बिसारिया, अन्तपरी मुख धुल ।।
कबीर,राम नाम जाना नहीँ, लागी मोटी खोरि ।
काया हांडी काठकी , ना वह चढैँ बहोरि ।।
कबीर,राम नाम जाना नहीँ, चूक्यो अबकी घात ।
माटी मिलन कुम्हार की, घनी सहैगी लात ।।
कबीर,कबीरा वा दिन यादकर, पग ऊपरि तल सीस।
मृतु मंडल मेँ आयके , बिसरि गया जगदीस ।।
कबीर,हरिँ के नाम बिन , राजा रासभ(गधा)होय।
माटी लदै कुभंहार कै , घास ना नीरै कोय ।।
कबीर,हरि के नाम बिना, नारी कुकरी(कुत्ती)होय।
गली-2 भौँकत फिरै, टूक ना डालै कोय ।।
कबीर,पाँच पहर धंधै गया, तीन पहर रहा सोय ।
एक पहर हरि ना भज्योँ , मुक्त कहां ते होय ।।
कबीर,धूमधाम मेँ दिन गया, सोचत हो गई सांझ ।
एक घरि हरि ना भजा , जननी जनि भई बांझ ।।
कबीर,राति गवांई सोय के , घोस गवांया खाय ।
हीरा जन्म अमोल है , कौड़ी बदले जाय ।।
कबीर,चिँता तै हरिनाम की, और न चितवै दास ।
जा कछु चितवे नाम बिनु , सोइ काल का फाँस ।।
कबीर,जबही नाम ह्रदय धरयो , भयो पाप को नाश ।
मानौँ चिगांरी अग्नि की, परी पुराने घास ।।
कबीर,नाम जो रति एक है , पाप जो रति हजार ।
आध रति घट संचरै , जारि करै सब छार ।।
कबीर,राम नाम को सुमिरता , अधरे पतित अनेक ।
कबीर,राम नाम को सुमिरता, अधम तरे अपार ।
अजामेल गनिका सुपच , सदना सिवरी नार ।।
कबीर,स्वप/ मेँ बरराय के, जोरे कहैगा राम ।
वाके पग की पाँवड़ी , मेरे तन को चाम ।।
शेयर करेँ जन जन तक पहुँचाऐँ मालिँक का सनदेँश।।
http://www.jagatgururampalji.org/booksandpublications.php
*मालिक की और अन्य अमृतवाणी पढ़ने के लिए निचे दिए लिंक पर जाकर पढ़े*
http://m.facebook.com/groups/721807384582889
के मूसा के कातरा , खाता गया जनम ।।
कबीर, राम नाम जाना नही, पाला सकल कुटुम्ब ।
धन्धचही मेँ पचि मरा , बार भई नहिँ बुम्ब ।।
कबीर,राम नाम जाना नही, मेला मना बिसार ।
ते नर हाली बालदी , सदा पराये बार ।।
कबीर,इसऔसरि चेता नही, पशु ज्योँ पाली देह ।
राम नाम जाना नहीँ , अन्तपरि मुख खेह ।।
कबीर,कबिरा या संसार मेँ , घने मनुष्य मति हीन ।
राम नाम जाना नहीँ , आये टापा दीन ।।
कबीर,राम नाम जाना नहीँ, बात बिनूठी मूल ।
हरी सा ही तू बिसारिया, अन्तपरी मुख धुल ।।
कबीर,राम नाम जाना नहीँ, लागी मोटी खोरि ।
काया हांडी काठकी , ना वह चढैँ बहोरि ।।
कबीर,राम नाम जाना नहीँ, चूक्यो अबकी घात ।
माटी मिलन कुम्हार की, घनी सहैगी लात ।।
कबीर,कबीरा वा दिन यादकर, पग ऊपरि तल सीस।
मृतु मंडल मेँ आयके , बिसरि गया जगदीस ।।
कबीर,हरिँ के नाम बिन , राजा रासभ(गधा)होय।
माटी लदै कुभंहार कै , घास ना नीरै कोय ।।
कबीर,हरि के नाम बिना, नारी कुकरी(कुत्ती)होय।
गली-2 भौँकत फिरै, टूक ना डालै कोय ।।
कबीर,पाँच पहर धंधै गया, तीन पहर रहा सोय ।
एक पहर हरि ना भज्योँ , मुक्त कहां ते होय ।।
कबीर,धूमधाम मेँ दिन गया, सोचत हो गई सांझ ।
एक घरि हरि ना भजा , जननी जनि भई बांझ ।।
कबीर,राति गवांई सोय के , घोस गवांया खाय ।
हीरा जन्म अमोल है , कौड़ी बदले जाय ।।
कबीर,चिँता तै हरिनाम की, और न चितवै दास ।
जा कछु चितवे नाम बिनु , सोइ काल का फाँस ।।
कबीर,जबही नाम ह्रदय धरयो , भयो पाप को नाश ।
मानौँ चिगांरी अग्नि की, परी पुराने घास ।।
कबीर,नाम जो रति एक है , पाप जो रति हजार ।
आध रति घट संचरै , जारि करै सब छार ।।
कबीर,राम नाम को सुमिरता , अधरे पतित अनेक ।
कबीर,राम नाम को सुमिरता, अधम तरे अपार ।
अजामेल गनिका सुपच , सदना सिवरी नार ।।
कबीर,स्वप/ मेँ बरराय के, जोरे कहैगा राम ।
वाके पग की पाँवड़ी , मेरे तन को चाम ।।
शेयर करेँ जन जन तक पहुँचाऐँ मालिँक का सनदेँश।।
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।। अध काफर बोध ।।
।। अध काफर बोध ।।
काफर बोध सुनो रे भाई , दोहूँ दीन बिच राम खुदाई ।
काफर सो माता दे गारी , वै काफर जो खेलै सारी ।।1।।
काफर कूड़ी साखि भरांही , काफर चोरी खट्या खांही ।
काफर दान यज्ञ नहीँ करहीँ , काफर साधु संत से अरहिँ ।।2।।
काफर तीरथ व्रत उठावैँ , सत्यवादी जन निश्चय लावैँ ।
काफर पिता बचन उलटाहीँ , इतने काफर दोजिख जाहीँ ।।3।।
सत्यकर मानोँ बचन हमारा , काफर जगत करुं निरबारा ।
वै काफर जो बड़-बड़ बोलै , काफर कहो घाटि जो तोलै ।।4।।
वै काफर ऋण हत्या राखै , वै काफर पर दारा ताकै ।
काफर स्वाल सुखन कूँ मोड़ै , काफर प्रीति नीच सूं जोड़ै ।।5।।
काफर काफर छाडि हूँ , सत्यवादी से नेह ।
गरीबदास जुग जुग पड़ै , काफर के मुख खेहं ।।6।।
काफर बोध सुनो रे भाई , दोहूँ दीन बिच राम खुदाई ।
काफर सो माता दे गारी , वै काफर जो खेलै सारी ।।1।।
काफर कूड़ी साखि भरांही , काफर चोरी खट्या खांही ।
काफर दान यज्ञ नहीँ करहीँ , काफर साधु संत से अरहिँ ।।2।।
काफर तीरथ व्रत उठावैँ , सत्यवादी जन निश्चय लावैँ ।
काफर पिता बचन उलटाहीँ , इतने काफर दोजिख जाहीँ ।।3।।
सत्यकर मानोँ बचन हमारा , काफर जगत करुं निरबारा ।
वै काफर जो बड़-बड़ बोलै , काफर कहो घाटि जो तोलै ।।4।।
वै काफर ऋण हत्या राखै , वै काफर पर दारा ताकै ।
काफर स्वाल सुखन कूँ मोड़ै , काफर प्रीति नीच सूं जोड़ै ।।5।।
काफर काफर छाडि हूँ , सत्यवादी से नेह ।
गरीबदास जुग जुग पड़ै , काफर के मुख खेहं ।।6।।
वै काफर जो कन्या मारैँ , वै काफर जो बन खंड जारैँ ।
वै काफर जो नारि हितांही , वै काफर जो तोरैँ बांही ।।7।।
वै काफर जो अंतर काती , वै काफर देवल जाती ।
वै काफर जो डाक बजावैँ , वै काफर जो शीश हलावैँ ।।8।।
वै काफर जो करैँ कंदूरी ,वै काफर जिन नहीँ सबूरी ।
वै काफर जो बकरे खांही , वै काफर नहीँ साधु जिमाहीँ।।9।।
वै काफर जो मांस मसाली , वै काफर जो मारै हाली ।
वै काफर जो खेती चोरं , वै काफर जो मारैँ मोरं ।।10
वै काफर जो नारि हितांही , वै काफर जो तोरैँ बांही ।।7।।
वै काफर जो अंतर काती , वै काफर देवल जाती ।
वै काफर जो डाक बजावैँ , वै काफर जो शीश हलावैँ ।।8।।
वै काफर जो करैँ कंदूरी ,वै काफर जिन नहीँ सबूरी ।
वै काफर जो बकरे खांही , वै काफर नहीँ साधु जिमाहीँ।।9।।
वै काफर जो मांस मसाली , वै काफर जो मारै हाली ।
वै काफर जो खेती चोरं , वै काफर जो मारैँ मोरं ।।10
Tuesday, July 5, 2016
तन मन शीश ईश अपने पर , पहले मे चोट चढ़ावै,
तन मन शीश ईश अपने पर,
तन मन शीश ईश अपने पर ,
पहले मे चोट चढ़ावै,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी...(टेक)
भाई सतगुरु तिलक अजप्पा माला,
युक्त जटा रखवावे,
सतगुरु तिलक अजप्पा माला,
युक्त जटा रखवावै,
जद कोपिन सत्य का चोला ,
भीतर भेख बनावे,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी...
लोक लाज मर्यादा जगत की,
त्रण जो तोड़ भगावै,
कामिनी कनक जहर कर जानै,
वो शहर अगम पुर जावै,
जब कोई राम भगत,
गति पावै हो जी,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी...
जो पतिव्रता पति से राखि,
आन पुरुष ना भावै,
बसे पीहर में सुरत परित में,
यो कोई ध्यान लगावै,
जब कोई राम भगत,
गति पावै हो जी,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी...
भाई निन्दा अस्तुति मान बडाई,
मन से मार गिरावै,
अष्ट सिद्धि की अटक ना माने,
वो आगे कदम बढ़ावै,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी...
आशा नदी उलट के डाटै,
आडा फन्द लगावै,
भवजल खार समुद्र मे,
फिर बहुर ना खोड़ मिलावै,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी...
गगन महल गोविन्द गुमानी,
पलक माहे पहुंचावै,
गगन महल गोविन्द गुमानी,
पलक माहे पहुंचावै,
नितानन्द माटी का मन्दिर,
नूर तेज हो जावै,
जब कोई राम भगत,
गति पावै हो जी,
जब कोई राम भगत,
गति पावै हो जी...
तन मन शीश ईश अपने पर,
तन मन शीश ईश अपने पर,
पहले मे चोट चढ़ावै,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी,
जब कोई राम भगत,
गति पावै हो जी..
सत् साहेब..
तन मन शीश ईश अपने पर ,
पहले मे चोट चढ़ावै,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी...(टेक)
भाई सतगुरु तिलक अजप्पा माला,
युक्त जटा रखवावे,
सतगुरु तिलक अजप्पा माला,
युक्त जटा रखवावै,
जद कोपिन सत्य का चोला ,
भीतर भेख बनावे,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी...
लोक लाज मर्यादा जगत की,
त्रण जो तोड़ भगावै,
कामिनी कनक जहर कर जानै,
वो शहर अगम पुर जावै,
जब कोई राम भगत,
गति पावै हो जी,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी...
जो पतिव्रता पति से राखि,
आन पुरुष ना भावै,
बसे पीहर में सुरत परित में,
यो कोई ध्यान लगावै,
जब कोई राम भगत,
गति पावै हो जी,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी...
भाई निन्दा अस्तुति मान बडाई,
मन से मार गिरावै,
अष्ट सिद्धि की अटक ना माने,
वो आगे कदम बढ़ावै,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी...
आशा नदी उलट के डाटै,
आडा फन्द लगावै,
भवजल खार समुद्र मे,
फिर बहुर ना खोड़ मिलावै,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी...
गगन महल गोविन्द गुमानी,
पलक माहे पहुंचावै,
गगन महल गोविन्द गुमानी,
पलक माहे पहुंचावै,
नितानन्द माटी का मन्दिर,
नूर तेज हो जावै,
जब कोई राम भगत,
गति पावै हो जी,
जब कोई राम भगत,
गति पावै हो जी...
तन मन शीश ईश अपने पर,
तन मन शीश ईश अपने पर,
पहले मे चोट चढ़ावै,
जब कोई राम भगत ,
गति पावै हो जी,
जब कोई राम भगत,
गति पावै हो जी..
सत् साहेब..
Wednesday, June 29, 2016
जो सुख पावो राम भजन में, सो सुख नाही अमीरी में
मन लागो मेरो यार फकीरी में॥
जो सुख पावो राम भजन में, सो सुख नाही अमीरी में ।
भला बुरा सब को सुन लीजै, कर गुजरान गरीबी में ॥
मन लागो मेरो यार फकीरी में ॥
प्रेम नगर में रहिनी हमारी, भलि बलि आई सबूरी में ।
हाथ में कूंडी, बगल में सोटा, चारो दिशा जगीरी में ॥
मन लागो मेरो यार फकीरी में ॥
आखिर यह तन ख़ाक मिलेगा, कहाँ फिरत मगरूरी में ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, साहिब मिलै सबूरी में ॥
मन लागो मेरो यार फकीरी में ॥
- कबीर साहेब
जो सुख पावो राम भजन में, सो सुख नाही अमीरी में ।
भला बुरा सब को सुन लीजै, कर गुजरान गरीबी में ॥
मन लागो मेरो यार फकीरी में ॥
प्रेम नगर में रहिनी हमारी, भलि बलि आई सबूरी में ।
हाथ में कूंडी, बगल में सोटा, चारो दिशा जगीरी में ॥
मन लागो मेरो यार फकीरी में ॥
आखिर यह तन ख़ाक मिलेगा, कहाँ फिरत मगरूरी में ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, साहिब मिलै सबूरी में ॥
मन लागो मेरो यार फकीरी में ॥
- कबीर साहेब
पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी।
पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी।
आतम ज्ञान बिना नर भटके, कोई मथुरा कोई काशी।
मिरगा नाभि बसे कस्तूरी, बन बन फिरत उदासी।।
पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी।।
जल-बिच कमल कमल बिच कलियाँ तां पर भँवर निवासी।
सो मन बस त्रैलोक्य भयो हैं, यति सती सन्यासी।
पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी।।
है हाजिर तेहि दूर बतावें, दूर की बात निरासी।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, गुरु बिन भरम न जासी।
- कबीर साहेब
आतम ज्ञान बिना नर भटके, कोई मथुरा कोई काशी।
मिरगा नाभि बसे कस्तूरी, बन बन फिरत उदासी।।
पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी।।
जल-बिच कमल कमल बिच कलियाँ तां पर भँवर निवासी।
सो मन बस त्रैलोक्य भयो हैं, यति सती सन्यासी।
पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी।।
है हाजिर तेहि दूर बतावें, दूर की बात निरासी।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, गुरु बिन भरम न जासी।
- कबीर साहेब
जगत् में, कैसा नाता रे।
मन फूला फूला फिरे जगत् में, कैसा नाता रे।
माता कहै यह पुत्र हमारा, बहन कहे बीर मेरा।
भाई कहै यह भुजा हमारी, नारि कहे नर मेरा।।
जगत में कैसा नाता रे ।।
पैर पकरि के माता रोवे, बांह पकरि के भाई।
लपटि झपटि के तिरिया रोवे, हंस अकेला जाई।।
जगत में कैसा नाता रे ।।
चार जणा मिल गजी बनाई, चढ़ा काठ की घोड़ी ।
चार कोने आग लगाया, फूंक दियो जस होरी।।
जगत में कैसा नाता रे ।।
हाड़ जरे जस लाकड़ी, केस जरे जस घासा।
सोना ऐसी काया जरि गई, कोइ न आयो पासा।।
जगत में कैसा नाता रे ।।
घर की तिरया देखण लागी ढूंढत फिर चहुँ देशा
कहे कबीर सुनो भई साधु, एक नाम की आसा।।
जगत में कैसा नाता रे ।।
माता कहै यह पुत्र हमारा, बहन कहे बीर मेरा।
भाई कहै यह भुजा हमारी, नारि कहे नर मेरा।।
जगत में कैसा नाता रे ।।
पैर पकरि के माता रोवे, बांह पकरि के भाई।
लपटि झपटि के तिरिया रोवे, हंस अकेला जाई।।
जगत में कैसा नाता रे ।।
चार जणा मिल गजी बनाई, चढ़ा काठ की घोड़ी ।
चार कोने आग लगाया, फूंक दियो जस होरी।।
जगत में कैसा नाता रे ।।
हाड़ जरे जस लाकड़ी, केस जरे जस घासा।
सोना ऐसी काया जरि गई, कोइ न आयो पासा।।
जगत में कैसा नाता रे ।।
घर की तिरया देखण लागी ढूंढत फिर चहुँ देशा
कहे कबीर सुनो भई साधु, एक नाम की आसा।।
जगत में कैसा नाता रे ।।
- कबीर साहेब
मोको कहाँ ढूंढ़े बन्दे मैं तो तेरे पास में॥
मोको कहाँ ढूंढ़े बन्दे मैं तो तेरे पास में॥
ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकान्त निवास में।
ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना काशी कैलाश में॥
मोको कहाँ ढूंढ़े बन्दे मैं तो तेरे पास में॥
ना मैं जप मे ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपवास में।
ना मैं क्रियाकर्म में रहता, ना ही योग सन्यास ॥
मोको कहाँ ढूंढ़े बन्दे मैं तो तेरे पास में॥
नहिं प्राण में नहिं पिण्ड में, ना ब्रह्मांड आकाश में।
ना मैं भृकुटी भंवर गुफा में, सब श्वासन की श्वास में॥
मोको कहाँ ढूंढ़े बन्दे मैं तो तेरे पास में॥
खोजि होय तो तुरंत मिलिहौं, पल भर की तलाश में।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, मैं तो हूं विश्वास में॥
मोको कहाँ ढूंढ़े बन्दे मैं तो तेरे पास में॥
- कबीर
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